Tuesday 9 June 2015

लेखपाल व पुलिस दोनों ने मिलकर मेरी जिन्दगी बर्वाद कर दिया|

     मेरा नाम बाबू सिंह, उम्र-36 वर्ष है। मेरे पिता जी का नाम राम प्रसाद सिंह है। मैं ग्राम-अन्डौलीपोस्ट-वैर्रावॅ, तहसील-बबेरू, जिला-बादा का रहने वाला हूँ।  मेरे परिवार में 17 लोग हैं, जिसमें माता-पिता, चार भाई, दो बहु,  पाच लड़के और चार लड़किया है।
            23 नवम्बर 2008 को हमारे गाँव में किसानो के लिए सुखा राहत का चेक  लेखपाल रामेश्वर गुप्ता लेकर आये, जिसका कम नुकसान हुआ था उसको अधिक पैसा का चेक दे रहे थे तथा जिनका अधिक नुकसान हुआ था उसे बहुत कम पैसे का चेक दे रहे थे। जब हमने लेखपाल से कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे है तब लेखपाल ने कहा हम ऐसा ही करेगें, क्या कर लोगे। उस समय मुझे बहुत गुस्सा आया और लेखपाल से मेरा झगडा हो गया। गाँव वालो ने मुझे पकड़ लिया और समझाने लगे हम उनकी बात मानकर अपने घर वापस आ गये। उसी रात लेखपाल ने मुझे मारने के लिए चार गुण्डो को हमारे घर पर भेजा, जिनके हाथ मे बंदुक थी और शराब के नशे मे थे। उस समय रात के 8:00 बज रहे थे। मै अपने घर मे बैठा था, गुण्डे मुझे माँ व बहन की गाली देने लगे और बोले तुम अगर लेखपाल के खिलाफ बोलोगे तो तुझे व तेरे परिवार को जान से मार डालेगे। उस समय मुझे बहुत डर लग रहा था, हमारी पत्नी व बच्चे डर के कारण रोने लगें। मै सोच रहा था अब क्या करू। मैने पुलिस प्रशासन को फोन पर सारी बाते बता दी। दरोगा व पुलिस वालो के आने से पहले गुण्डे हमारे घर से चले गये और गाँव के एक व्यक्ति के घर जाकर बैठ गये।
            दरोगा हमारे घर आने से पहले गुण्डो से मिले और उनकी बंदुके वहाँ छिपाकर दो गुण्डो के साथ हमारे घर पर आये और मुझसे बोले अगर लेखपाल व गुण्डों को फसाना चाहते हो तो पाच हजार रूपये मुझे दो। मै इनको जेल मे बंद कर चलान कर दुँगा। हमने पैसा देने से इंकार किया तो दरोगा मुझे व मेरे चचेरे भाई कमल सिंह को जबरजस्ती जीप में बैठाने लगा। उस समय रात के 12:00 बज रहे थे। हमारे परिवार के लोग रो-रोकर हम लोगो को छोड़ने के लिए दरोगा से दया की भींख मागने लगे, लेकिन दरोगा ने उनका एक भी नही सुनी और लोगो को बबेरू कोतवाली लाकर जेल में बंद कर दिया।
            दरोगा हमारे चचेरे भाई को बहुत मारा और हमें समझाने लगा कि लेखपाल को गाली क्यों दिये, उनकी शिकायत मत करो। उस बीच मैं सोच रहा था, इनसे न्याय की आशा नही की जा सकती है। हम लोग को उसने जेल मे बंद कर दिया।
            दरोगा रात में शराब के नशे मे आया, मुझसे कहने लगा कि तुम मेरी बात मान जाओ, यदि नही माने तो तुम्हारे हाथ-पाव तोड़कर इतने मुकदमा में फँसा दूंगा कि तुम्हारी जिंदगी खराब हो जायेगी। फिर भी बच गये तो साले इनकाउंटर करवा दूंगा। मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा था कि क्या करू, कहा जाऊ, किसको अपनी दुःख सुनाऊ जो मेरी मदद करे। जेल की सफाई न होने से वहा मच्छर बहुत अधिक थे। हम दोनो भाई रात भर बैठकर रोते बिलखते रहे। हमें बहुत तेज प्यास लगी थी, प्यास से हम व्याकुल हो गये थे, हमे जेल में पीने के लिए पानी भी नही दिया गया।
            जब हम दरोगा की बात नही माने तो दरोगा ने दुसरे दिन हम लोगो को धारा 151 के तहत चलान कर दिया। हम लोग कचहरी आये वहा से हमारी जमानत मंजूर हुई। हमें लगा मैं अपराधी भी नही हूँ, इसके बाद भी मुझे जेल में बंद कर दिया गया। मुझे दरोगा व लेखपाल पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन मैं मजबूर था, हम लोग घर चले आये। हमने अपने भाई से कहा था घटना के बारे में जो पुलिस धमकी दी है किसी से मत बताना। जब चाचा ने दबाव देकर घटना के बारे मे पुछा तो मेरा भाई चाचा से सारी बाते बता दिया। जिससे चाचा इस सदमें को नही झेल पाये और 24-11-2008 को उनकी मृत्यु हो गयी। पूरे परिवार के लोग रोने-चिल्लाने लगे। अगर तुम लेखपाल से झगड़ा नही किये होते तो आज तुम्हारे चाचा की मृत्यु नही होती, तुम्हारी वजह से इनकी जान गयी है। उस समय मुझे सबसे अधिक दुःख हुआ। मन तो कर रहा था कि दरोगा और लेखपाल को जान से मारकर आत्म-हत्या कर लूँ। मैं अपने किस्मत पर रोने लगा, चार दिन तक परिवार के लोग मुझसे बात नही किये।
            इतना सब कुछ होने के बाद भी लेखपाल हमारे गाँव में काम कर रहा है और गाँव के चार दलित को लालच देकर कहा-‘‘तुम लोग बाबा सिंह की जमीन पर कब्जा कर लो, मैं तुम लोगों को वह जमीन पट्टा करा दुंगा।’’ लेखपाल और दरोगा मेरे ऊपर हरिजन एक्ट का झुठा मुकदमा दायर कर दिया, जिससे मैं बहुत परेशान हो गया हूँ।

            आज तक मैने उन लोगो को कभी गाली भी नही दिया, फिर भी उन लोगो ने हरिजन एक्ट लगा दिया। इससे बचने के लिए मैं अपनी टेन्ट व लाइट की दुकान बेचकर पचास हजार रूपये देकर अपनी जान बचाई। मेरी आर्थिक स्थिती दिन पर दिन खराब होती गयी। मेरे परिवार के लोग भी बहुत चितिंत रहते है। मेरी दशा देख मेरी पत्नी व बच्चे रात दिन रोते बिलखते थे। उन्हे रोता देख मुझे बहुत दुःख होता था। परिवार के लोग तो रा-रोकर अपना-अपना दुःख दूर कर लेते है। मैं तो रोकर भी दुःख दूर नही कर सकता।
            मुकदमा अभी चल रहा है, जब मुझे पता चला कि लेखपाल हमारे जमीन को उन चार लोगो में आवंटित कर देगा तो मैं अपनी जमीन को बचाने के लिये दिवानी कोर्ट मे मुकदमा कर दिया। जिसमें दो लोगों ने कोर्ट मे हलफनामा द्वारा बयान दिया कि लेखपाल ने हमे धोखे मे डालकर यह जमीन देना चाहता है। वास्तव मै यह जमीन बाबा सिंह की है। हमे इस जमीन से कोई मतलब नही है। मुकदमा अभी भी चल रहा है। मै हमेशा चितिंत रहता हूँ। मुझे नींद नही आती, मन हमेशा बेचैन रहता है। कभी-कभी रात में सपना आता है तो उठकर रोने लगता हूँ। मेरे सिर मे हमेशा दर्द  होता है। काम भी करने की इच्छा नही करती है। मेरी दुकान भी बंद हो गयी है, हर तारीख पर 300/- रूपये लगता है। इतना पैसा कहा से आयेगा, यही चिंता बराबर  बनी रहती है। खाना भी अच्छा नही लगता है, सोचता हूँ, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे परिवार की देखभाल कौन करेगा।
            मै इतने तनाव में हो गया हूँ कि मेरा शरीर आज भी अस्वस्थ रहता है। जब कभी भी लेखपाल व पुलिस को देखता हूँ, तो मुझे बहुत गुस्सा आता है। ऐसी घटना और किसी के साथ न करे। मैं यही चाहता हूँ कि लेखपाल व पुलिस के खिलाफ कानुनी कार्यवाही हो और इन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले ताकि न्याय हो। मै अपनी कहानी सुनकर बहुत हल्कापन महसुस कर रहा हूँ।

 साक्षात्कारकर्ता - दिनेश कुमार अनल व राम नरेश
 संघर्षरत पीड़ित -बाबू सिंह             

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