हमारे भारत देष में गरीब मजदूरो के लिए मानो जगह ही नहीं है। उन्हे
मारना-पीटना उनका शोषण करना दबंगो का पेशा बन गया। वे लोग कानून को कढपुतली समझते
है, और गरीबो के जीवन से खिलवाड करते हुए उन्हें बन्धक बनाने में शौक का
अनुभव करते है। ऐसे ही गरीब मुसहर की स्व0 व्यथा
कथा उसकी जुबानी से सुने।
मेरा नाम वोडर मुसहर पुत्र कालीचरन मुसहर उम्र 40
वर्ष, मेरी पत्नी का नाम अतवारी देवी उम्र 38 वर्ष
है। मेरे पास भगवान का दिया हुआ 2 लड़का, 2 लड़की
है। जिनका नाम कैलाश, विनोद, आरती, निशा, उम्र
16,14,12,10, वर्ष के है। मै ग्राम-श्रीरामपुर, पोस्ट-मिर्जामुराद, थाना-मिर्जामुराद, जिला-वाराणसी
का मूल निवासी हूँ। मै गरीब असहाय जाति का मुसहर हॅू। मै व मेरी पत्नी ईट पथाई का
काम करते है। मै पप्पू मेठ के माध्यम से ईट पी0एक्स0एन
मार्का जो ग्राम हमरीपुर, पोस्ट-जंसा, थाना-जंसा, जिला-वाराणसी
में स्थिति हैं। मै पप्पू मेठ के साथ ईट भट्ठे पर चले गये वहा जाने पर मै व मेरी
पत्नी आपस में राय किये की इस भट्ठे पर कितना रेट है तो भट्ठा मालिक व मुन्शी
जिनका नाम प्रभुनारायन शर्मा, मन्शी सूर्यवली उर्फ करिया है। इन सभी
द्वारा बताया गया कि आप लोग को 1000 ईट पथाई करने पर 500/रुपये
दिया जायेगा। तब मै व मेरी पत्नी खुशी से ईट पथाई काम करने के लिए राजी हो गये, तो
भट्ठे मालिक व मुन्शी द्वारा 5000/हजार
रुपये दादनी के रुप में दिये । तो मै व मेरी पत्नी ईट पथाई करने लगे प्रतिदिन 1200
से 1300 सौ ईट पथाई का करने लगे। एक सप्ताह आने पर भट्ठा मालिक द्वारा हमें 300
से 400/रुपये के रेट खोराकी मिलता था। लेकिन उतने में हम लोगो का पेट नहीं
भर पाता था। भट्ठा मालिक को मै बोला की मालिक हमे खोराकी थोडा सा बड़ाकर दीजिये गा।
इतने में भट्ठा मालिक हमलोगो को भद्दी-भद्दी गाली देने लगे और वहाँ से भगा दिया।
उस समय हमे बहुत दुःख हुआ मगर मै क्या करता।
इस विराने जगह में आकर फस गया था। हमारे पास चार बच्चे थे। मै 300-400/सौ
रुपये में खोराकी नहीं चल पाता था। तो मै बहुत चिन्तित होकर रहता था। मगर हमें
बहुत दुःख होता था। भट्ठा मालिक व मुन्शी के ऊपर बहुत गुस्सा आता था। मगर मै क्या
करता कैसे लड़ता तब पर भी भट्ठा मालिक व मुन्शी ये दोनो सप्ताह में जब खोराकी देते
थे उस समय हमे भीगा लकड़ी देते थे। हम लोग उस लड़की को जताले थे मगर सही तरीके से जल
नहीं पाती थी। हमलोग खाना बनाने में बहुत परेशानी होती थी। हमारे बच्चे खाना कच्चे
पक्के ही खाते थे।
यह देखकर हमें बहुत तकलीफ होती थी। मै अपनी
गरीबी पर एवं कमजोरी जाति पर कमजोर असहाय थे। मै व मेरी पत्नी जो ईट पथाई करते थे
उसका हिसाब जोड़-घटाना सही तरीके से नही होता था। हमेशा हमारे ईट को मुन्शी कम
बताते थे। खोराकी सप्ताह के दिन बहुत कम देते थे। राशन के अभाव में भूखे सो जाते
थें मगर हम लोग फाका मारकर जी रहे थे। हम लोग बिमार होने पर भी मालिक व मन्शी के
डर व भय के कारण पथाई बन्द नहीं करते थे, और दवा के लिये डर के मारे पैसा भी नहीं माँगते
थे, सप्ताह में जब खोराकी के लिए पैसा मिलता था। तब मै व मेरी पत्नी जब बाजार जाते
थे मुन्शी द्वारा पीछा किया जाता था और निगरानी करता था।
अब मै
चाहता हूँ कि मालिक व मुन्शी के ऊपर कानूनी कार्यवाही हो और मै व मेरी पत्नी को
न्याय मिले ऐसे गिद्धो व शैतानो को ऐसा सबक सिखाया जाय जो कि किसी बहन बेटी एव भाई
इन सभी के ऊपर अन्याय न करे। यहाँ से सभी बन्धुआ पथेरा को मुक्ता कराया जाये।
साक्षात्कारकर्ता . दिनेश कुमार अनल
संघर्षरत पीड़ित .वोडर मुसहर
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