Wednesday 28 October 2015

गुनाह किया कौन सज़ा भुगत रहा है कौन !

हमारे देश में हर गरीब और दलित का हर रोज बिना गुनाह किये भी उन्हे सजा दी जाती है उन्हे तरह-तरह से प्रताडि़त किया जाता है। उन्हें कमजोर समझकर उनसे बर्बरता का सुलक किया जाता है। ऐसी ही कहानी एक पीडि़ता की जुवानी सुने।
            मै श्यामकली हॅू, मेरी उम्र 40 वर्ष है। मेरे पति बसन्त लाल हैं हम लोग बनी मजदूरी करते है। मेरे पति की चौराहे पर छोटी सी चाय की दुकान है। मै ग्राम-मोहद्दीनपुर, थाना-घुरपुर, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना, जनपद-इलाहाबाद की मूल निवासी हूँ । यह बहुत अच्छा था। इस गाँव का मिसाल दिया जाता था। हम लोग कभी नहीं सोचे थे कि ऐसा कुछ होगा इस गाँव में जब यह घटना घटी तो हम लोगो को बहुत अफसोस हुआ किसने क्या किया किसकी क्या गलती थी इस बारे में मै नहीं जानती लेकिन अब जो हो रहा है वह गलत है हर लोग घर से भागे है सबकी रोजी-रोटी छिन गयी है। बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है गाँव में डर का माहौल में कौन अपने बच्चों को अकेला स्कूल भेजेगा। उस रात कि तरह कोई भी रात न आये हम लोग आस-पास के तीन चार लोग घर के बाहर सोये थे मेरी बेटी नन्दनी भी सोयी थी। रात के करीब बारह बज रहे थे। हम लोग नीद में नही थे। एैसी वारदात हो गयी थी कि चिन्ता लगी थी। तभी एक गाँव की औरत भागते चिल्लाते आयी बोली भागो नही तो मार डालेगे। उसकी आवाज सुनकर हम लोग घबरा कर जैसे गिरते पड़ते बेटियों को साथ लेकर भाग गये। उस समय यह समझ में नहीं आ रहा था कि कहा जा रहे है। चारो तरफ अधेरा था लाइट नहीं थी हम लोग न पीछे मुडे न उलटकर देखा भागते गाँव के आगे एक भट्टा था जो कई वर्षा से बन्द था। लोग कहते है वहा भूत है। हम लोग भागते-भागते वहाँ पहुंचे वहा गढ्डा था। हमलोग छिपकर जाकर बैठ गये हमारे साथ गाँव की और औरते भी थी। सभी वहा जाकर छिप गये वहा भी सुरक्षित नही थे रात का समय था जानवर भी काट सकते थे लेकिन पुलिस की मार के डर से बिना परवाह के हम लोग रात भर वही गुजारे जब सुबह हुआ तब वहा से हम लोग घर आये। वहा थे लेकिन चिन्ता थी कि पुलिस कही तलाशते हुए हम लोगों के पास आ जायेगी तो क्या होगा वह हमे जिन्दा नहीं छोड़गी जिस तरह से वह औरत चिल्लाते हुए आयी इतना डर था कि उस दहशत से अच्छा हम लोग यही रहे भले कुछ हो जाये उनकी मार से तो बच गये। आज जब गाँव की यह हालत देखकर सोचते हैं कि किस तरह से लोगो ने गाँव के औरतो को मारा गया है। वह बहुत ही दुख वाली बात है। गाँव की विमला जिसे इतना मारा गया कि वह डर से गाँव छोड़ कर भाग गयी है। जब हम लोग सुबह आये तो घर की हालत देखने लायक नहीं थी। उन लोगो ये सब बर्बाद कर दिया था। 6 चारपाई जिसकी हालत देखी नहीं जा रही थी। उसे देखकर यही लग रहा था कि अगर हम लोग होते तो हमे जान से हाथ धोना पढ़ता चार कुर्सी बैठने लायक नहीं रही। 6 गाय थी सब छोड़ दिया गया था जिसमें से दो बडी-बड़ी बछिया नहीं मिली हैं। सब कुछ तहस-नहस कर दिया उन लोगो ने इस घटना से पुरा गाँव बर्बाद हो गया है। मेरे पति की दुकान थी उस घटना के बाद से वह नहीं खुल रही है। जवान लड़का व भाग-भाग फिर रहा है। न खेती है न कोई और रोजगार हम लोगो का सामान भी नुकसान हुआ कमाने में भी बाधा आ गयी। उस रात के बाद से तो और डर लोगो के बीच हो गया। लोग भागे-भागे फिर रहे है। रात-दिन चिन्ता लगी रहती है। अपने आप को हम लोग असुरक्षित मान रहे है। अब भी कोई गाड़ी गाँव में आती है तो लोग किनारे हो जाते हैं सब अकेला महसूस कर रहे है। डर से कोई कही निकल नहीं रहा हैं न पहले की तरह लोग आपस में बैठ रहे है। सब दहशत में जी रहे है। हम लोग तो बर्बाद हो गये। कई साल पीछे चले गये बस यही चिन्ता है कि कब सब कुछ ठीक होगा। पहले की तरह हम लोगो की जिन्दगी में कब खुशी आयेगी।
            हम बस यही चाहते है कि हमारा परिवार फिर एक साथ हो हम लोग जिस तहर से जिन्दगी मेहनत मजदूरी कर जीवन काट रहे थे। उसी तरह वापस हो हम लोगो को सताया न जाये। पुलिस अभी गिरफ्तारी के लिये दबिश दे रही है। इससे और डर व दहशत से लोग भाग रहे है।
            हम चाहते है पुलिस वाले हमारे गाँव न आवे और न ही किसी प्रकार से और बेगुनाह को पकड़े। हम अपनी कहानी को बताकर हल्कापन महसूस कर रहा हूँ।

साक्षात्कारकर्ता - फरहद शबा खानम्                           
संघर्षरत पीडि़ता - श्यामकली

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