Tuesday 9 June 2015

यातना व संगठित हिंसा से संघर्षरत पीड़ित की स्व0 व्यथा-कथा

मेरा नाम कुसमा चौहान, उम्र-50 वर्ष है। मैं ग्राम-सायर, जिला-हमीरपुर (उ0प्र0) की निवासी हूँ।
            घटना लगभग 20 वर्ष पूर्व की है, जब मेरे पति को गाँव में ही किसी झगडे़ के कारण दबंग व्यक्ति ने गोली मार दी। जब मुझे पता चला तो मेरे होश उड़ गये, यह सोचकर की घर कैसे चलेगा। फिर भी हमने अपने आपको मानसिक रूप से सम्भाला और जीवन जीने के लिये तैयार हुई। हमारे परिवार में हमारे पति के 4 भाई थे। जिसमें से बड़े भाई मारे गये। उनके बेटे अभी भी हमारी मदद करते है।
            मै घर की मझली बहू हूँ, मेरी तीन लड़कियाँ है, जब मेरे पति को गोली लगी थी, उस समय तीनों लड़कियाँ छोटी थी और मेरी स्थिति बहुत नाजूक थी, इसके कारण मायके वालों ने हमें आर्थिक सहयोग दिया तथा हमने अपनी बेटियों को पढ़ाया-लिखाया। बेटी की शादी के समय मेरे पास कुछ नही था इसलिये मैने अपनी 40 बीघा जमीन, पड़ोस के  गाँव में यादव तथा पाल के पास बेच दी तथा बेटियों की शादी की। बेटियों की शादी करने के बाद हमने कुछ समय के लिए शान्ति का अनुभव किया और ऐसा लगा कि जैसे जिंदगी का सबसे बड़ा फर्ज निभा दिया है। अब हमारी जिंदगी में कुछ चैन व सूकून आया है, लेकिन हमारे छोटे देवर के लड़कों ने उस पाल को जमीन जोतने तथा बोने नही दिया, कहा-तुम जमीन दे दो, पैसे ले लो।जिस कारण पाल भी परेशान रहता है। वह थाने भी गया, लेकिन उसकी एक न सुनी गयी।
            देवर के लड़को ने इतना प्रताड़ित किया और हमारी तीन बीघा जमीन पर स्कूल खुलवा दिया। हमने उसे कभी हासिल करने की कोशिश भी नहीं की, क्योकि मैं अकेली थी और वह ज्यादा दबंग है। पाल ने कोशिश करके पुलिस के पास गया, लेकिन उसकी सुनवाई न होने पर उसने भी कोशिश करना छोड़ दिया।
            आज मैने आपके बीच अपनी बात रखी, हमें कुछ अच्छा लगा और बेहद खुशी महसूस हुई। मैं आज तक किसी अंजान व्यक्ति से इस तरह की बात नही कही हूँ, आपसे कहने पर हमें लगा कि जैसे हम आपको पूर्व से जानते हो।


साक्षात्कारकर्ता -ओंकारा व ममता चैरसिया
संघर्षरत पीड़िता -कुसमा चौहान           

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