Wednesday 29 April 2015

जब भी मै अपने बच्चें की तरफ देखती हूँ तो मै सोचती हूँ कि मेरे बच्चें भी मेरी तरह वदनसीब है !


       मेरा नाम शबनम है। मेरी उम्र 28 वर्ष मेरे पति अब्दुल हमीद है मेरे दो लड़के साहिल 4 वर्ष तथा जियाउल हक 3 महीने का हैं। मै 181 ए /1 चकलाल मोहम्मद, नैनी,थाना व जनपद-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ। मै गृहस्थनी हूँ।
शादी के बाद तो मेरी दुनियाँ ही बदल गयी मुझे नहीं पता था,कि मुझे यह दिन भी देखना पडे़गा। हर लड़की बिदा होकर अपने ससुराल कुछ सपने लेकर जाती है,लेकिन जब उसे ससुराल वाले का साथ और प्यार नहीं मिलता तो वह पूरी तरह बिखर जाती है। उसकी दुनिया ही उजड़ जाती है। आज से 5 वर्ष पहले (26.03.2009) को मेरी निकाह वालिद पुत्र कासिम अली ग्राम-अंती का पुरवा,पोस्ट-गढ़वारा थाना-अंतु जनपद-प्रतापगढ़ में हुआ। शादी में मेरे घर वालो द्वारा हैसियत से ज्यादा स्त्री धन एवं उपहार दिये गये थे। मै विदा होकर अपने ससुराल गयी और फिर घर वापस आ गयी। दुसरी विदाई अप्रैल महीने में हुई। मैं अपने ससुराल गयी, तब मुझे वहा हैण्डपम्प का पानी पीने से मुझे थोड़ी बहुत खासी आयी,तब मेरी जेठानी साबिया बेगम मुझे प्रतापगढ़ के डाक्टर के पास ले जाकर मेरा एक्स-रे करवाया और मुझ पर गम्भीर बीमारी का आरोप लगाया कि तुम्हें खतरनाक बिमारी हैं जबकि मैनें डाक्टर से पूछा कि एक्स-रे में क्या निकला है। तब उन्होंने कुछ नहीं कहा। उस समय मेरे पति लखनऊ में गाड़ी चलाते थे। प्रतापगढ़ से घर आने के बाद मेरी जेठानी और ससुराल के अन्य सदस्य मुझे दिन रात सताने लगे और मेरे पति से फोन पर यह कहने लगे,कि इसे बहुत खराब बिमारी है। इसे इसके मायके भेज दो। यह बाते सुन-सुन कर मै। रोती बिलखती और सोचती,यह मेरे साथ क्या हो रहा है। यहाँ मैं कुछ सपने लेकर आयी थी। एक-एक दिन काटना मेरे लिए मुश्किल हो गया था,उठते-बैठते वह लोग मुझे मानसिक रुप से परेशान करते थे। अभी यह सब बाते सोचती हूँ तो तकलीफ होती है। मेरे आदमी ने भी मुझसे फोन पर बात नहीं करते थे। किसी तरह 15 दिन गुजरा तब उन लोगों ने मेरे मायके फोन करके कहा ले जाओं यह सुनकर मेरे मायके से मेरा छोटा भाई मुझे घर ले आया। हर लड़की शादी के बाद जब मायके आती है,तो खुश होती है लेकिन उस समय मुझं कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कि मैं खुश होऊ या रोऊ किसी तरह अपने आसुओें को पीकर रहने लगी। मेरे पति का भी फोन मेरे पास नहीं आता जब मै फोन करने की कोशिश करती तो पता चलता उन्होनें अपना नम्बर बदल दिया है। कुछ दिन बीत जाने के बाद मेरे अब्बु ने कुछ लोगो को ले जाकर मेरे ससुराल में उन लोगों से बात कि तब मेरे जेठ ने मेरे ससुर से कहा जायो उसकी बिमारी साबित करके आओं यह बाते सुनकर मै अन्दर ही अन्दर घुट रही थी,तब प्रतापगढ़ के डाक्टर के साथ कृति डायग्नोस्टिक सेन्टर इलाहाबाद में दुबारा मेरा एक्स-रे हुआ। जहा, सब कुछ नार्मल निकला तब उन लोगों ने पूछा नार्मल मतलब क्या होता है। यब सब सुनकर मुझें बहुत गुस्सा आ रहा था। उसके साथ-साथ लकलीफ भी हो रही थी,की आखिर यह लोग क्या साबित करना चाह रहे हैं। फिर वह लोग वापस प्रतापगढ़ चले गये। कुछ दिन बीत जाने के बाद मेरे जेठ मुझे बिदा कराकर प्रतापगढ़ ले गये, वहा से मैं अपने पति के साथ लखनऊ चली गयी, और पाच-छः महीने रही वही वहा मै गर्भ से हो गयी। छठा महीना लगा था, तभी मेरे पति ने मुझे मेरे मायके भेज दिया। मेरा भाई मुझे घर लेकर आ गया, तब उन्होनें मेरी बहन से कहा जब वह पहुच जायेगी,तो फोन करके बताया तो उसके बाद उनका फोन आना बन्द हो गया। जब कभी मैं फोन करने की कोशिश करती तो नम्बर नहीं मिलता। उस समय दिन रात यही फिक्र करती कि आखिर वह मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे है। मैनें क्या गुनाह किया,उन्हें थोड़ी सी भी फिक्र नहीं है। रात-रात भर रोती रहती हॅू। दिन गुजर गया और मुझे आशा हास्पिटल में एक लड़का हुआ मेरे मायके वाले बहुत खुश थे। लेकिन तभी यह पता चला कि मेरे आदिल के पीठ में दाना है उसका आपरेशन करना बहुत जरूरी हैं,नही तो उसका जहर उसके पूरे बदन में फैल जायेगा। किसी तरह से घर वालों ने मेरे बच्चें के पीठ का आपरेशन करवाया। उस मुश्किल वक्त में भी मेरे ससुराल से और न ही मेरे आदमी ने मेरी खबर तक न ली। आज भी वह गम मुझे अन्दर ही अन्दर खाये जा रही है। मेरे घर वाले के कहने पर की बच्चें की हालत खराब है, तब मेरे ससुर आये और बोले मुझे कही दावत में जाना है, कहकर चले गये यह सुनकर मुझें बहुत आफसोस हुआ,कि वह कुछ मदद नही कर सकते है। लेकिन बच्चे की हालत देखकर रो तो सकते है। मेरा बच्चा उस समय बहुत मुश्किल वक्त में था। यह खबर सुनकर भी मेरे आदमी अपने बच्चे को देखने तक नहीं आये। अल्लाह का शुक्र है कि मेरे बच्चें का आपरेशन हो गया और उसकी जिन्दगी बच गयी। जब भी मैं अपने बच्चें की तरफ देखती तो सोचती हूँ मेरी तरह मेरा बच्चा भी वदनसीब है। बाप के रहते हुए भी वह उसके प्यार से महरूम है। दिन इसी सब गम से कटता गया मायके वालों ने मेरा और मेरे बच्चे का बहुत ख्याल रखा मेरा बच्चा देखते-देखते एक साल का हो गया,तभी अचानक फिर मेरे पति का फोन आना शुरू हो गया। उस समय बस यही सोचती की कितनी शिकायत इनसे करू| इनसे बात तक करने का मन नहीं करता था,लेकिन औरत के दिल में हमेशा अपने लोगो के लिए मोहब्बत होता है। सारे गिले शिकवे भूलकर मैं उनसे बात करने लगी,और बोली बच्चे की पैदाइश में नहीं आये तो कम से कम उसके जन्मदिन में आ जाइये। एक नजर अपने बच्चें को आकर देख लिजिए बहुत कहने के बाद वह जन्मदिन में आये, मैं इसी उम्मीद में थी कि वह मुझें अपने साथ ले जायेगे,लेकिन वह मुझे नहीं ले गये बस झुठे प्यार के सहारे मुझे फिर अकेला छोड़कर चले गये। उस दौरान कुछ दिनो तक मेरी बात चीत फोन के जरिये हो रही थी। जब भी मैं जाने को कहती तो बोलते वही पड़ी रहो जब भी अपने खर्च और बच्चे के खर्च के लिए कुछ पैसा मागती तो बोलते मायके वालो से मागो यह सुनकर मुझें बहुत तकलीफ होती थी। मैं चुपचाप उनकी बातों को सुनकर रो-बिलखकर चुप हो जाती कि घर वालें मुझे इस हालत में देखेगे तो उनहे तकलीफ होगी आखिर कब तक मैं इन लोगो के उपर बोझ बनकर रहॅगी यही दिन रात सोचती रहती हॅू।
     सन् 2011 में मेरे नन्द की शादी पड़ी तब दुनिया के लोग लाज के डर से मेरे जेठ मुझे प्रतापगढ़ ले गये वहा शादी में पाच छह दिन मैं रही, फिर मेरे अब्बु शादी में शिरकत होने गये थे,तब उन्हीं के साथ फिर उन लोगों ने मुझे भेज दिया। मेरे आदमी उस समय कुल्लू मनाली में हिन्दुतान कारपोरेशन लिमिटेड मे इंजीनियर की गाड़ी चलाते थे,वह शादी में नही आये थे। शादी के वक्त भी मेरे ससुराल वालो का व्यवहार अच्छा था। लेकिन मैं इसलिए खुश थी, कि मेरे आदमी कभी कभार मुझसे फोन पर बात कर रहे थे, मुझें एक उम्मीद सी बध गयी थी,कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा। उसी समय मेरे मायके भी शादी पड़ी थी, शादी बीत जाने के बाद मैने फिर अपने पति से जिद की कि मैं कब तक मायके मे रहूगी मुझे आपके पास आना है,यह सुनकर उन्होने कहा अपने भाई के साथ चण्ड़ीगढ़ मेरी बहन के पास आ जाना मैं तुम्हें वही से ले आऊँगा। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई और अपने भाई के साथ चण्ड़ीगढ़ गयी रास्ते भी यही सोचती मेरे बच्चे को उसके बाप का प्यार मिलेगा अब मेरा दिन अच्छा आने वाला है,खुदा ने मेरी सुन ली। चण्ड़ीगढ़ से वह मुझे कुल्लू मनाली ले गये उस समय मेरा खुशी का ठिकाना नहीं था। मै वहा गयी और उनके साथ फिर अपनी जिन्दगी की शुरूआत की। दो चार दिन तक उनका व्यवहार ठीक रहा फिर इसके बाद वह मेरे साथ झगड़ा करने लगे मैं जब कुछ अच्छी बुरी चीज के लिए कहती तो कहते जो घर में हैं उसे पकाओं और खाओ। मेरे बच्चें की तरफ वह जरा भी ध्यान नहीं देते थे, यह सब देख-देख मुझे अफसोस होता उसे प्यार से एक बार भी गोद में नहीं लेते थे, वही कुछ खाने को कहते, जो घर में बना रहता था। मेरा बच्चा एक चाकलेट के लिए तरसता था। दूसरे के बच्चें को खिलाते और प्यार करता था। दूसरी औरतों से बात करते थे। मुझसे सीधे मुह नही बोलते सह देख मैं दिन रात कुढ़ती रहती मेरा पूरा दिन रो-रोकर गुजरा आज भी सोचती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है। उस समय फिर मैं दुबारा गर्भ से हो गयी यह सुनकर वह बौखला गया बोला मुझें बच्चा नही चाहिए इसे गिरा दो मै बोली मैं नहीं गिरवाऊॅगी तो वह मुझे मारने पीटने लगा। मै अपने पेट मे पल रहे बच्चें को बचाते हुए उसके मार को सहती रहती थी,मुझे सही खाना और दवा न मिलने से मै बिल्कुल कमजोर हो गयी थी। पडोस के दोस्त की बीबी के साथ वही के सरकारी अस्पताल में दिखाने गयी तो डाक्टर ने कहा खुन की कमी हैं, यह सुनकर मै चुप हो गयी कि किससे यह सब कहू जो सुनने वाला है,वह तो मेरी बात सुनता नहीं और न ही मेरा ख्याल रखता है। मेरे साथ-साथ मेरा आदिल भी यह कहते हुए वह रोने लगा। वह बार-बार यही धमकी देता है कि दूसरी शादी करूँगा। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह सब सहते हुए भी मैं उसके साथ रहना चाहती थी। लेकिन मार्च 2012 में यह कहकर मुझे प्रतापगढ़ छोड़ गया कि खर्चा बहुत ज्यादा है मैं उठा नहीं पा रहा हूँ यह सुनकर मै अवाक रह गयी कि मुझे जो भी रूखा सुखा मिलता उसी को खाकर सब्र कर रही थी,आखिर यह क्या कह रहे हैं। फिर भी सब कुछ सहते हुए 15 दिन तक ससुराल में रही आये दिन मेरी जेठानी मेरे साथ दुव्र्यहार करती रहती जब भी मै पति को खाना देती मुझसे छिन लेती यहा तक कि उनके जाने पर जब भी फोन आता मुझे बात नहीं करने देती यह व्यवहार मेरे लिए उनका हमेशा रहता था एक दिन भी सुकुन से मुझें नही रहने देती मुझ पर लाछंन लगाती और ताने मारकर बिना किसी कारण झगड़ा करती थी,मेरे पति और घर वाले के खिलाफ भड़काती थी। 15 दिन के बाद हमेशा की तरह मुझे फिर मेरे मायके भेज दिया गया यह सब सहते-सहते मैं थक गयी थी, लेकिन मायके के अलावा मेरा कोई सहारा भी नहीं था,चुपचाप चली आयी। मायके वालो ने फिर मेरा इलाज करवाया और मेरा ख्याल रखा। वही मेरा दूसरा बेटा जियाउल हक 20 अक्टूबर को जहागीर नर्सिंग होम में हुआ। हर बार की तरह इसका खर्चा मेरे मायके वालो ने उठाया। मेरे पति और ससुराल वालो ने मेरी कोई खबर नहीं ली। जिस दिन से शादी हुई है,उस दिन से आज तक मुझे मेरे पति और ससुराल वालो से कोई भी खुशी नही मिली है। मैं जितने दिन अपने ससुराल में रही मुझे मेरी जेठानी और परिवार के और लोगो द्वारा मुझे मानसिक एवं शारिरीक प्रताड़ना मिली। छोटे-छोटे बातो पर मुझसे झगडा किया जाता था।
     इन सब से तंग आकर और ससुराल द्वारा कोई भी आर्थिक सहायता न मिलने के कारण मैने 6.8.2012 को विभिन्न अधिकारियों एवं आयोग में प्रार्थना पत्र भेजा जिससे मुझे मेरा हक मिले। मुझे अब अपने साथ-साथ अपने बच्चों की फिक्र है। उनकी परवरीस और पढ़ाई लिखाई मैं कैसे कराऊँगी अगर यह लोग मेरे साथ इसी तरह व्यवहार करते रहे तो मेरे बच्चों का भविष्य क्या होगा। इन सब बातों से मैं दिन रात परेशान रहती हूँ। मैं इन्हें लेकर कहा जाऊँगी कब तक मेरे मायके वाले मेरा साथ देते रहेगे। अपने उपर हुए अत्याचार के खिलाफ मैने 24.08.2012 को अदालत में ऊपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट इलाहाबाद के समक्ष घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत मुकदमा कायम किया। इसे कई बार नोटिस मेरे ससुराल भेजा गया तब वहा पर उन लागों ने मेरे पति को लापता बताकर वह नोटिस वापस भेज दिया। कई तारिख पड़ चुकी है। लेकिन अभी मुझे कोई भी न्याय नहीं मिला मै इन सबसे बहुत परेशान हो गयी हूँ। बच्चों का खर्च तो मेरे घर वाले उठा रहे है कोर्ट कचहरी का भी बोझ उन पर आ गया है। वह लोग सिर्फ मुझे खुश देखना चाहते हैं। पता नहीं उनका ख्वाब कब पूरा होगा यह कहते हुए वह सिसक कर रोने लगी।
     बस उम्मीद लगाये बैठी हूँ। कि मेरे साथ न्याय होगा और उन लोगों को सजा दिलाना चाहती हूँ कि उन लोगों ने मेरे साथ जो भी गलत व्यवहार किया है,उन्हे उसकी सजा मिले और इज्जत के साथ वह मुझे अपने घर ले जाय और मेरे बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से करें वह मेरी जरूरतों को पूरा करे साथ ही साथ वह मुझें मारे पिटे और सताये न। मैनें अभी तक बहुत कुछ सहा है। एक शादीशुदा लड़की जब मायके में रहती है, तो लोग उसके बारे में तरह-तरह की बात करते है, ऐसा देखते है जैसे सारा गुनाह मैनें ही किया हॅू। घर वालो को तो तकलीफ नहीं होती है लेकिन दूसरे लोग पता नहीं मेरे बारे में क्या सोचते है। मैं अपने परिवार के साथ सम्मानपूर्वक जीवन बिताना चाहती हूँ। मुझे मेरा हक मिले।
     आपको सारी बाते बताकर मेरा मन हल्का हुआ है बहुत दिनो से जैसे मेरे मन मे बोझ सा था अभी अच्छा लग रहा है, आपके द्वारा मेरी ही कहनी मुझे सुनायी गयी तो जैसे सब कुछ ताना सा हो गया जिससे मैं पहले से ज्यादा अपनी लड़ाई लड़ने के लिए और जागरूक हो गयी हूँ।

साक्षात्कारकर्ता - फरहत शबा खानम्                                     
संघर्षरत पीडिता- सबनम

                                         





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