Friday 13 March 2015

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बसनी में ऐनम द्वारा छुटाछुत के कारण रेफर किया गया !

आज भी हमारे भारत देश में गरीब असहाय के साथ जातिगत भेद-भाव किया जाता है। यहाँ तक कि छुआछुत व भेद-भाव करते हुए गरीब मुसहर को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से दवा की सुविधा सुनिश्चित न कराकर उन्हें हास्पितल से बाहर किया जाता है। आइऐ ऐसी ही एक यातना पीड़ित की जुबानी सुने।
मेरा नाम शान्ति देवी उम्र-42 वर्ष मेरे पति का नाम भइया लाल है मैं ग्राम-निन्दनपुर, पोस्ट-खटौरा, थाना-फुलपुर, जिला-वाराणसी की रहने वाली हूँ। मेरे परिवार में चार लड़की, दो लड़के रहते है। मैं जाति की मुसहर महिला हूँ। मैं बनी मजदूरी करके तथा दोना पत्तल करके बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का खर्च चलाती हूँ, फिर भी सुख चैन से अपने परिवार के बीच रहती थी। मेरी बेटी सुदामा देवी अपने पति के साथ मेरे घर पर रहती है। उसके पेट में जब बच्चा था तो आँगनवाड़ी द्वारा पोषाहार मिलता था आशा द्वारा आयरन की गोली व टी0टी0 का सुई गाँव में लगाया गया था। उसकी स्थिति ठीक-ठाक थी|
 30 मई, 2014 का वह मनहूस दिन कभी नही भूल सकती कि मेरी बेटी के पेट में दर्द बहुत अधिक हो रहा था तो मैं गाँव की आशा प्रभावती को सूचना दिया सूचना पाकर आशा मेरे घर पर आई और अपने साथ टैम्पो से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बसनी ले गयी जिसका भाड़ा मैं 100 रुपये दी जब मैं अपनी बेटी को हास्पिटल लेकर गयी तो वहाँ की ऐनम से आशा व उसके पति बोले कि इसे भर्ती कर लिजिए लेकिन ऐनम बिना जाँच किये व बिना हुए मेरी बेटी को रेफर कर दी और बोली मुसहिन है और साफ-सफाई भी नही है, मैं इसका बच्चा यहाँ पैदा नही करुँगी वह झूठ बोलकर और छुआ-छुट की भावना रखते हुए हास्पिटल से बाहर निकाल दी दस समय हम लोग घबराने लगी कि अब हम अपनी बेटी को कहाँ लेकर जाये उस समय मेरे पास पैसे भी नही थे जबकि मेरी बेटी के बच्चे का उस समय हास्पिटल में सर बाहर निकल रहा था वह दर्द से कराह रही थी उसकी पीड़ा देखकर मैं रोने लगी और ऐनम से हाथ जोड़कर बोली बहन जी हम ऐसे हालात में अपनी बेटी को कहाँ लेकर जाऊगी |
अब आप ही मेरी बेटी का प्रसव करिये तब ऐनम डाट कर बोली कि कबीर चैरा लेकर जाओं उस समय मुझे ऐनम के व्यवहार पर बहुत गुस्सा आया लेकिन क्या करती मजबूर थी। मैं इधर बेटी की दशा देखकर अपने आपको नही रोक पाई मन घबरा रहा था कि मेरी बेटी को कही कुछ हो न जाये मैं कबीरचौरा भी नही देखी थी| मेरे पक्ष में आशा भी बहुत कही लेकिन ऐनम उसकी भी नही सुनी ऐसी गम्भीर हालात में मेरी बेटी को एम्बुलेंश से आशा के साथ कबीरचौरा भेजा गया था मैं घबरा रही थी कि मेरे पास पैसा भी नही है मैं क्या करुगी उस समय मेरे पति भइया लाल 4000/- रुपये 10 रुपये सैकड़े के हिसाब से सुती पैसा लेकर आये जब एम्बुलेंश में बैठाकर बाबतपुर के आगे पहूँचे तो मेरी बेटी का दर्द और बढ़ गया वह जोर-जोर से रो रही थी मैं भी उसकी दशा देखकर रो रही थी जब गाड़ी हरहुआ पहुँची तो एम्बुलेंश में ही मेरी बेटी को लड़का पैदा हो गया बसनी से हरहुआ पहूँचने में 20 मिनट का समय लगा था| उस समय हम लोग आनन-फानन में हरहुआ हास्पिटल में ले गयी वहाँ मेरी बेटी को भर्ती कर लिया गया और तीन दिन तक भर्ती किये थे वहाँ मेरा 4000/- रुपये खर्च हुआ था। जब एम्बुलेंश हरहुआ से मेरी बेटी को लेकर तीसरे दिन मेरे घर आया तो 50 रुपये लिया था। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बसनी की ऐनम मेरे साथ जातिगत व भेद-भाव आज भी है| हम गरीब मुसहर की सुनवाई सरकारी हास्पिटल में नही होती हम लोगों को धेय दृष्टि से देखा जाता है।
आज की घटना को याद करती हूँ तो मेरे आँख से आँसु आ जाता है। सर में दर्द होने लगता है। मन घबराने लगता है। रात में नीद भी नही आती, ऐनम पर बहुत गुस्सा आता है। अगर मैं उसकी बराबरी की होती तो उसे मुह तोड़ जबाब देती। लेकिन क्या करती मजबूर थी। 
अब मैं चाहती हूँ कि ऐसे ऐनम के खिलाफ कानुनी कार्यवाही किया जाय ताकि ऐसी घटना के दूसरो के साथ न हो सके और ऐसी निष्क्रीय ऐनम को हास्पिटल से बाहर निकाला जाये। अभी 1400/- रुपये का चेक भी नही मिला।
आपको अपनी कहानी बताकर बहुत हल्का पन महसूस कर रही हूँ।
संघर्षरत पीड़िता -  शान्ति देवी
साक्षात्कारकर्ता -  दिनेश कुमार अनल

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