मै पप्पू सेठ
पिता स्व0 अध्याय सेठ ग्राम व पोस्ट-बसनी, थाना-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी
का मूल निवासी हूँ। मेरे परिवार में मेरी पत्नी व एक बेटी और एक बेटा है। मै
हाईस्कूल पास करके एक किराये के दुकान में जेवरात का एक व्यवसाय किया हूँ।
मेरी घटना यह है
कि मेरे पटिदार गोतिया कभी मेरी तरक्की नहीं देखना चाहते है और मेरे घर व जमीन पर
जबरजस्ती कब्जा किये हुए है। इस बात को लेकर लगातार हमलोगो में झगड़ा होता रहता है
और यह पिछले 20 साल से होता चला आ रहा है, इसके पहले मैं कही और काम
करता था। मेरी पत्नी को अच्छा नहीं लगाता था। एक दिन मेरी पत्नी हमसे बोली कि
हमलोग समूह से पैसा उठाकर एक अच्छा सा व्यवसाय कर ले। मैं इस बात पर राजी हो गया।
फिर मेरी पत्नी और मेरी बेटी ने समूह से एक-एक लाख रुपया ब्याज पर उठाये और कुछ
पैसा मेरे पास था। इस पैसों से मै अपना एक व्यवसाय शुरू किया और काम करने लगा। मै
रात में घर आ जाता था और सुबह फिर दुकान जाता था। जो कुछ सामान बनाना होता वो घर
में भी बनाते थे। इस तरह 6 माह बित गये। यह देखकर मेरे परिवार
वालो को जलन हो रही थी।
उन लोगो को मेरी
तरक्की देखी नहीं गयी। एक दिन मैं अपने घर से सामान को बनाकर दुकान जा रहा था। मै
अपना सामान व लन्च टिफीन को गाड़ी के डिग्डी मे रखा, और अपने बेटे को गाड़ी पर बैठाकर दुकान
जा रहा था। जब हम रामेश्वर पहुचे इसी बीच दो बाइक वाले मेरे गाड़ी के आगे आकर मेरी
गाड़ी को रोक दिये और हमें मारने लगे और दोनो कनपटी पर कट्टा (बन्दूक) सटा दिये
गाड़ी की चाभी निकाल लिए। मै घबरा कर बाई के गिर गया मेरा बेटा भी गिर गया। हमारा
शरीर पूरा पसीना-पसीना होने लगा। वो लोग मेरे गाड़ी के डिग्डी मे से पूरा समान
निकाले, जिसमें 4 किलो चाँदी और 30 ग्राम सोना था
वे सब लेकर भागे तो मैं बिहोश होकर गिर गया। मेरे आख के आगे अंधेरा सा छा गया। हमे
कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मेरा होश उड़ गया। हम उन लोगो को ठीक से देख भी नहीं
पाये थे। फिर जब हमें होश आया तो मैं अपने बेटे को देखा तो उसका पैर फुला हुआ था।
फिर हमने पुलिस हेल्पलाइन 100 नम्बर पर फोन किया। पुलिस कुछ देर में
आई और हमने उन्हे सारी घटना के बारे में बताई तो पुलिस वाले पुछने लगे कि क्या था
कितना था क्यों ले जा रहे थे। इतना माल गाडी में लेकर क्यों चलते हो। तुमने कहीं
लूट के नही जा रहे थे। पुलिस के इस तरह के सवाल से मै और परेशान हो गया। हम पुलिस
के इस तरह के सवाल से परेसान हो कर अपने आप को ही कोसने लगा कि क्यों मै पुलिस को
बुलाया। फिर पुलिस हमें वही से 10:00 बजे सुबह ही
थाने ले गई और शाम तक हम थाने में ही बैठाये रखा। हम फिर पत्नी को फोन पर बताये तो
वो भी रोते-चिल्लाते थाने पर आई। हमलोग शाम तक थाने में ही बिना कुछ खाये पीये
रहे। फिर पुलिस ने शाम को मुकदमा दर्ज कर हमें छोड़ दिया। हम रात को घर पहुचे तो कोई कुछ खाना-पीना नही
बनाया था। चिन्ता से हम सब का भूख उड़ गया था। दो दिन तक हमलोग खाना-पीना कुछ भी
नहीं खाये थे। मेरे घर के लोगो का रो-रो कर बुरा हाल था। मै बीमार सा हो गया था।
छः दिन बाद मै दुकान गया था।
उसी शाम को पुलिस
हमें फोन कर के थाने बुलाये और कुछ लोगों को दिखा कर हमे पहचानने को कर रहे थे। हम
उसे देखे ही नहीं थे तो कैसे पहचाने, बस इतना ही होश था कि वे दोनो लोग मेरा
सामान लेकर भाग गये। इस बात पर उन्हे पुलिस वाले ने हमे ही डाटा कि कौन छिना उसे
भी नहीं देखे, पर मै कुछ नहीं बोला और घर चले आये। यह सब बातों को आज
भी याद आता है तो मेरा होश उड़ जाता है। एक मिनट के लिए पैर तले जमीन खिसक जाता
है। इस पूरे घटना से मेरा चार से पाच लाख रूपये का नुकसान हुआ था। मेरा पुरा पूँजी
ही डूब गया था अब समझ में नही आता कि पुलिस मेरे मामले में कार्यवाही क्यों नहीं
की और मै पुलिस के पास इसलिए नहीं जाता कि अगर जायेगे तो वो फिर वही सवाल करेगे।
कि क्यों जा रहे थे।
हम चाहते है कि मेरे मामले में
कार्यवाही हो और जो दोषी है उसे सजा मिले।
आपको यह सब
सुनाकर मन थोड़ा हल्का लग रहा हैं।
साक्षात्कारकर्ता - दिनेश कुमार अनल$प्रभाकर
संघर्षरत पीडि़त - पप्पू सेठ
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