मेरा नाम बदामी देवी उम्र-35 वर्ष
है, मेरे
पति का नाम राम सुभावन है। मैं मुसहर जाति की महिला हूँ। मैं ग्राम-चपरा, थाना-महरुआ, तहसील-भीटी, जिला-अम्बेडकरनगर
की रहने वाली हूँ। मेरे तीन लड़के व तीन लड़कियाँ है। मेरे पति बस्ती जिले में एक ईट
भट्ठे पर कार्य करते है।
मेरी शादी 13 वर्ष
की आयु में ही हो गयी। शादी के बाद जब मैं अपने ससुराल पहूँची तो देखा कि दो छप्पर
नुमा मकान में सारा परिवार अपना जीवन बिता रहा था और मेरे ससुर गाँव के ही देवी
सिंह जो पूरे गाँव में अपने सरकशी और दबंगई के लिए मसहूर है। उनके यहाँ घरेलू नौकर
है, शादी के
दो दिन बाद ही गाँव के ठाकुर साहब घर आये और बोले कि अब तुम्हारी बहु आ गयी है और
वह अब हमारे यहाँ कार्य करेगी यह सुनकर मैं सन्न रह गयी। सारे सपने सारे अरमान सब
पर पानी फिर गया, ठाकुर साहब के जाने के बाद मैंने ससुर जी हिम्मत बांध कर
कहा बाबू जी मुझे आये दो दिन भी नही हुआ मेरे हाथों कि मेहदी भी नही छुटी मै
मजदूरी करने नही जाऊॅगी तो ससुर जी ने कहा कि बहू मैं मजबूर हूँ अगर काम
करने नही जाओगी तो ठाकुर साहब हम सब को मार पीट कर गाँव से निकाल देंगे फिर मजबूर
होकर मैं ठाकुर साहब के यहाँ काम करने गयी वहाँ मुझे घर की साफ-सफाई वर्तन दोना गोबर
फेकना चारा
काटना, पशुओं
की देख-भाल करना पड़ रहा है।
इसके बदले में ठाकुर साहब मुझे कोटे पर राशन लेने के लिए
पैसे देते थे, इस तरह घास फूस की बनी छप्पर में जीवन व्यतीत करते 20 वर्ष
बीत गये इसी बीच जब सुना कि मेरा इंदिरा आवास आया है तो मन में एक आस जगा कि चलो
अपना भी एक छत का आशीयाना होगा और आराम से रात गुजरेगी, बैक में
खाता खुला आवास का पहला किस्त आया तो ठाकुर साहब और प्रधान जी के साथ रकम निकालने
के लिए बैंक गयी जहाँ पैसा निकालते ही दोनों लोगों ने कहा पैसा पास बुक दोनों हमें
दे दो, ईट और सामान गिराना है। कुछ दिन बाद दो ट्राली ईट गिरा
लेकिन ठाकुर साहब आये और कहा यह जमीन हमारा है, यहाँ
मकान नही बनेगा। मैं बार-बार मिन्नत करती रही पैर पर गिर कर मैं और मेरे परिवार के
लोग गिड़ गिड़ाते रहे लेकिन ठाकुर साहब ने कहा ज्यादा बोलोगे तो गाँव से भगा दूँगा।
अब मेरी समझ में नही आ रहा था कि क्या करुँ आवास का पैसा भी वापस चला गया और छत का
सपना भी टूट कर विखर गया।
हम चाहते है कि उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो और हमें
न्याय मिले।
साक्षात्कारकर्ता -- मनोज कुमार सिंह
संघर्षरत पीडिता - बदामी
देवी
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