Friday, 22 May 2015

उस दिन को याद करती हूँ तो लगता है वह दुबारा दिन फिर न आये

मेरा नाम अभिराजा देवी है मेरी उम्र-30 वर्ष है। मेरे पति भारत लाल है जो ईटा-गारा का काम करते है। मैं अशिक्षित हूँ। उस दिन को याद करती हूँ तो लगता है वह दुबारा फिर न आये|
मैं ग्राम-भीटा, पोस्ट-भीटा,थाना-घुरपुर,ब्लाक-जसरा, तहसील-बारा, जिला-इलाहाबाद की निवासिनी हूँ।
घटना 14 जुलाई, 2012 शनिवार के दिन मैं और मेरी जेठानी रीना पट्टा की हुई आवासीय जमीन पर गोबर पाथ रही थी। पाल के लोग आये और बोले यहाँ गोबर क्यों पाथ रही हो। यह सब हमारी जमीन है। तो वह सारा उपरी लात से गिराते हुये गन्दी-गन्दी गालियां देते हुये चारो तरफ जो घर बना था, उजाड़ने लगे। वह लोग काफी संख्या में थे, करीब 60-70 लोग थे। सब के हाथ में कुछ न कुछ औजार और लाठी थी, उन्हे देखकर हम लोगों को डर लग रहा था, लेकिन हिम्मत कर हम लोगों ने उन्हे रोका उस समय हम औरते ही औरत थी। सुबह के वजह से सब काम में लगे थे। हम लोग उन्हें रोक पाते कि वह हम लोगों के ऊपर लाठी-डन्डे से मारने लगें सब एक दुसरे को बचाते गिरते-पड़ते बस्ती की ओर भागने लगे लेकिन उन लोगों ने हमें चारो तरफ से घेर लिये थे। कुछ लोगों को तो काफी चोट लगी। मेरी जेठानी के सिर से खून निकल रहा था। यह देख हम घबरा गयी। चारों तरफ से जैसे चीखने की आवाज आ रही थी, उस समय हम बेबस थे, उनकी एक दो लाठी मेरे पखुरे (हाथ का उपर वाला भाग) पर लगी मैं वहाँ से भागी नही तो पता नही वह मुझे कितनी लाठियां और मारते।
उस दिन यह सब देखकर बहुत दुख हो रहा था। उस समय भगवान से यही मांगती सब सही सलामत रहे और उन लोगों ने हमें अकेला पाकर इतनी चालाकी से हम पर धावा बोला था। जैसे लग रहा था कि सब कुछ पहले से सोची समझी चाल हो। जब हम सभी लोग बस्ती से थाने गये तो वहाँ भी हमारी सुनवाई नही हुई। बल्कि उल्टा हम पर ही इल्जाम लगाया जा रहा था, कि हमने उन लोगों से लड़ाई की है, इसी आरोप में दो लोगों को थाने के अन्दर डाल दिया गया और जिससे हमें वही थाने पर रुकना पड़ा। हम लोग बार-बार पुलिस से कहते उन्होने हमारे ऊपर हाथ छोड़ा है लेकिन वह इसका जिम्मेदार हमें ही मानते थे। हम लोग थाने में अपने न्याय के लिये दुहाई कर रहे थे। वहाँ बस्ती में पुलिस के लोग और पाल के आदमी सब कुछ उजाड़़ कर हमारी जमीन पर कब्जा कर रहे थे। उस समय यह सब देखकर बहुत अफसोस हो रहा था, हमारे साथ यह क्या हो गया। अभी भी सोचती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है, अगर उन लोगों को लड़ना था तो बराबर में लड़ते हमें असहाय पाकर हम महिलाओं को मारकर हमारे परिवार के अन्दर दहशत फैला दिया है। इन लोगों ने मिलकर हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया। वह खुले आम घूम रहे है, पैसे और दबंगई के बल पर उन लोगों ने हमारा सब तहस-नहस कर दिया। वह दिन किसी के घर चूल्हा नही जला। सब मन मारकर जहाँ देखों वहाँ पडे थे, एैसा लग रहा था कि यह क्या हो गया। अभी उस दिन की याद आती है तो लगता है कि वह दिन दोबारा कभी न आये। उस दिन के बाद से चिन्ता लगी रहती है, रात को नींद नही आती। मन हमेशा अशान्त रहता है।
मैं चाहती हूँ कि जिन लोगों ने हम लोगों पर अत्याचार किया है उन्हे सजा मिले और हमें न्याय मिले।
आपसे मिलकर और उस घटना के बारे में बताकर मुझे अच्छा लगा और मन हल्का हुआ।

साक्षात्कारकर्ता -  फरहत शबा खानम्             
संघर्षरत पीडि़ता - अभिराजा देवी



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