आज
औरत ही समाज में औरत की दुश्मन बनते दिख रही है। कभी भी औरत को दुसरी औरत नही
भाती। खास उन रिश्तों में जब साँस-बहू, ननद-भाभी और अन्य पुरुष वर्ग इसी का फायदा
ज्यादा उठाते आये हैं। आइए देखते है अल्का देवी की कहानी उसी की जुबानी जो बता रही
है अपने सास व ननद का व्यवहार! जब उसके पति की मृत्यु हुई तो कैसे बदल गये।
मेरा
नाम अल्का देवी पत्नी-स्व0 महेश मेहता है। मैं
ग्राम व पोस्ट बेहराडीह, थाना-डोमचांच, जिला-कोडरमा- झारखण्ड ही मूल निवासी
हूँ।
आज से आठ साल पहले मेरा
विवाह हजारीबाग जिला के अंतर्गत स्व0 महेश मेहता,
पुत्र-कार्तिक
मेहता, निवासी-गाँव लक्षीबागी, प्रखण्ड-अटका, जिला-हजारीबाग में हुआ
था। जब मेरी शादी हो गयी और मैं अपने ससुराल आयी तो घर में हमें सब बडे़ लाड प्यार
से रखते थे। हमें किसी तरह का कोई तकलीफ नहीं था, सब कुछ ठीक चल रहा था।
हमारे पति अच्छा पैसा कमाते थे, पर नहीं जानते थे कि वह मनहुस दिन मेरे
लिए ही आया था। मेरे पति मोटरसाईकिल से किसी काम से कही जा रहे थे, मोटरसाईकिल पर दो लोग थे
जिसमे मेरे पति व मेरा भाई था। मेरा भाई मोटरसाईकिल चला रहा था। इसी बीच पीछे से आ
रहे एक ट्रक (बारहचक्का) ने उन्हे अपने चपेट में ले लिया और उसी वक्त मेरे पति की
मृत्यु हो गई, उस वक्त मैं गर्भ से थी।
जब हमे यह खबर मिली तो मैं बेहोश हो गई, हमें एैसा लग रहा था कि मेरे माथे के ऊपर
से आसमान हट गया और मै अकेली हो गई।
उसी
वक्त मेरी साँस हमें कोसने लगी कि मेरा बेटा को दोनो भाई और बहन ने मिल कर खा गई, मेरा बेटा को मार दी और
तरह-तरह से ताने मारने लगी, मानो गिरगिट की तरह रंग बदल दी थी। पति के
मृत्यु के बाद साँस का यह व्यवहार देखकर ये हम कभी नही सोचे थे कि मेरी सास व मेरे
घर वाले बदल जायेगें। जब तक मेरे पति का क्रिया-कर्म हुआ तब तक पुरा घर हमें ताना
दे-देकर अधमरा कर दिया था। मैं पुरी तरह टूट गई थी, हमें लग रहा था कि हम भी
जहर खा कर मर जायें पर पेट मे पल रहे बच्चें का ख्याल आता कि इस धरती पर जो आना
चाह रहा है उसका क्या होगा और चार साल की जो बेटी है वो कैसे रहेगी, यह सोचकर में कुछ नहीं की। पति के
क्रिया-कर्म के 40 दिन बाद हम अपने मायके
बेहराडीह चले आये और यही एक लडका हुआ। मेरी साँस हमे यह कह कर भगा दी कि मेरा एक
बेटा है वही सब सम्पत्ति पर राज करेगा। तुम बेटे को लेकर यहां की सम्पत्ति का
हिस्सा लेगी, सो तुम भागो यहां से, अब तुम्हारा यहां क्या
रहा। ससुर ने यह ईल्जाम लगाया कि घर से आठ लाख रुपया ले कर भाग गई। जब मेरा बेटा
हुआ तो वो बीमार रहने लगा। उसे निमोनियां हो गया था। उसके इलाज के बाद एक साल बाद
मैं फिर ससुराल गई तब जाकर पता चला कि मेरे पति का दो लाख रुपये का कमेटी था जो
ससुर ने उठा कर सारा पैसा खर्च कर दिये थे। मेरे वहां जाने के बाद मेरी साँस व ननद
हमे फिर प्रताड़ित करना शुरु कर दिये। वो हमें कहने लगी कि तुम जो कहती है वो हो
जाता है और हमें डायन, जिन्न इत्यादि कहकर लगातार प्रताड़ित किया
जाने लगा। इस प्रताड़ना से मैं तंग आ गई और फिर से मै अपने मायके चली आई और अब यही
रह रही हूँ।
मै
चाहती हूँ कि मेरा जो अधिकार है वह हमे मिले और मै अपने बच्चें के साथ वही रहूँ
तथा जो हमे प्रताडित किये है उन्हे सजा मिले। आपको यह सब बताकर लग रहा है कि हमें
न्याय जरूर मिलेगा और मेरे मन में न्याय मिलने की उम्मीद जागी है।
संघर्षरत पीड़िता - अल्का
देवी
साक्षात्कारकर्ता - ओंकार
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