Saturday, 30 May 2015

‘मेरा बच्चा बेकसुर मारा गया, पुलिस ने उसकी जान ले ली, अगर वह भाग गया होता, तो शायद बच जाता’’



      मेरा नाम धाना देवी उम्र 45 व है। मेरे पति मक्खन लाल है। वह राजगीर का काम करते थे, लेकिन एक वर्ष पूर्व कानपुर में ट्रेन से उतरते वक्त उनका पुरा पैर ट्रेन से कट गया जिससे वह अभी कुछ नहीं करते है। मैं दुसरे के घर में चुल्हा-बर्तन करके अपना घर चलाती हूँ। मैं 37-ए करबला, थाना-खुल्दाबाद, जिला-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ।
            मेरे तीन लड़के थे लेकिन पुलिस वालो के वजह से मेरा छोटा लड़का सुरेश उर्फ पल्टू भारतीय 17 वर्ष अब इस दुनियाॅ में नहीं रहा यह कहते हुए वह रोने लगी कि हमारे बेटे को पुलिस ने मार डाला वह मेरे जीने का सहारा था, उसने कुछ भी नहीं किया था वह बेकसुर मारा गया। मैं नही जानती थी, कि मैं अपने बच्चें को इस तरह से खो दॅूगी यह कहते हुए वह चुप हो गयी। थोड़़ी देर बाद वह बोली कि वह मनहुस दिन 30 जुलाइर्, 2012 को 2:00 बजे दिन सोमवार का दिन मेरे बच्चें के लिए काल बन जायेगा, मै यह बात नहीं जानती थी। रोज की तरह मैं और मेरी बेटी कसम गये थे, उस समय सुबह के 10:00 या 10:30 बजे थे, कुछ पुलिस वाले मेरे घर में आये (घर के बाहर का चैनल खुला रहता है) गली और चैनल के रास्ते से कमरे के दरवाजो का ताला तोड़कर घर में धुसकर खुब तोड -फोड़ किया घर के सभी बक्शो का ताला आलमारी का लाकर सब कुछ लाठी डन्डो से तोड़ डाला था। यहा तक कि घर के किचन में घुसकर चुल्हा व वर्तन को तोड़-फोड़ डाला, हम लोग इन सब बातों से अन्जाम थे।
मेरा बेटा भी उस समय घर पर नहीं था। जब मैं काम से वापस आयी तो आस-पास के लोगो से पता चला कि पुलिस वाले मेरे घर आये थे और तोड़-फोड़ करके चले गये। यह सुनकर मैं घबरा गयी, मैं दौड़ी भागी घर पर आयी तो घर का हाल देख घबरा गयी मुझे समझ में नहीं आ रहा था, कि मैं क्या कहू सब समान बिखरा पड़ा हुआ था। उसी दिन पता चला कि मेरा पट्टीदार शनि पुत्र राजू भारतीय चोरी करते रंगे हाथ पकड़ा गया था। उसने ही थाने में मेरे बेटे का नाम लिया उसी की तलाश में पुलिस घर आयी थी। यह बात सुनकर मैं बौखला सी गयी। वह लोग मेरे बच्चें को क्यों ढुढ़ रहे है। वह चोरी नहीं कर सकता हम तो मजदूरी करके अपना दिन गुजारने वाले है। मुझे इस बात का विश्वास नहीं था, उसे झूठा फसाया जा रहा था। पट्टीदार के यहा से हमारे सम्बन्ध अच्छे नहीं है। इसी कारण उसने मेरे बेटे का नाम लिया। अभी यही सब मैं सोचते हुए बिखरे सामानो को समेट रही थी, वह घबरा गया था, तभी मैनें उससे कहा तू दूर चला जा पुलिस तुझे चोरी के आरोप में तलाश कर रही है।
 उस समय उसने मेरे दोनो हाथो को पकड़कर कहा माँ मैने चोरी नहीं की है, तो मै क्यों भागू उसकी बात सुनकर मेरी आँख मैं आँसू आ गया, कि इसे उन पुलिस वालो से कैसे बचाऊँ जब उन्होने घर की हालत यह कर दी तो मेरे बच्चें के साथ क्या करेगें यही चिन्ता मुझे उस समय खाये जा रही थी। सामान को समेटते हुए मै फिर घर के चुल्ला बर्तन में लग गयी, लेकिन यह बात दिमाग से नहीं उतर रहा था कि मेरे बच्चें का क्या होगा मै बार-बार उससे कहती तो वह कहॅता मैने कोई चोरी नही की। उसी रात करीब 10:00 या 10:30 बजे मैं और मेरे पति और मेरी बेटी मोनी खाना खाकर एक ही कमरो में सोये थे, अभी पहली ही नीद लगी थी तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर मैं उठी और देखी तो दरवाजे के बगल की खिड़की के बाहर दो पुलिस वाले खडे़ है और दो दरवाजे के बाहर कुण्डी खटखटा रहे थे। उस समय मेरे दिल की धड़कन तेज हो गयी थी। मन तेजी से घबरा रहा था, कि अब भी हिम्मत करके दरवाजा खोला, दरवाजा खुलते ही वह लोग मेरे बेटे को पकड कर ले जाने लगे मैनें उनसे कहा साहब मेरे बच्चें को क्यों ले जा रहे है उसने कोई चोरी नही की है, मेरा बेटा भी उनसे गिडगिड़ा रहा था, लेकिन वह लोग सब्जी मण्डी चौकी के पास कुछ सुने ही मुझे गन्दी-गन्दी गालियां देते हुए उसे ले गये।
मैं उनसे गिड़गिडाते हुए उनके पीछे सड़क तक गयी, लेकिन उन्होने मेरे बेटे को नहीं छोड़ा उसे मोटर साइकिल पर बैठाकर ले कर चले गये। उस समय बिजली नहीं थी चारो तरफ अंधेरा छाया था, बारिश भी हो रही थी, उस समय मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कि मैं किसे मदद के लिए बुलाऊ मेरे दोनों बड़े बेटे राकेश और मुकेश घर से दूर रहते है। आस-पास भी सन्नाटा छाया था। इतनी रात को कौन मुझ दुखियारी की मदद करेगा यही सोच कर घर वापस आ गयी, लेकिन पता नहीं मेरे लाल के साथ क्या कर रहे होगे। अभी यह बात सोचती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है यह कहते हुए उसके आँख से आसू निकलने लगा उन लोगों ने मेरे बच्चें को बहुत मारा था। वह कितना तड़पा होगा यह कहते वह बिलखकर रोने लगी। उस समय फिक्र से नीद नही आ रही थी कुछ समय बीता तो पास के पप्पू के यहा गयी उनसे बोले पुलिस मेरे बच्चें को उठा ले गयी, घबराओ मत सुबह थाने चलेगे उनकी बातो से मुझे कुछ सहारा मिला कि सुबह होते ही थाने जाऊॅगी, मैं घर वापस चली आयी थोड़ी देर में उजाला हो गया उस समय सुबह के पांच या साढे पाच बजे थे आस-पास की औरते शौच के गयी तो उन्होने बताया कि (बेनीगंज ए.डी.सी) महाविद्यालय में दो लाश पड़ी थी। यह बाते मैने सुनी लेकिन मुझे इस बात का अहसास नहीं था, कि वहा मेरे पल्टू की लाश है। मैने मोनी से कहा कि खाना बना दो मैं थाने लेकर पलटू के पास जाऊॅगी यह कहकर मै थाने जाने की तैयारी में जुट गयी, सिर्फ अपने बेटे से मिलने की ललक लगी थी। अभी इसी तैयारी में लगी थी तभी कुछ लोगो ने आकर कहा कि वहा पलटू की लाश पड़ी है यह सुनकर मै चीख पड़ी उस समय मेरे आँखो के आगे अंधेरा सा छा गया ऐसा लगा मेरी दुनियां उजड़ गयी, मुझे समझ में नहीं आ रहा था, कि मैं क्या करू मै पालग सी हो गयी थी।
 आप-पास के लोगों ने मुझे सम्भाला यह कहकर वह रोने लगी वोली मेरे बच्चें के जाने के बाद मै पूरी तरह से टुट गयी हूँ। रोते बिलखते आस-पास के लोग मुझे पकड़कर उसके पास ले गये, उस समय जैसे मुझे होश ही नही रहा, जब मेरी निगाह पल्टू परपड़ी तो मैं दौड़कर अपने बच्चें को जगाने लगी। लेकिन वह नहीं जागा पुलिस ने उसे बहुत बेरहमी से मारकर उसकी जान ले ली। यह कहकर वह रोने लगी उसके बदन में जगह-जगह निशान थे, मेरा बच्चा कितना लड़पा होगा, वह बेकसुर मारा गया। पुलिस ने उसकी जान ले ली बस यही सोचती हूँ। अगर वह भाग गया होता तो शायद वह बच जाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहाँ काफी भीड़ थी। लेकिन मेरी तो दुनियां उजड़ गयी। आस-पास के लोगो ने फोन करके मुकेश को बुलाया थोड़ी देर में करेली थाने की पुलिस आयी। फिर इसके बाद खुल्दाबाद थाने की वह लोग यह मान ही नही रहे थे, कि पुलिस वाले ने मेरे बच्चें को मारा है। वहाँ से बिना पंचनामा कर उसकी लाश को पोस्टमार्टम के लिए एस.आर.एन. मेडिकल कालेज चली गयी, लोगो ने चक्का जाम किया माग की पलटू और अजय की मौत कैसे हुई लेकिन पुलिस वाले इस बात का सभी जवाब नही दे रहे थे|
उनका कहना था कि इन दोनो ने चोरी के पैसे का बटवारा करने के कारण एक दुसरे की जान ले ली, यह सब सुनकर उस समय मुझे बहुत गस्सा आ रहा था, यह लोग मेरे बच्चें की जान लेकर झूठ बोल रहे है। मेरे बेकसुर बेटे को चोर बता रहे है। अभी भी यह सोचती हूँ, तो बहुत गुस्सा आता है, अगर वहा पर एकत्रित भीड़ न देखते तो दुसरे थाने की पुलिस (डाग स्क्वायड) खोजी कुत्ता की जाच के लिए बुलाया न होता तो शायद यह बात सामने न आती वह कुत्ता जहा लाश पड़ी थी, वहा से बात पुलिस सहायता केन्द्र जहा उन्हें पुलिस ने बुरी तरह मारा था। पुलिस ने अपना सबूत छिपाने के लिए जमीन की मिट्टी को बिखेर दिया और ग्राउण्ड की दिवाल पर पडे़ गोलियों के निशान को चूना से रंग दिया। यह सब बाते सुन-सुन कर मुझे बहुत दुःख हो रहा था। कि आखिर में मेरे बेटे ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उसको अपनी जान गवानी पड़ी। बुधवार (01.08.2012) को मेरे बच्चे की लाश मिली पुलिस वाले उस समय हम लोगो को गाली देते हुए कहा कि लाश को ले जाकर जला दो नहीं तो अच्छा नहीं होगा। हम लोग इसके लिए तैयार नहीं थे। तो वह हम लोगों को डराने धमकाने लगे कि सीधा शमशान घाट ले जाओं और लाश को चला दो हम लाश को घर नहीं ले जाने देगे। हम कमजोर और बेसहारा लोग क्या करते थक हार कर उसकी लाश को नीवा घाट ले जाकर गाड़ दिये (अविवाहित होने के कारण) उसके बाद तो जैसे सब कुछ खत्म हो गया। वही मेरे जीने का सहारा था, मेरे पति से घर से कोई मतलब नहीं रहता है। मेरे बच्चें बहुत ही मुसीबत से पले बढे है।
 यह कहकर वह तेज से रोने लगी मैने बहुत दुख उठाया है। लोगों का जुठन साफ करके अपने बच्चे का पेट भरा है, मैं गरीब अपने बच्चों को ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं पायी। बड़ा बेटा राकेश 27 वर्ष मुकेश 25 वर्ष बेटी मोनी 15 वर्ष की गरीबी के वजय से जितना बन पाया पढ़ाया फिर सब मेरी परेशानी देखकर अपनी मजदूरी में लग गये बहुत परेशानी से पलटु को कक्षा 12 तक पढ़ाया उसके बाद वह नौकरी की तलाश कर रहा था, कभी पोलियों की दवा पिलाता था और कभी शादी ब्याह में लड़के के साथ जाकर खाना खिलाता था, दोनो बच्चें घर से दूर रहते थे, पल्टु मोनी मेरे साथ रहते थे, अभी इसके जाने के बाद मुकेश और उसकी पत्नी हमारे साथ रह रही है, जवान बेटी को अकेले लेकर कैसे रहॅू अब मैं इस घटना के बादइतनी थक चुकी हूँ कि किसी काम को करने का मन नहीं करता है लेकिन गरीबी इन्सा को इस कदर मजबूर कर देती है। कि हरहाल में हमें काम करना पड़ता है। जवान बेटी का बोझ अभी सिर पर है। दिन रात यही फिक्र खाये जा रही है, बेटे का चेहरा हर समय आँखो के सामने घुमता रहता है, वह बहुत सीधा था, रात को जब सोती हूँ तो नींद नहीं आती है मन हमेशा घबराता रहता है, ऐसा करता है, कि खुब रोऊ, कही आने जाने का मन नहीं करता है, सब कुछ बिखर गया। मन में यही पछतावा रह गया कि अगर वह घर से दूर चला जाता, तो शायद वह बच जाता। इस घटना के बाद मै बहुत बीमार पड़ गयी थी। मैं चाहती हूँ जिन लोगो ने मेरे लड़के को बेकसुर मारा है उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही हो जिससे मुझे और मेरे परिवार को न्याय मिले मेरा लड़का तो वापस नहीं आयेगा लेकिन उसके आत्मा को शान्ति मिलेगी।
आपसे यह सब बाते बताकर मन में कुछ हल्कापन महसूस हुआ। मेरे साथ जो हुआ है, वह किसी और के साथ ऐसा न हो, और उन लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाही किया जाय।

    

साक्षात्कारकर्ता- फरहत शबा खानम्                     
संघर्षरत पीड़िता-धाना देवी







Friday, 29 May 2015

अगर मदद नही मिलती तो मैं बच नही पाती

      बरसो से महिलाए अत्याचार सहती रहती है। जिसको वह सहते-सहते मानसिक रुप से बीमार होती है लगतार बीमारी के कारण सही इलाज न मिलने के कारण वह बीमार हो जाती है तो उन्हे घर से भगा दिया जाता है। जिम्मेदारी से भागने के लिए महिलाओं पर अंधविश्वाश के नाम पर उन्हे घर से निकाल दिया जाता है।
मेरा नाम सोना देवी है, मेरी उम्र-22 वर्ष है, मेरे पिता का नाम हंसराज है, मै अशिक्षित हूँ, मै ग्राम-उभारी, थाना-घुरपुर, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना जिला-इलाहाबाद की रहने वाली हूँ।
आज से तीन वर्ष पहले (30 मई, 2011) को सुभाष चन्द्र पुत्र-बच्चा लाल आदिवासी ग्राम-लोहगरा बाजार, पोस्ट-सुन्दरपुर, ब्लाक-शंकरगढ़ तहसील-बारा, जिला-इलाहाबाद में हुआ था। शादी में मेरे घर वालों ने अपने हैसीयत से अधिक उपहार और बारात का स्वागत यिका था। मै पहली बार आठ दिन के लिए ससुराल विदा होकर गयी थी फिर घर वापस आयी आठ दिन मायके में रहकर फिर वापस सास, ससुर के साथ ससुराल विदा होकर चली गयी। मैं वहाँ घर बाहर दोनों काम करती थी। जितनी मेहनत हो सकती है, मैं करती थी, जितनी मेहनत हो सकती है, मै करती थी, मेरे पति कभी मुझसे अच्छे से बात करते थे। कभी मेरी जेठानी के साथ रहते मुझसे बात भी नही करते थे वह उन्ही के सज्ञथ सोते थे जब इस बात के लिए मैं अपने सास से कहती तो कहते भौजाई है सोने दो मैं अपने पति से कहती तब वह भी नही सुनते और मुझसे झगढ़ा करते एक बार की बात है रात के समय 10:00 बज रहे थे, मैं उन्हे बगल में सो गयी त बवह मुझे पलंग से नीचे गिराकर मुझे मारे मेरी चुड़ी टुट गयी थी। मैं चिल्ला रही थी, मेरी सास थी, उन्होने मुझे नही बचाया मुझे मारने के बाद वह दुसरी जगह सोने चले गये, उस दिन मैं पूरी रात रोती रही मुझे समझ में नही आ रहा था। मैने क्या गलती की है फिर दुसरे दिन रोज सुबह की तरह घर और दुसरे के खेत में मजदूरी करने चली गयी। इसी तरह सब चलता रहा। आये दिन कभी वह फोटो दिखाकर दुसरे से शादी करने की बात कहते कभी मेरे साथ रहने की बात करते थे। एक बार उन्होने कहा जाओं अपने पिताजी से पचास हजार रुपये मांग लाओ मैने कहा उनके पास इतना पैसा कहा है। बोले अपने मायके जाओं जब तुम्हारे पिताजी पैसा देनें तब बुलायेगें नही तो वही रहना। ऐसे ही रह रहकर वह लोग तरह-तरह की बात करते थे।
मैं इन सब बातों से धीरे-धीरे बीमार रहने लगी मेरे सिर में दर्द होता था। मेरा काम करने का मन नही करता हमेशा थकान सा रहता था लेकिन फिर भी मेरी सास बोलती दवा खालो मजदूरी करने चलो एक टिकिया खाती काम करने चली जाती थी कुछ देर के लिए आराम मिल जाता था फिर वैसी तकलीफ बढ़ जाती थी। इसी तरह मेरी बीमारी और बढ़ गयी लेकिन किसी डाक्टर के पास वह लोग नही ले गये। मेरी बड़ी सास थी उन्ही से झड़वाये वह बोली भुत पकड़ा है। जितना पैसा लगाओगी नही ठीक होगा, तीन बा रवह मुझे दिखाये मेरे साथ झाड़-फूक करवाये लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नही हुआ था जब तक मैं उनके यहा काम करने लायक थी, उन्होने रखा मैने जो भी खेतो में मजदूरी की थी सब पैसा अनाज मेरी सास ने ले लिया और मुझे बदत्तर हालत में मेरे मायके लाकर छोड़ दिया बोली उसे भूत पकड़ा है। झड़वाओं यह कहकर मुझे छोड़कर चली गयी। उस समय मुझे बहुत तकलीफ हो रही थी। यहा बाबू कि यहाँ थी मेरे घर वाले मुझे मजार पर ले जाते हर वृहस्पतिवार को वही दिखाते थे। लेकिन मैं धीरे-धीरे अधिक बीमार होने लगी मुझे समझ में नही आ रहा था। मैं क्या कर रही हूँ। हमेशा सिर भारी रहता था भूख नही लगती थी। नीद नही आती थी हमेशा ससुराल के बारे में सोचती थी मेरे पति खराब जरुर है लेकिन मुझे उनकी बहुत याद आती है। वह कभी-कभी मुझसे प्यार करते थे। मारते भी थे एक बार तो गुस्से में सरिया से मारे थे जगह-जगह चोट लग गया थी पीठ में निशान पड़ गया था चूड़ी टुट गयी थी हाथ से खुन निकल रहा था तबीयत ठीक नही था घर का काम नही की थी इसीलिए मारे थे। आस-पास ही परिवार के लोग रहते थे, मुझे कोई नही बचाता था। आज लगभग साल भर से उपर हो गया है। मेरे पति मुझे देखने नही आये न लेने आये है। सास मेरी एक दो बार आयी थी बोली चलो उस समय मेरा इलाज चल रहा था मेरी हालत में थोड़ा बहुत सुधार आ रहा था फिर वह लोग ले जाते बिना दवा किये काम करवाते तो मै और बीमार हो जाती इसलिए नही गयी उन लोगों को सिर्फ काम और पैसा चाहिए उनको हमारी बीमारी और तकलीफ से कोई मतलब नही है।
मेरे पति तो मुझे एक बार भूल कर भी नही देखने आये कई महिनों तक इलाहाबाद के टंडन (मनोवैज्ञानिक चिकित्सक) के यहाँ मेरा इलाज चला मेरे घर वालों ने मेरी बहुत देखभाल की मेरे भाई बाप और दीदी ने मेरा दिन रात ख्याल रखा। मैं अपने से कुछ कर पा रही थी यहा तक कि एक मुझे कोई सुध नही थी अगर संस्था की दीदी (मानवाधिकार जननिगरानी समिति) नही होती तो मै नही बच पाती मेरे घर वाले गरीब मजदूर है। वह मेरा इलाज नही करा पाते उन लोगों ने मुझे और मेरे परिवार को बहुत सहारा दिया। मैं एक बार फिर बच्ची जैसी हो गयी थी। बिस्तर पर ही शौच करती तथा न नहाने का सुध रहता न कपड़ा पहनने का घर वालो ने मुझे फिर से पाला मेरी बहुत देखभाल की मुझे नहलाया मेरा बाल झाड़ा मेरे हर चीज का ख्याल रखा। सस्था की दीदी मुझे समय-समय पर दवा दिलाती हम लोग अशीक्षीत है वह आकर देखती मैने दवा ठीक खाया या नही इन लोगों ने मुझे दुसरी जिन्दगी दी अब मैं घर का काम कर लेती हूँ। अपना काम कर लेती हूँ समय से सोती उठती हूँ सब कुछ पहले जैसा हो गया है। अब मेरे ससुराल वाले मुझे लेने नही आते उनका कहना है कि मुझे पहुँचा दो इलाहाबाद (प्रोवेशन कार्यालय) में मेरा बयान हुआ है। मेरे ससुराल से बयान के लिए कोई नही आया है। उन लोगों का मेरी कोई फिक्र नही है।
शादी जीवन में एक बार होती है, मैं वही जाना चाहती हूँ लेकिन फैसला होने के बाद मेरे पति मेंर साथ रहे मुझे मोर पिटे नही मेरा ख्याल रखे। मेरी जगरुकता को पूरा करे अगर मैं बीमार रहूँ तो मेरा इलाज करवाये और मेरे पिताजी से पैसे न मांगे वह मुझे दुसरी शादी की धमकी बार-बार न दे जिससे मैं दुबारा बीमार हो जाऊ। वह लोग मुझे सताये नही मेरा ख्याल तो मुझे इस बात की कतलीफ है कि मेरे पति मुझे एक बार थी मिलने नही आये।
मै चाहती हूँ कि मेरे भविष्य का ध्यान में रखते हुए न्याय किया जाय।

साक्षात्कारकर्ता - फरहत शबा खानम्     
संघर्षरत पीडिता- सोना देवी


हम गरीब महिलाओं को कब न्याय मिलेगा

मेरा नाम रीना देवी है। मेरी उम्र-38 वर्ष है। मेरे पति राजकुमार है। मेरे चार बच्चे हैं। आशिश-13, रोशनी-08 वर्ष, चाँदनी- 03 वर्ष और प्रिंस-02 वर्ष का हैं। मैं खेतो में मजदूरी करती हूँ। मैं ग्राम भीटा, पोस्ट-भीटा, थाना-घुरपुर, ब्लाक-जसरा, तहसील-बारा, जिला-इलाहाबाद की निवासिनी हूँ।
वह शनिवार का दिन (14 जुलाई, 2012) तो जैसे हमारी जिन्दगी को तहस-नहस कर गया। बेफिक्र होकर हम अपने काम पर जाते थे, लेकिन उस घटना के बाद से दिल में एक डर सा बैठ गया हैं। रोज की तरह हम अपने कामों मे व्यस्त थे उस समय सुबह के सात या आठ बज रहे थे। उसी समय जीवन लाल पाल का लड़़का बबला आया बोल गोबर पाथ रही हो, हम बोले हाँ हमारी जमीन है, हम लोग उपरी पाथ रहे हैं। तब वह हमें गन्दी-गन्दी गालियों देने लेगा, उस समय उनके हाथ में लाठी और हसुआ था। वह लोग काफी संख्या में थे। उस समय वहाँ हम बस्ती की औरते ही वहाँ पर थे। हम बनायी उपरी को लात से मारकर वह हमारे साथ हाथा पाई करने लगे। वह हम महिलाओं को अकेला पाकर लाठी डन्डे से मारने लगे। वह हम महिलाओं को अकेला पाकर लाठी डन्डे से मारने लगें। जब मेरी तरफ वह लाठी से मार रहे थे। मैने अपने बचाव में लाठी को पकड़ने की कोशिश की तब वह मुझे झटकते हुये मेरे बाये हाथ पर अगुठे के बगल की उगली पर मारे। उस समय मैं दर्द से कराह रही थी। लेकिन वह हमारे उपर लाठियों से वार करते रहे। मैं अपने दर्द को सहते हुए अपना बचाव उन आदमियों से करती रही लेकिन वह जहाँ पाते वही मुझे मारते कभी वह पैर पर मारते तो कभी करियाव पर उस समय कभी यही लगता कि यह क्या हो रहा हैं। दर्द से मेरा बुरा हाल था।
वह हम गरीबों को बेकसुर क्यों मार रहे हैं। तभी उसकी एक लाठी मेरे सिर पर लगी उस समय मेरे आँखों के सामने अधेरा छा गया। मैं वही गिर पढ़ी मेरे सिर से खुन निकल रहा था मैं बेहोश सी हो गयी मेरे शरीर में बिल्कुल जान नही था। उस समय सिर्फ चारों तरफ से आवाजे मेरे कानों में गुज रही थी। पहले से ही मैं कमजोर थी। उनकी मार न मुझे और कमजोर बना दिया दिन रात मेहनत मजदूरी कर दो रोटी में किसी तरह पेट भरता हैं। उसमें इतनी ताकत कहा है कि इतना लाठी शरीर सह सकें।
इस घटना की जानकरी जब मेरे पति को हुई तो वह भाग दौड़े आये उन लोगों ने मुझे सहारा देकर घूरपुर थाने ले गये कि शायद वहा हमे इंसाफ मिले और अन्याय करने वालें को सजा मिले। लेकिन अफसोस ऐसा कुछ भी नही हुआ। मेरे सिर से खुन निकल रहा था जो-जो औरते वहा घायल हुई थी। वह सब हमारे साथ थाने में फरियाद कर रही थी, लेकिन वहा के साहब हमारे उपर हुए इस अत्याचार को नही देख पा रहे थे। क्योंकि उनके आँखों में तो उन अमीरों के पैसे की पट्टी बंधी थी।
मेरे होश मे आने तक मेरे पति और देवर सुशील को थाने में बन्द कर दिया गया था। उनकी सिर्फ यही सजा थी कि वह अपनी शिकायत थाने में लेकर गये थे। ऐसा देखकर उस समय मेरा खुन उबल गया कि यह क्या हुआश्। मैं अपने आपको सभालते हुये उन पुलिस वालों से गिडगिडाने लगी कि साहब छोड दो| उस समय वह मेरी बातों को सुन नही रहे थे बल्कि इस पूरी घटना का जिम्मेदार हमें ही ठहरा रहे थे।
यह बात मुझे तब समय में आयी जब मैने अपनी आंखों से रामखेलावन के लड़के को (जय प्रकाश) पुलिस को पैसा देते हुये देखा उस समय मेरे होश उड गये तब मुझे लगा कि इन लोगों की मिली भगत है। पैसे के बल पर वह हमें मार कर और डराकर मेरी जमीन हथियाना चाहते है। उस समय मैं अपने दर्द को भुल सी गयी थी। यह सब देखकर मैं चैक गयी और यही सोची यहाँ से हम गरीब महिलाओं को न्याय नही मिलेगा।
सुबह के आठ बजे रहे थे मुझे चोट लगी थी, शाम के तीन बजे मुझे थाने से जसरा ब्लाक भेजा गया। इतने घंटों तक मैं दर्द से कराहती रही मेरे सिर से खुन निकलता रहा लेकिन पुलिस वाले मुझे अनदेखा करके मेरे ही घर वालों पर अत्याचार कर रहे थे। बेकसूर को थाने में बन्द करके आरोपियों को खुला छोड़ दिया गया था। मुझे वहा पट्टी बांधी गयी। वहाँ भी जब मेरे देवर श्यामू ने पैसा दिया तब सुई लगाकर दो खुराक दवा दिया गया यह सब देखकर बहुत दुख हो रहा था। इनकी चिन्ता लगी हुई थी वहाँ से फिर हम थाने आये जहाँ से मेरे पति को करीब पांच छः बजे छोड़ा गया। सुबह से शाम तक हमें थाने में रोकर रखा गया और हमारी जमीन पर जो भी कुछ बना था, उसे ढहा दिया और सब कुछ पुलिस के सामने ढो-ढो ले गये। हमारी भैस, गाय को खूटे से खोल दिया जो उपली पथी थी उसे लात से रौंद दिया। सब कुछ बिगाड़ दिया। शायद हम अपनी रक्षा के लिये थाने नही जाते तो हमारा इतना नुकसान न होता। हम गरीब और मजदूर हैं। हम लोग मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का ही इंतजाम कर सकते हैं। इससे ज्यादा हमारे पास कुछ नही है। अपने उपर हुये इस अत्याचार के खिलाफ थाने में हम मदद मांगने गये थे लेकिन उन लोगों ने हमें ही ठग लिया उनको हमारा रक्षक बनाया गया है वही भक्षक बन गये।
थाने से घर आने के बाद तो जैसे मातम सा मचा था, इस घटना से बस लोग टुट गये थे, दिन भर बिना खाये पिये हम थाने में दुहाई करते रहे लेकिन कोई सुनने वाला नही था। शरीर बेजान हो गया था मेरे बच्चे और पति मेरी हालत देखकर बिलख कर रो रहे थे, यह सब देखकर मुझे बहुत तकलीफ हो रही थी। आज भी सोचती हूँ तो मन काँप जाता है और आँख से आसु बहने लगता है। यह कहकर उसकी आँख भर आयी। मेरा छोटा बेटा मेरे सिर पर पट्टी बंधा देख मेरे पास नही आ रहा था, वह रो रहा था उस समय मेरे पास इतनी हिम्मत नही थी कि उसे चुप कराऊ। मैं बेबस थी यह कहकर वह चुप हो गयी।
मैं जब भी आँख बन्द करती तो मुझे चक्कर आता और मेरा सिर घुमता था। आँखों में नींद ही नही थी, चिन्ता लगी थी कि अब हमारा आगे क्या होगा। यह सब कुछ हवा के झोके की तरह आया और सब कुछ खत्म करके चला गया।
उस घटना के बाद से दिन रात चिन्ता लगी रहती है, कही आने जाने का मान नही करता। मजदूरी में खेतों में काम करने जाती हूँ। अगर मेहनत न करुँ तो पेट कैसे चलेगा, हमेशा डर बना रहता रहा है, मन में बुरे-बुरे ख्याल आते है। अब भी उस घटना को याद करती हूँ तो मन सिहर सा जाता है, उस दिन के बाद से उस जमीन पर मैने अपना कदम नही रखा। दूर से देखा तो बुल्डोजर से सब कुछ गिरा कर उठा ले गये। वहाँ वह लोग समतल करके गेहुँ की बुआई कर रहे है। हम लोग कोर्ट कचहरी की चक्कर न्याय पाने के लिये कर रहे है। अभी तक कोई भी सुनवाई नही हुई। रात को नींद नही आती है। चिन्ता लगी रहती है जब भी बैठथी हूँ उसी के बारे मे सोचती हूँ।
मैं चाहती हूँ जिन लोगों ने ईट, गारे के बनाये मेरे मकान को गिराया है और मेरा सब कुछ उठा ले गये है और दिना किसी कारण हमें मारा पिटा है। हमारे उपर अत्याचार किया है। आज उसी मार के कारण मेरी तबीयत ठीक नही रहती। उन आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही हो और हम लोगों को न्याय मिले।
आपसे मिलकर आपको अपनी बात बताकर मेरा मन हल्का हुआ हैं।
साक्षात्कारकर्ता  - फरहत शबा खानम्   

संघर्षरत पीडिता- रीना देवी

‘‘मैने थाने में बन्द अपने आप को असहाय महसूस कर रहा था, मेरी पत्नी दर्द से तड़प रहीं थी’’

मेरा नाम राजकुमार है मेरी उम्र 38 वर्ष है। मेरे पिता स्व0 श्री मुंशी लाल है। मेरी पत्नी रीना देवी हैं। मेरे चार बच्चे है। आशीश 13 वर्ष, रोशनी 8 वर्ष की चाँदनी 5 वर्ष की और प्रिंस दो वर्ष का है। मै सिलाई का काम करता हॅू। मै भीटा, पोस्ट-भीटा, थाना-घुरपुर, ब्लाक-जसरा, तहसील-बारा, जिला-इलाहाबाद का रहने वाला हूँ।
            रोज की तरह हम लोग अपने कामो में व्यस्त थे। वह शनिवार 14 जुलाई, 2012 का दिन था उस समय सुबह के सात या आठ बज रहे थे। मेरे घर से 250 मीटर की दूरी पर हमारी पट्टा की हुई जमीन पर मेरी पत्नी जानवरो की देखभाल का रही थी। मै खाना खाकर हाथ धुल रहा था कि तभी जोर से उस जमीन की ओर से चिल्लाने की आवाज आयी। आवाज सुनकर मै जल्दी से उस ओर भागा तो देखा कि मेरी पत्नी के सिर से खून निकल रहा था। यह देखकर मै घबरा गया कि यह क्या हो गया। जल्दी से उसकी ओर भाग और उसे सहारा दिया वह बेहोश हो गयी थी। उस समय मुझे बहुत गुस्सा आया कि पाल लोगो ने मेरे जमीन पर कब्जा करने के लिए हमारी औरत पर हाथ उठाया।
उसको इस हालत में देखकर मै रोने लगा। अगर इसे कुछ हो गया तो मै क्या करूंगा। जल्दी से और लोगो का सहारा लेकर उसे 3 किलोमीटर की दूरी पर घूरपुर थाने ले गया। हमे लगा कि थाने में हमारी सुनवाई होगी इसी कारण इस अवस्था में उसे थाने ले गया। लेकिन जो कुछ हमारे साथ हुआ वह देखकर बहुत दुख हुआ पुलिस वाले हम गरीबो की मदद न करके उन लोगो की मदद कर रहे थे।
जब हम अपनी फरियाद लेकर थाने गये तो पुलिस वाले मुझे और मेरे चाचा के लड़के सुशील को चार झापड़ मारा और उसे जाति सूचक गाली देने लगा। वह गिड़गिड़ा रही था साहब उन लोगो ने हमे मारा है और आप हमे ही बन्द कर रहे हैं यह सब देख मै बेबस हो रहा था। पुलिस ने उनके खिलाफ कोई भी शिकायत नहीं दर्ज की हम लोगों की मदद करके हमारी बनी बनाई बस्ती उजाड़ दी सब कुछ तहस-नहस कर दिया। मैने घर बनवाने के लिए छः हजार ईट गिराया था, झप्पर, चारपाई  दो बोरी सीमेन्ट, चार पांच, बाल्टी सब उठा ले गये। उस समय इन सब बातो से मै अन्जान था। मेरी औरत दर्द से थाने में पुलिस वालो (जय प्रकाश एस.आई) से गिड़गिड़ा रही थी कि हमारा रिपोर्ट लिख लिजिए लेकिन वह उसकी बात को अनसुना करके आरोपियों की मदद करने में जुटे थे। अभी भी इस बारे में सोचता हूँ, तो गुस्सा आता है। कुछ देर बीत जाने के बाद मेरी पत्नी को पुलिस वाले जसरा ब्लाक ले गये और वही जो कुछ थोड़ा बहुत दवा कराया और मेडिकल मुआयना कराया। उसके सिर में पाॅच टाके लगाये गये। उस समय मै थाने में बन्द अपने आप को असहाय महसुस कर रहा था। बस यही लगता कि कैसे थाने से बाहर आऊँ और अपने परिवार के पास जाऊँ। पता नहीं वह किस हाल में हो गये यही सोचकर मन घबराता और आँख में आसूँ भर आते है यह कहकर वह रोने लगा। पूरा दिन बेकसूर थाने में मै और मेरा भाई बन्द रहा। करीब शाम साढ़े चार बजे मुझे थाने से रिहा किया गया। उस दिन का एक-एक पल बेचैनी से भरा था। बस यही ख्याल आता कि हम दलित और गरीब की सुनबाई कहीं नहीं है।
 हमारी मदद करने के बजाय हमारे साथ थाने में अन्याय किया गया। इस घटना के दस दिन पहले चाय की दुकान पर थाने के (जय प्रकाश एस.आई) कुछ लोग और रामखेलावन इनके सामने धमकी दिये। कि पट्टा की जमीन पर जो कुछ बना है और जो सामान है उसे उठावा कर फेकवा देगें। उस समय यह सुनकर मुझे ऐसा नहीं लगा कि ऐसा कुछ करेगें। 2008 में एस.डी.एम. साहब दुबारा  जमीन पट्टा किया था। जिसमें बस्ती के कुछ लोगों के नाम यह अवासीय पट्टा है। जिसके पास जितना सामथ्र्य था उससे ज्यादा पेड़ काटकर लोगों ने अपने जानवर को रखने के लिए और घर बनवाने के लिए तैयारी कर रहे थे। लेकिन इस घटना के बाद सब कुछ उजड गया। पाल लोग कानूनगो से मिलकर हमारी पट्टा की हुई जमीन पर कब्जा करना चाहते है लेकिन वह हमारी जमीन पर निगाह लगाये हुये थे। इसी वजह से हमारी औरतो पर हाथ उठाकर मारपीट कर पुलिस वालों से मिलकर हमारा सब कुछ लुट ले गये। एक-एक पैसा इकठ्ठा करके हमने यह सब खरीदा था सब कुछ खत्म हो गया है। अब हम लोग इस जमीन पर नहीं जाते। हमारी सुनवाई कही नहीं हो रही है। तहसील भी गये वहा भी हम गरीबो का सुनने वाला कोई नहीं है। प्रार्थना पत्र लिखा लेकिन अभी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। घटना के दो दिन बाद कचहरी में केस दर्ज किया वहा से भी तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है। हम गरीब लोग अपना पेट वाले की इन कोर्ट कचहरी का चक्कर काटे। लेकिन फिर यही सोचते है कि आज तो उन लोगों ने हमारी उस जमीन पर कब्जा किया है कल कही हमारी बस्ती पर उनकी निगाह न पड़ जाये। इसी सब को सोचकर हमने अपना पेट काटकर अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हुए। अब न्यायालय से न्याय की उम्मीद लगाये हुए है। अब सब कुछ उसी पर निर्भर हैं।
 इस घटना के बाद से जैसे हम लोग टुट गये है। काम में भी मन नहीं लगता है उस घटना के बारे में सोचती हूँ तो गुस्सा आता है वह दिन याद करता हूँ। तो मन काँप जाता है कई दिनों तक बिना खाये पिये हम लोग दिन रात परेशान थे जैसे लग रहा था कि घर में कोई बहुत बड़ा गम पड़ा है। हर कोई उस घटना से गमगीन था। मुझे सबसे बड़ा दुख यह हुआ कि जो हमारी रक्षा के लिए बैठा है वही हमारे साथ अन्याय कर रहा हैं हम गरीब है हमारे पास पैसा नहीं है। तो क्या हमारी मदद नही होगीं रात दिन यही चिन्ता सताती रहती है। रात को नीद नहीं आती है मैं चाहता हूँ कि हमे न्याय मिले और जिन लोगो ने हमारे साथ गलत किया हैं उसे सजा मिले। आपको देखकर कुछ उम्मीद बॅधी है इसे घटना के बाद आपको अपने उार हुए अत्याचार की बात बताकर मेरा मन हल्का हुआ है। बस यही उम्मीद लगाकर अपनी लड़ाई लड़ रहे है कि भगवान एक न एक दिन हमारी मदद करेगा और मुझे और मेरी पत्नी की न्याय मिलेग|

साक्षात्कारकर्ता- फरहद शबा खानम
संघर्षरत पीड़ित- राजकुमार