मेरा नाम फिरोजा है मेरी उम्र 38 वर्ष है
मेरे शौहर वसीम जो टाली चलाते है। मैं दूसरो के घरो में झाडू, बर्तन
का काम करती हूँ, अभी मुझे एक लड़का और तीन लड़कियां है।
चाँदनी 15 वर्ष, शारीक 10 वर्ष, सीमा
8 वर्ष और उज्मा 2 वर्ष की हैं। मेरा एक लड़का अब्दुल रहमान 14 वर्ष का जो पास के
ही प्राथमिक विद्यालय के कक्षा तीन पास करके कक्षा चार में गया था। वह अब इस
दुनिया में नही रहा है, वह इस विस्फोट में मारा गया। जब उसका
रिजल्ट मिला था वह बहुत खुश था उसका दिमाग बहुत तेज था कुरान भी पढ़ रहा था, यह
कहते हुए वह रोने लगी अब तो वह इस दुनिया में नही है।
मैं झारखण्ड की रहने वाली हूँ लेकिन पिछले
35 वर्षो से मेरे ससुराल वाले इलाहाबाद में करेली के सी- ब्लाक की झुग्गी, झोपड़ी
में अपने बच्चो के साथ गुजर बसर कर रही हूँ।
घटना 23 मई 2012 कों कैसे भूल सकती हूँ, उस
दिन ने मेरे बच्चें को मुझसे जुदा कर दिया है। मैं बस्ती में नही थी, मै
अपने घर से कुछ दूर दूसरो के यहा जाकर झाडू-बर्तन का काम करने जा रही थी। 15 मिनट
का फर्क था, मै अपने छोटी बेटी को काम पर जाते समय
पकड़कर बोली मै काम पर जा रही हॅू। इसे देखना यह कहकर मैं चली गयी अभी मैं काम पर पहुंचे
वाली थी तभी तेज से आवाज मेरे कानो में सुनायी दी। मैं सोची की पटाखा बोल रहा होगा
फिर मैने मुड़कर वहाँ से देखा तो सड़क पर काफी भीड़ लगी थी। भीड़ देखकर मैं भागते
हुए आयी बोली भैया क्या हुआ अभी वह मेरी बातो का जवाब देते तभी बस्ती की लड़की ने
कहा बस्ती में आग लग गयी यह सुनकर मेरे होश उड़ गये। मेरा पूरा परिवार बस्ती में
ही था मै दौड़कर अपनी गली की ओर भागी तो चारो तरफ भीड़ लगी थी सकरी गली पूरी तरह
से भर गयी थी मै घबराहट में उसे चीखते फाड़ते अन्दर घुसी उस समय दिल इतना जोर से
धड़क रहा था कि पता नही मेरे शौहर और बच्चें कैसे होगे। चारो तरफ से आँसू बह रहे
थे उस समय मन बहुत घबरा रहा था। अभी भी उस बारे में सोचती हूँ तो घबराहट होती होती
है।
मै जैसे ही घटना स्थल पर पहुँच कर देखी मेरा
बच्चा जमीन पर पड़ा था। उसे इस हालत में देखकर मै पागल सी हो गयी उसके दाहिने आँख
के नीचे का गुद्दा निकल गया था बोढ़री बाहर हो गयी थी पैर का तलुआ उखड़ गया था।
मेरा मासुम बच्चा इस हालत में मिलेगा मैने कभी ऐसा सोचा था। अभी थोड़ी देर पहले
इसे सही सलामत छोड़ कर गयी थी यह क्या हो गया मुझे मालूम होता तो मै कभी नही जाती
मै उसे हिला रही थी। मैने बहुत कोशिश किया उसे बहुत हिलाया लेकिन मेरा बच्चा नही
उठा मै भी पागलो की तरह वही जमीन पर रोने चिल्लाने लगी मेरे शौहर जो दो बच्चों को
घर में सुला रहे थे वह भाग कर आये। अभी भी उस समय को
याद करती हूँ तो कलेजा काँप उठता है। धीरे-धीरे लोगो की भीड़ बढ़ती गयी लोग
तरह-तरह की बाते कर रहे थे। लेकिन हमे तो होश ही नही था मेरा बच्चा कहा चला गया यह
कहते हुए वह रोने लगी।
उस समय बस्ती में छः बच्चें खत्म हुए थे और
कई घायल थे। शाम 3:00 बज रहा था सब बच्चें उसी गली में खेल रहे थे। बस्ती के काफी
लोग (बाहर गोँव) गये हुए थे नही तो पता नही और कितने बच्चे खत्म हो जाते। उस समय
चारो तरफ कोहराम मचा हुआ था। सब लोग अपने बच्चे को देख रहे थे, मै
भी धबराकर अपने बच्चों को देखने लगी एक तो चला गया और बच्चे ठीक है कि नही इसी
फिक्र में मै दौड़कर उन्हे देखने गयी सब थे। लेकिन उसे उसने चुर्री और टाफी खिलाकर
अपनी बहन सीमा को दे कर खेलने लगा था।
उस दिन वह बहुत खुश था, मेरी
लड़की जो इस घटना में घायल हुई है। उससे जाकर बोला मै आज जल्दी खाना खाया हूँ आज
मेरे यहा मछली बनी थी हम लोग खाये है। यह बात लडके के मुहॅ से सुनकर मुझे बहुत
अफसोस हुआ कि मेरा लड़का का आखिरी वक्त था फिर भी वह इतना खुश था वह अपनी मौत से
अनजान या वह उसका आखिरी खाना था। यह सब अभी भी सोचती हूँ तो घबराहत होती है क्या
करू खुदा को शायद यही मर्जी थी। यह सब सोचकर मन को तसल्ली देती हूँ लेकिन फिर भी
मन नही मानता उसे देखने के लिए आँखे तरसती है उसकी आवाज कानो में गुंजती है।
उस दिन बहुत देर तक मै अपने बच्चों को गोद
में लिए रोती रही उसे निहारती रही कि यह क्या हो गया तू मुझे छोड़कर चला गया लेकिन
वह खून से लथपथ चुपचाप पड़ा हुआ था कुछ देर बीतने के बाद अस्पताल वाले एम्बुलेन्स
लेकर आये और मेरे बच्चे को ले गये। उन्हे ले जाता देख मेरा कलेजा फट रहा था। मै
रो-रोकर मै बिल्कुल पागल सी हो गयी थी। मैं चिल्ला रही थी, मेरे
बच्चें को मत ले जाओ लेकिन किसी ने नही सुना उसे ले गये। बस्ती के सभी आदमी
स्वरूपरानी अस्पताल ले जाया गया। उस समय बस्ती में मातम मचा हुआ था, सब
अपने-अपने परिवार के हुए बच्चों की मौत गम मे रो-चिल्ला रहे थे। जो बचा था उसका
इलाज करने में जुटे थे। कौन किसको चुप कराता कुछ भी समझ में नही आ रहा था, फिर
भी और लोगो ने एक दुसरे को सहारा दिया। देखते-देखते बस्ती में सभी अधिकारी और गोँव
की भीड़ लग गयी, लोग दिलासा दे रहे थे, खोजबीन
कर रहे थे कि बम विस्फोट कहा से हुआ कुछ लोगो ने आरोप भी लगाया कि सभी लोग बम
बनाते है हम गरीब लोग मेहनत मजदूरी कर दो वक्त की रोटी को जुटाने में लगे रहते है
भला हम बम कहा बनायेगे लेकिन लोगो की बात सुन रहे थे। हमारा सब कुछ उजड़ गया था।
उस दिन रात भर रोते रहे मेरे छोटे बच्चें भूखे प्यासे रोते बिलख्ते रहे अभी भी
सोचती हूँ तो रूह काप उठता है, खुदा यह दिन किसी को न दिखाये। भोर
में सभी मरे हुए बच्चों की मिट्टी लायी गयी चारो तरफ पुलिस और नेता तैनात थे उन्ही
लोगो ने लहलाने वालो से नहलाया कफन दिया। हम लोगो को हाथ भी नही लगाने दिया गया।
यह कहते हुए वह विलख कर रोने लगी, उसके बाद से हमारी दुनियां अंधेरी हो
गयी। इस हादसे ने हमें पूरी तरह से तोड दिया। हर वक्त उसकी याद आती रहती है। उसके
दफन होने के बाद हमारी सारी खुशिया दफन हो गयी। हम गरीब जरूर है लेकिन अपने बच्चे
को हर खुशी देना चाहते है, उसकी पढ़ने की ललक देखकर एक अम्मीद थी
कि आगे चलकर वह पढ़-लिख कर हमारा सहारा बनेगा
लेकिन खुदा ने बीच में ही उसे अपने पास बुला लिया पता नही किन लोगो ने हमारी बस्ती
में ऐसा किया हमारे घर के चिराग को बुझा दिया। उस दिन के बाद से जब भी काम पर जाती
हूँ तो रास्ते भर ऊपर वाले से दुआ करती रहती हूँ सब कुछ ठीक हो दुबारा ऐसी अनहोनी
न हो नही तो मै बे मौत मर जाऊॅगी। इस घटना से पूरी बस्ती दहल गई है। पता नहीं
क्यों हमारे साथ ऐसा किया गया। बहुत दिनो तक जाँच पड़ताल हुई अधिकारी और नेता आते
रहे लेकिन कुछ नहीं मिला पोस्टमार्टम का रिपोर्ट भी नहीं मिला। सपा नेता परवेज
टंकी के यहा दौड़ कर आते थे तब उन्ही के लिखा-पढ़ी से एक लाख रूपये मिला लेकिन
आरापियों अब तक कोई पता नहीं चला। अब कोई जाँच के लिए नहीं आता। सुनायी यह देता है
कि इस जमीन को जो खरीदा है। वह अब खाली करवायऐगा। बच्चें की जान गयी अब रहने का
ठिकाने का भी भरोसा नहीं हैं। हम रोजी रोटी के लिए यहा रह रहे है। हमारे ससुराल
बाले बहुत समय से यहाँ रह रहे हैं। हमारे पास राशन कार्ड है पहचान प़त्र है यही
चिंता दिन रात लगी रहती है काम पर जाने का मन नहीं करता लेकिन बच्चों की परवरीश के
लिए जाती हूँ। रात को सोती हूँ तो नीद नहीं आती सब कुछ आँखो के सामने धुमता है
घबराहट होने लगती है रात-दिन भर रोती हूँ जिन लागो ने हमारे साथ ऐसा किया है खुदा
उसे कभी माफ नहीं करे उन्होंने हमारी खुशियां हमसे छीन ली उस नन्हीं सी जान का
क्या कसुर था।
हम गरीब की सुनवाई कही नहीं है मैं चाहती
हूँ जिन लोग इस घटना के आरोपी है उन्हे सख्त से सख्त सजा मिले जिससे मेरे बच्चें
की रूह को आराम पहुँच|
आत
से मिलकर बात करके बहुत अच्छा लगा अपने द्वारा बतायी गयी बात सुनकर सब कुछ ताजा हो
गया लेकिन मन को सुकुन मिला।
साक्षात्कारकर्ता - फरहत
शबा खानम्
संघर्षरत
पीडि़ता -फिरोजा
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