Friday, 29 May 2015

अगर मदद नही मिलती तो मैं बच नही पाती

      बरसो से महिलाए अत्याचार सहती रहती है। जिसको वह सहते-सहते मानसिक रुप से बीमार होती है लगतार बीमारी के कारण सही इलाज न मिलने के कारण वह बीमार हो जाती है तो उन्हे घर से भगा दिया जाता है। जिम्मेदारी से भागने के लिए महिलाओं पर अंधविश्वाश के नाम पर उन्हे घर से निकाल दिया जाता है।
मेरा नाम सोना देवी है, मेरी उम्र-22 वर्ष है, मेरे पिता का नाम हंसराज है, मै अशिक्षित हूँ, मै ग्राम-उभारी, थाना-घुरपुर, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना जिला-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ।
आज से तीन वर्ष पहले (30 मई, 2011) को सुभाष चन्द्र पुत्र-बच्चा लाल आदिवासी ग्राम-लोहगरा बाजार, पोस्ट-सुन्दरपुर, ब्लाक-शंकरगढ़ तहसील-बारा, जिला-इलाहाबाद में हुआ था। शादी में मेरे घर वालों ने अपने हैसीयत से अधिक उपहार और बारात का स्वागत यिका था। मै पहली बार आठ दिन के लिए ससुराल विदा होकर गयी थी फिर घर वापस आयी आठ दिन मायके में रहकर फिर वापस सास, ससुर के साथ ससुराल विदा होकर चली गयी। मैं वहाँ घर बाहर दोनों काम करती थी। जितनी मेहनत हो सकती है, मैं करती थी, जितनी मेहनत हो सकती है, मै करती थी, मेरे पति कभी मुझसे अच्छे से बात करते थे। कभी मेरी जेठानी के साथ रहते मुझसे बात भी नही करते थे वह उन्ही के सज्ञथ सोते थे जब इस बात के लिए मैं अपने सास से कहती तो कहते भौजाई है सोने दो मैं अपने पति से कहती तब वह भी नही सुनते और मुझसे झगढ़ा करते एक बार की बात है रात के समय 10:00 बज रहे थे, मैं उन्हे बगल में सो गयी त बवह मुझे पलंग से नीचे गिराकर मुझे मारे मेरी चुड़ी टुट गयी थी। मैं चिल्ला रही थी, मेरी सास थी, उन्होने मुझे नही बचाया मुझे मारने के बाद वह दुसरी जगह सोने चले गये, उस दिन मैं पूरी रात रोती रही मुझे समझ में नही आ रहा था। मैने क्या गलती की है फिर दुसरे दिन रोज सुबह की तरह घर और दुसरे के खेत में मजदूरी करने चली गयी। इसी तरह सब चलता रहा। आये दिन कभी वह फोटो दिखाकर दुसरे से शादी करने की बात कहते कभी मेरे साथ रहने की बात करते थे। एक बार उन्होने कहा जाओं अपने पिताजी से पचास हजार रुपये मांग लाओ मैने कहा उनके पास इतना पैसा कहा है। बोले अपने मायके जाओं जब तुम्हारे पिताजी पैसा देनें तब बुलायेगें नही तो वही रहना। ऐसे ही रह रहकर वह लोग तरह-तरह की बात करते थे।
मैं इन सब बातों से धीरे-धीरे बीमार रहने लगी मेरे सिर में दर्द होता था। मेरा काम करने का मन नही करता हमेशा थकान सा रहता था लेकिन फिर भी मेरी सास बोलती दवा खालो मजदूरी करने चलो एक टिकिया खाती काम करने चली जाती थी कुछ देर के लिए आराम मिल जाता था फिर वैसी तकलीफ बढ़ जाती थी। इसी तरह मेरी बीमारी और बढ़ गयी लेकिन किसी डाक्टर के पास वह लोग नही ले गये। मेरी बड़ी सास थी उन्ही से झड़वाये वह बोली भुत पकड़ा है। जितना पैसा लगाओगी नही ठीक होगा, तीन बा रवह मुझे दिखाये मेरे साथ झाड़-फूक करवाये लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नही हुआ था जब तक मैं उनके यहा काम करने लायक थी, उन्होने रखा मैने जो भी खेतो में मजदूरी की थी सब पैसा अनाज मेरी सास ने ले लिया और मुझे बदत्तर हालत में मेरे मायके लाकर छोड़ दिया बोली उसे भूत पकड़ा है। झड़वाओं यह कहकर मुझे छोड़कर चली गयी। उस समय मुझे बहुत तकलीफ हो रही थी। यहा बाबू कि यहाँ थी मेरे घर वाले मुझे मजार पर ले जाते हर वृहस्पतिवार को वही दिखाते थे। लेकिन मैं धीरे-धीरे अधिक बीमार होने लगी मुझे समझ में नही आ रहा था। मैं क्या कर रही हूँ। हमेशा सिर भारी रहता था भूख नही लगती थी। नीद नही आती थी हमेशा ससुराल के बारे में सोचती थी मेरे पति खराब जरुर है लेकिन मुझे उनकी बहुत याद आती है। वह कभी-कभी मुझसे प्यार करते थे। मारते भी थे एक बार तो गुस्से में सरिया से मारे थे जगह-जगह चोट लग गया थी पीठ में निशान पड़ गया था चूड़ी टुट गयी थी हाथ से खुन निकल रहा था तबीयत ठीक नही था घर का काम नही की थी इसीलिए मारे थे। आस-पास ही परिवार के लोग रहते थे, मुझे कोई नही बचाता था। आज लगभग साल भर से उपर हो गया है। मेरे पति मुझे देखने नही आये न लेने आये है। सास मेरी एक दो बार आयी थी बोली चलो उस समय मेरा इलाज चल रहा था मेरी हालत में थोड़ा बहुत सुधार आ रहा था फिर वह लोग ले जाते बिना दवा किये काम करवाते तो मै और बीमार हो जाती इसलिए नही गयी उन लोगों को सिर्फ काम और पैसा चाहिए उनको हमारी बीमारी और तकलीफ से कोई मतलब नही है।
मेरे पति तो मुझे एक बार भूल कर भी नही देखने आये कई महिनों तक इलाहाबाद के टंडन (मनोवैज्ञानिक चिकित्सक) के यहाँ मेरा इलाज चला मेरे घर वालों ने मेरी बहुत देखभाल की मेरे भाई बाप और दीदी ने मेरा दिन रात ख्याल रखा। मैं अपने से कुछ कर पा रही थी यहा तक कि एक मुझे कोई सुध नही थी अगर संस्था की दीदी (मानवाधिकार जननिगरानी समिति) नही होती तो मै नही बच पाती मेरे घर वाले गरीब मजदूर है। वह मेरा इलाज नही करा पाते उन लोगों ने मुझे और मेरे परिवार को बहुत सहारा दिया। मैं एक बार फिर बच्ची जैसी हो गयी थी। बिस्तर पर ही शौच करती तथा न नहाने का सुध रहता न कपड़ा पहनने का घर वालो ने मुझे फिर से पाला मेरी बहुत देखभाल की मुझे नहलाया मेरा बाल झाड़ा मेरे हर चीज का ख्याल रखा। सस्था की दीदी मुझे समय-समय पर दवा दिलाती हम लोग अशीक्षीत है वह आकर देखती मैने दवा ठीक खाया या नही इन लोगों ने मुझे दुसरी जिन्दगी दी अब मैं घर का काम कर लेती हूँ। अपना काम कर लेती हूँ समय से सोती उठती हूँ सब कुछ पहले जैसा हो गया है। अब मेरे ससुराल वाले मुझे लेने नही आते उनका कहना है कि मुझे पहुँचा दो इलाहाबाद (प्रोवेशन कार्यालय) में मेरा बयान हुआ है। मेरे ससुराल से बयान के लिए कोई नही आया है। उन लोगों का मेरी कोई फिक्र नही है।
शादी जीवन में एक बार होती है, मैं वही जाना चाहती हूँ लेकिन फैसला होने के बाद मेरे पति मेंर साथ रहे मुझे मोर पिटे नही मेरा ख्याल रखे। मेरी जगरुकता को पूरा करे अगर मैं बीमार रहूँ तो मेरा इलाज करवाये और मेरे पिताजी से पैसे न मांगे वह मुझे दुसरी शादी की धमकी बार-बार न दे जिससे मैं दुबारा बीमार हो जाऊ। वह लोग मुझे सताये नही मेरा ख्याल तो मुझे इस बात की कतलीफ है कि मेरे पति मुझे एक बार थी मिलने नही आये।
मै चाहती हूँ कि मेरे भविष्य का ध्यान में रखते हुए न्याय किया जाय।

साक्षात्कारकर्ता - फरहत शबा खानम्     
संघर्षरत पीडिता- सोना देवी


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