Wednesday 29 April 2015

जब भी मै अपने बच्चें की तरफ देखती हूँ तो मै सोचती हूँ कि मेरे बच्चें भी मेरी तरह वदनसीब है !


       मेरा नाम शबनम है। मेरी उम्र 28 वर्ष मेरे पति अब्दुल हमीद है मेरे दो लड़के साहिल 4 वर्ष तथा जियाउल हक 3 महीने का हैं। मै 181 ए /1 चकलाल मोहम्मद, नैनी,थाना व जनपद-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ। मै गृहस्थनी हूँ।
शादी के बाद तो मेरी दुनियाँ ही बदल गयी मुझे नहीं पता था,कि मुझे यह दिन भी देखना पडे़गा। हर लड़की बिदा होकर अपने ससुराल कुछ सपने लेकर जाती है,लेकिन जब उसे ससुराल वाले का साथ और प्यार नहीं मिलता तो वह पूरी तरह बिखर जाती है। उसकी दुनिया ही उजड़ जाती है। आज से 5 वर्ष पहले (26.03.2009) को मेरी निकाह वालिद पुत्र कासिम अली ग्राम-अंती का पुरवा,पोस्ट-गढ़वारा थाना-अंतु जनपद-प्रतापगढ़ में हुआ। शादी में मेरे घर वालो द्वारा हैसियत से ज्यादा स्त्री धन एवं उपहार दिये गये थे। मै विदा होकर अपने ससुराल गयी और फिर घर वापस आ गयी। दुसरी विदाई अप्रैल महीने में हुई। मैं अपने ससुराल गयी, तब मुझे वहा हैण्डपम्प का पानी पीने से मुझे थोड़ी बहुत खासी आयी,तब मेरी जेठानी साबिया बेगम मुझे प्रतापगढ़ के डाक्टर के पास ले जाकर मेरा एक्स-रे करवाया और मुझ पर गम्भीर बीमारी का आरोप लगाया कि तुम्हें खतरनाक बिमारी हैं जबकि मैनें डाक्टर से पूछा कि एक्स-रे में क्या निकला है। तब उन्होंने कुछ नहीं कहा। उस समय मेरे पति लखनऊ में गाड़ी चलाते थे। प्रतापगढ़ से घर आने के बाद मेरी जेठानी और ससुराल के अन्य सदस्य मुझे दिन रात सताने लगे और मेरे पति से फोन पर यह कहने लगे,कि इसे बहुत खराब बिमारी है। इसे इसके मायके भेज दो। यह बाते सुन-सुन कर मै। रोती बिलखती और सोचती,यह मेरे साथ क्या हो रहा है। यहाँ मैं कुछ सपने लेकर आयी थी। एक-एक दिन काटना मेरे लिए मुश्किल हो गया था,उठते-बैठते वह लोग मुझे मानसिक रुप से परेशान करते थे। अभी यह सब बाते सोचती हूँ तो तकलीफ होती है। मेरे आदमी ने भी मुझसे फोन पर बात नहीं करते थे। किसी तरह 15 दिन गुजरा तब उन लोगों ने मेरे मायके फोन करके कहा ले जाओं यह सुनकर मेरे मायके से मेरा छोटा भाई मुझे घर ले आया। हर लड़की शादी के बाद जब मायके आती है,तो खुश होती है लेकिन उस समय मुझं कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कि मैं खुश होऊ या रोऊ किसी तरह अपने आसुओें को पीकर रहने लगी। मेरे पति का भी फोन मेरे पास नहीं आता जब मै फोन करने की कोशिश करती तो पता चलता उन्होनें अपना नम्बर बदल दिया है। कुछ दिन बीत जाने के बाद मेरे अब्बु ने कुछ लोगो को ले जाकर मेरे ससुराल में उन लोगों से बात कि तब मेरे जेठ ने मेरे ससुर से कहा जायो उसकी बिमारी साबित करके आओं यह बाते सुनकर मै अन्दर ही अन्दर घुट रही थी,तब प्रतापगढ़ के डाक्टर के साथ कृति डायग्नोस्टिक सेन्टर इलाहाबाद में दुबारा मेरा एक्स-रे हुआ। जहा, सब कुछ नार्मल निकला तब उन लोगों ने पूछा नार्मल मतलब क्या होता है। यब सब सुनकर मुझें बहुत गुस्सा आ रहा था। उसके साथ-साथ लकलीफ भी हो रही थी,की आखिर यह लोग क्या साबित करना चाह रहे हैं। फिर वह लोग वापस प्रतापगढ़ चले गये। कुछ दिन बीत जाने के बाद मेरे जेठ मुझे बिदा कराकर प्रतापगढ़ ले गये, वहा से मैं अपने पति के साथ लखनऊ चली गयी, और पाच-छः महीने रही वही वहा मै गर्भ से हो गयी। छठा महीना लगा था, तभी मेरे पति ने मुझे मेरे मायके भेज दिया। मेरा भाई मुझे घर लेकर आ गया, तब उन्होनें मेरी बहन से कहा जब वह पहुच जायेगी,तो फोन करके बताया तो उसके बाद उनका फोन आना बन्द हो गया। जब कभी मैं फोन करने की कोशिश करती तो नम्बर नहीं मिलता। उस समय दिन रात यही फिक्र करती कि आखिर वह मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे है। मैनें क्या गुनाह किया,उन्हें थोड़ी सी भी फिक्र नहीं है। रात-रात भर रोती रहती हॅू। दिन गुजर गया और मुझे आशा हास्पिटल में एक लड़का हुआ मेरे मायके वाले बहुत खुश थे। लेकिन तभी यह पता चला कि मेरे आदिल के पीठ में दाना है उसका आपरेशन करना बहुत जरूरी हैं,नही तो उसका जहर उसके पूरे बदन में फैल जायेगा। किसी तरह से घर वालों ने मेरे बच्चें के पीठ का आपरेशन करवाया। उस मुश्किल वक्त में भी मेरे ससुराल से और न ही मेरे आदमी ने मेरी खबर तक न ली। आज भी वह गम मुझे अन्दर ही अन्दर खाये जा रही है। मेरे घर वाले के कहने पर की बच्चें की हालत खराब है, तब मेरे ससुर आये और बोले मुझे कही दावत में जाना है, कहकर चले गये यह सुनकर मुझें बहुत आफसोस हुआ,कि वह कुछ मदद नही कर सकते है। लेकिन बच्चे की हालत देखकर रो तो सकते है। मेरा बच्चा उस समय बहुत मुश्किल वक्त में था। यह खबर सुनकर भी मेरे आदमी अपने बच्चे को देखने तक नहीं आये। अल्लाह का शुक्र है कि मेरे बच्चें का आपरेशन हो गया और उसकी जिन्दगी बच गयी। जब भी मैं अपने बच्चें की तरफ देखती तो सोचती हूँ मेरी तरह मेरा बच्चा भी वदनसीब है। बाप के रहते हुए भी वह उसके प्यार से महरूम है। दिन इसी सब गम से कटता गया मायके वालों ने मेरा और मेरे बच्चे का बहुत ख्याल रखा मेरा बच्चा देखते-देखते एक साल का हो गया,तभी अचानक फिर मेरे पति का फोन आना शुरू हो गया। उस समय बस यही सोचती की कितनी शिकायत इनसे करू| इनसे बात तक करने का मन नहीं करता था,लेकिन औरत के दिल में हमेशा अपने लोगो के लिए मोहब्बत होता है। सारे गिले शिकवे भूलकर मैं उनसे बात करने लगी,और बोली बच्चे की पैदाइश में नहीं आये तो कम से कम उसके जन्मदिन में आ जाइये। एक नजर अपने बच्चें को आकर देख लिजिए बहुत कहने के बाद वह जन्मदिन में आये, मैं इसी उम्मीद में थी कि वह मुझें अपने साथ ले जायेगे,लेकिन वह मुझे नहीं ले गये बस झुठे प्यार के सहारे मुझे फिर अकेला छोड़कर चले गये। उस दौरान कुछ दिनो तक मेरी बात चीत फोन के जरिये हो रही थी। जब भी मैं जाने को कहती तो बोलते वही पड़ी रहो जब भी अपने खर्च और बच्चे के खर्च के लिए कुछ पैसा मागती तो बोलते मायके वालो से मागो यह सुनकर मुझें बहुत तकलीफ होती थी। मैं चुपचाप उनकी बातों को सुनकर रो-बिलखकर चुप हो जाती कि घर वालें मुझे इस हालत में देखेगे तो उनहे तकलीफ होगी आखिर कब तक मैं इन लोगो के उपर बोझ बनकर रहॅगी यही दिन रात सोचती रहती हॅू।
     सन् 2011 में मेरे नन्द की शादी पड़ी तब दुनिया के लोग लाज के डर से मेरे जेठ मुझे प्रतापगढ़ ले गये वहा शादी में पाच छह दिन मैं रही, फिर मेरे अब्बु शादी में शिरकत होने गये थे,तब उन्हीं के साथ फिर उन लोगों ने मुझे भेज दिया। मेरे आदमी उस समय कुल्लू मनाली में हिन्दुतान कारपोरेशन लिमिटेड मे इंजीनियर की गाड़ी चलाते थे,वह शादी में नही आये थे। शादी के वक्त भी मेरे ससुराल वालो का व्यवहार अच्छा था। लेकिन मैं इसलिए खुश थी, कि मेरे आदमी कभी कभार मुझसे फोन पर बात कर रहे थे, मुझें एक उम्मीद सी बध गयी थी,कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा। उसी समय मेरे मायके भी शादी पड़ी थी, शादी बीत जाने के बाद मैने फिर अपने पति से जिद की कि मैं कब तक मायके मे रहूगी मुझे आपके पास आना है,यह सुनकर उन्होने कहा अपने भाई के साथ चण्ड़ीगढ़ मेरी बहन के पास आ जाना मैं तुम्हें वही से ले आऊँगा। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई और अपने भाई के साथ चण्ड़ीगढ़ गयी रास्ते भी यही सोचती मेरे बच्चे को उसके बाप का प्यार मिलेगा अब मेरा दिन अच्छा आने वाला है,खुदा ने मेरी सुन ली। चण्ड़ीगढ़ से वह मुझे कुल्लू मनाली ले गये उस समय मेरा खुशी का ठिकाना नहीं था। मै वहा गयी और उनके साथ फिर अपनी जिन्दगी की शुरूआत की। दो चार दिन तक उनका व्यवहार ठीक रहा फिर इसके बाद वह मेरे साथ झगड़ा करने लगे मैं जब कुछ अच्छी बुरी चीज के लिए कहती तो कहते जो घर में हैं उसे पकाओं और खाओ। मेरे बच्चें की तरफ वह जरा भी ध्यान नहीं देते थे, यह सब देख-देख मुझे अफसोस होता उसे प्यार से एक बार भी गोद में नहीं लेते थे, वही कुछ खाने को कहते, जो घर में बना रहता था। मेरा बच्चा एक चाकलेट के लिए तरसता था। दूसरे के बच्चें को खिलाते और प्यार करता था। दूसरी औरतों से बात करते थे। मुझसे सीधे मुह नही बोलते सह देख मैं दिन रात कुढ़ती रहती मेरा पूरा दिन रो-रोकर गुजरा आज भी सोचती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है। उस समय फिर मैं दुबारा गर्भ से हो गयी यह सुनकर वह बौखला गया बोला मुझें बच्चा नही चाहिए इसे गिरा दो मै बोली मैं नहीं गिरवाऊॅगी तो वह मुझे मारने पीटने लगा। मै अपने पेट मे पल रहे बच्चें को बचाते हुए उसके मार को सहती रहती थी,मुझे सही खाना और दवा न मिलने से मै बिल्कुल कमजोर हो गयी थी। पडोस के दोस्त की बीबी के साथ वही के सरकारी अस्पताल में दिखाने गयी तो डाक्टर ने कहा खुन की कमी हैं, यह सुनकर मै चुप हो गयी कि किससे यह सब कहू जो सुनने वाला है,वह तो मेरी बात सुनता नहीं और न ही मेरा ख्याल रखता है। मेरे साथ-साथ मेरा आदिल भी यह कहते हुए वह रोने लगा। वह बार-बार यही धमकी देता है कि दूसरी शादी करूँगा। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह सब सहते हुए भी मैं उसके साथ रहना चाहती थी। लेकिन मार्च 2012 में यह कहकर मुझे प्रतापगढ़ छोड़ गया कि खर्चा बहुत ज्यादा है मैं उठा नहीं पा रहा हूँ यह सुनकर मै अवाक रह गयी कि मुझे जो भी रूखा सुखा मिलता उसी को खाकर सब्र कर रही थी,आखिर यह क्या कह रहे हैं। फिर भी सब कुछ सहते हुए 15 दिन तक ससुराल में रही आये दिन मेरी जेठानी मेरे साथ दुव्र्यहार करती रहती जब भी मै पति को खाना देती मुझसे छिन लेती यहा तक कि उनके जाने पर जब भी फोन आता मुझे बात नहीं करने देती यह व्यवहार मेरे लिए उनका हमेशा रहता था एक दिन भी सुकुन से मुझें नही रहने देती मुझ पर लाछंन लगाती और ताने मारकर बिना किसी कारण झगड़ा करती थी,मेरे पति और घर वाले के खिलाफ भड़काती थी। 15 दिन के बाद हमेशा की तरह मुझे फिर मेरे मायके भेज दिया गया यह सब सहते-सहते मैं थक गयी थी, लेकिन मायके के अलावा मेरा कोई सहारा भी नहीं था,चुपचाप चली आयी। मायके वालो ने फिर मेरा इलाज करवाया और मेरा ख्याल रखा। वही मेरा दूसरा बेटा जियाउल हक 20 अक्टूबर को जहागीर नर्सिंग होम में हुआ। हर बार की तरह इसका खर्चा मेरे मायके वालो ने उठाया। मेरे पति और ससुराल वालो ने मेरी कोई खबर नहीं ली। जिस दिन से शादी हुई है,उस दिन से आज तक मुझे मेरे पति और ससुराल वालो से कोई भी खुशी नही मिली है। मैं जितने दिन अपने ससुराल में रही मुझे मेरी जेठानी और परिवार के और लोगो द्वारा मुझे मानसिक एवं शारिरीक प्रताड़ना मिली। छोटे-छोटे बातो पर मुझसे झगडा किया जाता था।
     इन सब से तंग आकर और ससुराल द्वारा कोई भी आर्थिक सहायता न मिलने के कारण मैने 6.8.2012 को विभिन्न अधिकारियों एवं आयोग में प्रार्थना पत्र भेजा जिससे मुझे मेरा हक मिले। मुझे अब अपने साथ-साथ अपने बच्चों की फिक्र है। उनकी परवरीस और पढ़ाई लिखाई मैं कैसे कराऊँगी अगर यह लोग मेरे साथ इसी तरह व्यवहार करते रहे तो मेरे बच्चों का भविष्य क्या होगा। इन सब बातों से मैं दिन रात परेशान रहती हूँ। मैं इन्हें लेकर कहा जाऊँगी कब तक मेरे मायके वाले मेरा साथ देते रहेगे। अपने उपर हुए अत्याचार के खिलाफ मैने 24.08.2012 को अदालत में ऊपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट इलाहाबाद के समक्ष घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत मुकदमा कायम किया। इसे कई बार नोटिस मेरे ससुराल भेजा गया तब वहा पर उन लागों ने मेरे पति को लापता बताकर वह नोटिस वापस भेज दिया। कई तारिख पड़ चुकी है। लेकिन अभी मुझे कोई भी न्याय नहीं मिला मै इन सबसे बहुत परेशान हो गयी हूँ। बच्चों का खर्च तो मेरे घर वाले उठा रहे है कोर्ट कचहरी का भी बोझ उन पर आ गया है। वह लोग सिर्फ मुझे खुश देखना चाहते हैं। पता नहीं उनका ख्वाब कब पूरा होगा यह कहते हुए वह सिसक कर रोने लगी।
     बस उम्मीद लगाये बैठी हूँ। कि मेरे साथ न्याय होगा और उन लोगों को सजा दिलाना चाहती हूँ कि उन लोगों ने मेरे साथ जो भी गलत व्यवहार किया है,उन्हे उसकी सजा मिले और इज्जत के साथ वह मुझे अपने घर ले जाय और मेरे बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से करें वह मेरी जरूरतों को पूरा करे साथ ही साथ वह मुझें मारे पिटे और सताये न। मैनें अभी तक बहुत कुछ सहा है। एक शादीशुदा लड़की जब मायके में रहती है, तो लोग उसके बारे में तरह-तरह की बात करते है, ऐसा देखते है जैसे सारा गुनाह मैनें ही किया हॅू। घर वालो को तो तकलीफ नहीं होती है लेकिन दूसरे लोग पता नहीं मेरे बारे में क्या सोचते है। मैं अपने परिवार के साथ सम्मानपूर्वक जीवन बिताना चाहती हूँ। मुझे मेरा हक मिले।
     आपको सारी बाते बताकर मेरा मन हल्का हुआ है बहुत दिनो से जैसे मेरे मन मे बोझ सा था अभी अच्छा लग रहा है, आपके द्वारा मेरी ही कहनी मुझे सुनायी गयी तो जैसे सब कुछ ताना सा हो गया जिससे मैं पहले से ज्यादा अपनी लड़ाई लड़ने के लिए और जागरूक हो गयी हूँ।

साक्षात्कारकर्ता - फरहत शबा खानम्                                     
संघर्षरत पीडिता- सबनम

                                         





‘‘दबंग पुलिस द्वारा कानून का उल्लघन’’

         आज भी हमारे भारत की पुलिस कानून को खिलौना समझते हुए लाचार महिला के उपर यातना देना व भद्दी-भद्दी गाली देना व धक्का देकर गिरा देने का व परेषन करने को ठेका ले रखी है। आइये ऐसी ही घटना जो मुसहर महिला के उपर घटी है उनकी स्वव्यस्था कथा उनकी जुवानी सुने।
          मेरा नाम वदामा मुसहर उम्र 35 वर्ष मेरे पति का नाम प्रकाश मुसहर ग्राम-मंगारी टोला मुसहर बस्ती पो0 मंगारी, थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी की रहने वाली हूँ, मैं गरीब असहाय जाति की मुसहर महिला हूँ, मेरे पति टी0वी0 के मरीज है मैं बनी मजदूरी कर बड़ी मुश्किल से अपने पति का दवा व बच्चों का भरण-पोषण करती हूँ फिर भी मैं अपने परिवार के साथ खुशी का इजहार करती हूँ दिनांक 11/04/2013 की वह मनहूस व भयानक रात मैं कभी नहीं भूल सकती मैं और मेरे पति व बच्चें अपने घर पर सोये थे की 12 बजे रात एक जीप पुलिस हमारे बस्ती में आ गयी और चार पुलिस लाइट जलाते हुए हमारे घर के पास आ गये उनका शोर-गुल सुनकर हमारे पति उठकर बैठ गये और मुझे जगाये इतने में पुसिल वाले हम लोगों के चारपाई के चारो तरफ से घेर लिये पुलिस वालों को देखकर मै डरने लगी मन में शंका होने लगी कि हम लोग क्या गलती किये है कि पुलिस हमारे घर आ गयी इतने में एक पुलिस वाला गुस्से में मुझसे पूछा तुम्हारा पति कहाँ है जब मैं पूछी की मेरे पति को क्यों पूछ रहे है और उनकी क्या गलती है तब पुलिस वाला गाली देकर वोला साली जल्दी बताओं इतने में मै डर गयी और अपने पति के बारे में बताई दो पुलिस वाले तुरन्त उनके दोनो हाथ को पकड लिए और मैं हमारे बच्चे रोने लगे मैं बोली की साहब हमारे पति टी0वी0 के मरीज है वे घर से वाहर भी नहीं जाते उन्हें छोड दो लेकिन लोग जबरजस्ती मेरे पति को पकड़कर जीप के पास ले जाने लगे उस समय मेरे पति केवल गंजी व चढ्ढी पहने थे|
        मैं जब अपने पति को छुडाने की कोशिश की तो पुलिस वाले मुझे भद्दी-भद्दी गाली व धक्का देकर नीचे गिरा दिये। मैं पूछी मेरे पति को क्यो पकड़कर ले जा रहे है उनकी क्या गलती है लेकिन पुलिस वाले कुछ भी नहीं बताये, मैं बोली साबह हम प्रधान को बुलाती हूँ तब मेरे पति को ले जाना लेकिन मेरी एक भी न सुने और जीप मे बैठा लिए साथ में साधु मुसहर उनके पिता हुकुम मुसहर को भी पुलिस वाले जबरजस्ती गाड़ी में बैठाकर ले गये, जाते-जाते बताये कि हम लोग रोहनियाँ थाने से आये है रात काफी हो चुकी थी मैं बस्ती में जा-जाकर रोते हुए अपने पति के पास चलने के लिए कहती थी मन में घबराहट थी आँख से आँसू रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। यही चिन्ता बराबर खाये जा रही थी कि मेरे पति बिमार है पुलिस वाले उनको बहुत मारेगी डर व भय बराबर बना हुआ था मै व हमारे बच्चें सारी रात रोते-विलखते रहे बस्ती के कुछ लोगों के कहने पर मैं मानवाधिकार जन निगरानी समिति कार्यकर्ता को फोन की उनके कहने पर मैं अपनी बस्ती के चार महिला व तीन पुरुष के साथ कार्यालय गयी वहाँ लोगों द्वारा लिखा पढ़ी किया गया तथा टेलीफोन भी तत्काल हुआ कार्यालय से रोहानियाँ थाने पर फोन के द्वारा हमारे पति व हुकुम व साधु को छोड़ दिया गया जब लोग बताये की तुम्हारे पति को पुलिस वाले ने छोड़ दिया तब जाकर हमारे जीव में जी हुआ वहाँ से मै अपने घर चली आयी वहाँ अपने पति से मिलकर व उन्हें देखकर रोने लगी आज भी घटना को याद करती हूँ तो पुलिस वालों पर बहुत गुस्सा आता है अभी भी डर व भय बनी रहती है। रात में नींद नहीं आती चिंता के मारे भूख नहीं लगती कि न जाने कब पुलिस आ जायेगी अब मैं चाहती हूँ कि पुलिस वालो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही किया जाय तथा हमारे बस्ती में पुलिस फिर कभी ना आये।
आप को अपनी कहानी बताकर बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ।

साक्षात्कारकर्ता - दिनेश कुमार अनल 

संघर्षरत पीडिता - वदामा मुसहर                                         

’’दरिन्दों ने पिता की निर्मल हत्या कर मासूम बच्चियों के उपर से साया छीना’’

आज भी हमारे दे मे समुदाय के दबंग व्यक्ति भी  अपने लोगो के उपर जूर्म व अत्याचार कर रहे है।यहा तक कि आदमी ही आदमी को अपना शिकार बना रहा है। आइये ऐसे ही एक पीड़िता महिला की कहानी उसी की जुवानी से सुने।
मेरा नाम मुन्नी देवी उम्र 50 वर्ष है मै जाति की मुसहर हूँ। मेरे पति का नाम नन्द लाल मुसहर है। मै निवासी ग्राम-नेवादा, थाना-लंका, जिला-वाराणसी की हूँ। मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। मेरे घर का पूरा परिवार दिन भर पेड़ से पत्ता तोड़ते है। तब जाकर शाम को चुल्ला जलता है, दोना पत्तल बनाकर दुकान पर बेचते है, मेरे पास दो बेटा और 5 बेटी है। बेटे का नाम राजकुमार, पिन्टू-बेटी का नाम- शकुन्तला, फूलगेना, शीला, रिक्का, गीता है।
                घटना दिनांक 28 अप्रैल, 2014 को समय (रात्रि) 10:00 बजे का है। उस दिन सुबह के समय मेहमान आने वाले थे। मै सोची की दरवाजे पर से जानवरों (सुअर) हटाकर दुसरे जगह पर बाध दे। मेहमान आयेगे तो साफ सुथरा रहेगा तो अच्छा लगेगा, लेकिन मुझे क्या पता की जानवर बाधने के चक्कर मे मुझे अपने पति से हाथ धोना पड़ेगा नही तो मै जानवर बाधती ही नही जैसे ही दरवोज से जानवर बाधकर हटी इसके तुरन्त बाद छेदी, सिरबन्सु, नन्हे, संजय आकर बोले कि हम सुअर यहा पर बाधने नहीं देगे। हम बोले कि भैया घर में बेटी की शादी पड़ी है। मेहमान आयेगे तो अच्छा नहीं लगेगा लेकिन लोग माने नहीं हमको गन्दी-गन्दी गाली देने लगे और हमको ढकेलने लगे तब वे लोग विनित सिहं प्रधान को बुलाकर लाये प्रधान भी बोले कि सब को जाने से मार दो इतना सुनते ही मै जानवर को हटा ली| मैं सोची की कौन इस झगडे में पड़ने जायेगा। घर में बेटी की शादी पड़ी है। यह सब सोचकर मैं चुप होकर घर में चली गयी। दिन भर बीत गया रात में मैं मेरा पुरा परिवार खाना खाकर सोने जा रहा था। उस समय लगभग 10:00 बज रहा था। दरवाजे क तरफ नजर पड़ा तो देखे की मेरे दरवाजे के तरफ रमेश पुत्र बसन्ता, अजय पुत्र मुन्ना, नन्हें पुत्र मुन्ना, विनित सिंह सभासद छेटी, कैलाश, बली व संजय दिम्मक पुत्र गुलेल सभी लोग एक गुट एक राय बनाकर किसी के हाथ में हाकी किसी के हाथ में छुरा सबके हाथ मे कुछ न कुछ औजार था। घर में घुस कर वे लोग हमको भद्दी-भद्दी गाली देते हुये मारने लगे मेरा पूरा परिवार रोने चिल्लाने लगा मेरे पति को लाठी, डण्डे व राड से मारने लगे जब मारते हुये बुरी हालत में कर दिये तब गले में छुरा भोक दियें। मेरे पति चिल्लाते हुये दम तोड़ दियें काई बीच बचाव भी नही किया सारे लोग तमाशा देख रहे थे। मेरे बहु उर्मिला को भी कुछ लोग पकड कर मार रहे थे, और लोग हमको पकड़े थे, कुछ लोग पकड़कर इतना मारे की नाक मुँह से खून निकलने लगा और मेरी बेटी का बेइज्जती करके उसका शूट फाड दिय। 
               मेरी बेटी के बचाने के लिये लोगो से गुहार लगायी लेकिन किसी ने बोलने की साहस नहीं किया, मेरे पूरे परिवार को कई भागो में बाटकर इतना मारे की मेरे पति का जान ही ले लिये। हत्यारों को जरा सा रहम नहीं आया की उसके घर में शादी पड़ी है, मै जितना भी सामान बेटी केा दहेज में देने के लिये खरीदी थी सब मेरा लुटकर चल गये। गाँव के छट्टू पुत्र स्व0 कल्लू, पतालू पुत्र स्व0 दुबई, राजकुमार पुत्र स्व0 नेता, राजेश पुत्र बाढू वगैरह तत्काल 100 नम्बर पर फोन किये तो पुलिस पहुँची तब तक सभी लोग मेरे पति के गले में चाकू भोक कर भाग निकले मौके पर पुलिस वाले पहुँचकर मेरे पति की लाश को पोस्ट मार्टन करने क लिये भेज दिये। करीब 12:00 बजे के लगभग बंशु पुत्र बसंता, मनीष पुत्र मुन्ना, कैलाश पुत्र लाचंद, संजय पुत्र मुन्ना, छेदी पुत्र फागू को गिरफ्तार कर मु0 सं0 166/2014 धारा 147,304,323 आई0पी0सी0 मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी की गयी। लेकिन तीन लोग भाग निकले थे। लेकिन पुलिस प्रशासन तीनो लोगों को कभी छान बिन करने नहीं आयी। टिम्मक पुत्र गुलेल, नन्ने पुत्र मुन्ना रमेश से तीना लोगों ने पुलिस वालों को पैसा देकर आराम से अपने घर में हैं। शाम को सब टिम्मक पुत्र गुलेल, नन्ने पुत्र मुन्ना, रमेश काम करके सब आते जाते है तो हमको भद्दी-भद्दी गाली देकर धमकी देते है और बोलते हैं कि तुम्हारे घर में सबको मार डालेगे तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती अगर तुम लोग कुछ करना भी चाहोगीं तों पुलिस वाले कुछ नहीं करेगे।
एक तरफ पति के मरने का गम एक तरफ लोगों का धमकी अन्दर ही अन्दर खौफ सा बन गया है तथा बेटी की शादी भी नही हो पायी, उसकी चिन्ता बनी है अब क्या होगा हम बच्चों की परवरीश कैसे करेगें। रात को नींद नहीं आती हैं बेचैनी बनी रहती है। मन में चिन्ता बना रहता है। रात-दिन रोती रहती हूँ कुछ खाने पीने में भी अच्छा नहीं लगता बेटी की भी चिन्ता बनी है की कौन शादी करेगा मेरा सब कुछ लूट गया अब मुझे तभी चैन आयेगा जब मेरे पति के हत्यारों केा सजा मिलेगा।
आप को अपनी बात बताते हुए अच्छा लग रहा है कि भला मेरे दुःख को कोई बाट रहा है।


साक्षात्कारकर्ता- छाया कुमारी                                      
संघर्षरत पीडिता- मुन्नी मुसहर



                                                              

Tuesday 28 April 2015

हमारा पुरूषवादी समाज का धिनौना हरकत एवम 15 वर्षीय बच्ची को अधेरे में चुप रहने को मजबूर किया

मेरा नाम शिवशंकर उम्र-54 वर्ष है। मैं जाति का शर्मा हुँ। मैं ग्राम-दनियालपुर, थाना-शिवपुर, जिला-वाराणसी का निवासी हुँ। मैं एक छोटा सा सैलुन लहरतारा (बउलिया) पर चलाता हुँ। मेरी पत्नी का नाम राजकुमारी शर्मा है। मेरे पास तीन बच्चें है, जिसमें सबसे बड़ा बेटा 18 वर्ष का है और दो बेटी जो कि एक 15 वर्ष जिसका नाम अंजली और दुसरी बेटी का नाम शिवानी जो 08 वर्ष है और मेरे बडे बेटे का नाम आशीश शर्मा है। मेरी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नही है। लेकिन किसी तरह बच्चों को शिक्षा दिला रहा है।
घटना दिनांक 18 अक्टूबर, 2013 सुबह 07:00 बजे मेरी बेटी अंजनी शर्मा कक्षा-9 का परीक्षा देने के लिये (शिवपुर) दीनानाथ पब्लिक स्कुल में जा रही थी कि मेरी बेटी परीक्षा स्थल पर न पहुचकर किसी दरिन्दों के हाथ लग गयी। जब मेरी बेटी घर पर शाम को नही पहुँची तो घर के सारे सदस्य परेशान होकर खोजने लगे मेरी पत्नी दुकान पर फोन की अभी तक अजंली घर पर नही पहुँची है, इतना सुनते ही जैसे लग रहा था, मानो पैरो तले जमीन खिसक गयी हो, मैं दुकान बन्द करके किसी तरह भागकर घर गया तो देखे मेरा परिवार पागलो की तरह बेटी को खोजने में लगा है, मैं भी हर जगह सट्टी चैराहा स्टेशन पर कई दिनों तक खोजता रहा| मेरे घर के बगल में रवि कुमार मौर्या आता जाता था, उस पर मेरी बेटी के साथ देखने का नजरिया ठीक नही था क्यों कि दो तीन बार मेरी बेटी अपनी माँ से बता चुकी थी कि माँ रवि कुमार मौर्या स्कुल जाते समय परेशान करता है।
जिस समय मेरी बेटी गायब हुयी तो देखे कि रवि कुमार मौर्या भी घर पर नही है। तब मैं रवि के बडे पापा अध्या कुमार मौर्या से पुछा कि मेरी बेटी को कहा गायब किया गया है। रवि से कह दिजियेगा, जहाँ भी हो मेरी बेटी को घर सही सलामत पहुँचा दे। लेकिन रवि के बडे़ पिताजी अध्या कुमार मौर्या बोले कि हमारे रवि से कोई मतलब नहीं हैं। मैं कह सुनकर परेशान हो गया तो देखा कि बातो से मेरी बेटी नही मिलने वाली है, तब मैं दस दिन बाद शिवपुर थाने में एफ.आई.आर दर्ज कराने गये तो पुलिस वाले एफ.आई.आर न दर्ज करके हमें दो दिन तक मानसिक और शारिरीक रुप से परेशान किये, तब मैं परेशान होकर घर चला गया तीसरे दिन एक साथी के साथ कहचरी में गये और सी00 कार्यालय में एफ.आई.आर कराने मैं दिन भर का समय बित गया, इतना समय बिताने के बाद भी दुसरे दिन थ्प्त्  का नकल मिला।
जिसमें की एफ.आई.आर कराते समय मैं चार लोगों को नामजद कराया था। जिसमें अध्या कुमार मौर्या, दशरथ मौर्य, शिवशंकर प्रसाद मौयर्, सारथी मौर्य लेकिन जब एफ.आई.आर की कापी देखे तो उसमें दिनांक मुल्जिम रवि कुमार मौर्य का नाम था, बाद में पता चला कि अध्या कुमार मौर्य थाने पर पैसा देकर चारो लोगों का नाम कटवा दिया था। मैं एफ.आई.आर पढ़कर सन्न रह गया कि सोचने लगा कि पैसों की दुनिया है। किसी कि बेटी गायब हो प्रशासन को इसकी चिन्ता नही है। लेकिन अपराधी को बचाने की चिन्ता जरुर है। मैं हताश होकर घर चला गया बेटी को खोजते पता करते चार महिना का दिन बीत गया लेकिन मेरी बेटी घर नही पहूँची, बराबर दिमाक में चिन्ता बनी रहती थी कि लोग मेरी बेटी के साथ कैसा व्यवहार कर रहे होगे किस हाल में मेरी बेटी होगी, कुछ भी अच्छा नही लगता है।
दिनांक 23 फरवरी, 2013 को पोस्ट मैन मेरी बेटी की राइटिंग में लिखा हुआ पत्र भेजा गया। जिससे कि लोग दबाव बनाकर मेरी बेटी से लेटर लिखवाये है। क्योकि अभी मेरी बेटी 15 वर्ष की नाबालिक है। लोग जिस तरह का दबाव बनाते होगे उसी तरह मेरी बेटी करती होगी। लेकिन रवि कुमार मौर्य 25 साल का है जो इस तरह का व्यवहार एक गरीब परिवार से कर रहा है न जाने कौन सी दुश्मनी का बदला निकाल रहा है। मेरी बेटी जब से गायब हुयी है। ऐसा लग रहा है।
पुरा जीवन का अन्त ही हो गया किसके सामने में मुह दिखायेगे कैसे हम अपनी दुसरी बेटी की शादी करेगे| आस-पडोस के लोग भी हर वक्त काना फुँसी करते है। घर से निकलता हूँ तो सिधे दुकान जाता हुँ। लेकिन बेटी तो जैसे दिमाक से निकालती ही नही है, मेरी पत्नी मेरा बेटा रोते बिलखते घर में पड़े रहते है। ऐसा लगता है। पुरे जीवन भर की कमायी हुयी इज्जत बिगड़ गयी है। कैसे बिरादरी में जाकर मुँह दिखायेगे इस समय बिरादरी के लोग भी दुसरी नजरिये से देखते है। लोग कहते है। बेटी को पढ़ाइये क्या बेटी को शिक्षा देने का यही तोफा मिलना था, इस तरह अगर समाज में बेटी गायब होने लगेगी तो कौन पिता अपनी बेटी को पढ़़ायेगा, इतना पैसा या ऊँची बिरादरी के तो है नही कि पैसा या जाति के बल पर इज्जत ढक जायेगा। मुझे बराबर धमकी मिल रही है कि केश को वापस लेकर सुलहनामा करवा लिजिये नही तो आपकी बेटी को जान से मारकर लाश आपके घर भेजवा दुंगा ।
आपको अपनी बात बता तो रहा हुँ लेकिन अन्दर से मन में डर बना हुआ है कि मेरी बेटी को किस हाल में रखे होगें।


साक्षात्कारकर्ता - छाया कुमारी                                    
संर्घषरत पीड़ित- शिवशंकर शर्मा