Saturday, 2 May 2015

दबंगई के बल पर गरीब को किया जा रहा प्रताड़ित !

मेरा नाम महराजी देवी है मेरी उम्र 55 वर्ष है। मेरे पति का नाम मोहन लाल है। मैं अशिक्षित हूँ। मेरे तीन लड़के और दो लड़किया है। गीता देवी 40 वर्ष, सुनीता देवी 38 वर्ष, रामू 36 वर्ष, और श्याम प्यारी 34 वर्ष यह सब विवाहित है। मेरा छोटा बेटा अनूप कुमार उर्फ बब्लू अविवाहित हैं, मै जो भी खेतो में बनी मजदूरी मिलती है उसी को करके अपने परिवार के साथ हॅसी खुशी जीवन गुजार रही थी। मेरा मझला लड़का हमसे अलग रहता है और उसी में मेरे पति और छोटा लड़का ये सब एक में ही रहते है। हम सभी मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहे है।
       मैं ग्राम-भीटा, पोस्ट-भीटा, थाना-घुरपुर, ब्लाक-जसरा, जिला-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ।
       वह शनिवार 14 जुलाई, 2012 का दिन था। उस  समय सुबह के 8:00 बज रहे थे। मैं आवासीय पट्टा की हुई जमीन पर गाय गोरू देख रही थी। तभी पाल के लोग हसुआ और लाठी डन्डे से लैस होकर आये और हमारे घरो को उजाड़ने लगे। हम बोले यह क्या कर हरे है। उस समय बस्ती की कुछ महिलायें अपना-अपना काम कर रही थी। वह भी देखकर आवाक रह गयी और बोली क्यों किसी का घर उजाड़ रहे है इतना सुनते ही वह लोग हम पर गन्दी-गन्दी गालिया देते हुए टुट पड़े बोले साली जबान चलाती है कहते हुए मुझ पर लाठी से मेरे हाथ पर मारे। मैं उनकी मार से अपना बचाव करती रही वह लोग बलवान थे। हम बूढ़ी कमजोर महिला थी।
उनके आगे हम असहाय महसूस कर रहे थे] फिर भी हिम्मत करके उनका सामना करते रहे। सब अपने-अपने चीजो को बचाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन वह लोग सब कुछ हमारी आँखो के सामने रौद रहे थे। यह देखकर बहुत दु:ख हो रहा था। जानवरो का भी खुटा से खुला छोड़ दिया उन लोगों के इस मार पीट से डर के कारण जानवर भी बस्ती की ओर भागे। उन्हे भी अपने जान की चिन्ता थी। वह बेजुबान है लेकिन शायद इन इन्सानो से समझदार है। उस समय चारो तरफ लाठिया ही लाठिया दिखाई पड़ रही थी। हम लोगो की चिल्लाने की आवाज सुनकर गाँव बस्ती के लोग आ गये। चारो तरफ कोहराम मचा हुआ था। कही से मदद न मिलने पर हम लोग अपनी मदद और रक्षा के लिए घुरपुर थाने तीन किलोमीटर पैदल रोते बिलखते हुए भागे किसी के आसू थम नहीं रहे थे। रास्ते भर यही सोचती थी तो मेरा रोआ काप जाता है। भगवान सीधा था नही तो हम में से किसी की जान चली जाती। यह कहकर वह दुःखी हो गयी। थाने पहुँचने के बाद हम लोगो ने दरोगा साहब को अपने ऊपर हुए अत्याचार के बारे में बताया बोला साहब पाल लोग हमारी बस्ती उजाड़ रहे है। हमारी महिलाओं को मारे है। रीना के सिर से खुन निकल रहा था। हम लोगों ने भी अपने चोट को दिखाया लेकिन वह हमारी बातो की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे थे। हम लोग उनसे मदद माग रहे थे गिड़गिड़ा रहे थे। साहब हमारी मदद करो हमे बचा लो, तब वह हमे ही गालिया देने लगे और कहने लगे तुम लोग झगड़ा करती हो। यह कहते हुए हमारे ही लोगो को राजकुमार सुशील को बन्द कर दिये। उन्हे ऐसा करते देख हम बोले साहब यह क्या कर रहे है। बोले साले बन्द रहोगें तथी अक्ल ठिकाने आयेगी। यह सुनकर बहुत अफसोस हुआ कि हमे थाने में मदद के लिए नही आना चाहिए था। उस समय कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि हम क्या करे बेबस होकर हम पुलिस से गिड़गिड़ा रहे थे। पुलिस हमारी मदद नहीं कर रही थी। हम गरीब थे अमीरो से उनकी जेब भरी थी। भला हमारी मदद वह क्यो करते। हम लोगो को तब तक थाने में रखा गया जब तक पाल के आदमी और पुलिस वालो ने हमारी बस्ती को उजाड़ नहीं दिया। जो कुछ भी लोगों के पास था। एक-एक जोड़कर हम लोगो ने एक मड़ई डाली थी उसे सब तोड़ दिया। बास, बल्ली, पन्नी, छपरा और हौदा सब कुछ मेरा उठा ले गये। उन लोगों ने सभी का नुकसान किया। हम गरीब महल नहीं खड़ा कर सकते लेकिन झोपड़ी बनाकर अपनी जिन्दगी गुजारते है। हमारा वही सब कुछ था। दिन भर गाड़ी से कमाई करते है तब जाकर दो वक्त की रोटी हमे मिलती है। यह सब देखकर बहुत दुःख हुआ अभी भी सोचती हूँ तो तकलीफ होती है। सबसे बड़ा दुःख हुआ कि थाने वालो ने भी हमारा साथ नहीं दिया उन आरोपियों की मदद की।
       थाने से आने के बाद हम इतना टुट गये थे कि जो जहाँ पाया वही बैठ गया। उस समय लग रहा था जैसे बहुत दिन की थकान हो गयी है। सब कुछ बुझा-बुझा लग रहा था। बच्चें भी मुहॅ मोड़े एक तरफ पडे़ थे। अपने आसुओं को रोककर मै उनकी हिम्मत बनी थी। मुझे रोता देखे उन्हे भी तकलीफ होती। बिना खाये-पीये दो दिन तक हम लोग दुःख में रहे भगवान यह कैसा सा दिन दिखा रहा है। इस उम्र में यही सब देखना बाकी है। यह कहकर चुप हो गयी और लम्बी सास लेने लगी। उस समय चारो तरफ मातम सा छाया था। ऐसा लग रहा था कि कही कोई मर गया है उसमे भी लोग रोकर अपना दुःख कम कर लेते है। मैने अपनी जिन्दगी में ऐसा झगड़ा पहली बार देखा है। मै इस घटना को देखकर डर गयी हूँ। दिन रात बच्चों की फिक्र लगी रहती हैं काम का भी कोई भरोसा नहीं रहता। जब गाड़ी आती हैं तो बालू लदता है उसी से जो आमदनी होती है उसी मे गुजारा होता है। हमे भी जो बनी मजदूरी मिलता है उसे करके परिवार का मदद करती हूँ।
       इस घटना के बाद हम पूरी तरह टुट गये है सब कुछ बिखर गया है पहले की तरह हम बेखौफ नही है। अब दिन रात बच्चों की चिन्ता लगी रहती हैं जब वह शाम को सही सलामत घर लैटते है तो सुकुन मिलता है। मैं भी पहले की तरह बाहर नहीं जाती सिर्फ काम से निकलना होता है। उस घटना स्थल पर उस दिन के बाद मै झाकने नहीं गयी। दुर से देखा है उन लोगों ने वहा गेहू बोया है देखती हूँ तो बहुत दुःख होता है। उनका कहना है कि हमारे पास पैसा है तो हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह सब सुनती हूँ तो मुझे बहुत गुस्सा आता है। हम लोगों को असहाय पाकर हमको मारकर हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया। पुलिस हमारा साथ देती तो शायद ऐसा नहीं होता। हमारे साथ उन लोगों ने अन्याय किया है। उन लोगों को सजा मिले। जो हमारी मदद के लिए नही आया तो और लोगो से हम क्या उम्मीद कर सकते है। मानवता पूरी तरह से मर गयी है।
रात में सोती हूँ तो नीद नहीं आती है वह घटनाए बार-बार हमारी आँखों के सामने घुमती रहती है उनकी मार से अभी भी दर्द होता है। हमेशा मन घबराता रहता हैं मुझे तभी चैन मिलेगा जब आरोपियों को सजा मिलेगी और मेरे साथ न्याय होगा। हमारे सम्मान को जो ठेस पहुची है उसकी भरपाई तभी होगी जब हमारे साथ न्याय होगा।
       इस गरीबी में कोर्ट कचहरी का चक्कर न्याय के लिए लगा रहे है। उसमें भी तरीख पर तारीख पड रही है। पेट काटकर न्याय की लड़ाई लड़ रहे है कि हमे जीते जी न्याय मिल जाये।
साक्षात्कारकर्ता  - फरहत शबा खानम                                    
संघर्षरत पीड़िता - महाराजी देवी



               







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