Tuesday, 11 November 2014

मैं अपने इज्जत का बदला जरुर लूंगी


अभी भी हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग है जो रिस्ते के नाम पर कलंक माने जा रहे है। ऐसे ही कुछ रिस्तों की कहानी इस बच्ची की जुबानी सुने।

मेरा नाम मोनिका उम्र-18 वर्ष है। मेरे पिता का नाम बुच्चुन है। मैं जाति की मुस्लिम हूँ। मेरे माता जी का नाम हदीसुन है। हम लोग चार भाई चार बहन है। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है। मैं ग्राम-नथईपुर, पोस्ट-कुआर बाजार, थाना-फुलपुर, जिला-वाराणसी की निवासी हुँ।

मेरे पिता जी शादी मे बैण्ड पार्टी का काम करते है। यह घटना 9 अप्रैल, 2014 की जब मैं बी00 प्रथम वर्ष की परीक्षा देकर घर लौट रही थी, तभी मेरे बड़े पिता जी का बेटा सद्दाम कालेज के पास देखने आया। परन्तु मुझे लड़कियों के समुह में देखकर चला गया। तब मैं इस बारे में कुछ समझ नही पायी पर जैसे ही मेरी सभी सहेलियां चली गयी और मैं पैदल अपने घर के तरफ जाने लगी तभी सद्दाम व उसका एक मित्र गोपी विश्वकर्मा के साथ काले रंग की बाइक से आया मेरा हाथ पकड़कर गाड़ी पर बैठाने लगा मैं घबरा गयी जब मैंने विरोध किया उसने सड़क पर में एक लात मारा और मेरा हाथ पकड़कर खीचा और मै तेज मैं चिल्लाती उतना तेज मुझे सब मारते और कहते थे कि आज चिड़िया जाल में फ़सी है। इसको छोडुगा नही। दोपहर का समय था रोड़ पर सन्नाटा छाया हुआ था। इसलिए वो सब मेरे साथ जितना मनमानी करते बना किये मेरा ड्रेस तक फाड़ दिये जब मैं कुछ बोलती तो सब मारने लगते थे। इतना ज्यादा सब मारे थे कि खुन निकलने लगा। मुँह, नाक से हाथ दोनों लाल हो गया। मेरे दोनों पैर पर भी मार का निशान पड़ गया। मैं जो कालेज का यूनिफार्म पहनी थी। वह फट गया दुपट्टा अस्त व्यस्त हो गया, कपडे़ पर खुन के निशान लग गये फिर भी वह मुझे घसीट ही रहे थे तथा मना करने पर मारने जा रहे थे। जब मुझे वह बिठा के बाइक पर ले जाने में असफल रहे तो वह मुझे उसी हालत में छोड़कर भाग गये तथा थोड़ी देर बाद कुछ लोग आये और मुझे घर पहुँचाया।

उन लोगों ने मुझे इतना मारा था कि मैं तीन दिन तक पं0 दीनदयाल चिकित्सालय में भर्ती थी। इसके बाद कुछ ठीक हुई तो मैं तुरन्त फुलपुर थाने में गयी और पुुरी घटना के बारे में जानकारी दी । लेकिन पुलिस ने मेरी बातों को अनसुना कर दिया और दोषियों पर कोई मुकदमा दर्ज नही किया। बल्कि मेरे ही बयान को उल्टा करके कुछ महत्वपूर्ण तथो को हटा दिया। पुलिस के इस रवैये से दोषियों का हौसला बुलन्द हो गया और वह मुझे लगातार धमकी दे रहे है कि इस बार तो केवल हाथ, पैर ही टुटे है। अगली बार लाश जायेगी। गोपी विश्वकर्मा एवं उसकी माँ शीला विश्वकर्मा राजनीतिक पार्टी सपा से अपने संबधों का हवाला देकर डराते है तथा पुलिस वालों भी इन लोगों के दबाव में कोई कार्यवाही नही कर रही है।

हम चाहते है कि जिस तरह मेरे इज्जत के साथ खिलवाड़ किये है। उसी तरह उन सबको भी सजा मिले। जब तक मैं उनको सजा नही दिलवा लेती मैं चुप बैठने वाली नही हूँ।

बाहर जब मैं निकलती हूँ तो बहुत शर्म लगता है, लोग देखकर काना-फुसी करने लगते है। मन करता है बस एक कमरे में छुपकर बैठी रही हुँ। किसी से बात चीत करने का मन नही करता पढ़ने में भी मन नही लगता जैसे सर पर बोझ सा रखा हुआ है। पता नही आगे की पढ़ाई कैसे होगी माता-पिता भी हदस गये बाहर निकलने नही देगे। आपको अपनी घटना बता कर बहुत हल्का पन महसुस कर रही हुँ। क्योंकि कोई भी मेरी बातों को इस तरह सुना ही नही लोग देखकर नजर फेर लेते है।

संघर्षरत पीड़िता % मोनिका       
साक्षात्कारकर्ता % छाया कुमारी


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