Monday, 8 June 2015

‘‘रेशम विभाग ने जलाया आशियाना’’

               मेरा नाम आशा देवी, उम्र-38 वर्ष है। मेरे पति का नाम नान्हू मुसहर है। मैं अनपढ़ महिला हूँ। मेरे दो लड़के और दो लड़कियां है। बड़ी लड़की का नाम रीना है, दुसरी लड़की का नाम ज्योती है, जो अभी एक वर्ष की है, तीसरा लड़का सुविल तथा चौथा लड़का गोविन्द है। मेरी बड़ी लड़की पढ़ी नही है, लेकिन दोनों लड़के अभी पढ़ रहे है। मैं अपने पति के साथ ईंट भट्ठे पर मजदूरी करती हूँ। इसके अलावा सीजन खत्म होने पर गाँव में रोपनी का काम कर लेती हूँ, जिससे मेरे परिवार का खर्च किसी प्रकार चल जाता है। मैं ग्राम-बेलवानी, पोस्ट-मथौला, थाना-बलूबा, तहसील-सकलडीहा, ब्लाक-चहनियाँ, जिला-चन्दौली की रहने वाली हूँ।
            आज से कुछ दिन पहले अगहन का महिना था, हमारे यहाँ पन्ना मेठ आये और चमरहाँ के रमेश सिंह के ईंट-भट्ठे पर काम करने को बोले। उन्होंने बताया कि एक हजार ईंट पथाई पर 350/- रुपये मजदूरी मिलती रहेगी। पन्ना की बाते सुनकर मैं और मेरे पति रमेश सिंह के भट्ठे पर काम करने चल दिये और रात दिन मेहनत कर दिनभर में सोलह सत्तरह सौ ईंटा पाथ लेते थे। पहले तो सब कुछ ठीक था, लेकिन दो महिना बाद भट्ठा मालिक से जब खुराकी माँगते तो भट्ठा मालिक कहता तुम लोगो का ठीका लिया हूँ। बहुत कहने पर गोबर की ऊपरी देते थे, वो भी गिला, जो बिना लड़की के जलती ही नही थी। मैं परेशान हो जाती थी। कभी-कभी बिना ईधन के भूखे ही सोना पड़ता था। इसी तरह खोराकी पाँच सौ हफ्ता देते थे, जिसमें मैं, पति और चार बच्चों का खर्चा चलाना पड़ता था, उसी में बच्चे की तबियत खराब हो जाती तो जब माँगते तो मालिक बहाने करता कहता पाँच सौ खोराकी देता हूँ, वह पूरा खा जाते हो तुम लोग। किसी तरह कर्ज लेकर दवा दर्पण करते थे। इसी तरह समय बितता गया, मालिक कहता दशहरा पर होगा, तो कही होली पर, तो कही बसंत पर, सब बीत गया लेकिन उसने हमारा हिसाब नही किया। अभी हम लोगों की मजदूरी वहाँ पर बकाया थी कि एक दिन भट्ठा मालिक हम लोग जिससे उषा, सुदर्शन, नान्हू, मुन्ना, सारनाथ, जागिन्दर, रामअवतार, बनिज, आशा, पुष्पा, मीरा पर छप्पन हजार (56,000/-) का कर्ज बताने लगे। उनके इस झूठे कर्ज के आरोप के चलते मेरा मन बैठ गया, मैं सोचने लगी कि अभी तो मेरी मजदूरी ही मुझे नही मिली, तब तक इतना कर्ज मुझ पर कहाँ से आ गया। मैं तो दादनी भी एक पैसा नही लिया था और चिन्ता के मारे मैने खाना भी नही बनाया, सोची की अब क्या होगा। तभी मेरे पति के पेट में फोड़ा उभरने लगा, उन्होनें मुझे उसके बारे में बताया, धीरे-धीरे उनका फोड़ा बढ़ने लगा, वह काफी परेशान रहने लगे। इस वजह से उनके इस प्रकार बिमार होने से मेरी परेशानी बढ़ने लगी, क्योकि उनसे कोई काम नही किया जाता था, मिट्टा नही भीगा पाते थे, जिससे तीन-चार दिन तक कोई काम नही हुआ। भट्ठा मालिक आकर हमेशा गुस्साता और कहता की बैठकर खाओगें। मैं उनकी बाते सुनकर रोती, कहती की आज मेरी स्थिति का जिम्मेदार कौन है, अपने पति की हालत को देखकर मैं घबराने लगी और मुझसे जब रहा नही गया तो मैं भट्ठा मालिक से पैसा माँगने गयी। मालिक मेरे पति की तबियत बहुत खराब है, उनके पेट में फोड़ा हो गया है, यदि कुछ पैसा दे देते तो मैं उनका इलाज करवा देती। 
          भट्ठा मालिक मुझे डाँटकर भगा दिये, बोले की तुम लोगों को चरबी चढ़ गयी है, बैठकर बिमारी का बहाना कर रही हो और आयी हो पैसा माँगने, पहले काम करो तब तुम लोगो को पैसा मिलेगा। मैं रोते हुए दुःखी मन से निराश होकर वहाँ से चली आयी और पूरी रात अपने पति के बारे में सोचती रही।
            सुबह हिम्मत करके मैं और बेटी रीना मिट्टी भिगाये और ईंट पाथने लगे। पुरे दिन मेहनत करते, इसी लालच में की पैसा देगें तो ईलाज होगा, लेकिन उन्हें मुझ पर तरस नही आयी। चार दिन काम करने के बाद पैसा माँगी तो उनका जवाब पहले ही जैसा था। अब मेरा मन निराश हो गया और दुसरे दिन मैं भट्ठा पर से पति और बच्चो के साथ उसी भट्ठे पर से अपनी देवरानी से कुछ पैसा उधारी लिया और घर चली आयी। घर आने पर मैने अपने मायके और रिश्तेदारी से कर्ज लेकर प्राइवेट दवाखाने से उनका ईलाज करायी। दो महिने तक उनका ईलाज चला। उनका फोड़ा दवा के बल पर बैठ गया। भट्ठा मालिक धमकी देता था, बोलता की तुम लोग इतना पैसा लेकर खाये हो, मेरा पैसा नही भरोगें तो जान से मारवा दूँगा, लेकिन मैं भट्ठे पर नही गयी। अगल-बगल मजदूरी करती थी। पति भी मोटा काम कर लेते थे। इसी से किसी प्रकार पेट का खर्च चल रहा था। तभी परसों सूचना मिली की भट्ठा मालिक अन्य लोगों को भी परेशान कर रहा है। भट्ठा मालिक और लोगों को वहाँ से निकलने नही दे रहा है, तो सुनकर बहुत दुःख हुआ। उसमें से सुदर्शन ने बताया की भट्ठा मालिक के इस व्यवहार से सभी परेशान है, तब मेरे पति ने मानवाधिकार आफिस के बारे में बताये। वहाँ से कुछ लोग आफिस जाकर सूचना दिये, तब जाकर बंधको को वहाँ से मुक्त किया गया, वहाँ से मुक्त होने के बाद जब लोग बाहर आये तो उन लोगों के साथ मैं भी गयी, मेरे पति भी साथ में थे और हम सभी एस0डी0एम0 साहब के बंगला पर गये, लेकिन वह नही मिले तब हम लोग भोजूवीर गये और अपने बारे में पुरी जानकारी दिये, लेकिन एस0डी0एम0 साहब आकर मुझे और मेरे पति को गुस्साने लगे बोले तुम लोगो को मारकर जेल में भेजवा दूँगा। साहब की बाते सुनकर मैं घबरा गयी। मेरी आँखो से आँसू छलक पड़ा, लगा कि मेेरे पति को ये लोग जेल भेज देगें, लेेकिन कुछ देर बाद सब ठीक हुआ। बाद में हम लोग आफिस में आये। उस समय रात के 9:00 बज गया था। उस दिन मैं पूरी रात जागती रही, मुझे नींद नही आयी, अभी भी मुझे डर है कि भट्ठा मालिक हम लोगों को मारे-पिटे न। उसके लगाये गये झुठे कर्ज के आरोप से हम लोगों को मुक्ति मिल जाये और हमारी मजदूरी मिल जाये। आप लोगों से अपनी बाते बताकर मन को सूकून मिला है।

साक्षात्कारकर्ता- मीना कुमारी पटेल
संघर्षरत पीड़िता-आशा देवी                  






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