आज भी हमारे भारत देश में इन्सानियत को तार-तार करते हुए जीवन भर के
बन्धन को तार-तार करते हुए असहाय लड़की को बार-बार प्रताडि़त करने व उसके ऊपर
ज्वलन पदार्थ फेकने का शौक रखते है। उनको मानो रिस्ते का व्यापार करने में व यातना
देने में सुख की अनुभव करते है। वे कानून को खिलौना समझते है।
आइये
ऐसी ही घटना पीडि़त की जुबानी सुने।
मेरा नाम अराधना उर्फ पूजा मुसहर उम्र 25 वर्ष मेरे पिता का नाम सन्त राम मुसहर मेरे परिवार में तीन भाई और
दो बहन है। जो ग्राम-चकन्दर पुर (बसनी दल्लूपुर), थाना-फूलपुर, ब्लाक-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी रहने वाली हूँ। मेरी शादी
दिनांक 6 जून, 2009
में विनोद मुसहर पुत्र वोघई ग्राम-आलम खातूनपुर, थाना-धीना, जिला-चन्दौली के साथ पुरे रीति-रिवाज के साथ की गयी थी जिसमें मेरे
पिता सन्तराम मुसहर द्वारा शादी में हण्डा, परात, साईकिल, घड़ी, रेडि़यों किसी प्रकार कर्ज लेकर दिये थे।
मेरे पति व मेरे बस्ती के लोग हमारे गाँव के दबंग व्यक्ति ठाकुर रणविजय सिंह के
राईस मिल पर व उसके खेत में काम करते है। जिनकी मजदूरी उन्हें महीने में 1000 रुपयें के दर से दिया जाता है।
मेरे ससुराल के सभी परिवार एक ही में रहते है। ससुराल में जाने के
बाद मैं दूसरे दिन सुबह उठी तो घर के लोग मजदूरी करने ठाकुर के खेत में चले गये,
मैं घर का काम करके खाना बनाने लगी जब शाम को सभी लोग घर आये तो मै उन्हे खाना
खाने के लिए बोली सभी मुझसे मूँह मोड़ते हुए कहाँ कि 12:00 बजे सोके उठी हो हम लोगो को काम पर नहीं जाना था। दुसरे दिन से मैं
भोर में तीन बजे उठ जाती थी और खाना बनाती फिर परिवार को खिला-पीलाकर उनके साथ काम
पर चली जाती थी। एक महीने तक इसी प्रकार घर व खेत में काम करती रही खाने को जो भी
रूखा-सुखा मिलता था मैं किसी से नहीं कहती कभी-कभी भूखो सो जाती थी। उस समय
माता-पिता की बहुत याद आती थी लगता था मै विल्कुल अकेली हूँ। इस दुनिया में मेरा
कोई नही है। ऊपर से मेरी सास लाच्छन लगाती थी कि तीन बच्चा गिराकर मेरे बेटे के
साथ आयी थी। उसका जीवन खराब करने उनकी बात सूनकर मेरा पूरा शरीर कापने लगा मै
फूट-फूट कर रोने लगी। फिर भी मैं कुछ नहीं बोलती पूरे गम को अपने आँचल में छिपाकर
कर रखती रही। जब मेरे माता-पिता गये तो लोग उनके साथ मेरी विदाई कर दिये मै अपने
पिता के साथ बसनी आ गयी मै अपने ऊपर आप बीती घटना को अपने माता-पिता से नहीं बताई
कि वे सुनेगे तो उन्हें तकलीफ होगी|
मेरे माता-पिता एक महीने बाद
मेरी विदाई कर दिये जब मै वहाँ गयी तो लोगों की वही रवैइया (व्यवहार) रहा वहाँ
मेरी सास, ससुर, ननद, सुभावती व मेरे पति विनोद मुसहर गाली देते थे कि तुम्हारे पिता शादी
में कुछ भी नहीं दिये यही ताना मारकर रोज मारते-पीटते गाली देते थे, मै सब कुछ वरदास करती रही बीच में मेरा बड़ा लड़का उस समय चार वर्ष
का था और छोटा बच्चा 18 माह का मैं कभी-कभी सोचती थी। कि कही
जाकर अपनी जान दे दूँगी लेकिन बच्चों का मुह देखकर दया आ जाती थी उनको ही अपना
जीवन का आधार मानकर जीती रही। ससुराल वालो के द्वारा जोर जुर्म को सहती रही अपने
माइके भी मै अपने दुःखो का वया नहीं करती थी कि लोग परेशान हो जायेगे। मेरे ऊपर जो
दु:ख पड़ता है। मै? खुद सह लूगी कभी-कभी रोते विलखते सुवह
हो जाता, बिना खाये पीये लेकिन बच्चों को देखकर
अपने आपको को मना लेती एक दिन मेरे पति के साथ मेरे परिवार वाले मानवता व इंसानियत
को ताख पर रखते हुए सुबह 6:00 बजे शुक्रवार
के दिन सभी लोग पकड़कर मारने लगे उस समय मै जोर-जोर से रो-रोकर चिल्ला रही थी कि
कोई छुड़ाने नहीं आया मेरा बच्चा मेरी गोद में था मै दर्द से विलखती व रोती रही।
इतने से भी लोगो का कलेजा नहीं भरा मेरे ऊपर गैलन में भरी तेजाब कमर के नीचे फेके
मै इतना दु:ख नहीं सह पा रही थी| तेजाब मेरे बच्चे के कमर पर भी पडा वह भी छटपटाने
लगा रोने-चिल्लाने लगा। मुझसे वर्दाश नहीं हो पा रहा था तो मै। दौड़ते भागते हुए
अपनी जान बचाने के लिए धीना थाने पर गयी मौके पर पुलिस आई तो ठाकुर के कहने व
वहकावे में आकर सुलह करते हुए सबको छोड दी।
मै तड़फ रही थी दर्द वरदास नहीं हो रहा था मुझे न मेरे बच्चे को कोई
दवा भी नहीं दिलाया। दुसरे दिन मेरे जेठ सन्तोष मुसहर मेरे पिता को मोबाइल से फोन
करके बताया कि आपकी लड़की हास्पिटल मे भर्ती है। उसका मुह देखना हो तो चले आइये
मरे माता-पिता मेरा सन्देश सुनकर रोते-विलखते मेरे ससुराल पहूचे वहा मेरी दशा
देखकर आवाक हो गये उनकी आँखो से आसू देखकर मै और जोर-जोर से रोने लगी मुझसे चला
नही जा रहा था। मेरे पिता किसी प्रकार से वहा से बसनी लाये पैसे के आभाव में दवा
भी नहीं हो पाया रहा था। मै चारपाई पर ही पड़ी रहती थी। उस समय केवल मृत्यु नहीं
हुई लेकिन सब दर्द का एहशास हो गया। इसी बीच मानवाधिकार कार्यकर्ता दिनेश कुमार
आये और हम लोगों को मानवधिकार जननिगरानी समिति दौलतपुर वाराणसी लाये वहा से संस्था
के द्वारा हमें व हमारे बच्चे को कबीर चैरा हास्पिटल में भर्ती कराया गया। मै हास्पिटल
में काफी दिन तक रही वहा दवा का सारा खर्च व देख-रेख मानवाधिकार कार्यालय के कार्यकर्ता द्वारा किया जा रहा था। उस समय मुझे
लगा कि आज की दुनिया में गरीवों की दुःखो को सुनने वाले कुछ लोग हे। उन लोगों को
देखकर मै बहुत रोती थी वे बार-बार मुझे समझाते थे। आज भी मै घटना के बारे में
सोचती हू। तो पूरे शरीर में आग सी लग जाती है। पुरे रोगटे खडे हो जाते है। मेरा
पुरा शरीर कापने लगता है। मन घवराने लगता है। रात में डरावना सपना दिखाई देता है।
रात में नींद नहीं आती सर दूखने लगता है। मै इस समय अपने पिता के पास बसनी रहती हूँ।
अब मै उस घर में कभी नही
जाऊॅगी अब मै चाहती हू कि एैसे पापी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो ताकि ऐसी हालत
किसी और के साथ न हो सके। आपको अपनी बातों को बताकर मन हल्कापन महसूस कर रही हूँ।
संघर्षरत
पीडि़ता- अराधना
साक्षात्कारकर्ता - छाया कुमारी
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