आज भी हमारे देश में पहले जैसा व्यवहार दलित अतिवंचित के ऊपर किया जा
रहा है। हर पैसा बाल गरीबों व दलितो का शोषण करने से पीछे नही हटता आज भी उन्हें
समाज से गिरी हुई नजरों से देखता है। उनकी जमीन जबरदस्ती हड़पने के लिए तैयार है।
उसे अपनी कमाई से पेट नही भरता आइये ऐसी ही एक कहानी मालती देवी की जुबानी सुने।
मेरा नाम मालती देवी उम्र-40 वर्ष
मेरे पति का नाम गनेश है। मेरे परिवार में एक लड़का, 3 लड़की व
मेरे पति रहते है। मैं ग्राम-बभनउली, जिला-सोनभद्र
की रहने वाली हूँ। मेरे पति मजदूरी का काम करते है। हमारी एक लड़की दोनों आँख से
बिकलांग है। हम यब निहाय गरीब व जाति के चमार है। गरीबी के कारण बड़ी मुश्किल से
अपना व परिवार का भरण-पोषण करते है। यहाँ तक कि कभी-कभी भूखों सो जाते है। हमारे
पति को बाराबर काम भी नही मिलता कि घर का खर्च चल सके ग्राम प्रधान हम लोगों को
नरेगा में काम भी नही देते है। गाँव सभा की जमीन पर 40
वर्ष से अपना दो खपरैल का घर व एक झोपड़ी बनाकर गुजर बसर करती थी। इस बीच मेरे लड़के
की तबियत बहुत खराब हो गयी दवा के अभाव में उसकी हालत निरन्तर बिगड़ती गयी बच्चे की
दवा करने के लिए घर में एक भी पैसा नही था सब मेरे पति बोले इस जमीन में से थोड़ा
जमीन बेचकर जो पैसा मिलेगा उसी से बच्चे का दवा करेगें। तब मैं अपने पति से बोली
अगर जमीन बेचेगें तो कहाँ रहेगे जो आपको अच्छा लगे करो मैं नही जानती इतना कहकर
मैं तिअरा चली गयी मेरे जाने के बाद मेरे पति को ग्राम प्रधान सत्यनारायन एक सदस्य
को भेज कर मुन्नु के घर पर बुलवाये वहाँ पाँच साल लोग थे।
जब मेरे पति वहाँ गये तो लोग उन्हें दारु पिलाकर बोले कि इसमें से
थोड़ा जमीन मुझे दे दो प्रधान ये भी कहे कि मैं तुम्हें 60
हजार रुपयेद दुँगा और कालोनी में तुम्हारा एक आवास भी बनावा दुंगा लोग मेरे पति से
स्टाम्प पेपर पर पंचनामा लिखकर उनके अगूंठा लगवा लिए और बोले थोड़ा जमीन मुझे भी दे
दो जब जमीन का पंचनामा हो गया तो प्रधान से जब मेरे पति पैसा मांगे तो प्रधान बोले
एक भी पैसा नही देगे मेरे पति वहाँ से उदास होकर घर चले आये उस समय लोग उन्हें
शराब पिलाये थे। जब वो घर आये तो हमने पूछा क्या हुआ तब तब मेरे पति बोले प्रधान
मेरे साथ गद्दारी किया मुझसे एक कागज पर साइन करवा लिया और पैसा नही दिया उस समय
उस प्रधान मेरे बहुत गुस्सा आ रहा था। इधर मेरा लड़का बिमार उधर प्रधान मेरे साथ
धोखा किया पंचनामा के एक महिने बाद प्रधान गाँव के पाँच छः लोगों के साथ समय 10:00
बजे सुबह हमारे घर आया और बोला घर खाली करो तब मै बोली घर मेरा है। मैं खाली नही
करुगी तब प्रधान व उसके साथी मुझे व मेरी अंधी बेटी को लात घुसों से पेट पीठ व पैर
पर मारने लगे मैं और मेरी बेटी दर्द से कराह रही थी उस समय जी कर कर रहा था कि
प्रधान को जान से मार दु लेकिन हम गरीब के पास इतना साहब कहां मैं और मेरी बेटी
जोर-जोर जान बचाने की गुहार गाँव वालों से की आवाज सुनकर कुछ आये तो प्रधान को
समझाये लेकिन प्रधान नही माने हमारे झोपड़ी को उजाड़ कर फेक दिये जब मैं रोती बिलखती
कोटवाल के पास गयी तो वहाँ कोतवाली वालों भगा जाओं यहाँ तुम्हारी सुनवाई नही होगी।
प्रधान भले थाने पर 25000/- हजार रुपये दे दे। लेकिन तुम्हे नही
देगे। मैं निराश होकर घर चली आई कोई कार्यवाही नही की गयी जब मैं घर आई तो देखी
प्रधान नेय खोदकर दिवाल जोड़वा रहा थे। वह उसपे घर बनवा कर एक सेठ को डेढ़ लाख रुपये
में बेच दिये मेरा थोड़ा सा जमीन बचा था उस पर भी प्रधान हमारे बस्ती के एक व्यक्ति
का झोपड़ी लगवा रहे है। जब हमने मना किया तो नही माने प्रधान हमें वहाँ से भगाना
चाहते है। मै फिर कोतवाली आई और दरोगा को 3000/- रुपये दी
तो बोले तुम जाओ घर बनाकर रहो अब कोई कुछ नही बोलेगा। मैं घर आई और उस जमीन पर घर
बनाकर रहने लगी। अब मैं चाहती हुँ कि मुझे उस जमीन से फिर न भगया जो आपको अपनी
कहानी बताकर अपने को हल्कापन महसूस कर रही हूँ
साक्षात्कारकर्ता
-पिंटू गुप्ता
संघर्षरत
पीडिता -मालती देवी
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