Saturday, 23 May 2015

ससुराल दुवारा दहेज़ के लिया मारा-पिटा जाने लगा!

मेरा नाम पुष्पा देवी उम्र-20 वर्ष पति महेश द्वारा ग्राम-तेतरियाडीह, पोस्ट-तेतरियाडीह, थाना-जयनगर, जिला-कोडरमा की मुल निवासी हूँ।
मैं अभी अपने माईके में ही रह रही हूँ। ग्राम-डंडडीह, पोस्ट-जयनगर, थाना-जयनगर, जिला-कोडरमा
मेरी घटना यह है कि मेरी शादी स्व0 प्रसादी दास के बेटे महेश दास के साथ 27 अप्रैल, 2012 को हुई थी। शादी में मेरा पुरा परिवार खुश था मै भी बहुत खुश थी। शादी में जो वो लोग मांगा था, सब मेरे पापा दिये बस गाड़ी नही दिये क्यों कि मेरे पापा के पास उस समय पैसा नही था। शादी तो ठीक-ठाक से हो गया। शादी हो के जब हम अपने ससुराल गए तो देखे की मेरे पति गोतनी बेबी देवी जो कहती नही करते फिर भी हम कुछ नही बोले सोचे धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएग। शादी के बाद मेरे पापा हमको लेने आए दुवार लगाने के लिए लेने के लिए तो मेरा ससुराल वाला लोग हमको भेजने से साफ मना कर दिया कि नही आप जब तक गाड़ी नही दिजीएगा तब तक लड़की नही जाएगी हम जब यह सुने तो बहुत रोये मेरे पापा भी दुःखी होकर वापस चले गये शादी का तीन महिना बाद मेरे पापा किस्त पर गाड़ी निकाले और ले जाकर दे दिये तो वो लोग हमको आने दिया।
हम जब अपने माईके से ससुराल गए तो मेरे पति बात-बात पर हमको मारने लगे और मेरी गोतनी भी हमसे कहती तुम अपने पति से दूर रहो और जब हम नही मानते तो हमको मेरे पति से कुछ ना कुछ कह कर मार खिलाती और खुद भी कई बार मारा लेकिन मेरे पति कुछ नही बोलती हमको बहुत दुःख होता फिर भी हम कुछ नही कहते थे। मेरे ससुर सिकेन्द्र दास भी हमको गन्दी-गन्दी गाली देता उस उस समय लगता था। हम क्या करे कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा, फिर भी हम सब कुछ सह कर रहे थे। इसी तरह उन लोग का दिन प्रति दिन हिम्मत बढ़ता गया। हम यह बात अपने माइेके वालो को बताए तो वो लोग हमको वहाँ से ले आया और कोडरमा महिला थाना में आवेदन दिया तो वो लोग मेरे पति को पकड़ कर ले आया थाना तो मेरा पति बोला कि अब ऐसा नही करेगे और घर आकर फिर ऐसे ही करने लगा हर बार हमको मारता और मेरे पापा आकर हमको ले आते हमलोग बहुत गरीब है। मेरे पापा मोची है। हमको मेरे ईलाज के लिए पापा के पास पैसा नही था तो मेरे पापा मेरा जेवर दो बार बन्धक रख दिये फिर हम अपने ससुराल चले गये लेकिन एक दिन तो हद हो गया। मेरा ससुराल का पुरा परिवार मिलकर हमको बहुत मारा हम उठ नही पा रहे थे। फिर भी हिम्मत कर के उठे और अपने पापा को फोन कर के सारी बात बताए तो मेरी माँ और मेरी चाची यहाँ से गयी जब मेरी माँ मेरी हालत देखी तो बहुत रोई हम भी बहुत रोये तो मेरी माँ मेरा गोतीया माई को बुलाई और ससुराल वाला भी वही था तो वो लोग मेरी माँ को समझा बुझा कर यह कह कर भेज दिया की आप अभी आठ दिन के लिए ले जाईये फिर यह जाकर ले आएगा मेरी माँ हमको वहाँ से ले आई यहाँ लाकर डाक्टर से दिखाई तो जाकर ठीक हुए हम इसी तरह तीन महिना बीत गया।
 इस बीच ना तो वो लोग फोन किया नाही लेने आया जब मेरे पापा वही का मुखिया सुरेन्द्र यादव को फोन किये जो पहले भी मेरा फैसला किया था तो वो बोला की ठिक है। आप यहाँ आ जाइये दोनों पक्ष से बात हो जाएगा मेरे पापा और चाचा जब वहाँ गए तो वो लोग फैसले का तारीख 10 जून, 2014 को देकर भेज दिया जब। 10 जूलाई को हमलोग वहाँ गए तो पाँच लोग बोला कि फैसला का खर्चा दोनों तरफ से यहाँ रख दिजीए पाँच-पाँच हजार मेरे पापा बोले की मेरे पास उतना पैसा नही है। हम पाँच सौ रुपया दे सकते है। तो वो लोग मेरे ससुराल वाला से बोला की ठीक है। आप अपना 2500 हजार और इनका 2000 हजार यहाँ रख दिजीए आखिर इनका दहेज आप वापस करियेगा तो मेरा ससुराल वाला वहाँ पर पैसा रख दिया तो पाँच हजार मेरे पापा से उन लोगों से आप बोलिये क्या बोलना चाहते है जो पहले उसे खत्म करिये हम दोनों पक्ष का बात करते है। लड़का लड़की को रखना नही चाहता और लड़की यहाँ रहना नही चाहती और साथ में यह भी बोला कि आपको कितना पैसा चाहिए वो बोलिए तो मेरे पापा बोले कि हम लड़की को नही छुड़ाना चाहते है।
हम यह बात सुने तो हमें रोना आया और हम रोने लगे। आखिर यह सब क्या हो रहा था। मेरी ही आँखों के सामने मेरे ही जिन्दगी का फैसला हो रहा था और हमें कुछ बोलने का इजाजत है। शादी को लेकर मेरा बहुत सपना था वो सब ख़त्म हो गया और यह सब टुटते देख मैं बहुत रोयी थी। मेरे पापा पर समाज वाले दबाव दे रहे थे कि रिश्ता खत्म कर लो वही अच्छा रहेगा ये सुधरने वाला नही और सब फाइनल हो गया पर मैं उसी घर में रहना चाहती है। क्या मेरा जीवन खिलौना है कि आज इसके साथ कल किसी और के साथ रहूँगी।
मैं चाहती हूँ कि जैसे भी मेरे पति को सुधारा जाये। मैं उन्ही के साथ रहुँगी। उस मुखिया पर कार्यवाही हो जिसने मेरे रिश्ते को तोड़ने की कोशिश की है। हमको यह सब सुना कर दिल हल्का लग रहा है और उम्मीद जागा है।
साक्षात्कारकर्ता - ओंकार विश्वकर्मा  व बंदना                                   
संघर्षरत पीड़िता- पुष्पा देवी
    





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