सदियों
से पुलिस बेबुनियाद तरीके से लोगों से लोगो को गिरफ्तार करती आ रही थी वह अपना काम
सही तरीके से न कर जनता को पेरशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। गरीब जनता
किसी न किसी रुप मं उसका शिकार होती रहती है ऐसी ही महिला की कहानी उसी के जुबानी
से सुने।
मेरा
नाम गुडि़या है मेरी उम्र 32 वर्ष है। मेरे पति मो0 इस्लाम है मेरे तीन बच्चें है मो0 इरफान 9
वर्ष जो कक्षा 6 में पढ़ता है।
रेशमा 7 वर्ष जो कक्षा 1 में पढ़ती है
मुजफ्फर ढाई साल का है। मेरे शौहर मढई में नाई का दुकान डाले है। मै
ग्राम-जगदीशपुर,
पो0 सतरजहाँ, थाना-भुकुड़ा, ब्लाक व
तहसील-जखीनया, जिला-गाजीपुर, का मूल निवासी
हूँ। मैं ग्राम-उभाव, थाना-नैनी, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना, जिला-इलाहाबाद
में दस वर्षो पटेल के यहा किराये की मकान में रह कर गुजर बसर करती हूँ।
घटना 29
जुलाई, 2014 के दिन हम लोगो
का सबसे बड़ा ईद का त्योहार था हम लोग हॅसी-खुशी हम लोग अपने पास रहे। भायू कादिर
के यहा से रात को नौ बजे खाना खाकर घर सोने जा रहे थे। पास में हल्ला मचा था।
उड़ी-उड़ी सी खबर लगी थी कि गाँव के ही किसी ने बच्चीं के साथ कुछ गलत किया है।
लेकिन त्योहार में आना-जाना मेहमानों का लगा रहने की वजह से बहुत ध्यान उस ओर नहीं
गया। हम अपने घर गये बाहर बहुत भीड़ लगी थी। पुलिस फोर्स भी थी। मीडिया के लोग भी
थे। सब न्याय की माँग कर रहे थे। जिस आरोपी ने ऐसा किया था वह पहले भी उल्टी-सीधी
हरकते कर चुका था इस कारण लोग नाराज थे। पुलिस भी सही तरह से सक्रियता नहीं दिखा
रही थी। उस समय इन से यही गलती हो गयी थी कि इन्होनें हाथ में ईट ले लिखा था। इसके
हाथ में ईट देख कर मैं छिनने लगी बच्चें भी इनकी आवाज सुनकर रोने लगे। इन्होनें
हाथ से ईट रख दिया। उससे किसी को मारा नहीं था। हमने खुद अपने पति को मना किया था
फिर हम लोग सोने की तैयारी करने लगे नींद कहा आती थी। सड़क पर पुलिस रात भर गश्त
कर रहीं थी। फोर्स आ गयी थी। माहौल उस समय बहुत डर वाला था। लेकिन हमें इस बात का
थोड़ा भी आदेश नहीं था कि हमारे साथ कुछ ऐसा होगा। पता नहीं कब आँख लगी सुबह हो
गया। यह तैयार होकर दुकान जाने की तैयारी कर चुके थे। जैसे ही वाहर निकल थे तभी
पुलिस वाले उन्हें गिरफ्तार कर ले गये। मैं घर में थी। बड़ा बेटा दौड़कर आया बोला
पापा को पुलिस ले गयी। यह सुनकर मै घबरायी और फिर बाहर निकली तो देखा कि वह उन्हें
ले जा चुके थे। उस समय मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हमें बहुत घबराहत हो रही
थी। आँख से आँसू नकले जा रहे थे बस यही आवाज अन्दर से निकल रही थी या अल्लाह यह
क्या हो गया। मैं दौड़कर अपने मामू के पास गयी उनसे सारी बाते बतायी वह भी सुनकर
परेशान हो गये। हम लोग थाने पर गये वहाँ पुलिस वालो ने उन्हे एक डन्डा मारा था।
दिन भर रखा था, फिर चालान कर
जेल भेज दिया। उस दिन का मंजर बहुत खराब था क्या से क्या हो गया बार-बार यही
पछतावा हो रहा था कि अगर वह ईट न उठाये होते तो आज ऐसा न होता। वहाँ जो लोग भी
इतनी आवाज कर रहे थे। इसी जोश में आकर उन्होंने ईट उठाने की गलती कर दी वही अखवार
में निकला इसी से वह लोग उन्हें ले गये जबकि पुलिस की बहुत गलती थी जो लोग वहा रह
रहे है वह अपने घर जायेगे ही वहा ऐसी हरकत हो रही थी कि दंगा भडगने का काम हो रहा
था। इतना दहशक भरा माहौल था सोचती हूँ तो डर लगता है। उन्हें थाने से ही जेल भेज
दिया गया।
मैं उनसे जेल में मिलने गयी थी। वहा उनसे 50 से 60 कुन्तल आटा
गुथवा रहे थे। बडे़-बड़े काम उनसे अकेले करवां रहे थे। उनके हाथ में छाला पड़ गया
था। यह सब देखकर मुझे बहुत तकलीफ हुई वह रो रहे थें उनके हाथो में बहुत तकलीफ थी
उन्हें जेल में कोई भी दवा नहीं दी गयी उसी घाव वालो हाथो से वह काम कर रहे थे।
मुझे और बच्चो को देखते ही फफक कर रोने लगे। बोले गुडि़या मुझे यहा से निकालो नही तो
मेरा दम निकल जायेगा। कुछ भी करो, यह बात सुनकर मेरा मेरा कलेजा भर गया मै भी अपने आँसूओं को पोछते हुए
उन्हे ढाढस बधाया वकील किया। जल्दी छुट जाओगें। पुलिस उन्हें हवालात में डाल दिया।
एक छोटी गलती की उन्हें इतनी बड़ी सजा मिली। मेरा छोटा बेटा उन्हें बहुत परचा है
वह दिन रात परेशान करता था। पूछता है पापा कब आयेगे। यह सुनकर बहुत तकलीफ होती हे
उसे ढाढस देती हूँ, जल्दी
ही आयेगें। पुलिस ने उन पर बहुत धाराये लगायी है। 147,148,149,323,504,506,307,336,436,427, आई पी सी लगाया
हैं अगर वह दंगे में शामिल होते तो वह भाग नहीं जाते। उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं
किया था जिससे किसी का नुकसान हो मैं उस समय इन्ही के साथ थी। लेकिन उनकी छोटी सी
भूल ने हमे इतनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया हम लोग गरीब और मजदूर लोग है। हमारे पास
इतना पैसा कहा है। अगर मामू न होते तो बच्चे का पेट पालना बड़ी मुस्किल हो जाता
है। मेरे ससुर है वह भी पैर से मजबूर जब से यह घटना हुई है तब से वह परेशान है
गाँव के लोग भी पेरशान है बार-बार फोन आ रहा है।
वकील साहब ने तसल्ली दिया है कि जल्दी ही जमानत मिल जायेगी। जब भी
उनसे जेल में मिलने जाती हूँ। 100 से 200 रुपये खर्च होता है। पूरा दिन लग जाता हैं दिन रात अल्लाह से यही
दुआ करती हॅू कि खुदा इस मुसीबत से हमे बचा ले। लोग बहुत परेशान हे। दिन रात फ्रिक
सा लगा रहता है। रात को ठीक ढंग से नींद नहीं आती है। किसी काम में मन नहीं लगता
कुछ भी खाने-पीने का मन नहीं करता न कही आने जाने का मन करता है।
मैं चाहती हूँ हम लोगों के साथ न्याय हो उन्होने कुछ भी ऐसा नहीं
किया जिससे किसी को नुकसान हो। उन्हे इस छोटी सी भूल की इतनी बड़ी सजा न मिल। यही
दिन रात दुआ करती हूँ। मेरे और मेरे बच्चों के साथ न्याय हो।
साक्षात्कारकर्ता - फरहद शबा खानम्
संघर्षरत
पीडि़ता - गुडि़या
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