मैं गुलाबी देवी पति श्री रामेश्वर दास ग्राम-चैनपुर, पोस्ट-डोमचाँच, थाना-कोडरमा
की मूल निवासी हॅू।
मेरा पूरा परिवार खुशहाल था जब मेरे पति
का नौकरी था। उस समय सब ठीक था पर जब मेरे पति बडे़ बेटा की नौकरी दे दिया। तब मेरा
बड़ा बेटा हमको बोला कि माँ हम तुमको ठीक से रखेगे। तुम्हें कोई तकलीफ नहीं देगे। लेकिन
नौकरी होने के बाद मेरा बडा बेटा बदल गया। हमको घर में रखा पर खाना पीना बाहर में देता
था। कही आने जाने व घुसने नहीं देता था। जब यह बात मै अपने पति से कहती तो वो कहते
कि हम बड़ी बहू को खिलायेगे। तुमको काहे खिलायेगे। तुम बच्चा पैदा नहीं करेगी और मेरे
पति और मेरी बहू हमेशा दोनो अन्दर में रहते। क्या पता भगवान जाने क्या करते थे। मेरा
बडा बेटा नौकरी के दौरान बाहर रहता और इधर घर में मेरी बडी बहु अपने मन से जो आता तो
करती जब मैं कुछ बोलती तो हमे बहुत मारती| इस बात को जब मेरा बडा बेटा आता हम उसे सुनाते
तो वो भी हमें बहुत मारता और कहता कि तुम मेरी पत्नी को बदनाम करती है और यह कह कर
मारता था और कहता था कि मेरी पत्नी को इस तरह का क्यों बोलती है और यह कह-कह कर हमे
लगातार मारते पीटते रहा इस मारपीट से तंग आ कर मैं थाने गई थाना से भी कोई सुनवाई नहीं
हुआ और फिर कुछ दिन में मेरा बेटा वाहर चला गया। मै अपने छोटे बेटे के पास रहने गई
तो वो भी हमें गाली गलौज करता कहता कि नौकरी
उसे दे कर मेरे तरफ खाना खाती है पर हम क्यों खिलायेगें। तो हमे बडे बेटे की तरफ ही
भेजता। इसके तरफ इसकी पत्नी हमे मारती पीटती और बहुत खराब-बराब गाली देती थी हम घर
के बाहर बैठे रहते थे। और मेरे घर के अन्दर मेरे पति रहते और गाँव एक और आदमी पुनीत
दास आते जाते रहता था।
हमे समझ में नहीं आता कि वह क्यों मेरे घर जाता है। लेकिन एक
दिन पुनीत दास मेरे सामने मेरी बड़ी बहू और बेटा के सामने यह कहता कि इस बुढ़ी को काहे
रखते हो भगाव इसको इस घर में नहीं रहने दो। हमको सब मिल कर भगा दिया। तब बड़ा बेटा भी
हमको कुछ नहीं बोला और हम दुसरे घर में चले गये और वहाँ रहने लगी। और भीख माँग कर खाने
लगी। भीख माँगने से जो पैसा 100 रूपया व 50
रूपया रहता वो मेरा बडा बेटा मेघलाल मेरे घर से चोरी करके ले जाता था। मैं परेशान हो
गई उस घर में मेरा जो बर्तन बगेरा था सब ले गया। इस तहर दो से तीन बार
मेरे पर में बड़ा बेटा ही चोरी किया। यह सब देख कर मेरा बुरा हाल हो गया मैं तंग आ गई।
यह कैसा बेटा है मेरा बेटा मेरे पति को अपने
साथ रखता है इस लिये कि उसका नौकरी था और कुछ नहीं क्या मेरे पति के पैसे पर मेरा कोई
अधिकार नहीं यह सब सोंच कर मैं रोते रहती थी।
वर्तमान में मैं दर-दर की ठोकर खा रहा हॅू।
बड़ा बेटा भी हमको नहीं पूछता और छोटा बेटा भी नहीं पूछता अकेले जंगल में रहती हॅू।
और भीख माँग कर गुजर बसर करती हॅू।
मैं चाहती हूँ कि मेरे घर में हमें एक कमरा मिले
और मेरा बड़ा बेटा जो मेरे पति को नौकरी लिया है वह हमें 1000/(एक
हजार रूपया) महीना हमें दे और मेरे घर को बर्वाद करने में जिस पुनीत दास का हाथ रहा
है जो मेरे सामने यह बोला कि इस बुढ़ी को निकालो उस समय हमे बहुत तकलीफ हुआ था। मैं
चाहती हूँ कि उसे सजा हो ताकि उसे भी पता चले कि तकलीफ क्या होता है।
साक्षात्कारकर्ता - ओंकार विश्वकर्मा, वन्दना देवी
संघर्षरत पीड़िता - गुलाबी देवी
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