Tuesday, 9 June 2015

”वह मेरी जमीन छीन लेना चाहता था, क्योंकि वह पैसे से ताकतवर है।“

                मेरा नाम मल्हुआ देवी, उम्र-39 वर्ष है। मैं अनुसूचित जाति की अत्यंत गरीब महिला हूँ। मैं अपने पति से अलग पिछले 18 वर्ष से अपने मायके ग्राम-देवल, पोस्ट-चैरा, थाना-पहाड़ी चित्रकुट (उ0 प्र0) में अपनी दो बेटियों और दामाद के साथ रहती हूँ। मैं गाँव में ही आँगनबाड़ी सहायिका का कार्य करती हूँ| आज से सात वर्ष पूर्व ग्रामप्रधान ने ग्रामसभा की सत्तरह बिस्वा  बंजर जमीन का पट्टा हमें किया।
            मैं जब खेत जुतवाने के लिए पहुँची तो गाँव के ही विजयपाल तिवारी और उनके बेटों (रविशंकर, करूणाशंकर, गौरीशंकर) ने ट्रैक्टर वाले को धमकाकर भगा दिया और मुझे गन्दी-गन्दी गालियाँ देते हुए कहा-इस जमीन पर हमारा कब्जा है और तेरी क्या मजाल कि तू ये जमीन लेगी।
            मैने उनसे हाथ जोड़कर कहा-अगर आप ये जमीन नही देना चाहते तो मुझे उतनी जमीन कही और दे देलेकिन उन्होंने मुझे गालियाँ देते हुए वहाँ से भगा दिया। बरसात के बाद मैनें बिना जुताई के खेत में धान के बीज डाल दिये। कुछ दिन बाद पौधे थोडे़ ऊपर आ गये। मैं  अपने खेत पर अपनी फसल देखने गयी थी। वह 23 सितम्बर का दिन था। मैं खेत पर पहुँची  तो विजय पाल वहा अपने जानवर चरा रहा था। यह देखकर तो मैं सन्न रह गयी, मैं दौड़कर उसके पास पहूँची और जानवारो को खेत से बाहर करने को कहा। उसने कहा-यहा तेरा क्या है मेरा खेत है, मैं कुछ भी करूऔर मुझे बहुत ही गन्दी गालियाँ (जो मैं बता नही पा रही हूँ) देते हुए कहने लगे कि आज तेरी कहानी यही खत्म कर देते है, मार कर ताल में गाड़ देगें, किसी को पता भी नही चलने वाला और सब मिलकर मुझे हाथ, लात और डण्डे से पीटने लगे। मुझे अकेली को लोग पीट रहे थे। मैं दर्द से चिल्लाने लगी, आस-पास खेतों में काम कर रहे लोग जुट गये लेकिन कोई भी मेरे पास छुड़ाने नहीं आया।
            मुझे ऐसा लगा कि आज तो ये सब मिलकर मुझे मार ही डालेगें, मेरी साड़ी खुल गयी, मेरा ब्लाउज कई जगह फट गया था। मैं रोते हुए उनसे छोड़ देने की गुहार लगा रही थी, लेकिन वे सब मुझे किसी भुले हुए जानवर की तरह पीट रहे थे। किसी ने जाकर ये सब मेरी बेटी को बताया तो वह और दामाद दोनो दौड़े आए और बीच-बचाव कर मुझे छुड़ाया।
            आज भी मुझे यह सोचकर बहुत दुःख होता है कि वह लोग मुझे बुरी तरह मार रहे थे और सब खड़े तमाशा देख रहे थे। किसी ने भी मुझे बचाने की कोशिश नही की, यह सब सोचकर गुस्सा भी आता है और चिढ़ भी होती है कि इंसान-इंसान में इतना फर्क क्यों करता है। उसके पास पैसा है तो वह कुछ भी कर लेगा।
            मेरी बेटी और दामाद मुझे किसी तरह ढाँक तोपकर मुझे घर लाए। मेरे सिर और शरीर में बहुत चोटें आयी थी। अगले दिन मैंने पहाड़ी थाना जाकर प्रार्थना पत्र दिया। दरोगा ने आने को कहा लेकिन मेरी डाक्टरी जाच नही करायी। दरोगा के कोई कार्यवाही न करने पर मैं फिर थाने पहूँची तो उसने भी पट्टा छोड़ देने की बात कही, मैं समझ गयी कि अब यहाँ कुछ नही होने वाला, उन लोगों ने इन्हें पैसा खिला दिया है।
            उसके बाद मैने वकील के द्वारा कर्वी कचहरी में विजयपाल और उसके लड़को के खिलाफ हरिजन उत्पीड़न के अन्तर्गत मुकदमा किया, जिसके बाद मुझे 6250/- रूपये मुआवजे की पहली किश्त मिली। एक वर्ष तक मुकदमा चला उसके बाद विजयपाल रिहा हो गया और उसके बेटे जमानत पर छूट गये। छुटने के बाद कचहरी में ही (18 मई, 2010) को मुझे धमकी दी, कि मुकदमा वापस ले लो नहीं तो तुम्हारा क्या होगा खुद ही समझ लो।मैं अपने लिये नही डरती हूँ लेकिन मेरी बेटियों को कही कुछ न हो जाय इसलिये मैं हमेशा डरी रहती हूँ। मैने थाने में प्रार्थना पत्र दिया था कि मुझे उन लोगों से जान का खतरा है, लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। दरोगा भी उन्हीं का साथ देता है, कहता है-कब्जा उनसे लेने की तुम्हारी औकात है।जब जमीन मुझे मिली तो मैने सोचा कि अब अपनी जमीन पर मेहनत कर खाने को तो उगा लेगें, लेकिन इन पापियों के कारण यह सोचना व्यर्थ ही रह गया ।
            पाँच माह पूर्व जमीन की डिग्री हो गयी है। अब भी वे लोग मुझे धमकाते रहते है। मुकदमे में मेरे काफी पैसे खर्च हो गये और मुझ पर काफी कर्ज हो गया है। अभी तक मुआवजे की आखिरी किश्त नही मिली है, मैं चाहती हूँ कि मुआवजा मिल जाय, जिससे मैं अपना कर्जा भर सकूँ।
            उस घटना के कारण मेरा अपने लोगों (गाँव वालो) पर विश्वास खत्म हो गया। मैं अपने आपको बहुत अपमानित महसूस करती थी, ऐसा लगता था कि क्या मुझ गरीब को समाज मे जीने का हक नही है। हांलाकि उन्हे सजा हो जाने और जमीन की डिग्री हो जाने के बाद काफी राहत है, लेकिन हमेशा यह डर लगा रहता है कि कही फिर से कुछ हो न जाय। मैं हमेशा सोते जागते वही सब बाते सोचती रहती हूँ, मुझे गुस्सा तो बहुत आता है खासकर तब, जब मैं उसे देखती हूँ। मैं यही प्रार्थना करती हूँ, ऐसा किसी और के साथ न हो। 
            किसी ने भी मेरा साथ नही दिया। केवल मेरा अपना विश्वास ही काम आया। आज मैं आपको सब कुछ बताकर थोड़ा अच्छा महसूस कर रही हूँ। मेरे मुआवजे की रकम मिल जाय तो मेरे लिए काफी अच्छा होगा।

साक्षात्कारकर्ता - कात्यायिनी सिंह राम नरेश
संघर्षरत पीड़िता- मल्हुआ देवी                     
                                   

No comments:

Post a Comment