Wednesday 12 November 2014

’’एक बार ससुराल वालो का अत्याचार सहकर छोड़ चुकी हूँ दूबारा नहीं’’


महिलायें सदियों से हमारे समाज में प्रताड़ना की शिकार होती रही है। वह जब अपने एक और अधिकार के लिए लड़ती है तो समाज में उन्हे तरह-तरह की प्रताड़ना मिलती है, फिर भी वह इन तमाम मुश्किलो का सामना कर अपनी मंजिल तय ही कर लेती हैं।

मेरा नाम   सुशीला देवी उम्र 32 वर्ष हैं। मेरे पति स्व0 राजकरन पटेल है। मै अशिक्षित हूँ। मै सरकारी प्राथमिक विद्यालय में खाना बनाने का काम करती हूँ। मै ग्राम-नयापुरा, थाना-घुरपुर, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना, जिला-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ।

मेरा दुबारा विवाह 14 फरवरी, 2005 को स्व0 राजकरन पटेल से हुआ था शादी के बाद से ही मेरे ससुराल वालों द्वारा मुझे सताये जाने लगा। मेरे पति को उन लोगों द्वारा मारा-पीटा जाता था और उन पर यह दबाव बनाया जाता था कि हमे छोड़ दे। मेरे पति की पहली पत्नी को भी ससुराल वालों के दबाव के कारण छोड़ना पड़ा था। मेरे पति का स्वभाव मेरे प्रति अच्छा था। वह हमेशा मेरा साथ देते थे। यह बाते उन लोगों को बर्दाश्त नही होती थी। जिसमें से कुछ जमीन हम लोगों को लिए दी गयी थी। वह जमीन रेलवे में चली गयी। जिसका मुआवजा सरकार द्वारा मिला जिसे मेरे ससुर ने ले लिया था। हमारे पास न अब कोई जमीन थी न ही कोई पैसा। मेरे पति जो बनी मजदूरी करते थे और मै जो कमाती थी उसी से मेरे परिवार का खर्च चलता था।
          
  एक दिन मेरे पति ने मेरे ससुर से कहा बाबूजी दो हजार रुपया हमे दे दिजिए वह कई दिनों तक गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उन्होंने एक रूपया भी नहीं दिया। 4 मई, 2013 शनिवार के दिन मै बाबूजी से बोली बाबूजी उन्हें पैसा दे दिजिए वह बहुत परेशान है, तब उन्होंने कहा अभी उसे और तुम्हें बहुत रोना और परेशान होना है। यह बात कहकर वह कही चले गये। रविवार को भी बाहर रहे। सोमवार के सुबह मेरे पति मुझसे चाय पीने के लिए कुछ पैसा माँग रहे थे। मैने अपने टोक में से दस रुपये का नोट छोड़ कर दिये। वह चाय के पीने चले गये। कुछ देर बीत गया समय बहुत ज्यादा होने लगा तब आस-पास वालो से पूछे भईया मेरे पति को देखो हो। तब सबने यही जबाव दिया नही आते होगे उनका इन्तजार करते-करते शाम हो गयी। इस समय मेरा दिल घबराने लगा। हम बिना खाये-पीये इन्तजार करती रही। पता नहीं उस दिन मन के अन्दर से बहुत बेचैनी हो रही थी। देखते-देखते शाम हो गयी। मै अपने घर पर ही थी तभी गाँव के ही एक लोग आये बोले तुम्हारा आदमी खत्म हो गया।

मुझे उस समय कुछ समझ में नहीं आ रहा था। यह बात सुनते ही मै पागलो की तरह बाहर दौड़कर उसके पास आयी, तो घर के बाहर उनकी लाश पड़ी थी, उनके आँखों से खून निकल रहा था। ऐसा देखकर लग रहा था कि अभी कुछ समय पहले उसके साथ कोई र्दुघटना हुई है। मैं भर निगाह देख ही नही पायी कि मेरे ससुर ने मुझे ढकेल दिया और ले जाकर कमरे मे बन्द कर दिया। मै उनसे रोती गिड़गिड़ाती रही मुझे मै कही उन्हे अपने आखों से जीभर कर देख लेने दिजिए लेकिन वह एक भी नहीं सुने उनके सभी रिश्तेदार और आस-पास के लोग देख रहे थे। किसी ने हमारी ममद नही की मुझे बाहर से सिकड़ी लगाकर वह लोग मेरे पति की लाश लेकर चले गये, पता नहीं उन लोगों ने उनका कफन दफन किया था या नहीं। मेरे ससुर ने अपने रिश्तेदार और दामाद को पहले से खबर दे दी थी। मैं अन्दर से रोती चिल्लाती रही किसी ने मेरी एक भी नही सुनी। इनकी मौत की खबर मेरे मायके वालो को भी नहीं दी। कुछ देर बीत जाने के बाद तब पास के ही लोगों ने दरवाजा खोला। मैं उस समय रोती गिड़गिडाती रही लेकिन मेरा आँसू पोछने वाला कोई नही था। मै अपने आपको अकेला महसूस कर रही थी। जब उन लोगो ने मुझे बन्द किया था तो उस समय ऐसा लग रहा था कि कैसे बाहर आ जाऊॅ कोई भी जल्दी से दरवाजा खोल दे मै तड़प रही थी। अभी भी उस बात का दुख है आखिरी बार उन्हें जीभर के देख नहीं पायी।

            मेरे ऊपर इतनी बड़ी आफत आयी थी किसी ने मुझे सहारा नही दिया। दुसरे दिन पास-पड़ोस के मदद से मायके खबर भेजी व लोग आये तब मुझे ले गये।

            मेरे पति जब घर से निकले थे सही सलामत थे उनकी साजिश कर हत्या करायी गयी। पुलिस ने भी इस मामले की जाँच नहीं की उनकी एक्सीडेन्ट से मौत हुई थी। इस बात का भी जाँच नहीं हुई। मैने घुरपुर थाने में एक प्रार्थना पत्र दिया कि मेरे पति की मृत्यु कैसे हुई इस मामले की जाँच हो। तब वहा भी पैसा देकर मेरे ससुर ने मामले को रफा-दफा कर दिया। मुझे यह समझ में नही आ रहा था कि मेरे ससुर अपने बेट की मौत पर अपना मुँह क्यो बन्द किये है।

            कुछ दिन मायके रहकर दौड़ धूप किया कोई हल नहीं मिला फिर वापस अपने ससुराल काम करने चली गयी। कुछ दिन तक ठीक रहा फिर मेरे ससुर ने परेशान करना शुरू कर दिया। वह मुझे डराने धमकाने लगे कि यहा से भाग जाओ नही तो तुम भी मर जाओंगी यह सब सुनकर मेरा मन बहुत घबराने लगा पहले तो पति का सहारा था, जब वह हमे मारते और हमारे ऊपर अत्याचार करते थे। हमें घर से भगा देते थे। तब हम लोग चुपचाप घर छोडकर अपने मायके चले आते कुछ दिन गुजार कर फिर वापस चले जाते आये दिन मेरे जेठ और उनका लड़का मेरे पति को मारता रहता था। तब हम दोनो एक दुसरे कर सहारा बनते थे। अब तो मै बिल्कुल अकेली पड़ गयी हूँ। कहा जाऊॅ मायके वाले भी गरीब है पिता के गुजरने के बाद माँ बीड़ी बनाकर गुजारा करती है। एक भाई है जो मजदूरी करता है अभी दो बहनो के शादी की जिम्मेदारी भाई पर ही है। अगर उनके पास जाती हूँ। तो मै भी उनके ऊपर बोझ बन जाऊगी। यही सोचकर मैं अपने ससुराल मे ही उनके अत्याचार सहते हुए रहने लगी। दिन पर दिन वह हमे धमकाने लगे कि छोड़कर चली जाओ नही तो मुझे भी मारी जाओगी जब यह सुनती थी तो बहुत तकलीफ होता था रोती थी मन में डर भी था कि हमे अकेला पाकर वह लोग मार न डाले लेकिन मन में यही ठान लिया कि अब मै दुखियारी को अपनी लड़ाई लड़कर यही अपना जीवन गुजर बसर करना है। भगवान ने मेरी बड़ी परीक्षा ली है। एक बार ससुराल वालो के अत्याचार से छोड़कर चली आयी लेकिन अब दुसरी बार उनके अत्याचार को नही जाऊगी। मैने एक मानवाधिकार संस्था की दीदी की मदद से प्रोबेशन कार्यालय में प्रार्थना पत्र दिया। वहा हमारी और ससुर की पेशी हुई। वहा भी अधिकारी के सामने ससुर ने हमारे अपना हक हिस्सा देने से इन्कार कर रहे थे। वह वहा भी हमे झूठा ठहरा रहे थे। अधिकारी सर से उन्होंने मोहलत ली की हम कुछ दिन बाद बताये गे। 11 दिसम्बर, 2013 को तारीख मिली। अधिकारी कार्यालय से घर जाने के बाद वह मुझ पर तमाम आरोप लगाने लगे। गन्दी-गन्दी गालिया देने लगे और कहने लगे की हम हिस्सा नहीं देगे। चाहे जो कर लो उनकी बात मै चुपचाप सहती रही अन्दर से डरती रही कि फिर कुछ मेरे साथ अनहोनी न करे।

            जब अगली तारीख पर हम प्रोबेशन कार्यालय गये तब मेरे ससुल वहा दो वकील लेकर गये थे। वह मुझ पर तमाम आरोप लगा रहे थे। लेकिन वहाँ पर हमारे हक में फैसला किया गया। ससुर ने जून, 2014 में खेत को तीन हिस्से में बराबर बटवारा किया। कुछ पैसा बैंक में फिक्स है पूरा होने पर उसमें भी हक देने की बात कही है। मुझ दुखियारी को इससे बहुत राहत मिली है। समय का इन्तजार है खेती बारी मिलने पर मै उसमें उपज कर अपना जीवन गुजार सकेगी। मेरे पास कोई बच्चें नहीं है कम से कम इसके सहारे मै अपनी जिन्दगी बिता सकती हूँ।

            अभी भी डर लगता है। रात को नींद नहीं आती है पति की हमेशा याद आती है एकदम अकेला महसूर करती हूँ। मन हमेशा अशान्त रहता है। मन में थोड़ी सी आशा जगी है।
            मैं चाहती हूँ जो मेरे ससुर ने कबुला है वह एक हिस्सा मुझे मिले। जिससे मेरे साथ न्याय हो।

सघर्षरत पीड़िता     _        सुशीला देवी
 
साक्षात्कारकर्ता     _      फरहद शबा खानम्
                                   

                                     

Tuesday 11 November 2014

मैं अपने इज्जत का बदला जरुर लूंगी


अभी भी हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग है जो रिस्ते के नाम पर कलंक माने जा रहे है। ऐसे ही कुछ रिस्तों की कहानी इस बच्ची की जुबानी सुने।

मेरा नाम मोनिका उम्र-18 वर्ष है। मेरे पिता का नाम बुच्चुन है। मैं जाति की मुस्लिम हूँ। मेरे माता जी का नाम हदीसुन है। हम लोग चार भाई चार बहन है। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है। मैं ग्राम-नथईपुर, पोस्ट-कुआर बाजार, थाना-फुलपुर, जिला-वाराणसी की निवासी हुँ।

मेरे पिता जी शादी मे बैण्ड पार्टी का काम करते है। यह घटना 9 अप्रैल, 2014 की जब मैं बी00 प्रथम वर्ष की परीक्षा देकर घर लौट रही थी, तभी मेरे बड़े पिता जी का बेटा सद्दाम कालेज के पास देखने आया। परन्तु मुझे लड़कियों के समुह में देखकर चला गया। तब मैं इस बारे में कुछ समझ नही पायी पर जैसे ही मेरी सभी सहेलियां चली गयी और मैं पैदल अपने घर के तरफ जाने लगी तभी सद्दाम व उसका एक मित्र गोपी विश्वकर्मा के साथ काले रंग की बाइक से आया मेरा हाथ पकड़कर गाड़ी पर बैठाने लगा मैं घबरा गयी जब मैंने विरोध किया उसने सड़क पर में एक लात मारा और मेरा हाथ पकड़कर खीचा और मै तेज मैं चिल्लाती उतना तेज मुझे सब मारते और कहते थे कि आज चिड़िया जाल में फ़सी है। इसको छोडुगा नही। दोपहर का समय था रोड़ पर सन्नाटा छाया हुआ था। इसलिए वो सब मेरे साथ जितना मनमानी करते बना किये मेरा ड्रेस तक फाड़ दिये जब मैं कुछ बोलती तो सब मारने लगते थे। इतना ज्यादा सब मारे थे कि खुन निकलने लगा। मुँह, नाक से हाथ दोनों लाल हो गया। मेरे दोनों पैर पर भी मार का निशान पड़ गया। मैं जो कालेज का यूनिफार्म पहनी थी। वह फट गया दुपट्टा अस्त व्यस्त हो गया, कपडे़ पर खुन के निशान लग गये फिर भी वह मुझे घसीट ही रहे थे तथा मना करने पर मारने जा रहे थे। जब मुझे वह बिठा के बाइक पर ले जाने में असफल रहे तो वह मुझे उसी हालत में छोड़कर भाग गये तथा थोड़ी देर बाद कुछ लोग आये और मुझे घर पहुँचाया।

उन लोगों ने मुझे इतना मारा था कि मैं तीन दिन तक पं0 दीनदयाल चिकित्सालय में भर्ती थी। इसके बाद कुछ ठीक हुई तो मैं तुरन्त फुलपुर थाने में गयी और पुुरी घटना के बारे में जानकारी दी । लेकिन पुलिस ने मेरी बातों को अनसुना कर दिया और दोषियों पर कोई मुकदमा दर्ज नही किया। बल्कि मेरे ही बयान को उल्टा करके कुछ महत्वपूर्ण तथो को हटा दिया। पुलिस के इस रवैये से दोषियों का हौसला बुलन्द हो गया और वह मुझे लगातार धमकी दे रहे है कि इस बार तो केवल हाथ, पैर ही टुटे है। अगली बार लाश जायेगी। गोपी विश्वकर्मा एवं उसकी माँ शीला विश्वकर्मा राजनीतिक पार्टी सपा से अपने संबधों का हवाला देकर डराते है तथा पुलिस वालों भी इन लोगों के दबाव में कोई कार्यवाही नही कर रही है।

हम चाहते है कि जिस तरह मेरे इज्जत के साथ खिलवाड़ किये है। उसी तरह उन सबको भी सजा मिले। जब तक मैं उनको सजा नही दिलवा लेती मैं चुप बैठने वाली नही हूँ।

बाहर जब मैं निकलती हूँ तो बहुत शर्म लगता है, लोग देखकर काना-फुसी करने लगते है। मन करता है बस एक कमरे में छुपकर बैठी रही हुँ। किसी से बात चीत करने का मन नही करता पढ़ने में भी मन नही लगता जैसे सर पर बोझ सा रखा हुआ है। पता नही आगे की पढ़ाई कैसे होगी माता-पिता भी हदस गये बाहर निकलने नही देगे। आपको अपनी घटना बता कर बहुत हल्का पन महसुस कर रही हुँ। क्योंकि कोई भी मेरी बातों को इस तरह सुना ही नही लोग देखकर नजर फेर लेते है।

संघर्षरत पीड़िता % मोनिका       
साक्षात्कारकर्ता % छाया कुमारी


Thursday 3 July 2014

संघर्षरत पीडि़त की स्व0 व्यथा कथा।

आज भी हमारे देश की पुलिस व प्रशासन मुस्लिमों को गिरी हुई निगाहो से देखते हुए उन पर फर्जी मुकदमा व उनके ऊपर जुल्म करने का ठेका ले रखा है। यहाँ तक कि आदमी ही आदमी को अपना शिकार बना रहा है। समुदाय के दबंग व्यक्ति भी अपने लोगों के ऊपर जुर्म व अत्याचार कर रहे है। आइये ऐसे ही एक पीडि़त व्यक्ति की स्व0 व्यथा कथा उसके जुबानी सुना रहा है। मेरा नाम अब्दुल समद है उम्र 40 वर्ष है। मेरे पिता का नाम श्री सौकत अली ग्राम-कुड़ी पोस्ट-कुड़ी थाना व ब्लाक-बड़ागाँव लहसील-पिण्ड्ररा जिला-वाराणसी का रहने वाला हूँ। मैं 5 भाई तथा 3 बहने है। जिसमें 3 भाई व 3 बहन की शादी हो चुकी है। 3 भाई अपने परिवार के साथ अलग रहते है और 2 भाई मेरे पिता जी के साथ रहते है। मेरे परिवार में कुल 9 सदस्य है। जिसमें में अब्दुल समद पत्नी ताहेरा बानो और एक लड़का तथा 6 लड़की है। जिसमें मेरे भाई का नाम आजाद अली गुड्डू अहमद रजा मेराज हुसैन सिकन्दर हैं यह घटना 7 फरवरी 2013 का है। जब हमलोग ने बिजली का कनेक्शन कराया जो निम्न लोग है। मोहम्मद युसुफ मो0 अली, उर्फ छेदी निजामुद्दीन (साई) सौदागर (नाई) अहमद रजा उर्फ गुड्डी इन लोगों का कनेक्शन कराकर बिजली विभाग के जे0ई (यादव जी) को दिया गया। इसके बाद जे0ई0 साहब लाइन के लिए मोटा केबिल का तार पास कराये और जुबानी गारेन्टी भी तार का 50 वर्ष का दिये कि ये तार खराब नहीं होगा। जब वो तार खिचावाने के लिए अन्य कर्मचारी के साथ आये तब मुनीब ईशा इरशाद तार खीचाने के लिए रोकने लगे। जे0ई0 साहब जब इन लोगों को समझाने लगे तो ये लोग जे0ई0 की बात नहीं माने तो हम लोग शान्त होकर बैठ गये। जब मुहम्मद अली उर्फ छेदी ने अलीरजा से कहे की दादा हमको लाइन ले जाने दीजिए। कहिये तो हम लोग जे0ई0 से कहकर ऊपर से या जमीन खोदवाकर पाइप के द्वारा खिचवा ले। लेकिन अली रजा ने तार को खीचनें नहीं दिया। फिर अली रजा ने कहा कि मै इसका मालिक नहीं हूँ। इसका मालिक सईद रजा उर्फ छेदी है। उनसे पूछ लीजिए। मुहम्मद अली ने कहा ये आपका जमीन है। मै उनसे पूछने नहीं जाऊॅगा। सईद का दुकान सड़क पर किराना का है। जब सईद 9 फरवरी 2013 को रात में करीब 7:00 बजे दुकान बन्द करके घर पर आ रहे थे। उस समय रास्ते में सईद व मुहम्मद से कहा सुनी होने लगा। इसके बाद दोनों में मार-पीट होने लगा। सईद के साथ उसका लड़का भी था। मार-पीट करते-करते फाइरिंग भी हो गयी। जिसमें सईद उर्फ छेदी की गोली पीठ पर जाकर लग गयी। लेकिन कट्टा बरामद उनके बेटे पिन्टू के पास से हुई। लेकिन मुहम्मद अली उर्फ छेदी वहाँ से भाग गये। जब नियाद अहमद ने इसकी सूचना बड़ागाँव थाना को दी तब थाने से एक गाड़ी पुलिस मौके पर पहूँची। जब पुलिस मुहम्मद अली के घर गयी। तब पुलिस द्वारा पूछ-ताछ करके वापस रोड़ पर आयी तो नियाज नेता के बताने पर 8:30 बजे रात को वापस होकर गुड्डू व गरीब के घर गयी। तब सब लोग घर छोड़कर भाग गये। उसके बाद पुलिस चली गयी। कुछ समय के बाद नियाज नेता ने थाने में जाकर मुहम्मद अली उर्फ देछी गुड्डू व गरीब तीनो लोगों के खिलाफ थ्प्त् दर्ज़ करा दी। जब पुलिस इनको पकड़ने के लिए आती तो मौके पर न पाकर उनके माता व पत्नी और बच्चों को भद्दी-भद्दी गाली देते हुए चले जाते थे और हम लोगो को धमकी देते थे कि उन लोगो को बुला लो नहीं तो तुम लोगों को ले जाकर थाने में बन्द कर देगे। जब पुलिस काफी दिनों तक नहीं पाये तो दिनांक 19 मई 2013 को गुड्डू व गरीब के घर की कुड़की का आदेश दे दिया। हमको जब इस बात का पता चला तो हम उसे ढुढ़कर कचहरी ले जाकर पेश कर दिया और दोनो का वयान दिलवाकर कचहरी से जमानत करवाकर घर ले आये। फिर दोनों को उसी समय मुम्बई भेज दिया। मु0 अली तो पहले से फरार चल रहा था। फिर अचानक मु0 अली उर्फ छेदी दिनांक 4 मई, 2013 को कही से आ गया। वह आने पर 7 बजें शाम को 4 (चार) राउण्ड गोली चलाया लेकिन किसी को भी एक गोली नही लगा और वह गोली चलाकर लालधारी राजभर के घर में जाकर छिप गया तब सईद हफीज अन्य लोगों के साथ लालधारी राजभर के घर जाकर कहा कि मुज्लिम को हमारे हवाले कह दो। तब लालधारी ने कहा की हम इसको पुलिस के हवाले करेगे। तुम लोगों को नहीं देगें। तब उसने बड़ागाँव थाने में मोबाइल के माध्यम से खबर दिया। यह खबर किसी ने कपसेठी थाने में भी दे दी। जब दोनो थानो की पुलिस आयी तो भीड़ को समझा बुझाकर हटाया और फिर बड़ागाँव की पुलिस ने मु0 अली उर्फ छेदी को जीप में बैठाकर अपने साथ थाने लेकर चली गयी और डंडे व पट्टे से बहुत मारे और बार-बार पूछ रहे थे तथा भद्दी-भद्दी गाली देते हुए पूछे तुमने उस पर गोली क्यो चलाई लेकिन वह कहा की साहब गोली तो उसी के पिस्टल से चली थी। इसके बाद इधर सईद हफीज चिल्लाकर कह रहे थे कि गुड्डू व गरीब था यही कहते हुए लोग बल्लम गड़ासे के साथ डंडा लेकर गुड्डू व गरीब के घर की तरफ चल दिये और चिल्लाते हुए कहे की गरीब अब्दूल का घर फूक दो। जब हम लोग यह आवाज सुने तब हम पांचो भाई डर के कारण घर छोड़कर भाग गये। तब उन लोगों ने घर पहूँचकर हमारे पिता, पत्नी व बच्चों को गाली दिये और मारना-पीटना शुरू कर दिये और फिर मिट्टी का तेल छिडक कर हमारे घर में आग लगा दिये। जिससे हमारा 4-5 लाख का सामान व नगदी रुपया भी जल कर नष्ट हो गये। जिसमें साड़ी का 8 करघा भी था व दो कालीन का करघा भी था। जिसमें एक करघा की कीमत लगभग 18-20 हजार रुपये है। जिसमें कपड़ा आलमारी बेड़ तक्था चारपाई टी0वी रजाई गद्दा व गहना में 4 जेव सोने का हार मांगटिका इत्यादि थे और फिर गुड्डू के कमरे जाकर दरवाजा तोड़ दिया । उसमें से 1 लाख की रकम जिसमें 4 जेब, मांगटिका सोने का घर व 1.5 लाख नगद सब उठा ले गये और जो समान बचा फ्रिज कुलर आलमारी टी0वी बेड सब तोड़कर आग में जला दिये और फिर सब लोग भाग गये। तब हमने 100 नम्बर पर फोन किया तब 9:00 बजे पुलिस आयी। जिसमें मिथिलेश मिश्रा एस0ओ में दमकल को बुलाकर आग पर काफी समय के बाद काबु पायी। जब आग बुझ गयी। तब हम एस0ओ के साथ जाकर थाने में 14 लोगो के साथ एफ0आई0आर दर्ज करायी। जिनके नाम निम्नवत है। 1 नियाद अहमद आरीफ वासीफ ईजाज आजाद इम्तियाज मुमताज गुलाम सरवर, हफीस मुस्ताक मैनुद्दीन जिव्राइल करीमुद्दीन इसास अहमद इत्यादि। इसमें से इजाज आजाद व इम्तियाज की गिरफ्तारी हो गयी। लेकिन अन्य लोग अभी तक फरार है। पुलिस उन लोगों के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं की। जब हम थाने पर जाते है तो कहते है कि तुम सुलह नामा कर लो इसी में तुम्हारी भलाई है और पुलिस बिपक्षी पार्टी से पैसा लेकर इस केस को दवाने की कोशिश कर रही है। पुलिस हम लोगों को बार-बार परेशान करती है और कहती है की तुम गुड्डू व गरीब को बुला दो नही तो तुमको ही बन्द कर देगे। हम डर के कारण गुड्डू व गरीब को बुलाकर 7 अगस्त, 2013 को कचहरी में पेश कर दिया। तो वही से पुलिस उन लोगो को चैकाघाट जेल में बन्द कर दिया। उसके बाद पता चला की इनके ऊपर गुण्डा एक्ट का भी धारा लगा है। जो हमारा घर जलाया गया है। आज तक पुलिस कोई कार्यवाही नहीं की। इस घटना से हमारे बच्चों व परिवार पर काफी असर पड़ा है और सभी परिवार सदमें का शिकार हो रही है। रात को नींद नहीं आती हमेशा बेचैनी बनी रहती है। मानसिक तनाव काफी बना रहता हैं। अपनी बात बताकर मन हल्कापन महसूस कर रहे है। की काई दर्द मेरा बाट रहा है। हम चाहते है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले और पुलिस दोषियो के खिलाफ भी कार्यवाही हो और हमारा जो सामान नुकसान हुआ है उसका मुआवजा भी मिले तथा साथ ही न्याय भी मिले। पीडि़त का नाम- अब्दुल समद

Tuesday 24 June 2014

वह रात मैं अपने जीवन में कभी नही भुल सकता

आज भी हमारे देश में गरीब असहाय लोगों को पुलिस ने कानून को खिलौना समझते हुए फर्जी केसो में फॅसाने का ठेका ले रखी है। आइऐ ऐसे पिडि़त की स्वः व्यथा कथा उसकी जुवानी से सुने। 

मेरा नाम अक्कर मुसहर उम्र 38 वर्ष मेरे पिता का नाम स्वः मखडू मुसहर ग्राम-खड़कपुर, पोस्ट-झंझौर, थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी का रहने वाला हू¡। मेरे परिवार में मेरी एक लड़की और मेरे बडे भाई व भाभी रहते है। मैं ईट भट्ठे पर मजदूरी का काम करता हू। जो मजदूरी मिलता है उसी से घर का खर्च बड़ी मुस्किल से चलाता हू। फिर भी पूरे परिवार सहित सुकून से रहता था कि मेरे जीवन में अचानक अन्धेरा सा आ गया। 

मै सन् 2008 की वह मनहूस रात मै अपने जीवन में नही भूल सकता। उस समय मै अपने ससुराल सत्तनपुर मंs था। उस समय रात के 9 बज रहे थे, कि दरोगा भुल्लन यादव दो जीप में कई पुलिस के साथ आ गये। उस दिन मैं लच्छीरामपुर रिस्तेदारी में गया था, उस जगह पुलिस का मुखवीर हैदर अली भी मौजूद था, जब मै अपने रिस्तेदारी में खाना खा रहा था कि रात के 10 बजे भुल्लन दरोगा 20 सिपाहियों के साथ आये और मुझसे मेरा नाम व पता पूछे मै साफ-साफ उन्हे बता दिया तो मुझे बिना कुछ बताये जबरजस्ती अपने जीप में बैठा लिए और मुझे कैण्ट थाने लाये। उस समय पुलिस के व्यवहार को देखकर मुझे बहुत डर लग रहा था। मेरा पूरा शरीर डर के मारे काप रहा था, और मेरा हलक सुखा जा रहा था। घर परिवार की बहुत याद आ रहा थी। डर के मारे मुझे कुछ बोलने व पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी। 

पुलिस वाले जबरजस्ती मुझे थाने में बन्द कर दिये रात भर मुझे थाने के अन्दर बन्द रखे उस समय थाने में मच्छर भी बहुत लग रहे थे। सारी रात मै बैठकर बिताया थाने में शौचालय से बहुत बदबू आ रही थी। मुझे एक भी कम्बल या चादर नहीं दिया गया था, और ना हीं मुझे कुछ खाने को दिये थाने में मै परिवार की स्थिति परिस्थिति के बारे में सोच-सोच कर सारी रात रोता-बिलखता व गिडगिडाता रहा। लेकिन पुलिस वाले मेरी एक भी नही सुने और ना हीं पुलिस वालो को मेरे ऊपर दया आई। मै समझ नहीं पा रहा था कि हमने कौन सी गलती किया है। जो पुलिस वाले मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे है। जब सुबह हुआ तो पुलिस मेरे उपर 2 किलों गाजा दिखाकर मेरा चलान कर दिये और मुझे दो पुलिस अपने साथ लेकर कचहरी वाराणसी में लाये वहा मेरा जमानत मंजूर नहीं हुआ उस समय मेरे परिवार के एक भी लोग नहीं थे। मैं बहुत डर रहा था कि पुलिस वाले मुझे फिर अपने साथ चैकाघाट जेल में ले गये। 

15 दिन बाद मुझे चैकाघाट जेल से तलब करके कचहरी कोर्ट में लाया गया वहाँ मेरे ऊपर पुलिस वाले एक और आरोप लगा दिये कि जलालपुर में कोई एक राजभर का हत्या कर दिये हो। उसका आरोप मेरे ऊपर लगाते हुए धारा 396/302 के तहत मुकदमा कर दिये वहा मुझे कुछ पता नहीं था और न ही मै उस हत्या के बारे में जानता था। मुझे पुनः चैकाघाट जेल में लाया गया। जेल में मेरे साथ जातिगत भेद-भाव भी किया जा रहा था और मुझे से शौचालय साफ करवाया जा रहा था। जेल की चार दिवारो में घुट-घुट कर अपने परिवार के बीच की हर बातो व यादो को सोचते हुए मेरे आखो से आसू आ जा रहा था। मै सोचता था कि कैसे मैं अपने परिवार के पास पहुँच जाऊ। मैं उनको एक झलक देख लू। लेकिन मैं मजबूर व चार दिवाल में बन्द था। बातो व यादो को सोचते हुए मेरे आखो से आसू आ जा रहा था मै सोचता था कि कैसे अपने परिवार के पास पहूच जाऊ उनको एक झलक देख लू। लेकिन मै मजबूर व चार दिवारों में बन्द था। मेरे साथ भुल्लन दरोगा बहुत अत्याचार किये इतने अत्याचार के बाद भी उनका जी नहीं भरा मुझे पन्द्रह दिन के बाद फिर कचहरी कोर्ट में लाया गया और मेरे ऊपर झंझौर के मटक पंण्डित की हत्या का केस का भी मुकदमा लाद दिये। मै उस समय चैकाघाट जेल में था। उस केस बारे में मुझे जरा सी भी जानकारी नहीं था मै निर्दोश था, फिर भी मेरे ऊपर केस पर केस लादते गये। मै समझ नहीं पा रहा था कि आखिर हमने इनका क्या बिगाड़ा है। जो मेरे साथ इतनी जातियता करते हुए मेरे जीवन से खिलबाड कर रहे है। इतना कुछ करने के बाद भी भुल्लन दरोगा का पेट नहीं भरा। मुझे फिर चैकाघाट जेल में लाया गया जेल में भी चोलापुर एस0ओ0 से बात करके तलब किया गया और गैंगेस्टर जैसी धारा लगाया गया। 

उस समय मै बिल्कुल टूट सा गया था कि मैं आत्म हत्या कर लू। मेरा जीवन जीने की सोच खत्म हो गयी थी। मै बिल्कुल अपने जीवन से हार मान चुका था। जेल में परिवार की याद बहुत आ रहीं थी। मेरे आखो के सामने उनकी सूरत बराबर नाचती थी। मै पुलिस वालो की जातियता से व उनकी निर्देयता से जेल में सात साल तक था। उस बीच मेरे घर की स्थिति बिल्कुल खराब हो गयी थी, मेरे घर मे एक अन्य का दाना नहीं था। मेरी पत्नी भी मुझे छोड़कर कही चली गयी। जेल में जो खाना मिलता था, वह बहुत अच्छा नहीं था मै पेट भर खाना कभी नहीं खाया। मेरे आखो के आँसू सुख गये थे। मेरे परिवार की चिन्ता बराबर बनी रहती थी, रात में नींद नहीं आती थी। मेरा बड़ा भाई भोनू मुसहर बड़ी मुस्किल से रीन कर्ज लेकर 8 साल के बाद सिविल कोर्ट से मेरा जमानत कराये। जब मै अपने भाई व बच्ची को देखा तो अपने आप को रोक नहीं पाया और फुट-फुट कर रोने लगा। मेरा बड़ा भाई मुझे अपने सीने से लगा लिया मेरी आखे पत्नी को देखने के लिए तरस रही थी। जब पत्नी के बारे में पता चला तो बिल्कुल अपने आप को नहीं सम्भाल पा रहा था। ऐसा लग रहा था कि अपना भी जान दे दू। लेनिन बच्ची की चिन्ता के कारण कुछ भी करने से विवश था। भाई द्वारा मुझे बहुत समझाया गया फिर धीरे-धीरे अपने आप को सम्भाला और उनके साथ घर आ गया। 

पुलिस वालो की मनमानी से मेरा घर परिवार सब कुछ बर्वाद हो चुका था। फिर भी अपने कलेजे पर पत्थर रखकर मैं अपनी छोटी बच्ची के साथ सुकुन से रह रहा था, लेकिन पुलिस वालो का डर व भय बराबर बना रहता था। रात में नींद नहीं आती थी, डरावन सपना हमेशा दिखता था। उस समय मैं उठ कर बैठ जाता था और सारी रात जागता रहता था, इतना सब कुछ होने के बाद भी पुलिस फिर 2011 में मेरे घर छापा मारे उस समय मेरा बड़े भाई घर पर मौजूद थे। फूलपुर एस0ओ0 मेरे बड़े भाई से मेरा पता पूछे मै पुलिस वालों से इतना डर गया था कि घर पर नहीं रहता था। मै अपनी बहन के यहा पर सहनी त्रिलोचन में रहता था वहाँ मुखवीर के द्वारा नरायन सिपाही पहॅूचे और मुझे पकड़कर फूलपुर थाने लाये और बिना कुछ बताये थाने में बन्द कर दिये। मैं पहले से इनता डर गया था कि मँख से बोली नहीं आ रही थी। डर के मारे कलेजा बिहर रहा था, थाने में मुझे माँ-बहन की भद्दी-भद्दी गाली देकर बहुत मारे-पीटे जिससे मेरे सर व पैर तथा पीठ के निचे बहुत चोट आयी। मै दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर छोड़ देने की गुहार कर रहा था। लेकिन उन्हें जरा सा रहम नहीं आया, मुझसे गजोखर के साधु के हत्या का आरोप लगा कर धारा 460,307,25 व कट्टा दिखाकर मेरा चलान 4 दिन बाद किये मुझे पुलिस वाले कचहरी लाये, मेरा जमानत मंजूर नहीं हुआ फिर मुझे चैकाघाट जेल भेज दिया गया। 

उस समय पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। 24 महीने जेल में रहने के बाद बड़ी मुस्किल से मेरा जमानत मंजूर हुआ और मै घर आया। आज मै घटना को याद करता हॅ तो पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। पुलिस वालो का डर व भय बना रहता है। अभी भी चिन्ता बराबर बनी रहती है। रात में नींद नही आती, खाने का मन नही करता, भूख भी नहीं लगता। अब मै चाहता हॅू कि जो मेरे ऊपर फर्जी केस लगाये गये है उसे खत्म किया जाय और मुझे न्याय मिले आपको अपनी व्यथा कथा बताकर बहुत हल्का पन महसूस कर रहा हॅू। 

संघर्षरत पीडि़त अक्कर मुसहर 

Wednesday 21 May 2014

‘‘दलितो को बिना वजय के क्यो प्रताड़ित कर रही है पुलिस’’

मेरा नाम अशोक कुमार उम्र 48 वर्ष पिता स्व0 बंशधारी ग्राम-हर्षनगर वार्ड नं0 2 थाना रावर्ट्सगंज, थाना कोतवाली, जिला-सोनभद्र का निवासी हूँ। मेरे पास दो लड़के है। मैं गरीब व्यक्ति हूँ और किसी प्रकार मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता । मैं अनुसूचित जाति का व्यक्ति हूँ। दिनांक 06 फरवरी, 2013 को समय 7 बजे शाम का है, मै अपने घर पर था अचानक कुछ पुलिस की गाड़ी आई जिसमें पुलिस इंचार्ज भी थे, और आकर पूछे कि तुम्हारा बडा लड़का अजय उर्फ सन्नी कहा है। तब हम बोले साहब क्यो तब दो पुलिस बाले कि कुछ उससे पूछना है, और उसको सोच रहे है। कि कही उसे काम दिलवादे तब हम बोले साहब वह तो घर पर नहीं है। वह अपने मामा के पास गये है। तब बोले कि अपने छोटे लड़के को बुलाओ तब हमे लगा कि कही कोई बात तो नहीं है तब तक हमारे घर में तीन पुलिस वाले उसे पकड़ कर जीप में बैठा लिये और थाने लेकर चले गये। उसका नाम अमन है उसकी उम्र 16 वर्ष है। वह कक्षा 10 में पढ़ता है। उसका छमाही पेपर चल रहा था तब मेरी पत्नी रोने चिल्लाने लगी कही साहब क्या बात है। तब बोले इसे थाने ले जा रहे है। इससे कुछ पूछ-ताछ करके छोड़ देगे, तब हम 10 बजे रात को अपने लड़के से मिलने के लिये गये। लेकिन पुलिस वालो ने न हमे ही मिलने दिया गया और न ही मेरी पत्नी को। पुलिस वाले गेट से ही भगा दिये और बोले बड़े साहब नहीं है वह SSP के पास गये है। वहा से आयेगे तो तुम्हारे लड़को को छोड़ दिया जायेगा, मेरी पत्नी का रोते-रोते बुरा हाल हो गया था। तब हम लोग गेट के बाहर बैठे, तब थाना इन्चार्ज आये बोले कि जाओ कल आना तब हम अपनी पत्नी को लेकर घर आने लगे तब मेरी पत्नी बोली साहब हमे अपने लड़के से मिल लेने दिजिये तब वह भद्दी-भद्दी गाली देते हुए भगा दिये, और कहने लगे कि अभी पुलिस वालो को बुलाकर तुमको और तुम्हारे पति को भी बन्द कर देगे नहीं तो तुम लोग जाओ कल उसे छोड़ देगे, तब हम रोते हुये घर चले गये उस समय हमे लग रहा था कि मेरे बेटे के साथ कैसे पेश आयेगे पुलिस वाले। न तो हमारी बच्चा खाना खायी नहीं मेरी पत्नी। मेरी पत्नी का रो-रो के बुरा हाल हो गया था न नींद ही लग रहा था हम लोग पूरी रात बैठे रहे और सोचते रहे कि कब सुबह हो मै अपने लड़को को थाने से लाओ। पुलिस वालो ने मेरे छोटे लड़को को छोड़ दिया और बड़े लड़के को लाकप में डाल दिया, मेरा छोटा लड़का लगड़ाता हुआ आ रहा था तब अपनी मम्मी से लिपट कर थाने में रोने लगा और अपनी आप बिती बताया कि रात में दो पुलिस वाले हमें बुलाये और मारने लगे और हमें डर लग रहा था कि हमारा हाथ पैर न तोड़ दे। मैं साहब का पैर पकड़कर कहा साहब क्या कर रहे है, समझ में नही आ रहा था। तब बोले कि कोई का गेट चोरी किये हो तब हम बोले साहब हमें कुछ नहीं मालूम है तब पुलिस वाला बोला नहीं बाताओं गें तो तुम्हें करेन्ट लगायेगें तो बताओंगे। मेरे घर वालो का रोते-रोत हालत बिगड़ गयी। मेरी पत्नी को चार वाटल पानी चढा वह बार-बार बेटा-बेटा कहकर बेहोश हो जाती थी। दिनांक 07.02.2013 को हमें पुलिस वाले बोले कि आओं इसे कुछ नहीं होगा इसे छोड़ देगे तब हम लोग घर चले गये दिनांक 08.02.2013 को हम पुलिस थाने गये तो साहब बोले की वह कचहरी में जा रहा हैं उसे छोड़ दिया जायेगा। जब हम कचहरी गये तो पता चला कि वहा 30 ग्राम गाजा नसिली दवा हीरोईन दिखाकर चलान कर दिया उस समय हमें लगा कि हमारा हाट अटैक हो जाये गा। मेरी पत्नी और मेरी बच्ची का रो-रो कर बुरा हाल हो गया तब हम वकील से मिले तब हमें हमारे लड़के से मिलने दिया उसका उम्र 18 वर्ष है तब हमसे बताया कि साहब के सामने नहीं बोली तो तुम्हें यहा लाकर करेन्ट और तुम्हें बरवाद कर दिया जायेगा कभी हम पुलिस वाले से भले नहीं ये तब हमारे लड़के को मिर्जापुर जिला कारागार मे भेज दिया गया। उस समय मेरी पत्नी पागल हो गयी थी और हमे लग रहा था कि हमें कुआ में कूदकर जान दे दे। मै अपनी पत्नी को रिक्सा पर बैठाकर घर ले जा रहा था। उसी समय मेरी पत्नी वेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी न्याय के लिये दर-दर भटक रहा हॅू। लेकिन आज तक कोई न्याय नहीं मिला इस कारण मैं काफी दुःखी हूँ। मै अपने घटना के बारे में बताकर काफी हल्का महसूस कर रहा हूँ। मैं पहली बार अपनी कहानी दूसरो को सुनकर काफी खुश हूँ । मैं अपने न्याय के लिए संघर्ष को जारी रखूगा। संघर्षरत पीड़ित- अशोक कुमार साक्षात्कारकर्ता- पिन्टू गुप्ता

Thursday 15 May 2014

‘‘जब भी जेल में मैं अपने बेटे से मिलने जाती हॅू तो मेरा बेटा रोकर कहता है मुझे बचालो माँ ’’



भारत में कब तक गरीब बेरोजगार शिक्षित नौ जवानो को फर्जी मुकदमे में पुलिस अपनी खानापूर्ति के लिए जेल भेजती रहेगी। ऐसी ही कहानी एक असहाय पीड़ित माँ की जुबानी से सुने।
मैं पार्वती राजभर उम्र 55 वर्ष है मेरे पति नन्दलाल उर्फ नन्दू है, मै ग्राम-कुरू, पोस्ट-व थाना- कपसेठी ब्लाक- बडागाँव, तहसील-पिण्डरा जिला वाराणसी की रहने वाली हूँ। मै बहुत गरीब असहाय व्यक्ति हॅू मै अपने परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किल से करता हॅू मेरे पास पाच लडके व पाच लड़की है मेरा बड़ा बेटा प्रवीण बी0ए तक की पढ़ाई कर दिल्ली में षेयर मार्केट में छोटी सी नौकरी कर रहा था लेकिन पिता की काफी हालत खराब होने के कारण वह घर चला आया वह हमारे साथ दूसरे के खेतो में खेतो में मजदूरी कर हमारा व अपने परिवार का देख भाल कर रहा था उसके भी दो बेटे व दो बेटिया है।
            यह घटना 2 अपै्रल 2013 की है कोइलार में किसी बात को लेकर विवाद हुआ था जिसमें एक महिला की मृत्यु हो गयी थी इस घटना के बाद पुलिस और जनता के बीच काफी विवाद हुआ था। मै और मेरा लड़का प्रवीण इन सबसे अनजान था। इस मामले को लेकर 3 अप्रैल 2013 को कुरू तिराहे पर महिला की लाश को रोककर चक्का जाम किये। उस समय मेरा लड़का टमाटर लेकर कपसेठी सट्टी से बेचकर घर आ रहा था। भीड़-भाड देखकर व विद्यालय अजय राय का भाषण देते देख वह भी सुनने चला गया मुश्किल से थोड़ी देर वह वहा था फिर वापस घर आ गया। फिर वह रोज की तरह अपने घर व बाहर के कामो को करने लगा।
  
यह घटना 2 मई 2013 की है दिन भर काम से थक के घर के वाहर अपने परिवार के साथ सोया था मैं भी कुछ दूर पर सोई थी उस दिन रात के करीब 2 बज रहे थे पुलिस की एक जीप गाड़ी व मोटर साईकिल में 25 पुलिस वाले मेरे घर आये और आकर मेरा दरवाजा खटखटाने लग तबसे मेरी बहु जाग गयी और दरवाजा खोली वही मेरा लड़का नीये गमछा ओढ़कर सोया था। पुलिस वाले ने उसका गमछा खिचकर बोले की तुम्हारा नाम प्रवीण है तब वह बोला हाँ तो उसे पकड़कर ले जाने लगे वह बोला अपनी माँ से मिलकर आ रहा हॅू लेकिन फिर भी वह जबरदस्ती जीप तक ले गये तभी मुझे जगाने मेरी जेठानी का नाती आया वह सुनकर की प्रवीन को पुलिस ले गयी है मै दौड़कर सड़क पर आयी। मेरा बेटा जीप मे बैठा था मै पुलिस से बोली साहब मेरे बेटे को कहा ले जा रहे है, उसका क्या कसूर है, वह बोले कपसेठी थाने ले जा रहे है कहते हुए उसे लेकर चले गये। मेरे आँखो के सामने बिना कोई कसूर बताये वह मेरे बच्चे को ले गये यह देखकर मै रोने लगी। मै बेवहस हो गयी। उन पुलिस वालो से अपने बच्चें को कैसे बचाऊ यहीं सीचती रही आखे से नींद गायब हो गयी थी। दिल घबरा रहा था मन नहीं माना आधे घण्टे बाद मै और मेरी जेठानी दो मोटर साईकिल से कपसेठी थाने गये। उस समय सुबह के 3:00 बज रहे थे। थाने के वाहर दो चैकीदार खेड़े थे, मैं उनसे पूछी की मेरा बेटा प्रवीण कहा है वह इशारा करते हुए कहा वह जेल में बन्द है। मै गयी मेरा बेटा रो रहा था मै उसे देखकर रो रही थी कुछ देर बीच जाने के बाद मै थानेदार साहब से पूछी साहब मेरे लड़के को क्यों पकड़कर लाये है आखिर उसने किया क्या है तब वह बोले कोइलार काण्ड में ले आये है। वह चक्का जाम देखने गया था मै बोली साहब वहा तो गाव के सभी लोग देखने आये थे विद्यायल में अजय राय व विधायक अनुप्रिया पटेल भी आई थी आखिर मेरे लड़के ने ऐसा क्या कर दिया कि आप उसे पकड़ लिये तब वह बोले दरोगा ने कहा तुम्हारे गाँव के मुखविर ने बताया है उसी से जाकर  पूछो मै तुम्हारे लड़के का नाम भी नहीं जानता था मै बोली साहब ऐसे कितनों का नाम मै आप से बताती हूँ उन्हे पकड़ लिजिए तब दरोगा ने कहा यहा से चली जाओं उनकी बाते सुनकर बाहर चली आयी मन में डर था कि मेरा बेटा उनके चंगूल में है उसके साथ कही बुरा सलूक न करे तभी एक सिपाही मेरे पास आया और मुझे थाने के वाहर भगा दिया। थाने से कुछ दूर मै बैठी थी वहा पर भी आकर पुलिस वाला मुझे भगा दिया। मै डर के मारे कुछ दूर जाकर बैठ गयी तभी करीब 9:00 बजे मेरे बेटे का चालान कर दिया गया। उसे देखकर मै रोने लगी और घर चली आयी। उस समय ऐसा लग रहा था कई दिनों से सोई नहीं हॅू शरीर में जान ही नहीं था घर आयी तो मेरे बहु का रो-रोकर बुरा हाल था, समझ में नहीं आ रहा था कि अपने को सम्भालू या बहु को उस दिन जहा मदत की आस रही वहा दौड़कर जाती हर जगह निरासा ही हाथ लगता। उस दिन तो नहीं 4 मई, 2013 को कचहरी गयी वहा मेरा लड़का पेसी में आया था। मुझे देकर वह आवाज दिया उसके पास गयी वह परेशान था कि माई हम कुछ नहीं किये है अन्यायास पुलिस पकड़ ली। ढाढस बढ़ाया कि कुछ नहीं हो गा लेकिन मन ही मन डर लग रहा था कुछ देर बीत जाने के बाद पुलिस उसे जेल ले गयी वह हमारे जीवन का सहारा है चुप-चाप रोते हुए उसे देखती रही क्या करती घर वापस आ गयी।  
            जब कभी पैसा होता है तो जेल में मिलने आती हूँ मुझे देखकर मेरा बेटा रोने लगता है कहता है माँ मुझे बचा तो मैने कुछ नहीं किया है यह सब सुनकर बहुत दुखी हो जाती हूँ अपने आसूओं को रोकते हुए उसे ढाढ़स देती हूँ कुछ नहीं हो गा। तुम छुट जाओगे जमानत के लिए लिए दौड रही हूँ लेकिन जब इस घटना से सम्बन्धित कोइलार के लोगों की जमानत होगी तभी मेरा बेटा जेल से छुटेगा वकील की इसी तसल्ली का इन्तजार कर रही हूँ।
            इस घटना के बाद डर से मेरे दो बच्चें व गाँव के सभी लड़के गाँव छोड़कर भाग गये है। मै चाहती हॅू कि मेरे बेटे को छोड़ दिया जाय उसके ऊपर जो भी गलत आरोप लगे है उसे खत्म कर दिया जाय मेरा बेटा दो मिनट तक चक्का जाम क्षेत्र मे खड़ा होने का कुसूरवार है जबकि घटना मेरे घर से 4 किलोमीटर का है उस गाँव से हमारा कोई सम्बन्ध नही है फिर भी वेकसूर मेरे लड़के को पकड़ा गया।

संघर्षरत पीड़िता - पार्वती देवी
साक्षात्कारकर्ता- दिनेश कुमार अनल

Wednesday 14 May 2014

मैं इस अत्याचार का जमकर विरोध करूगी ताकि पुलिस वाले किसी भी महिला व लड़कियों के साथ इस तरह का र्दुव्यवहार न किया जाय।



 
मेरा नाम उर्मिला राजभर उम्र 30 वर्ष है। मेरे पति का नाम उदल राजभर है। मैं जाति की राजभर हूँ। मैं ग्राम-राजपुर (खरखसीपुर) पोस्ट-पचगड़ा, थाना-अदलहाट, जिला-मिर्जापुर की निवासी हूँ। मेरे पति मजदूरी करते है। मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। मेरे तीन बेटा एक बेटी है। मेरे बेटे का नाम अजय कुमार जिसकी उम्र 15 वर्ष है। दूसरे बेटे का नाम विजय जिसकी उम्र 10 वर्ष तथा तीसरे बेटे का नाम विशाल जो कि 8 वर्ष का है, जो इस समय कक्षा तीन में पढ़ता है। तथा बेटी का नाम गुन्जा 6 वर्ष की हैं। मै अपने पुरे बच्चों को पढ़ा लिखा नहीं पा रही हूँ क्योंकि मेरी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है।

            मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि मेरी बहन सोनी कुमारी को कोई व्यक्ति बहला फुसलाकर भगा ले गया तो मैं एकदम घबरा गयी और मै भागकर अपने मैके सरायमोहाना थाना-सारनाथ, जिला-वाराणसी पहुँची । मै अपने माँ की स्थिति देखकर धबडा गयी मेरी माँ कैसे अकेले इतना संघर्ष कर रही है। रात 8 बजे दो सिपाही व दरोगा मेरी बहन सोनी को लेकर आये उस समय मै रिचार्ज कूपन लेने चली गयी थी। जब मैं घर पर नहीं आयी तब तक दरोगा बैठे थे। जब मैं घर पर आयी तो दरोगा बोला तुम अपनी बहन को अपने पास रखना पहुँची हो, तब हम बोले हा साहब अपने पास क्यों नहीं रखना चाहेगे। तब दरोगा साहब बोले कोई भी आये डराये धमकाये पैसा मागे लेकिन तुम लोग मत देना इतना कहकर दरोगा जी चले गये। दरोगा के जाने के बाद एक वकील आया और बोला कि हम तूम्हारे बहन को खोजने में पेट्रोल खर्च किये है और इधर-उधर से खोजकर लाये है। तब हम बोले कि आप मेरी बहन को नहीं खोजे है मेरी बहन को दरोगा साहब लाये है। तब वकील बोला कि तुम्हारे बहन को श्याम जी, लक्ष्मीना के पास भेज देगे, चाहे तुम्हारे बहन को मारे या काटे फिर तुम अपनी बहन को नहीं पाओगी। 

मै वकील से बहस कर ही रही थी कि वकील मेरी बहन का हाँथ पकड़कर लेकर चला गया। लक्ष्मीना के घर मै डर के मारे दौड़कर सरायमोहाना थाने पर गयी। जब थाने पर गये तो देखे कि दरोगा पुलिस शराब-मीट लेकर खा पी रहे थे। मै धबरायी हुयी बोली साहब मेरी बहन को वकील उठा ले गये। तब दरोगा जी बोला की बाहर बैठो हमको खा लेने दो, जब दरोगा खाकर आये तो हमसे सारी बात पूछे हम दरोगा जी को वकील के सारे कारनामो को बताये, फिर उसके बाद दरोगा बोले चलो तुम्हारे घर चलते है। तब से वकील थाने पर आ पहुचा वकील को देखते ही दरोगा जी गन्दी-गन्दी गाली देने लगे इतने में वकील डर के मारे भाग गया। एक पुलिस वाले थाने में से आते समय मेरे साथ अभद्र तरीके से व्यवहार किया। तब हमको गुस्सा आ गयी। मै भड़ककर गाली-गलौज देने लगी तब दरोगा साहब बोले कि हम तुम्हारे पैर पर अभी गिरवा रहे हम बोले पैर गिरने से कुछ नहीं होगा मेरा बयान इसके खिलाफ लिखिये नही तो हम एस.एस.पी. से जाकर सब कुछ कहें गे। जो मेरे साथ हुआ है।

 हम थाने पर विल्कुल हंगामा मचा दिये थे। अन्त में दरोगा बोला तुम लेटर लिखकर दो एस.ओ. के सामने इसको पेश करेगें मैं उस समय जिदीया गयी थी। मेरे शरीर में आग लग गया था, मै सोच रही थी मेरे साथ ऐसा क्यों किया। क्या हम लोग गरीब है इसलिए आज मेरे साथ ऐसा किया है कल दूसरी महिला के साथ करेगा मै बिल्कुल ठान ली थी कि जब तक इसको सजा नहीं मिलेगी तब तक हम चैन से नहीं बैठूगी। शनिवार को सी.ओ. कार्यालय में मेरा बयान लेने के लिये बुलाया गया साथ में एक महिला पुलिस भी थी, हमको सिखा रही थी कि तुम बयान पलट दो या मेरे कान मे धीरे से कह दो हम बडे़ साहब से कह देगे क्योंकि पुलिस वाले की नौकरी चली जायेगी। उसके बाल बच्चें कैसे रहेगे इतना सुनकर मेरा गुस्सा भड़क उठा मैं बोली कि आप एक महिला होकर महिला के इज्जत के बारे नहीं सोच रही है आप क्या रक्षा करें महिला का हम तो न अपना बयान पलटेगे और न ही आप के कान मे कुछ कहेगें जिस तरह मेरे साथ हुआ है आप के साथ होता तो क्या करती मेरे साथ जो हुआ आगे किसी भी किसी बहन बेटी के साथ न हो इस लिए मैं पुलिस वालो को सबक सिखाकर रहूगी।
            हम चाहते है कि हमें न्याय मिले और पुलिस वालो को सजा।

संघर्षरत पीड़िता:-उर्मिला राजभर
साक्षात्कारकर्ता:- छाया कुमारी