मेरा नाम छोटे लाल पाण्डेय है। मेरे पिता का नाम स्वर्गीय राम सुख पाण्डेय है।
मेरा घर रूक्सा खुर्द, पोस्ट-बमनी पूर्वा, जिला-चित्रकुट (उ0प्र0) में है। मेरे परिवार में दादा, पत्नी एवं सात बच्चें
हैं। जिसमें बड़ी लड़की, उम्र-22 वर्ष, दुसरी (मंजू ), उम्र-18 वर्ष, तीसरा बेटा, उम्र-14 वर्ष और अन्य छोटे-छोटे है। बड़ी बेटी की शादी हो गयी और सभी
की शादी करनी है।
मेरे जीवन की सबसे बड़ी घटना 10 मार्च, 2011 के रात को हुई। उस रात मैं अपने बडे़ लड़के के साथ रात में खेत
की सिंचाई करने के लिए गया था और घर पर मेरी पत्नी और सभी बच्चे थे। मेरे दादा जी घर
के बरामदे में सो रहे थे और मेरी बेटी मंजू अपने माँ के साथ सोयी हुई थी। रात 12:00 बजे बदवा अपने दो साथियों
के साथ घर के पिछे से घर में दाखिल हुआ और कमरे में जाकर मेरी पत्नी के मुँह को और
हाथ-पैरो को रस्सी से बाँध दिया, फिर उसने पत्नी से
तिजोरी की चाभी छिना और रूपये, गहने तथा मेरी बेटी
को जबरदस्ती उठा ले गया और मेरी पत्नि को आँगन में फेंक दिया। रात में मेरी दुसरी बेटी
की नींद जब खुली तो वह दंग रह गयी उसने अपनी माँ को उठाया और उसके रस्सी खोली और रात
में ही मुझे बुलायी। मैं घर पहुँचा तो देखा की मेरी पत्नी चिल्ला रही थी। मैंने किसी
तरह उसे समझाया और रात बितायी।
सुबह होने पर मैं थाने
में तीन लोगों बदवा, बेनी और उसका मित्र
दिनेश के खिलाफ एफ0आई0आर0 किया। पुलिस ने बदवा
को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, लेकिन उसके भाई और
मित्र फरार रहे। मैन जब दरोगा से कहा तो दरोगा ने मेरा केस को फाड़ दिया और मुझसे अपने
मन मुताबिक दुसरा रिपोर्ट लिखवाया।
मैं निराश होकर एस.पी
साहब से मिलने गया वहा एस.पी साहब ने भी कोई कदम नहीं
उठाया और मुझे थाने में ही भेजा और कहा दरोगा की शिकायत मत करो वही तुम्हारा कार्य
करेगा। मैं वहा से भी बहुत निराश हो गया और घर वापस आ गया।
बदवा मेरा पड़ोसी है
और उसके परिवार के लोग बहुत दबंग है। मुझे शक है कि उनके परिवार के ही व्यक्ति ने पहले
मेरे घर में डाका डाला था, फिर बाद में मेरे पिता की हत्या भी की थी।
इस घटना के बाद से
मुझे घर के बाहर निकलने का मन ही नहीं करता। समाज से मेरा मान-सम्मान चला गया। अब मुझे
बड़ी चिंता होती है, क्योंकि बदवा का भाई
मुझे धमकाता रहता है कि अभी मैं तुम लोगों को बताउँगा। हमेशा मन डरा रहता है कि मेरी
बेटी कैसी होगी। यह सोचकर मेरी पत्नी का कलेजा फटा जा रहा हैं। हमेशा रोती रहती है
और घुट-घुट कर जी रही है। पड़ोसी हमें देखते ही ताना मारते हैं। मुझे अब अपने बच्चों
की चिंता हो रही हैं। मैं उन्हे दुर पढ़ने भी नहीं भेज सकता क्योंकि मुझे हमेशा डर बना
रहता है। इसी डर के साथ में हम जी रहे हैं। बच्चे भी डर के कारण कही आते-जाते नही।
मुझे हमेशा डर बना रहता है कि बदवा मुझे मार न दे। इसी चिंता से मुझे रात में ठीक से
नींद नही आती और मेरी पत्नी कभी-कभी रात में चिल्लाने लगती है। मेरे दादा भी चिंता
से बिमार हो गये है। मेरा पूरा परिवार डर के साये में जी रहा है।
आपसे अपनी दुःखद घटना
कहकर काफी हल्का महसूस हो रहा है। अब मुझे लगता है कि मेरी दबी हुई आवाज लोगों तक पहुँचेगी
और मुझे न्याय मिलेगा। मैं जो डर के साये में जी रहा था अब वो काले बादल छँटेगें और
मेरे परिवार को जीवन की सुरक्षा और भय से मुक्ति
मिलेगी।
साक्षात्कारकर्ता-छोटे लाल पाण्डेय
संघर्षरत पिड़ित -रविशंकर
व फूलमती व चन्द्रशेखर
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