Tuesday 29 September 2015

मुझे यह नही मालूम थी कि चोरी की गाड़ी है !

सदियों से दलित चाहे गुनहगार हो या न हो लेकिन सजा हर हाल में भुगतता वही है। वह अशिक्षित व मजदूर होता है] उसके अन्दर इतनी चालाकी व होषियारी नही रहती है। ऐसी ही घटना में फंसे एक ऐसे पीड़ित की कहानी उसी की जुबानी से सुने!

मेरा नाम अभय राज है, मेरी उम्र-26 वर्ष है मेरे पिता श्री जगत पाल है। मैं कक्षा 7 तक पढ़ा हूँ। मैं विवाहित हूँ, मेरे तीन बच्चें है, मैं बनी मजदूरी करता हूँ।
मैं ग्राम-नरसिंहपुर, थाना-घुरपुर, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना, जनपद-इलाहाबाद का मूल निवासी हूँ। 28 मार्च, 2015 को मेरे लिए इतना बुरा होगा मैं नही जानता था। कुछ काम से मैं नैनी (इलाहाबाद) गया हुआ था, दोपहर का समय था। तभी गाँव के पंण्डित सुशील का फोन आया। उसने मुझे भडरा चैराहे पर बुलाया। मैं कोई भी होने वाली अनहोनी से अन्जान था, मैं चला गया मैंने कोई गलती नही की थी, जब मैं गया तो वहां उसके साथ छः पुलिस वाले थे, उन्हे देखकर मैं धबरा गया और सोचा कि इसके साथ यह लोग क्यो खडे़ है। पटरा बल्ली की दुकान थी, वहाँ पर जहाँ वह लोग खडे थे, वहाँ बिना कुछ पूछे कहे वह मुझे एग्रीकल्चर चौकी ले गये। उस समय मेरे घर वालों को कोई खबर नही थी। चौकी जाने पर पता चला कि गाड़ी चोरी का मामला है। जारी गाँव का दीपक पाल था, उसे भी इसी आरोप में चौकी पर रखा गया था। वहाँ जाकर मुझे सारा मामला समझ में आया। उभरी के अनवर को 2500/-- रुपये में गाड़ी दो पहिया खरीदी था। मुझे नही मालूम था कि यह गाड़ी चोरी की है। उसके बाद मैने भी 13000/-में गाँव से ही उस गाड़ी को खरीद लिया। उसका कागज नही था। 

वह बोला बाद में हम कागज देगे हमने कागज को नहीं लिया यही गलती मुझसे हो गयी थी, अगर कागज होता तो शायद आज यह दिन नही देखना पड़ता रातभर मैं चौकी में ही था पुलिस वाले रात करीब आठ बजे मेरे छोटे भाई कन्हैया को भी पकड़कर ले आये और हम लोगो को बन्द कर दिया और दस से बारह डण्डा पुलिस वालों ने मुझे पीटा। दीपक पाल से पुलिस वालो ने पैसा लेकर छोड़ दिया जिन्होने पैसा नही दिया। वह थाने पर ही थे, सुशील को तो मैं नहीं था जानता लेकिन हम लोग तो सिर्फ खरीदने के गुनहगार थे। रातभर मैं फिक्र के मारे सो नही पाया। मैं अनुसूचित जाति का जरुर हूँ। लेकिन चोरी नहीं कर सकता। गाँव में मेरी इज्जत है, मेरे पिता एक अच्छे पोस्ट पर सरकारी विभाग में थे, अब वह रिटायर हो गये है। रात भर मैं यही सब सोचता रहा कि मेरा बड़ा भाई कृष्ण चन्द्र मुझसे मिलने आया था। उस समय मुझे बहुत दुख हुआ और हमें शर्म भी आयी कि आज हम लोगों की छोटी सी गलती के कारण मेरे घर वाले परेशान है। उन्हें लोगों के बीच हमको शर्मिन्दा होना पड़ रहा है। लेकिन अब क्या कर सकता। भईया से ही पता चला कि इस घटना से मेरे पिता बहुत दुखी है। दुसरे दिन हमें नैनी थाना भेज दिया गया। वहाँ रातभर रखा, वहाँ से तीसरे दिन चाका ब्लाक से मेडिकल कराकर जेल भेज दिया गया।  सर्किल न0 6 में मुझे रखा गया 120 से 125 आदमी उस सर्किल में थे, वहाँ मुझे फुल तोड़कर माला बनाने का काम कराया जाता था। एक महिना 8 दिन तक मैं जेल में था। जब तक था अजीब सी उलझन रहती थी। दिन रात मै यही सोचता कि बाहर जाकर किसको क्या मुँह दिखाऊगा। पिताजी से कैसे नजर मिला पाऊंगा यही सब सोचता रहता था। हमेशा परिवार की चिन्ता लगी रहती थी। मेरी पत्नी मेरे बारे में क्या सोचते होगे। मेरे बच्चों के ऊपर इसका क्या असर पडे़गा। गाँव वाले भी तरह-तरह की बात कर रहे होगें। दिन रात इसी में जुझता रहता था। मेरा भाई रामतीरथ हम लोगों से मिलने जाते थे, हमको उस समय बहुत शर्मिन्दगी महसुस हो रही थी।
उभारी के अनवर की गाड़ी पकड़े जाने के बाद से ही पुलिस वाले इस मामले की तफ्तीश करने लगे गाँव का ही सुशील उसी नाते वह गाड़ी खरीदने व बेचने का काम करता था। इसलिए हम लोग भी उसे गाड़ी खरीदकर बेच दिये। हमें यह नही मालूम था कि चोरी का है। विश्वास के कारण यह सब हुआ। जेल में हमें कभी सुबह में चना, गुड़ और कभी पाव रोटी नाश्ते में मिलता था। दोपहर को दाल चावल और रोटी मिलती थी। खाना बिल्कुल अच्छा नही लगता था दिल अजीब तरह से धबराता था। मैं यही सोचता कि इससे अच्छा तो मैं बाहर ही था। आठ-नौ साल जबलपुर में बनी मजदूरी करता था। वही रहा होता तो आज यह दिन नही देखना पड़ता।

      जब से जेल से छुटकर आया हूँ पिता जी से मिलने की हिम्मत नही हुई है। किस मुँह से जाऊ मेरा छोटा भाई कन्हैया जो मेरे साथ जेल में था उसकी शादी वहां से आने के बाद हुई जो खुशी होनी चाहिए थी वह नही हुई। बेमन से सारी रस्में अदा की गयी। यह मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा दाग है। इससे मेरे पिता जी और मेरा पुरा परिवार बहुत शर्मिन्दगी महसुस कर रहा हूँ। जब से आया हूँ कही आने-जाने का मन नही करता है। पहले की तरह कुछ भी नही है। बस यही हमेशा लगता है कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते होगें। त्योहार शादी विवाह आना-जाना सब पहले जैसा होता था कुछ भी नही हो पा रहा है। रात दिन चिन्ता लगी रहती है। रातो को नींद नही आती है। मुकदमा कायम हो गया है। जमानत पर छुटा हूँ। मैं सिर्फ खरीदकर बेचने का गुनेहगार हूँ। मैंने कोई चोरी नही की है। अगर मुझे मालूम होता तो मैं कभी ऐसा नही करता।
       मैं चाहता हूँ कि मुझसे जो अन्जाने में गलती हुई है। उससे मेरे परिवार को शर्मिन्दगी हुई है। मैं मांफी मांगना चाहता हूँ। न्यायालय जो भी न्याय मुझे दे वह मुझे कबुल होगा। आइन्दा फिर मैं कभी इतनी बड़ी गलती नही करुंगा।


  साक्षाकारकर्ता -(फरहत शबा खानम् व मनोज साहू                        
  संघर्षरत पीड़ित अभय राज