मेरा नाम राजकुमार है मेरी उम्र 38
वर्ष है। मेरे पिता स्व0 श्री मुंशी लाल है। मेरी पत्नी रीना देवी
हैं। मेरे चार बच्चे है। आशीश 13 वर्ष, रोशनी
8 वर्ष की चाँदनी 5 वर्ष की और प्रिंस दो वर्ष का है। मै सिलाई का काम करता हॅू। मै
भीटा, पोस्ट-भीटा, थाना-घुरपुर, ब्लाक-जसरा, तहसील-बारा, जिला-इलाहाबाद का रहने वाला हूँ।
रोज
की तरह हम लोग अपने कामो में व्यस्त थे। वह शनिवार 14
जुलाई, 2012 का दिन था उस समय सुबह के सात या आठ बज रहे
थे। मेरे घर से 250 मीटर की दूरी पर हमारी पट्टा की हुई
जमीन पर मेरी पत्नी जानवरो की देखभाल का रही थी। मै खाना खाकर हाथ धुल रहा था कि
तभी जोर से उस जमीन की ओर से चिल्लाने की आवाज आयी। आवाज सुनकर मै जल्दी से उस ओर
भागा तो देखा कि मेरी पत्नी के सिर से खून निकल रहा था। यह देखकर मै घबरा गया कि
यह क्या हो गया। जल्दी से उसकी ओर भाग और उसे सहारा दिया वह बेहोश हो गयी थी। उस
समय मुझे बहुत गुस्सा आया कि पाल लोगो ने मेरे जमीन पर कब्जा करने के लिए हमारी
औरत पर हाथ उठाया।
उसको इस हालत में देखकर मै रोने लगा। अगर इसे कुछ हो गया तो मै क्या करूंगा।
जल्दी से और लोगो का सहारा लेकर उसे 3
किलोमीटर की दूरी पर घूरपुर थाने ले गया। हमे लगा कि थाने में हमारी सुनवाई होगी
इसी कारण इस अवस्था में उसे थाने ले गया। लेकिन जो कुछ हमारे साथ हुआ वह देखकर
बहुत दुख हुआ पुलिस वाले हम गरीबो की मदद न करके उन लोगो की मदद कर रहे थे।
जब हम अपनी फरियाद लेकर थाने गये तो पुलिस वाले मुझे और मेरे चाचा के
लड़के सुशील को चार झापड़ मारा और उसे जाति सूचक गाली देने लगा। वह गिड़गिड़ा रही था
साहब उन लोगो ने हमे मारा है और आप हमे ही बन्द कर रहे हैं यह सब देख मै बेबस हो
रहा था। पुलिस ने उनके खिलाफ कोई भी शिकायत नहीं दर्ज की हम लोगों की मदद करके
हमारी बनी बनाई बस्ती उजाड़ दी सब कुछ तहस-नहस कर दिया। मैने घर बनवाने के लिए छः
हजार ईट गिराया था, झप्पर, चारपाई दो बोरी सीमेन्ट, चार
पांच, बाल्टी सब उठा ले गये। उस समय इन सब बातो से मै
अन्जान था। मेरी औरत दर्द से थाने में पुलिस वालो (जय प्रकाश एस.आई) से गिड़गिड़ा
रही थी कि हमारा रिपोर्ट लिख लिजिए लेकिन वह उसकी बात को अनसुना करके आरोपियों की
मदद करने में जुटे थे। अभी भी इस बारे में सोचता हूँ, तो गुस्सा आता है। कुछ देर बीत जाने के बाद मेरी पत्नी को पुलिस वाले
जसरा ब्लाक ले गये और वही जो कुछ थोड़ा बहुत दवा कराया और मेडिकल मुआयना कराया।
उसके सिर में पाॅच टाके लगाये गये। उस समय मै थाने में बन्द अपने आप को असहाय
महसुस कर रहा था। बस यही लगता कि कैसे थाने से बाहर आऊँ और अपने परिवार के पास
जाऊँ। पता नहीं वह किस हाल में हो गये यही सोचकर मन घबराता और आँख में आसूँ भर आते
है यह कहकर वह रोने लगा। पूरा दिन बेकसूर थाने में मै और मेरा भाई बन्द रहा। करीब
शाम साढ़े चार बजे मुझे थाने से रिहा किया गया। उस दिन का एक-एक पल बेचैनी से भरा
था। बस यही ख्याल आता कि हम दलित और गरीब की सुनबाई कहीं नहीं है।
हमारी मदद करने के बजाय
हमारे साथ थाने में अन्याय किया गया। इस घटना के दस दिन पहले चाय की दुकान पर थाने
के (जय प्रकाश एस.आई) कुछ लोग और रामखेलावन इनके सामने धमकी दिये। कि पट्टा की
जमीन पर जो कुछ बना है और जो सामान है उसे उठावा कर फेकवा देगें। उस समय यह सुनकर
मुझे ऐसा नहीं लगा कि ऐसा कुछ करेगें। 2008
में एस.डी.एम. साहब दुबारा जमीन पट्टा
किया था। जिसमें बस्ती के कुछ लोगों के नाम यह अवासीय पट्टा है। जिसके पास जितना
सामथ्र्य था उससे ज्यादा पेड़ काटकर लोगों ने अपने जानवर को रखने के लिए और घर
बनवाने के लिए तैयारी कर रहे थे। लेकिन इस घटना के बाद सब कुछ उजड गया। पाल लोग
कानूनगो से मिलकर हमारी पट्टा की हुई जमीन पर कब्जा करना चाहते है लेकिन वह हमारी
जमीन पर निगाह लगाये हुये थे। इसी वजह से हमारी औरतो पर हाथ उठाकर मारपीट कर पुलिस
वालों से मिलकर हमारा सब कुछ लुट ले गये। एक-एक पैसा इकठ्ठा करके हमने यह सब खरीदा
था सब कुछ खत्म हो गया है। अब हम लोग इस जमीन पर नहीं जाते। हमारी सुनवाई कही नहीं
हो रही है। तहसील भी गये वहा भी हम गरीबो का सुनने वाला कोई नहीं है। प्रार्थना
पत्र लिखा लेकिन अभी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। घटना के दो दिन बाद कचहरी में केस
दर्ज किया वहा से भी तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है। हम गरीब लोग अपना पेट वाले की
इन कोर्ट कचहरी का चक्कर काटे। लेकिन फिर यही सोचते है कि आज तो उन लोगों ने हमारी
उस जमीन पर कब्जा किया है कल कही हमारी बस्ती पर उनकी निगाह न पड़ जाये। इसी सब को
सोचकर हमने अपना पेट काटकर अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हुए।
अब न्यायालय से न्याय की उम्मीद लगाये हुए है। अब सब कुछ उसी पर निर्भर हैं।
इस
घटना के बाद से जैसे हम लोग टुट गये है। काम में भी मन नहीं लगता है उस घटना के
बारे में सोचती हूँ तो गुस्सा आता है वह दिन याद करता हूँ। तो मन काँप जाता है कई
दिनों तक बिना खाये पिये हम लोग दिन रात परेशान थे जैसे लग रहा था कि घर में कोई
बहुत बड़ा गम पड़ा है। हर कोई उस घटना से गमगीन था। मुझे सबसे बड़ा दुख यह हुआ कि जो
हमारी रक्षा के लिए बैठा है वही हमारे साथ अन्याय कर रहा हैं हम गरीब है हमारे पास
पैसा नहीं है। तो क्या हमारी मदद नही होगीं रात दिन यही चिन्ता सताती रहती है। रात
को नीद नहीं आती है मैं चाहता हूँ कि हमे न्याय मिले और जिन लोगो ने हमारे साथ गलत
किया हैं उसे सजा मिले। आपको देखकर कुछ उम्मीद बॅधी है इसे घटना के बाद आपको अपने
उार हुए अत्याचार की बात बताकर मेरा मन हल्का हुआ है। बस यही उम्मीद लगाकर अपनी
लड़ाई लड़ रहे है कि भगवान एक न एक दिन हमारी मदद करेगा और मुझे और मेरी
पत्नी की न्याय मिलेग|
साक्षात्कारकर्ता- फरहद शबा
खानम
संघर्षरत पीड़ित- राजकुमार
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