Friday, 22 May 2015

स्वास्थ्य योजना का भेद-भाव

मेरा नाम फुलकली पति सुमेश उम्र-24 वर्ष मेरी देवरानी का नाम राजकुमारी पति उमेश मेरे चार बच्चें है। दो लड़के एवं दो लड़कियाँ पहला लड़का अजय उम्र-09 वर्ष कक्षा-03 में पढ़ता है। दूसरी लड़की स्नेहा उम्र-08 वर्ष कक्षा-2 में पढ़ती है। तीसरी लड़की है स्वाति उम्र-04 वर्ष की है जो आॅगनवाड़ी केन्द्र में पढ़ने जाति है। चैथा लड़का आर्यन 03 वर्ष का है अभी स्कूल नही जाता है। मेरे ससुर का नाम भोला है। सास का नाम इन्द्रकली देवी है। मैं ग्राम-दान्दपुर, थाना-घुरपुर, प्रखण्ड़-चाका, जिला-इलाहाबाद के रहने वाली हूँ।
        मैं पढ़ी लिखी नहीं हूँ हम भूमिहीन मजदूर हूँ। मैं अनुसूचित जाति की महिला हूँ। नवम्बर, 2012 में मेरी देवरानी गर्भवती थी। जिसका 09 माह पुरा हो चुका था और दो टी.टी का टीका स्वास्थ्य केन्द्र में आशा दीदी के द्वारा अनम के ली| अचानक एक दिन शुक्रवार को रात में दर्द उठी और पुरे बदन में कम्पन जैसा होने लगा पूरे परिवार में सभी सदस्य भयभीत हो गये और उसी समय आँगनवाड़ी सेविका के साथ हमलोग हास्पिटल ले गये। उस समय लगभग रात का 11:00 बज रहा था। हास्पिटल चाका ब्लाका चाका ले गये। वहाँ डाक्टर नही था तो नर्स ने कही जिला हास्पिटल इलाहाबाद (स्वरुप रानी) हास्पिटल ले जाने के लिए कही! लोग इलाहाबाद स्वरुपरानी हास्पिटल ले गई वहा पर हम लोगो का कोई सुनवाई नहीं हुई। हम लोग अपने को और छोटा जाति समझ कर और निराश हो गये। हम लोग हिम्मत जुटाये क्यो कि हमलोगो को मरीज को बचाया था, इसलिए हमलोग प्राइवेट हास्पिटल ले गये वहाँ के डाक्टर ने 30.000/- रुपये (तीस हजार रुपया) मांग किये तो हमलोग पुछे कि मरीज बच जाएगा ना तो डाक्टर ने बताया कि इसका कोई गारन्टी नही लेगे। उसके बाद हमलोग रसतोगी इलाहाबाद क्लिनिक ले गये (प्राइवेट) उसी हास्पिटल में मेरे रिश्तेदार (नन्दोई) काम करते थे। उसने डाक्टर से बात किये तो डाक्टर ने 2000/- (दो हजार रुपया) जमा करने को कहा तो हमलोग दो हजार रुपये जमा किये तो मरीज को डाक्टर ने एक बोतल पानी चढ़ाया फिर डाक्टर ने बताया कि यहाँ डिलेवरी नही हो पायेगी तो डाक्टर ने अपने साधन से उषा हास्पिटल भेज दिया। वहाँ के डाक्टर ने बताया कि 7000/- (सात हजार रुपया) जमा करो तब हम लोग रुपया जमा किये तो डाक्टर आपरेशन किया जिसमें बच्चा मरा हुआ निकाला गया। बच्चा लड़का था। मरीज बेहोश था, हमलोग ने पुछा कि मरीज कैसे है। डाक्टर ने बताया कि मरीज को आक्सीजन लगा हुआ है। दो घण्टे में होश आ जाएगा डाक्टर ने फिर 5000/- रुपया (पांच हजार रुपया) जमा करने को कहा उसके बाद फिर 5000/- (पांच हजार रुपया) जमा करवाया और बोला मरीज को बाहर ले जाओं जल्दी क्योंकि मरीज का देहान्त हो चूकि थी फिर लाश को घर लाने के लिए सवारी किये और घर ले आए। मरीज की मृत्यु हो जाने के कारण हम लोग अधिक परेशान थे। इलाज का कागज हास्पिटल से नही ले पाये जब घर आये तो दाह संस्कार के लिए हमलोगों के पास पैसा नहीं था उसी समय 1000/- रुपया कर्ज लाये तो दाह संस्कार किये। इससे हमें सरकारी योजनाओं से कोई सहयोग नहीं मिला।
      हम लोगो के पास सरकार द्वारा कोई सुविधा नही मिला और न रहने के लिए इन्द्रा आवास मिला।
हम अपनी बातो को बताकर हल्कापन महसूस कर रहा हॅू और भगवान से प्रार्थना करेगे कि जो हमारे परिवार के सदस्य के साथ हुआ है और किसी के साथ न हो।

साक्षात्कारकर्ता - फरहद शबा खानम                        
संघर्षरत पीडि़ता - फुलकली                                                 

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