Friday 22 May 2015

‘‘अगर उस समय के नही पहुँचती तो वह मेरी बेटी बेटी को मार देता’’

           आज हमारे समाज में हर दिन कितनी मासूमों के आवरू के साथ कोई ने कोई दरिंदा उसे अपना हवस का शिकार बनाकर उसके भविष्य को अंधकामय कर रहा है। यह शायद हमारी सबसे बड़ी भूल है कि हमारे बीच का ही कोई ऐसा जघन्य अपराध करती है, और हमारे जैसे लोग अपराध को नहीं बल्कि जिसके साथ घटना हुई हैं। समाज के जो पीडि़त है उसको समाज में सम्मान की निगाह से न देखते हए उसे ही जिम्मेदार ठहराते हैं।
            मैं नाम विजय लक्ष्मी है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। मेरे पति दारा सिंह उर्फ दिलेश है। मैं ग्राम-इरादतगंज,थाना-घुरपुर,पोस्ट-घुरपुर, ब्लाक-जसरा, तहसील-वारा, जिला-इलाहाबाद का निवासनी हूँ। मेरे पाॅच बच्चें है जिसमें से तीन लड़कियां और दो लड़के है। जिसमें से एक लड़की की शादी हो गयी है।
            घटना 5 जनवरी, 2014 के दोपहर का समय था। मैं घर से बाहर की काम से गयी थी। मेरी मझली और छोटी बेटी स्कूल की छुट्टी होने के वजह से घर पर थी। मेरे बाहर जाने के कुछ देर बाद में मेरी छोटी बेटी जो 12 वर्ष की थी, उसे शौच लगा था वह अपनी दीदी से पूछकर घर के पीछे के रास्ते से 200 मी की दूरी पर खेत में गयी। उस दिन पास में ही इतवार को बाजार लगता है। मेरी मझली बेटी ने कहा कि मत जाओं बाजार लगा हैं। अभी हम तुम्हारे साथ चलेगें तो चलना क्योंकि उस समय उनके अलावा घर पर कोई नहीं था। लेकिन शौच तेज लगने के कारण वह चली गयी। जब काफी देर बीत जाने के बाद वह वापस नहीं आयी तो मेरी मझली बेटी उसे खेत में देखने गयी और आवाज भी लगायी, लेकिन वह आस-पास नहीं दिखी। वह घर आने के बाद उसने सारी बात बताया, तब हम दोनो माँ-बेटी उसे खोजने गये और तेज-तेज आवाज से उसका नाम बुलाने लगे। खेत के पास एक नहर था, उसी के नीचे की तरफ जहाँ हमलोग शौच के लिए जाते थे, जब हम वहा पहुँचे और बेटी का नाम लेकर बुलायी तो कह कराहने की आवाज आयी तब हम लोग उस ओर तेजी से भागें तभी वह आरोपी दिलीप कुमार हमें आता देखे तेजी से भागा पास ही गाँव का एक लड़का जो उसका पट्टीदार है जो शौच कर रहा था मैं मदद के लिए चिल्लाई कि उसे पकड़ो लेकिन वह अनसुना कर गया। उस समय मै अपनी बेटी की हालत देख कर मैं हदस गयी। उसके मारने से मुँह से खून निकल रहा था। उस समय कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जल्दी से उसके शरीर पर साल डाला और बेटे को बुलाकर उसे पास के जहागीर अस्पताल ले गये। मै तुरन्त थाने में एफ0आई0आर कराने गया, मौके पर दरोगा जी आये लड़की की हालत देख उसे काल्विन अस्पताल में मेडिकल के लिए भेजा गया। जहाँ उसका मेडिकल कराया गया। घर से दूर काल्विन अस्पताल होने के कारण हम लोग फिर जहागीर अस्पताल ले आये। इस हादसे से मैं इतना डर गयी थी कि फिर घर अकेला छोड़ देगें तो फिर कोई हादसा न हो जायें। उस समय बेटी की हालत देखी नहीं जा रही थी मेरी फुल सी बच्चीं को उस दरिंदे ने इतनी बुरी हालत कर दी थी कि उसे देखकर मेरी रूह कांप उठता था। वह आरोपी 35 वर्ष  का था। मेरी बेटी उसके बेटी के उम्र की थी। उस समय यही सोचती की अगर न वाहर गयी होती तो शायद यह न होता। इस हादसे ने हम लोगों का परिवार एकदम विखर गया। वह आरोपी 35 वर्ष का था। मेरी बेटी उसके बेटी के उम्र की थी। उस समय यही सोचती की अगर न वाहर गयी होती तो शायद यह न होता। इस हादसे ने हम लोगों का परिवार एकदम विखर गया। हर समय रोने का मन करता है। लेकिन अपना आँसू इसलिये रोक लेती हूँ कि बेटी देखेगी तो दुखी होगी। इतनी नन्ही उम्र में उसके साथ इतना बड़ा हादसा हुआ हम सहारा नहीं देगे तो कौन देगा।
            8 जनवरी, 2014 को बेटी की कुछ हालत में सुधार होने पर महिला पुलिस और मीडिया वालो ने बयान लिया उस समय लड़की जब बता रही थी सुनकर मेरे होश उड रहे थे कि किस तरह उस दरिंदे ने उसके साथ गलत किया उसके मुंह मे हाथ डाला था। उसकी जीभ खीचते की कोशिश कर रहा था। उसके आँख पर मार रहा था और बोल रहा था दारा सिंह की बेटी है। मेरी बेटी डर से बोली नही मै रामदास की बेटी हॅू। अगर हम समय पर नही पहूँचते तो वह उसकी हत्या कर देता।
8 जनवरी, 2014 को वह आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आया। यह सुनकर कलेजा को ठंड पडा। लेकिन जब इस खबर के बारे में पता चला कि उसके घर वाले कह रहे है। डा0 कह रहे है। कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। इस कारण व ऐसा कर रहा है। मेरी बेटी से पहले वह इस तरह के हरकत बहुत कर चुका है। चोरी और रेप जैसे कई मामलो में सजा काटकर आ चुका है। कुछ मामले दर्ज हुए कुछ ने अपनी इज्जत को बचाने के लिए मामले दबा दिये। वह गाँव के ही राधेश्याम का पुत्र है। चोरी कर अपने परिवार वाले की ममद करता है। इसलिए वह लोग उसे दिमाकी रूप से बीमार कर उसे बरी करा लेते है।
            मै चाहती हॅू कि वह अगर इसी तरह बरी होता रहा तो कितने लोगो के साथ वह फिर दुबारा ऐसी कितनी जिन्दगीयो को खराब करता रहेगा। अगर उस दिन समय पर नहीं पहूची तो वह मेरी कमजोर मासूम नन्ही सी बेटी की हत्या कर देता। ऐसे इन्सान को समाज में खुला छोड़ना ठीक नहीं है। ऐसे लोगो को कड़ी से कड़ी सजा मिलना चाहिए।
            इस घटना के कारण मेरी बेटी पढ़ने नहीं जा रही है। वह हमेशा बुझी-बुझी सी रहती है। उसके गालो पर उसके मार के निशान पड़ा हुआ है। लेकिन हमेशा उसका मन उदास रहता है। उसका कुछ करने का मन नहीं करता है। हमे अपने बेटी की भविष्य की चिंता बनी रहती है। हम चाहते है कि उसे कड़ी से कड़ी सजा मिले।
हम अपनी बातो को बताकर मन को हल्कापन महसूस कर रहा हॅू।

साक्षात्कारकर्ता -फरहद शबा खानम्
संघर्षरत पीडि़ता - विजय लक्ष्मी


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