Friday, 26 June 2015

भट्ठा मालिक व पुलिस प्रशासान द्वारा मजदूर पर अत्याचार!

मैं दुधई कन्नौजिया  उम्र 42 वर्ष पुत्र मिठाई लाल निवासी ग्राम-आदीपुर, पोस्ट-पहाड़पुर टड़वा, तहसील- अकबरपुर, थाना- सम्मनपुर, जिला-अम्बेडकरनगर का रहने वाला हूँ। मै ईट भट्ठे पर मजदूरी करता हूँ और अपने परिवार का भरण-पोषण करता हूँ। मेरे परिवार में मेरी पत्नी सहित 3 बच्चें है। 
            मैं मायाराम के भट्ठे पर रोशनगढ़ तहसील-अकबरपुर, थाना-सम्मनपुर, जनपद-अम्बेडकरनगर में जो अकबरपुर-बसखारी रोड पर ए0आर0आर0 मार्का ईट भट्ठा स्थिति है वहाँ पर दिनांक 27 जनवरी, 2014 से बुग्गी व घोड़ा द्वारा कच्ची ईट की ढूलाई किया था। मेरे द्वारा भट्ठा मालिक से 250 रुपया प्रति हजार कच्चे ईट की ढूलाई तय किया था। मुझे हर हफ्ते खर्च मिल जाता था। इस दौरान मैने जब हिसाब मांगता था तो कहते थे कि अगले महीने दे दूगा तुम लोग काम करो पैसा मिल जायेगा। मैंने करीब मैने 2 लाख 21 हजार 120 कच्चे ईट की ढूलाई की थी। तब छः माह बाद ईट भट्ठा बन्द हो गया तब भट्ठा मालिक बम्बई चले गये। उस समय उनके साथ काम देख रहे| मालिक के साले से हिसाब मांगा तो उन्होने कहा कि मालिक बम्बई गये हैं। 15 दिन में आ जोयगे तब हिसाब कर लेना | उस समय जेब मे मेरे एक भी पैसा नहीं था। घर पर राशन भी नहीं था और ब्याज पर कुछ पैसा लिखा था और राशन वाले दुकानदार का भी बकाया था, उसने राशन देने के इन्कार कर दिया था। मैं यह सोच रहा था कि राशन कहा से लाऊँगा और अपने बच्चों को क्या खिलाऊँगा। इस तरह से दोस्तों से कुछ रुपये माँग कर मैं 15 दिन में आ जायेगे यह कहकर मैं पैसा उधार लिया था| उस समय मेरे जेब में एक भी पैसा नहीं था। घर पर राशन भी नहीं था और ब्याज पर कुछ पैसा लिया था और के राशन की व्यवस्था किया।
       जब मै 15 जुलाई 2014 को पुनः ईट भट्ठे पर सुबह 8:00 बजे पहॅूचा तो उस समय मालिक भट्ठे पर मौजूद थे। मै उस समय कुछ खाना पानी नहीं किया था। मैने कहा मालिक मेरा हिसाब कर दीजिए तो मालिक ने कहा कि कैसा हिसाब तुम्हारा कोई पैसा बाकी नहीं है। मै यह सुनकर मैं दंग रहा गया जैसे मेरे पैर के नीचे से जमीन खिकस गयी। मुझे चक्कर आने लगा और घबडाहट होने लगी और ओेठ सूखने लगा। मुझे कुछ समय में नहीं आ रहा था कि मै क्या करूँ। फिर मैने किसी तरह से हिम्मत बाधते हुए हाथ जोकर मालिक पुन अपने हिसाब के बारे में कहा लेकिन मालिक व उसके साले ने कहा कि धोबी-धक्कड की जाति यहाँ से चले जाओ नहीं तो धक्के मार करके बाहर कर दूगा। मैने उनका पैर पकडते हुए कहा कि मालिक हम भूखे मर जायेगे हम बरवाद हो जायेगे। भट्ठा मालिक व उनके साले ने हमको भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए हमको लात घॅूसा से मारने लगे और मेरे आखों के सामने अंधेरा छा गया। मुझे भट्ठे से बाहर फेंक दिया। मै किसी तरह से अपने रिश्तेदार रमेश के घर गया उनसे आप बीती सारी बात बताई। और उन्होने मुझे कुछ रूपये देते हुए पूरी मदद करने को कहा।
मै वहाँ से अपने घर पर आया। उस वक्त यह घटना अपने परिवार वालो को नहीं बताया। अगले दिन मै अपने रिश्तेदार के साथ श्रीमान् जिलाधिकारी महोदय, अम्बेडकरनगर के यहा गया तो उन्होने एस0ओ सम्मनपुर से जाच करने का निर्देश दिया। उसके बाद मै जब थाने पहुचा तो देखा कि पहले से ही भट्ठा मालिक वहा पर मौजूद थे और उन्होने देखते ही कहा कि यही आदमी है साहब। इस पर दरोगा साहब ने मुझे भद्दी-भद्दी गाली देते हुए कहा कि तुम फर्जी तरीके से मजदूरी मांग रहे हो तुम्हारा कोई बकाया नहीं है। ज्यादा नेतागीरी करोगे तो किसी फर्जी मामले में जेल भेज दूगा। मै किसी तरह से घर आया और रात भर करवटे बदलता रहा और मै यही सोंच रहा था कि ऊपर वाला मेरा कोई परीक्षा ले रहा है। हम चाहते कि भट्ठा मालिक के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो और हमे न्याय मिले।
            मैं अपनी कहानी बताकर हल्कापन महसूस कर रहा हूँ।
साक्षात्कारकर्ता – मनोज कुमार सिंह       
संघर्षरत पीड़ित - दुधई कन्नौजिया        

                              

Thursday, 11 June 2015

गरीब असहाय टी0वी0 के मरीज पर लगाया गया ग्यारह फर्जी धाराये

      आज भी हमारे भारत देश की कुछ पुलिस पैसे के लिए चन्द सिक्को पर अपने वर्दी व इंसानियत को बेचकर गरीब लाचार लोगों को अपनी वर्दी व प्रमोशन की खातिर फर्जी केसो में फॅसाने का ठेका ले रखा है। वह कानून को खिलौना समझते हुए ऐसे लोगो को मारना-पीटना व गाली देना तथा जबरजस्ती करना उनका पेशा है वे रक्षक से भक्षक बन गये, धीरे-धीरे पुलिस से भारतीय लोगों का विश्वास उठने लगा है। आइये ऐसी ही घटना एक राजभर की स्वःव्यथा कथा उनकी जुवानी सुने।
मेरा नाम विन्द राजभर है। मेरा उम्र 45 वर्ष मेरे पिता का नाम स्व0 वचई राजभर मेरे परिवार में 5 लड़के मेरी पत्नी मेरी माँ व मै रहता हूँ। मै ग्राम-कुरू, पोस्ट-कुरू, थाना-कपसेठी, ब्लाक-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी का रहने वाला हूँ। मै निहाय गरीब बीमार असहाय जाति का राजभर हूँ। मै आज के डेढ साल पहले से भकन्दर का तीन बार आपरेशन करवाये अभी भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। मै चारपाई पर लेटा रहता हूँ। इस बीच मेरी पत्नी का तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गया और मै रिन-कर्ज लेकर अपनी पत्नी का बच्चेदानी का आपरेशन जीवन ज्योति हास्पिटल भदोही में करवाया जिसमें तेरह हजार (13,000) रुपये खर्च हुआ, और घर की स्थिति को देखते हुए मेरा बेटा सुजीत मुम्बई चला गया, और वहा एक बड़ी कम्पनी में काम करने लगा। घर में कमाने वाला वही एक बेटा था क्योंकि मै विल्कुल कमाने और खाने में असमर्थ हूँ, हम लोगों का केवल वही एक सहारा था, मेरा बेटा जो कि मेहनत मजदूरी करके जो पैसा भेजता था, हम लोग उसी से दवा करते थे। मेरा बेटा जनवरी 2013 में मुम्बई से घर आया तो उसका तबीयत बहुत खराब था उसको जब हमलोग बसनी सरकारी हास्पिटल के डाक्टर को दिखाये तो डाक्टर ने वही पर एक जांच लिखा तो जांच करवाने के बाद पता चला कि मेरे बेटे को टी0वी हुई है। यह सुनने के बाद हम लोगो का मन घबराने लगा कि अब हम लोगो का कौन देख-भाल करेगा। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मेरा बेटा दो माह तक का दवा एक साथ लेकर मुम्बई चला गया। वहाँ भी तबियत में कोई सुधार व परिवर्तन नहीं हुआ, तो तब मेरा बेटा लाचार व विवश होकर घर वापस चला आया, घर पर ही उसका दवा चल रहा था इसी बीच 2 अप्रैल, 2013 को हमारे घर से 3 किलोमीटर दूर कोयलार गाँव में राजभर की जमीन को उसी गाँव के दबंग ठाकुर लोग उषा देवी पत्नी स्व0 महेन्द्र राजभर के जमीन को बैनामा करवा लिये थे।
           राजभर लोग उषा देवी के जमीन को अधिया जोत बो रहे थे। उस समय खेत मे गेहूँ, चना बोया गया था, जिसको काटने के लिए दबंग ठाकुर राम प्रसाद सिंह उसके लड़के भीम सिंह व आशू सिंह, पिंकी मिश्रा ये सभी लोग पुलिस के साथ बस्ती मे आये और फसल को जबरजस्ती काटने की कोशिश करने लगे। जो लोग पहले से खेत में अधिया बोया थे उन्होने कहा कि हम लोग अपना फसल काट लेगे तो आप लोग अपना खेत वापस ले लेना। क्योकि मै मेहनत करके खेत में गेहॅू, चना पैदा किया हूँ। लेकिन ठाकुर लोग उसकी बातो को नहीं माने पुलिस द्वारा ठाकुरो के पक्ष से राजभर बस्ती के लोगों को भद्दी-भद्दी गाली देने लगे, और मौका पाकर एक दबंग ठाकुर भीम सिंह गाँव की एक बहू को गेहॅू के खेत में घसीटते हुए ले जा रहा था और वह अपने बचाव के लिए जोर-जोर से चिल्लाने लगी उसकी आवाज को सुनकर गाँव के लोग गेहूँ के खेत की तरफ उसकी बचाव के लिए दौडे। वहाँ ठाकुर व पुलिस पहले से मौजूद थी, उस समय रात के 8:00 बज रहे थे। पुलिस व ठाकुर और राजभर बीच मार-पीट होने लगी कि पुलिस वाले ठाकुरो से पैसा लेकर कपसेठी थाना की पुलिस राजभर बस्ती के निर्दोश लोगों को लाठी और डण्डे से मारने लगे, जिससे राजभर लोग अपनी जान बचाकर भागने लगे इसी बीच कपसेठी थाना की पुलिस अपनी जीप चालू करके भागने की कोशिश कर रही थी। उसके जीप के सामने एक छोटा सा लड़का खड़ा था। जिसको बचाने के लिए एक औरत गाड़ी के सामने गयी, बच्चे को तो बचा ली लेकिन पुलिस बाले निर्देतापूर्वक अपनी जीप से उस वेवस लाचर महिला को कुचल डाला जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गयी। पूरे गाँव में पुलिस के व्यवहार से लोग घबड़ा गये। व् चलाकी किया और को फोन करके बताया की तुम्हारे इलाके में लड़ाई हो रही है आप जाकर वहा देख ले। क्योकि ने एसो को कोई बात नहीं बताया था। एसो के साथ एक पुलिस वाला कोयलार गाव गया वहा पुलिस के खिलाफ राजभरो के अन्दर काफी क्रोध भरा हुआ था। वहाँ एसो और पुलिस को देखकर गाँव वाले अपने आपको नहीं रोक पाये और लाश घटनास्थल पर रहने दिये। एसो और पुलिस को लाठी और डण्डो से सभी राजभर लोग मारने लगे। जिससे एसो और पुलिस को काफी चोटे आई। किसी प्रकार पुलिस वाले अपनी जान बचाकर वहा से भाग गये। तब बस्ती के लोग उस महिला को प्रज्ञा हास्पिटल हरहुआ वाराणसी लाये, जहा डाक्टर उन्हें बताये कि यह महिला मर चुकी है। लाश को लेकर घटना स्थल से तीन किलामीटर दूर कुरू चैराहा पर लेटा दिये। उस समय दिन के 8:00 बज रहे थे, लाश के साथ सैकड़ो लोग जो कोयलार गाँव के बच्चे और महिला सहित चक्का जाम कर दिये। वही घटना से थोड़ा दूर मेरा बीमार बेटा सुजीत खड़ा था। वहा पर पुलिस और अजय राय विधायक भी मौके पर मौजूद थे।
विधायक अजय राय के देख-रेख में व उनके कहने पर ही लोगो ने चक्का जान किया था। विधायक को देखने के लिए मेरा लड़का गया था वहा प्रशासन द्वारा पीड़िता के परिवार के लोगो को प्रशासन ने अस्वासन दिया कि आप लोग चक्का जाम को हटा लीजिए और मै आप को मुआवजा दिलवाने की पूरी कोशिश करूगा। आप को मुआवजा जरूर मिलेगा। वही विधायक अजय राय के द्वारा पीड़िता परिवार को (25,000/हजार )रुपये नकद दिया गया, लोग प्रशासन की बात मानकर चक्का जाम हटा लिये। मेरा लड़का विधायक को देखकर घर चला आया इसके बाद जब मेरा बेटा थोड़ा स्वस्थ्य हुआ, तो घटना के तीसरे दिन बाद मुम्बई चला गया सब चीज ठीक-ठाक चला रहा था। अचानक 28 मई, 2013 को हमारे घर दरोगा व एक सिपाही दिन के 12:00 बजे दोपहर में आये और बिना कुछ कहे और बिना कुछ पूछे मेरे घर के दिवाल पर नोटिस चिपकाये और दरोगा बोला कि 8-10 दिन के अन्दर अपने लड़के को हाजिर नहीं कराओगी तो हम तुम्हारे घर को गिरवा देगे। मै यह बात को सुनकर डर गयी और मेरा शरीर कापने लगा मेरे आँखो के सामने अंधेरा छा गया। मेरी पत्नी रोने लगी मेरे छोटे-छोटे बच्चें भी रोने एवं चिख-चिख कर चिल्लाने लगे ऐसा मेरे जीवन में कभी नहीं हुआ था मै सोच रहा था कि आखिर मेरा बेटा क्या किया है।
            जिससे पुलिस वाले हाजिर करने को कह रहे है मुझे विश्वास था कि मेरा बेटा कुछ नहीं किया है पुलिस वाले कोयलार के दंगों के मामले में हमारे गाँव में पुलिस के मुखबिर ने मेरे बेटे का नाम थाने में खिलवाया था, यह बात हम लोगो को नहीं पता था और ना ही मेरे बेटे को जानकारी थी ना ही कोयलार में मेरी कोई रिश्तेदारी है, और नाही किसी को हम जानते है हमारे बेटे को अनायास फर्जी केसो में फंसाया गया पुलिस के डर से अपने बेटे को मुम्बई से घर बुला लिया जब मेरा बेटा घर आया, तो हम लोग उसे देखकर रोने लगे, क्योकि वही हम सबके जीवन का सहारा था। मै रो-रोकर अपने बेटे को सारी बातो को बतायी और हम नहीं जानती थी कि मेरे बेटे के ऊपर ये बेहरम पुलिस ग्यारह धाराये लगा देगी। नहीं तो  मै अपने बेटे को कभी नहीं मुम्बई से बुलवाती और न तो मेरे बेटे के ऊपर मुकदमा अपराध संख्या 28/13 धारा 147,148,149,353,333,360,504,527,186,201,आई पी सी की धारा एक्ट के तहत इतनी धारायें मेरे निर्दोष बेटे के ऊपर लगाया जाता और न ही मेरे बेटे को चैकाघाट जेल में भेजा जाता।
मै क्या करती, मै प्रशासन के सामने हाथ-पाव जोड़ती रही लेकिन मेरी एक भी नहीं सुनीं गयी। जब हम अपने बेटे से मिलने चैकाघाट जेल गयी तो मैं वहा अपने बेटे को जेल में
बन्द देख कर विल्कुल बिहर सी गयी। जेल में मेरे बेटे की तबियत बहुत खराब थी मै उसकी दसा को देखकर अन्दर खुब घूट रही थी, जेल में मेरे बेटे को खाने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था, मै वहा अपने बच्चें को दवा दिया मैं आज डेढ़ साल से बीमार पड़ी हॅू, मेरे पास फुटी कौडी भी नहीं है कि मै अपने बेटे की जमानत मंजूर करा सकू आज भी घटना को याद करती हॅू तो गाँव के मुखवीर और पुलिस पर बहुत गुस्सा आता है। और रात में नीद नहीं आती खाना खाने का मन नहीं करता बच्चें की सूरत आँखो के सामने नाचती है। मन में चिन्ता हमेशा बनी रहती है सोचती हूँ कि कोई मेरे बेटे को छुड़ा दे मेरे परिवार के लोग व बहू बेटे के वियोग में पागल सी हो गयी, और मै चाहती हॅू कि मेरे बेटे के ऊपर लगाये गये फर्जी केसो को सी आई डी और, सी बी आई के द्वारा विवेचना कराकर केस को खत्म किया जाय और दोषी पुलिस व मुखवीर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाय। ताकि हम सबको न्याय मिल सके। और मेरा बेटा जेल से निकलकर अपने घर आ जाये।
आपको अपनी कहानी बताकर हल्का पन महसूस कर रही हूँ।
      
  साक्षात्कारकर्ता -  दिनेश कुमार अनल                                            
  संघर्षरत पीड़ित- विन्दे राजभर



दबंग ब्यक्ति द्वारा फर्जी केस में लगातार फंसाने का प्रयास करता रहा,

मैं अजहरूद्दीन अंसारी उम्र 42 वर्ष पिता स्व0 इब्राहीम ग्राम-मदनपुर, पोस्ट-बड़ागाँव, ब्लाक-बड़ागाँव, तहसील-पिण्डरा, जिला-वाराणसी का मूल निवासी हूँ। मेरे परिवार में कुल 7 सदस्य रहते है। सबसे बड़ा लड़का एजाज उम्र 23 वर्ष रियाज उम्र 20 वर्ष लड़की रिजवाना 17 वर्ष जो पढ़ाई कर रही है सदामा उम्र 15 वर्ष कक्षा 8 में पढ़ता है सबसे छोटी लड़की शबाना उम्र 9 वर्ष जो कक्षा 2 पढ़ती है।
            मै बुनकरी का काम करके किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किल से कर पाता हॅू। यह घटना हमारे गाँव के ही दबंग पुलिस के मुखबीर की है। नसरूद्दीन ने साहू की जमीन खरीद लिया था उसी चक में गाँव के चकरोड आने-जाने का रास्ता था। नसरूद्दीन जमीन खरीदने के बाद चक के चारो तरफ बाउन्डरी घेरवा रहा था, तब हम लोग बोले की नसरूद्दीन भाई ताजिया आने-जाने के लिए रास्ता दे दो तब वह बोला रास्ता नहीं दूगा, तब हम लोग बोले की नसरूद्दीन भाई ताजिया आने-जाने के लिए रास्ता दे दो तब वह बोला रास्ता नहीं दूगा उसकी चक में शंकर जी की मूर्ति थी नसरूद्दीन उसे भी तोड़वा दिया। जब हम लोग उसकी शिकायत थाना बड़ागाँव में करने गये तो बड़ागाँव थानाध्यक्ष तेज बहादूर सिंह ने कहा किसको रास्ता चाहिए, तब हम लोग बोले सबको। तब एस00 ने कहा कि चलो बैठो तब हमारे बस्ती के सात लोगो को थाने में बैठा लिया। ग्राम प्रधान चक का नकल लेकर थाने गये तब भी दरोगा नहीं माना क्यो कि नसरूद्दीन पुलिस का मुखबीर है।
वह एस00 से मिलकर मुकदमा कायम करवा दिया। हम लोग बराबर तहसील दिवस पर आवेदन देते रहे कि एक दिन एस0डी0एम मौके पर आये और आदेश किये कि बाउन्डरी में गेट नहीं लगेगा ताजिया व गाँव के आने-जाने के लिए यह ऐसे ही छुटा रहेगा। तब से नसरूद्दीन हम लोगो के ऊपर बराबर मुकदमा पुलिस द्वारा फर्जी केस में फंसाने का लगातार प्रयास करता है, क्योकि वह काफी पैसा वाला है उसके बड़ागाँव की पुलिस व दरोगा दरवार करने आते है। वह आये दिन तालाब से मछली निकलवाकर उसी के घर जाते है बड़ागाँव थाने के पुलिस हम लोगों की फरियाद को नहीं सुनती। नसरूद्दीन के कहने पर हम लोगों के ऊपर इसका काफी असर पड़ा है क्योकि मैं अकेले कमाने वाले था। इन दबंग द्वारा जो मेरे ऊपर फर्जी मुकदमा पर मुकदमा लगाया गया, उसी मुकदमे को देखने मै काफी परेशन रहता हूँ। जिससे मै लाचार व वेवस हॅू जब से मेरे ऊपर मुकदमा लगाया गया। तब से मेरा सुख चैन छिन लिया गया मुझे नींद नहीं आती काम करने का जी नहीं करता सर में बराबर दर्द रहता है, चिन्ता बराबर बनी रहती है कि कही नसरूद्दीन व पुलिस वाले फिर से मुझ फर्जी केस में फंसा दे। यही सोचकर मेरा मन बहुत घबरात है। मैं अपने बच्चों की पढ़ाई भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाता हूँ।
            आज भी घटना की याद करता हूँ तो ऐसी पुलिस व दबंग किस्म के व्यक्ति नसरूद्दीन के ऊपर गुस्सा आता है जो व्यक्ति मेरा सुख चैन छीना है वह कभी खुश नहीं रह सकता। मै लाचार व बेवस हॅू क्योकि मै उनकी बराबरी का नहीं हॅू|
अब मै चाहता हॅू कि मेरे ऊपर लगाये गये फर्जी केसो को खत्म किया जाय और फिर से पुलिस वाले हम लोगो को कभी परेशान न करे जो दोषी व्यक्ति है उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही किया जाय ताकि हम सब को न्याय मिल सके।
मै आपको अपनी कहानी बताकर बहुत हल्कापन महसूस कर रहा हॅू।
       
 साक्षात्कारकर्ता -दिनेश कुमार अनल प्रभाकर कुमार                          

 संघर्षरत पीड़ित-अजहरूद्दीन अंसारी

Tuesday, 9 June 2015

‘‘विश्वास दिला कर किया विश्वासघात’’

          मेरा नाम ममता कोल, उम्र-25 वर्ष है।  मैं गाहुर गाँव, जिला-चित्रकुट, थाना-बरगड़ की रहने वाली हूँ। मेरे पति का नाम शिवपदन, उम्र-28 वर्ष है। मेरी एक बेटी, उम्र-पाँच साल की है।
            घटना छः वर्ष पुरानी है। हमारे गाँव के एक लड़के ने हमें लालच देकर प्यार के चंगुल में फँसा कर मुझसे प्रेम किया और कहा कि मैं तुमसे शादी करूँगा। मेरे घर वह रोज आता था। जब मैं घर में अकेली रहती थी, वह मेरे पास बैठकर प्यार की बाते किया करता था। मैनें उस पर धीरे-धीरे विश्वास करना शुरू कर दिया। वह मिस्त्रीगिरी का काम करता था। जब शाम को घर आता था तो मुझे मिलने के लिए बैचेन रहता था। जब मैं उससे मिलती तो वह बार-बार यही कहता था, मैं तुझे सोना-चाँदी, कपडे़ सब कुछ दुँगा और तुझसे शादी भी करूँगा। फिर एक दिन वह मेरे घर आया घर में कोई नहीं था, माँ-बापू गिट्टी फोड़ने गये हुये थे। उसने मेरे साथ मेरे घर आ कर जबरजस्ती शारीरिक सम्बंध बनाया। उस दिन मैं रोती रही और वह मुझसे कहकर गया था कि तुम इस बात को किसी से मत बोलना, मैं तुमसे शादी करूँगा। मैं चूप रही मैनें किसी से नहीं बताया और जब मेरे पेट में उसका बच्चा आ गया, तो जब मैने उससे कहा कि मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ तो वह गाँव से कूछ दिनों के लिए बाहर भाग गया। उसके कुछ दिनों बाद मैंने माता-पिता को बताया। उस समय मैं बहुत रोई, मुझें बहुत बुरा लग रहा था। 
       गाँव वाले बुरी-बुरी बातें बोलने लगे। मैनें उस लड़के से कहा की अब तुम मुझसे शादी करो, नहीं तो गाँव वाले हम पर थुकेगें। तब शिववदन ने कहाँ, मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता, क्योकि जब मैने तुम्हारे साथ शारीरिक सम्बध बनाया, तुझे बराबर पैसा देता रहा और तुम इस बच्चे को मार डालों। उस समय मैं बहुत रो रही थी और परेशान थी कि क्या करूँ, क्या न करूँ। जिसने मेरे साथ प्यार का नाटक करके, मुझसे गलत सम्बंध बनाया और जब इसका बच्चा मेरे पेट में आया तब वह मुझसे शादी करने से मना कर रहा है।
            कुछ दिन बाद मेरे पिता ने उसके पिता से हाथ जोड़कर माफी मांगी कि आप के बेटे ने मेरी लड़की के साथ गलत किया है। गाँव वालों के सामने मेरी इज्जत दाव पर लगी है। लेकिन उसका पिता नहीं माना। फिर हमने बड़गड़ थाने जाकर रिर्पोट लिखाई और वहाँ दरोगा साहब तथा गाँव प्रधान ने मेरी गाँव वालों के सामने शादी करवाई। शादी के तीन माह बाद जब हमारी बेटी हुई, उसके तीन दिन बाद मेरी सास व ससुर तथा पति तीनों नें मिलकर हमको घर से बाहर निकाल दिया और रोड पर खचोर-खचोर कर हमें मारा। हमारे पुरे शरीर में दर्द और पीठ से खुन भी निकल रहा था।
            उस समय हमें ऐसा लग रहा था कि आत्महत्या कर ले, लेकिन किसी तरह मैं अपने आपको संभालती रही कि इंसान का जन्म एक बार मिलता है। मैं मर जाऊँगी तो मेरी बेटी को कौन संभालेगा। मैं अपने पिता के घर जाकर रहने लगी। वहा भी माँ-बाप की बुरी-बुरी बाते सुननी पड़ी। हम अपने ससुराल कुछ दिन बाद गये तो ससुर ने मुझे कुल्हाड़ी लेकर दौड़ाया और मुझे  फिर मारकर घर से बाहर निकाल दिया, हम रोते रहे, गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन उन्होने मेरी एक बात न मानी। हमे खाना भी नहीं देते थे, दो-दो दिनो तक भूखे रखा करते थे, कहते कुतईया को खाना न दो, अपने आप घर छोड़कर चल जायेगी। फिर भी हम उनके अत्याचार सहते रहे। मेरी बच्ची के खाने तक को भी कुछ नही देते। मैं उसे पत्थर तोड़कर मजदुरी करके खिलाती-पिलाती हूँ।
            आज से एक वर्ष पहले उसने अब दुसरी शादी भी कर ली। कभी-कभी मैं गाँव से बाहर जाती हूँ और वह मुझे मिल जाता तो मुझे बुरी-बुरी गाली देता है और कहता है कि तु क्या कर लेगी मैं दुसरी मेहर ले आया हूँ, तु इसी तरह गली-गली भटकेगी।
            हमने पत्रकारिता में अपनी मुकदमा दायर किया, हमारे पास मुकदमा लड़ने के लिए पैसे नही थे, फिर भी मैं मजदुरी करके उसके खिलाफ केस दायर किया कि वो मुझे और मेरी बच्ची को कम से कम खर्च तो देगा। मुकदमा अभी भी चल रहा है, हमेशा सोच-सोचकर परेशान रहती हूँ। सोचती हूँ मेरी जिन्दगी इस कमीने ने बर्बाद की है, साथ में मेरी बच्ची को भी भुगतना पढ़ रहा हैं। मैं इसको कैसे पालूँगी तथा कैसे इसके जीवन को सुख दूँगी। यह सोचकर मैं हमेशा परेशान रहती हूँ, सर में दर्द रहता है, शरीर बेचैन रहता हैं। कभी मैं जब काम करने जाती हूँ तो वहाँ बैठकर रोती रहती हूँ। वह जब कभी मुझे गाँव में मिल जाता है, तो मुझे लगने लगता है कि मैं इसे कैसे मारूँ।
            मेरे माँ-बाप भी मेरा सहयोग नहीं कर रहे है। यह सब बाते सोच-सोचकर हमेशा परेशान रहती हूँ। कभी-कभी नींद से भी जाग जाती हूँ। माँ-बाप भी टार्चर करते और कहते कि जैसा तुने किया है अब तूही भुगत। आपको अपनी दुःख भरी कहानी सुनाकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा हैं। मुझे आशा है कि उस दुष्ट से न्याय मिलेगा।

साक्षात्कारकर्ता -रीता चौरसिया

संघर्षरत पीड़िता-ममता कोल                         

”वह मेरी जमीन छीन लेना चाहता था, क्योंकि वह पैसे से ताकतवर है।“

                मेरा नाम मल्हुआ देवी, उम्र-39 वर्ष है। मैं अनुसूचित जाति की अत्यंत गरीब महिला हूँ। मैं अपने पति से अलग पिछले 18 वर्ष से अपने मायके ग्राम-देवल, पोस्ट-चैरा, थाना-पहाड़ी चित्रकुट (उ0 प्र0) में अपनी दो बेटियों और दामाद के साथ रहती हूँ। मैं गाँव में ही आँगनबाड़ी सहायिका का कार्य करती हूँ| आज से सात वर्ष पूर्व ग्रामप्रधान ने ग्रामसभा की सत्तरह बिस्वा  बंजर जमीन का पट्टा हमें किया।
            मैं जब खेत जुतवाने के लिए पहुँची तो गाँव के ही विजयपाल तिवारी और उनके बेटों (रविशंकर, करूणाशंकर, गौरीशंकर) ने ट्रैक्टर वाले को धमकाकर भगा दिया और मुझे गन्दी-गन्दी गालियाँ देते हुए कहा-इस जमीन पर हमारा कब्जा है और तेरी क्या मजाल कि तू ये जमीन लेगी।
            मैने उनसे हाथ जोड़कर कहा-अगर आप ये जमीन नही देना चाहते तो मुझे उतनी जमीन कही और दे देलेकिन उन्होंने मुझे गालियाँ देते हुए वहाँ से भगा दिया। बरसात के बाद मैनें बिना जुताई के खेत में धान के बीज डाल दिये। कुछ दिन बाद पौधे थोडे़ ऊपर आ गये। मैं  अपने खेत पर अपनी फसल देखने गयी थी। वह 23 सितम्बर का दिन था। मैं खेत पर पहुँची  तो विजय पाल वहा अपने जानवर चरा रहा था। यह देखकर तो मैं सन्न रह गयी, मैं दौड़कर उसके पास पहूँची और जानवारो को खेत से बाहर करने को कहा। उसने कहा-यहा तेरा क्या है मेरा खेत है, मैं कुछ भी करूऔर मुझे बहुत ही गन्दी गालियाँ (जो मैं बता नही पा रही हूँ) देते हुए कहने लगे कि आज तेरी कहानी यही खत्म कर देते है, मार कर ताल में गाड़ देगें, किसी को पता भी नही चलने वाला और सब मिलकर मुझे हाथ, लात और डण्डे से पीटने लगे। मुझे अकेली को लोग पीट रहे थे। मैं दर्द से चिल्लाने लगी, आस-पास खेतों में काम कर रहे लोग जुट गये लेकिन कोई भी मेरे पास छुड़ाने नहीं आया।
            मुझे ऐसा लगा कि आज तो ये सब मिलकर मुझे मार ही डालेगें, मेरी साड़ी खुल गयी, मेरा ब्लाउज कई जगह फट गया था। मैं रोते हुए उनसे छोड़ देने की गुहार लगा रही थी, लेकिन वे सब मुझे किसी भुले हुए जानवर की तरह पीट रहे थे। किसी ने जाकर ये सब मेरी बेटी को बताया तो वह और दामाद दोनो दौड़े आए और बीच-बचाव कर मुझे छुड़ाया।
            आज भी मुझे यह सोचकर बहुत दुःख होता है कि वह लोग मुझे बुरी तरह मार रहे थे और सब खड़े तमाशा देख रहे थे। किसी ने भी मुझे बचाने की कोशिश नही की, यह सब सोचकर गुस्सा भी आता है और चिढ़ भी होती है कि इंसान-इंसान में इतना फर्क क्यों करता है। उसके पास पैसा है तो वह कुछ भी कर लेगा।
            मेरी बेटी और दामाद मुझे किसी तरह ढाँक तोपकर मुझे घर लाए। मेरे सिर और शरीर में बहुत चोटें आयी थी। अगले दिन मैंने पहाड़ी थाना जाकर प्रार्थना पत्र दिया। दरोगा ने आने को कहा लेकिन मेरी डाक्टरी जाच नही करायी। दरोगा के कोई कार्यवाही न करने पर मैं फिर थाने पहूँची तो उसने भी पट्टा छोड़ देने की बात कही, मैं समझ गयी कि अब यहाँ कुछ नही होने वाला, उन लोगों ने इन्हें पैसा खिला दिया है।
            उसके बाद मैने वकील के द्वारा कर्वी कचहरी में विजयपाल और उसके लड़को के खिलाफ हरिजन उत्पीड़न के अन्तर्गत मुकदमा किया, जिसके बाद मुझे 6250/- रूपये मुआवजे की पहली किश्त मिली। एक वर्ष तक मुकदमा चला उसके बाद विजयपाल रिहा हो गया और उसके बेटे जमानत पर छूट गये। छुटने के बाद कचहरी में ही (18 मई, 2010) को मुझे धमकी दी, कि मुकदमा वापस ले लो नहीं तो तुम्हारा क्या होगा खुद ही समझ लो।मैं अपने लिये नही डरती हूँ लेकिन मेरी बेटियों को कही कुछ न हो जाय इसलिये मैं हमेशा डरी रहती हूँ। मैने थाने में प्रार्थना पत्र दिया था कि मुझे उन लोगों से जान का खतरा है, लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। दरोगा भी उन्हीं का साथ देता है, कहता है-कब्जा उनसे लेने की तुम्हारी औकात है।जब जमीन मुझे मिली तो मैने सोचा कि अब अपनी जमीन पर मेहनत कर खाने को तो उगा लेगें, लेकिन इन पापियों के कारण यह सोचना व्यर्थ ही रह गया ।
            पाँच माह पूर्व जमीन की डिग्री हो गयी है। अब भी वे लोग मुझे धमकाते रहते है। मुकदमे में मेरे काफी पैसे खर्च हो गये और मुझ पर काफी कर्ज हो गया है। अभी तक मुआवजे की आखिरी किश्त नही मिली है, मैं चाहती हूँ कि मुआवजा मिल जाय, जिससे मैं अपना कर्जा भर सकूँ।
            उस घटना के कारण मेरा अपने लोगों (गाँव वालो) पर विश्वास खत्म हो गया। मैं अपने आपको बहुत अपमानित महसूस करती थी, ऐसा लगता था कि क्या मुझ गरीब को समाज मे जीने का हक नही है। हांलाकि उन्हे सजा हो जाने और जमीन की डिग्री हो जाने के बाद काफी राहत है, लेकिन हमेशा यह डर लगा रहता है कि कही फिर से कुछ हो न जाय। मैं हमेशा सोते जागते वही सब बाते सोचती रहती हूँ, मुझे गुस्सा तो बहुत आता है खासकर तब, जब मैं उसे देखती हूँ। मैं यही प्रार्थना करती हूँ, ऐसा किसी और के साथ न हो। 
            किसी ने भी मेरा साथ नही दिया। केवल मेरा अपना विश्वास ही काम आया। आज मैं आपको सब कुछ बताकर थोड़ा अच्छा महसूस कर रही हूँ। मेरे मुआवजे की रकम मिल जाय तो मेरे लिए काफी अच्छा होगा।

साक्षात्कारकर्ता - कात्यायिनी सिंह राम नरेश
संघर्षरत पीड़िता- मल्हुआ देवी                     
                                   

‘‘मैं यह सोचकर अत्याचार सहती रही की पति है, लेकिन वो पति नही पापी है।’’

        मेरा नाम कुसुम देवी, उम्र-25 वर्ष है। मेरे पति का नाम साहब लाल है, जो गुजरात के आनंद शहर में प्रेस की दुकान किये है। मैं पढ़ी-लिखी नही हूँ। मेरे पास एक पाँच महिने का छोटा बच्चा है। मेरे पिता का नाम भाईलाल है, जो बहुत गरीब है। मैं एक वर्षो से अपने पिता के घर रह रही हूँ। मेरी शादी ग्राम-राजेपुर, पोस्ट-सिरकोनी, ब्लाक-रामपुर, तहसील-केराकत, थाना-जफराबाद, जिला-जौनपुर में हुयी है। इस समय मैं खररियाँ खास (साधोगंज) में रह रही हूँ।
            आज से चार वर्ष पूर्व अप्रैल के महिने में मेरी शादी राजेपुर के साहबलाल से हँसी-खुशी हुयी। उस समय मुझे देखने मेरी सास, जेठान मेरे घर आयी। बचपन में खाना बनाते समय मेरा बाया पैर बूरी तरह जल गया था, जिससे चलने में आज भी लड़खड़ाहट होती है। इस वजह से पिता जी ने पति भी एक आँख से विकलांग खोजे, ताकि शादी के बाद कोई कुछ कहे न। एक महिने बाद मेरा गौना हुआ। गौने में पिताजी अपने औकात भर टी0वी0, साईकिल, पंखा, अँगूठी और बर्तन आदि सामान दिये। उस समय पति गुजरात थे। ससुराल जाने पर दस-पन्द्रह दिन सब ठीक रहा, लेकिन उसके बाद सास और जेठान मुझे ताने मारने लगी, बोली इसका पिता कंगाल है, दहेज कुछ नही दिया, ऊपर से लंगडी घोड़ी गले बांध दिया। उनकी बाते सुनकर मैं बहुत दुःखी होती, मन ही मन गुस्साती और फिर रोती।
            एक दिन तो उन लोगों ने हद ही कर दी, बोली तुझे इसीलिये मेरा बेटा त्यागकर बाहर है, तू इसी तरह रहेगी तथा मुझे कुतियाँ, कमीनी और मेरे बाप को भद्दी-भद्दी गाली देने लगी। जब मैने उनसे कहा कि आप मुझे मारे, गाली दे, लेकिन मायके वालों को कुछ न कहे। इतने पर जेठान और सास बोली जुबान लड़ाती हो कहते हुए मुझे बाल उखाड़कर मारने लगी। मैं रोती रही मुझे किसी ने बचाया नही और उल्टा पति को फोन कर दी, बोली तुम्हारी पत्नी अपने मन की हो गयी है। उसके कुछ दिन बाद पति अपने किसी दोस्त को भेजकर अपने पास बुला लिये। वहाँ जाने पर अपने पति के साथ सुरक्षित हूँ, लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरी यहाँ भी दुर्गती होगी। वहाँ उनके मौसीया सांस की लड़की रीता मुझे देखने आयी और देखते ही बोली साहब लाल ये किस कुड़ेदान का कचरा उठा लाये हो, ये तुम्हारे किसी लायक से नही है। मैं जब उनकी बाते सुनी तो अन्दर जाकर अपने किस्मत पर रोने लगी। रीता आये दिन मेरे घर आती और मेरे पति को मेरे सामने चढ़ाती-बढ़ाती।
            कुछ दिन तक मैं उनकी बाते सहन कर लेती, लेकिन जब मेरे पति उनकी बाते सुनकर मुझे मारने लगे, गाली देने लगे तो एक दिन मैंने उनसे कहा कि आप मेरे पिछे क्यो पड़ी हो। मेरी जिन्दगी क्यो बर्बाद कर रही है। उनसे मैने सवाल-जवाब किया तो उनके पति मुझे जाति सूचक गालियाँ दिये, बोले-शाली कमीनी लंगड़ी मुझे रास्ता दिखाओगी कहते हुए भद्दी-भद्दी गालिया दिये। मैं उनकी बाते सुनकर सन्न हो गयी और अन्दर जाकर खूब रोई। उस समय लगा मेरी जिन्दगी बेकार है, जीने से क्या फायदा, लेकिन माँ-बाप का मुँह देखकर सोचती उनकी बदनामी होगी और पति के आने का इंतजार करने लगी।
            रात को जब पति आये तो उनसे मैने रो-रोकर अपनी कहानी बतायी तो वो बोले मैं जाकर पूछता हूँ और वह चले गये। जब एक घण्टे बाद पति आये तो बिना कुछ बोले मुझे बेल्ट से मारने लगे। मेरे ऊपर मिट्टी का तेल छिड़कर जलाने जा रहे थे। मैं वहाँ से चिखते हुए नही भागती तो आज मैं आपके सामने नही होती। मैं बाहर सोसाइटी में अपने आपको बचाने के लिए भागी। उस रात मैं रोती रही, किसी ने मेरी सहायता नही किया। उस समय मेरे पेट में बच्चा था। मुझे डर था कि कही उसे भी चोट न लग जाये। इसी प्रकार आये दिन मुझे मारते-पिटते रहते और मैं सोचती की वह मेरे पति है, पति परमेश्वर का रूप होते है, लेकिन क्या पता था पति नही वे पापी है।
            2010 में मेरे भाई की शादी पड़ी थी, मैं आना नही चाहती थी, लेकिन वे मुझे धोखे से मायके भेजवा दिये, बोले तुम चलो शादी बितने पर तुम्हे लेने आऊँगा, लेकिन अब तक उनकी कोई खबर नही मिली। मेरा बच्चा इतनी मुश्किल से हुआ, मेरी जान जाने से बची, लेकिन ससुराल वालों ने कोई खोज-खबर नही ली। अब पता चला है कि इसी 21 मई को पंचायत में वो बोले कि मैं इसे नही रखना चाहता हूँ, छोड़-छोड़ौती चाहते है। जब से मैने इनकी बाते सुनी है, मेरा जीना हराम हो गया है। रोज एक मौत मरती हूँ। मैं उसी घर जाना चाहती हूँ, क्योकि पति सिर्फ एक होते है, शादी एक बार होती है। उसी चिन्ता में मैं रात दिन सोती नही हूँ। किसी के पास नही जाती क्योंकि लोग पूछने लगते है। जिन्दगी बिरान हो गयी है। यदि वो मुझे नही अपनायेगे तो मैं दूसरी शादी नही करुँगी। उनकी यादों में ही जी लूँगी। मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ कि मुझे अपना ले। मेरी खुशियाँ मुझे वापस मिल जाये। आप लोगों से अपनी व्यथा बताकर मन का बहुत अच्छा लग रहा है। अब मुझे विश्वास है कि ,इंसाफ जरूर मिलेगा।
साक्षात्कारकर्ता- चन्द्रशेखर मीना कुमारी

संघर्षरत पीड़िता -कुसुम देवी