आज भी हमारे भारत देश की कुछ पुलिस पैसे के लिए चन्द सिक्को पर अपने
वर्दी व इंसानियत को बेचकर गरीब लाचार लोगों को अपनी वर्दी व प्रमोशन की खातिर
फर्जी केसो में फॅसाने का ठेका ले रखा है। वह कानून को खिलौना समझते हुए ऐसे लोगो
को मारना-पीटना व गाली देना तथा जबरजस्ती करना उनका पेशा है वे रक्षक से भक्षक बन
गये, धीरे-धीरे पुलिस से भारतीय लोगों का विश्वास उठने लगा है। आइये ऐसी
ही घटना एक राजभर की स्वःव्यथा कथा उनकी जुवानी सुने।
मेरा नाम विन्द राजभर है। मेरा उम्र 45 वर्ष मेरे पिता
का नाम स्व0 वचई राजभर मेरे परिवार में 5
लड़के मेरी पत्नी मेरी माँ व मै रहता हूँ। मै ग्राम-कुरू, पोस्ट-कुरू, थाना-कपसेठी, ब्लाक-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी
का रहने वाला हूँ। मै निहाय गरीब बीमार असहाय जाति का राजभर हूँ। मै आज के डेढ साल
पहले से भकन्दर का तीन बार आपरेशन करवाये अभी भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। मै
चारपाई पर लेटा रहता हूँ। इस बीच मेरी पत्नी का तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गया और
मै रिन-कर्ज लेकर अपनी पत्नी का बच्चेदानी का आपरेशन जीवन ज्योति हास्पिटल भदोही
में करवाया जिसमें तेरह हजार (13,000) रुपये खर्च हुआ, और
घर की स्थिति को देखते हुए मेरा बेटा सुजीत मुम्बई चला गया, और
वहा एक बड़ी कम्पनी में काम करने लगा। घर में कमाने वाला वही एक बेटा था क्योंकि मै
विल्कुल कमाने और खाने में असमर्थ हूँ, हम लोगों का
केवल वही एक सहारा था, मेरा बेटा जो कि मेहनत मजदूरी करके जो
पैसा भेजता था, हम लोग उसी से दवा करते थे। मेरा बेटा जनवरी 2013
में मुम्बई से घर आया तो उसका तबीयत बहुत खराब था उसको जब हमलोग बसनी सरकारी
हास्पिटल के डाक्टर को दिखाये तो डाक्टर ने वही पर एक जांच लिखा तो जांच करवाने के
बाद पता चला कि मेरे बेटे को टी0वी हुई है। यह सुनने के बाद हम लोगो का
मन घबराने लगा कि अब हम लोगो का कौन देख-भाल करेगा। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने
के कारण मेरा बेटा दो माह तक का दवा एक साथ लेकर मुम्बई चला गया। वहाँ भी तबियत
में कोई सुधार व परिवर्तन नहीं हुआ, तो तब मेरा बेटा
लाचार व विवश होकर घर वापस चला आया, घर पर ही उसका
दवा चल रहा था इसी बीच 2 अप्रैल, 2013 को हमारे घर से
3 किलोमीटर दूर कोयलार गाँव में राजभर की जमीन को उसी गाँव के दबंग
ठाकुर लोग उषा देवी पत्नी स्व0 महेन्द्र राजभर के जमीन को बैनामा
करवा लिये थे।
राजभर लोग उषा
देवी के जमीन को अधिया जोत बो रहे थे। उस समय खेत मे गेहूँ, चना
बोया गया था, जिसको काटने के लिए दबंग ठाकुर राम प्रसाद सिंह
उसके लड़के भीम सिंह व आशू सिंह, पिंकी मिश्रा ये सभी लोग पुलिस के साथ
बस्ती मे आये और फसल को जबरजस्ती काटने की कोशिश करने लगे। जो लोग पहले से खेत में
अधिया बोया थे उन्होने कहा कि हम लोग अपना फसल काट लेगे तो आप लोग अपना खेत वापस
ले लेना। क्योकि मै मेहनत करके खेत में गेहॅू, चना पैदा किया हूँ।
लेकिन ठाकुर लोग उसकी बातो को नहीं माने पुलिस द्वारा ठाकुरो के पक्ष से राजभर
बस्ती के लोगों को भद्दी-भद्दी गाली देने लगे, और मौका पाकर एक
दबंग ठाकुर भीम सिंह गाँव की एक बहू को गेहॅू के खेत में घसीटते हुए ले जा रहा था
और वह अपने बचाव के लिए जोर-जोर से चिल्लाने लगी उसकी आवाज को सुनकर गाँव के लोग
गेहूँ के खेत की तरफ उसकी बचाव के लिए दौडे। वहाँ ठाकुर व पुलिस पहले से मौजूद थी, उस
समय रात के 8:00 बज रहे थे।
पुलिस व ठाकुर और राजभर बीच मार-पीट होने लगी कि पुलिस वाले ठाकुरो से पैसा लेकर
कपसेठी थाना की पुलिस राजभर बस्ती के निर्दोश लोगों को लाठी और डण्डे से मारने लगे, जिससे
राजभर लोग अपनी जान बचाकर भागने लगे इसी बीच कपसेठी थाना की पुलिस अपनी जीप चालू करके
भागने की कोशिश कर रही थी। उसके जीप के सामने एक छोटा सा लड़का खड़ा था। जिसको बचाने
के लिए एक औरत गाड़ी के सामने गयी, बच्चे को तो बचा ली लेकिन पुलिस बाले
निर्देतापूर्वक अपनी जीप से उस वेवस लाचर महिला को कुचल डाला जिससे उसकी मौके पर
ही मृत्यु हो गयी। पूरे गाँव में पुलिस के व्यवहार से लोग घबड़ा गये। व् चलाकी किया
और को फोन करके बताया की तुम्हारे इलाके में लड़ाई हो रही है आप जाकर वहा देख ले।
क्योकि ने एसो को कोई बात नहीं बताया था। एसो के
साथ एक पुलिस वाला कोयलार गाव गया वहा पुलिस के खिलाफ राजभरो के अन्दर काफी क्रोध
भरा हुआ था। वहाँ एसो और पुलिस को देखकर गाँव वाले अपने आपको नहीं रोक पाये और लाश
घटनास्थल पर रहने दिये। एसो और पुलिस को लाठी और डण्डो से सभी राजभर लोग मारने
लगे। जिससे एसो और पुलिस को काफी चोटे आई। किसी प्रकार पुलिस वाले अपनी जान बचाकर
वहा से भाग गये। तब बस्ती के लोग उस महिला को प्रज्ञा हास्पिटल हरहुआ वाराणसी लाये, जहा
डाक्टर उन्हें बताये कि यह महिला मर चुकी है। लाश को लेकर घटना स्थल से तीन
किलामीटर दूर कुरू चैराहा पर लेटा दिये। उस समय दिन के 8:00 बज
रहे थे, लाश के साथ सैकड़ो लोग जो कोयलार गाँव के बच्चे
और महिला सहित चक्का जाम कर दिये। वही घटना से थोड़ा दूर मेरा बीमार बेटा सुजीत खड़ा
था। वहा पर पुलिस और अजय राय विधायक भी मौके पर मौजूद थे।
विधायक अजय राय
के देख-रेख में व उनके कहने पर ही लोगो ने चक्का जान किया था। विधायक को देखने के
लिए मेरा लड़का गया था वहा प्रशासन द्वारा पीड़िता के परिवार के लोगो को प्रशासन ने
अस्वासन दिया कि आप लोग चक्का जाम को हटा लीजिए और मै आप को मुआवजा दिलवाने की
पूरी कोशिश करूगा। आप को मुआवजा जरूर मिलेगा। वही विधायक अजय राय के द्वारा पीड़िता
परिवार को (25,000/हजार )रुपये नकद दिया गया, लोग
प्रशासन की बात मानकर चक्का जाम हटा लिये। मेरा लड़का विधायक को देखकर घर चला आया
इसके बाद जब मेरा बेटा थोड़ा स्वस्थ्य हुआ, तो घटना के
तीसरे दिन बाद मुम्बई चला गया सब चीज ठीक-ठाक चला रहा था। अचानक 28 मई, 2013 को
हमारे घर दरोगा व एक सिपाही दिन के 12:00
बजे दोपहर में आये और बिना कुछ कहे और बिना कुछ पूछे मेरे घर के दिवाल पर नोटिस
चिपकाये और दरोगा बोला कि 8-10 दिन के अन्दर अपने लड़के को हाजिर नहीं
कराओगी तो हम तुम्हारे घर को गिरवा देगे। मै यह बात को सुनकर डर गयी और मेरा शरीर
कापने लगा मेरे आँखो के सामने अंधेरा छा गया। मेरी पत्नी रोने लगी मेरे छोटे-छोटे
बच्चें भी रोने एवं चिख-चिख कर चिल्लाने लगे ऐसा मेरे जीवन में कभी नहीं हुआ था मै
सोच रहा था कि आखिर मेरा बेटा क्या किया है।
जिससे
पुलिस वाले हाजिर करने को कह रहे है मुझे विश्वास था कि मेरा बेटा कुछ नहीं किया
है पुलिस वाले कोयलार के दंगों के मामले में हमारे गाँव में पुलिस के मुखबिर ने
मेरे बेटे का नाम थाने में खिलवाया था, यह बात हम लोगो
को नहीं पता था और ना ही मेरे बेटे को जानकारी थी ना ही कोयलार में मेरी कोई
रिश्तेदारी है, और नाही किसी को हम जानते है हमारे बेटे को
अनायास फर्जी केसो में फंसाया गया पुलिस के डर से अपने बेटे को मुम्बई से घर बुला
लिया जब मेरा बेटा घर आया, तो हम लोग उसे देखकर रोने लगे, क्योकि
वही हम सबके जीवन का सहारा था। मै रो-रोकर अपने बेटे को सारी बातो को बतायी और हम
नहीं जानती थी कि मेरे बेटे के ऊपर ये बेहरम पुलिस ग्यारह धाराये लगा देगी। नहीं
तो मै अपने बेटे को कभी नहीं मुम्बई से
बुलवाती और न तो मेरे बेटे के ऊपर मुकदमा अपराध संख्या 28/13
धारा 147,148,149,353,333,360,504,527,186,201,आई पी सी की धारा एक्ट के तहत इतनी धारायें
मेरे निर्दोष बेटे के ऊपर लगाया जाता और न ही मेरे बेटे को चैकाघाट जेल में भेजा
जाता।
मै क्या करती, मै प्रशासन के सामने हाथ-पाव जोड़ती रही
लेकिन मेरी एक भी नहीं सुनीं गयी। जब हम अपने बेटे से मिलने चैकाघाट जेल गयी तो
मैं वहा अपने बेटे को जेल में
बन्द देख कर
विल्कुल बिहर सी गयी। जेल में मेरे बेटे की तबियत बहुत खराब थी मै उसकी दसा को
देखकर अन्दर खुब घूट रही थी, जेल में मेरे बेटे को खाने के लिए कुछ
नहीं मिल रहा था, मै वहा अपने बच्चें को दवा दिया मैं आज डेढ़ साल
से बीमार पड़ी हॅू, मेरे पास फुटी कौडी भी नहीं है कि मै अपने बेटे
की जमानत मंजूर करा सकू आज भी घटना को याद करती हॅू तो गाँव के मुखवीर और पुलिस पर
बहुत गुस्सा आता है। और रात में नीद नहीं आती खाना खाने का मन नहीं करता बच्चें की
सूरत आँखो के सामने नाचती है। मन में चिन्ता हमेशा बनी रहती है सोचती हूँ कि कोई
मेरे बेटे को छुड़ा दे मेरे परिवार के लोग व बहू बेटे के वियोग में पागल सी हो गयी, और
मै चाहती हॅू कि मेरे बेटे के ऊपर लगाये गये फर्जी केसो को सी आई डी और, सी
बी आई के द्वारा विवेचना कराकर केस को खत्म किया जाय और दोषी पुलिस व मुखवीर के
खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाय। ताकि हम सबको न्याय मिल सके। और मेरा बेटा जेल से
निकलकर अपने घर आ जाये।
आपको अपनी कहानी
बताकर हल्का पन महसूस कर रही हूँ।
साक्षात्कारकर्ता - दिनेश कुमार अनल
संघर्षरत
पीड़ित- विन्दे राजभर
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