Wednesday, 29 April 2015

‘‘दबंग पुलिस द्वारा कानून का उल्लघन’’

         आज भी हमारे भारत की पुलिस कानून को खिलौना समझते हुए लाचार महिला के उपर यातना देना व भद्दी-भद्दी गाली देना व धक्का देकर गिरा देने का व परेषन करने को ठेका ले रखी है। आइये ऐसी ही घटना जो मुसहर महिला के उपर घटी है उनकी स्वव्यस्था कथा उनकी जुवानी सुने।
          मेरा नाम वदामा मुसहर उम्र 35 वर्ष मेरे पति का नाम प्रकाश मुसहर ग्राम-मंगारी टोला मुसहर बस्ती पो0 मंगारी, थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी की रहने वाली हूँ, मैं गरीब असहाय जाति की मुसहर महिला हूँ, मेरे पति टी0वी0 के मरीज है मैं बनी मजदूरी कर बड़ी मुश्किल से अपने पति का दवा व बच्चों का भरण-पोषण करती हूँ फिर भी मैं अपने परिवार के साथ खुशी का इजहार करती हूँ दिनांक 11/04/2013 की वह मनहूस व भयानक रात मैं कभी नहीं भूल सकती मैं और मेरे पति व बच्चें अपने घर पर सोये थे की 12 बजे रात एक जीप पुलिस हमारे बस्ती में आ गयी और चार पुलिस लाइट जलाते हुए हमारे घर के पास आ गये उनका शोर-गुल सुनकर हमारे पति उठकर बैठ गये और मुझे जगाये इतने में पुसिल वाले हम लोगों के चारपाई के चारो तरफ से घेर लिये पुलिस वालों को देखकर मै डरने लगी मन में शंका होने लगी कि हम लोग क्या गलती किये है कि पुलिस हमारे घर आ गयी इतने में एक पुलिस वाला गुस्से में मुझसे पूछा तुम्हारा पति कहाँ है जब मैं पूछी की मेरे पति को क्यों पूछ रहे है और उनकी क्या गलती है तब पुलिस वाला गाली देकर वोला साली जल्दी बताओं इतने में मै डर गयी और अपने पति के बारे में बताई दो पुलिस वाले तुरन्त उनके दोनो हाथ को पकड लिए और मैं हमारे बच्चे रोने लगे मैं बोली की साहब हमारे पति टी0वी0 के मरीज है वे घर से वाहर भी नहीं जाते उन्हें छोड दो लेकिन लोग जबरजस्ती मेरे पति को पकड़कर जीप के पास ले जाने लगे उस समय मेरे पति केवल गंजी व चढ्ढी पहने थे|
        मैं जब अपने पति को छुडाने की कोशिश की तो पुलिस वाले मुझे भद्दी-भद्दी गाली व धक्का देकर नीचे गिरा दिये। मैं पूछी मेरे पति को क्यो पकड़कर ले जा रहे है उनकी क्या गलती है लेकिन पुलिस वाले कुछ भी नहीं बताये, मैं बोली साबह हम प्रधान को बुलाती हूँ तब मेरे पति को ले जाना लेकिन मेरी एक भी न सुने और जीप मे बैठा लिए साथ में साधु मुसहर उनके पिता हुकुम मुसहर को भी पुलिस वाले जबरजस्ती गाड़ी में बैठाकर ले गये, जाते-जाते बताये कि हम लोग रोहनियाँ थाने से आये है रात काफी हो चुकी थी मैं बस्ती में जा-जाकर रोते हुए अपने पति के पास चलने के लिए कहती थी मन में घबराहट थी आँख से आँसू रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। यही चिन्ता बराबर खाये जा रही थी कि मेरे पति बिमार है पुलिस वाले उनको बहुत मारेगी डर व भय बराबर बना हुआ था मै व हमारे बच्चें सारी रात रोते-विलखते रहे बस्ती के कुछ लोगों के कहने पर मैं मानवाधिकार जन निगरानी समिति कार्यकर्ता को फोन की उनके कहने पर मैं अपनी बस्ती के चार महिला व तीन पुरुष के साथ कार्यालय गयी वहाँ लोगों द्वारा लिखा पढ़ी किया गया तथा टेलीफोन भी तत्काल हुआ कार्यालय से रोहानियाँ थाने पर फोन के द्वारा हमारे पति व हुकुम व साधु को छोड़ दिया गया जब लोग बताये की तुम्हारे पति को पुलिस वाले ने छोड़ दिया तब जाकर हमारे जीव में जी हुआ वहाँ से मै अपने घर चली आयी वहाँ अपने पति से मिलकर व उन्हें देखकर रोने लगी आज भी घटना को याद करती हूँ तो पुलिस वालों पर बहुत गुस्सा आता है अभी भी डर व भय बनी रहती है। रात में नींद नहीं आती चिंता के मारे भूख नहीं लगती कि न जाने कब पुलिस आ जायेगी अब मैं चाहती हूँ कि पुलिस वालो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही किया जाय तथा हमारे बस्ती में पुलिस फिर कभी ना आये।
आप को अपनी कहानी बताकर बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ।

साक्षात्कारकर्ता - दिनेश कुमार अनल 

संघर्षरत पीडिता - वदामा मुसहर                                         

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