- आज भी हमारे देश की पुलिस कानून को
खिलौना समझते हुए गरीब असहाय रोगी मुसहर को फर्जी केस में पकड़कर जेल में बन्द करने
का ठेका ले रखी है आइये पिड़ित की स्वव्यथा कथा उनकी जुबानी सुने।
मेरा नाम प्रकाश मुसहर उम्र 38 वर्ष मेरे पिता का नाम स्व0 मूरत मुसहर है मेरे परिवार में मेरी पत्नी दो लड़का दो लड़की है। मै जाति का मुसहर हूँ और आज के 20 वर्ष पहले से टी0वी0 व दमा का रोगी हूँ मेरी पत्नी बनी मजदूरी कर किसी प्रकार मेरा दवा व बच्चों का भरण-पोषण बड़ी मुस्किल से कर पाती है। फिर भी हमलोग सुख-शान्ति तथा चैन से अपना जीवन यापन कर रहे थे।11.अप्रैल, .2013 की वह काली व मनहूस रात कभी नही भूल सकता रात के 12:00 बज रहे थे। कि हमारे बस्ती में एक जीप पुलिस आयी, और लाइट जलाते हुए हमारे घर के पास आया। उस समय हम और मेरी पत्नी व बच्चें एक जगह सोये थे। तब तक उनके शोर-गुल से मेरी नींद खुली। मैं उठकर बैठ गया और अपनी पत्नी को जगाया वह उठ कर बैठी तब मैंने कहा कि पुलिस आ रही है। मेरी पत्नी भी जागकर बैठ गयी, इतने में पुलिस वाले हमारी पत्नी के पास आकर खडे़ हो गये और गुस्से में वोले कि बताओ तुम्हारा पति कहा है। तब मेरी पत्नी वदामा पुलिस वालो से पूछी कि साहब क्या बात है क्यो मेरे पति को पूछ रहे है। तब पुलिस वाले गुंस्से में आकर मेरी पत्नी की चार पाई के चारो तरफ से घेर लिए और मुझको भद्दी-भद्दी गाली देकर जबरजस्ती बिना कुछ वताये पकड़कर जीप के पास ले जाने लगे उस समय मेरी पत्नी मेरा हाथ पकड़कर रोक रही थी। वह बार-बार पुलिस वालो से मुझे छोड़ने की बात कह रही थी लेकिन पुलिस वाले एक नही सुने उसे भी धक्का देकर जमीन पर गिरा दिये। मेरी पत्नी रोने लगी उसकी आख मे आसू देख मैं भी डरने लगा मुझे दो सिपाही पकड़े थे, और कह रहे थे तुम चिन्ता मत करो और डरो मत तुम्हें चैराहे पर ले चलकर छोड़ देगें। जबकि मेरी पत्नी बोली साहब इन्हें मत लेकर जाइये ये टी0वी0 व दमा के मरीज है। मैं अपने ग्राम प्रधान को बुलाती हॅू तब लेकर जाना। लेकिन जब पुलिस वाले मुझे लेकर जाने लगे तो उस समय मेरे शरीर पर केवल गंजी व चढ्ढी था। मेरी पत्नी वोली साहब कपडा पहन लेने दो, लेकिन पुलिस वालो ने उसे भद्दी-भद्दी गाली देकर भगा दिये। वह डर के मारे कुछ नहीं बोली और मुझे जबरजस्ती जीप में बैठा लिए और कुछ सिपाही हुकुम व उनके वेटे साधु मुसहर को भी पकडकर जबर जस्ती जीप में बैठा लिया और पुलिस वाले कुछ भी नहीं बताये कि हम लोगों को किस केस में पकडकर लेकर जा रहे है।उसी दिन हमारे गाव में गुलाब पटेल के साथ 4 लोग हमारे घर आये और वोडर मुसहर जो कि हमारे जीजा है। उनको पूछ रहे थे। तब मैं बोला वोडर यहा नहीं रहते है वो लोग फिर चले गये और उसी रात पुलिस वाले मुझे पकडकर लोहता थाने में ले गये। उस समय हमें बहुत डर लग रहा था, पूरा शरीर डर के मारे कापने लगा होठ सुख रहे थे। वहा दरोगा साहब बैठे थे। उनके पास पुलिस वाले ले गये और दरोगा जी पूछे तुम लोगो का क्या नाम है। कहा घर है हम लोग अपना-अपना नाम व पता बताय ेतब दरोगा पूछा कि तुम लोग वोडर को जानते हों हम लोग वोले साहब वोडर को नहीं जानते बल्कि राम प्रसाद को जानते है। तब दरोगा बोला सही-सही वताओ हम लोग बोले साहब हम सही वता रहे हैं। उधर डर भी लग रहा था, इतने में थाने के बड़े दरोगा आये और वोले तुम लोग सीधे-साधे आदमी को क्यों पकडकर लाये हो उसी बीच लाकप से एक आदमी को बाहर निकाल कर बोले कि इन तीनो में वोडर कौन है पहचान कर बताओं वह आदमी हम लोगो को देखकर वोला साहब इसमें वोडर कोई नहीं है, तब दरोगा साहब हम लोगो से पूछे कहा सोओ गे। तब हम वोले साहब हम लोग चोर डकैत नहीं है। कही भी सो लेगें तब दरोगा एक सिपाही से वोले इन लोगो को दफ्तर में सुला दो। हमें मुन्शी के पास सोने को कहे, हमारे पास कोई कपड़ा नही था। वहा केवल एक कम्बल विछाने के लिए दिया गया। रात में खाने के लिए कुछ भी नहीं दिये हम सारी रात बैठकर विताये मच्छर भी बहुत अधिक लग रहे थे। बच्चों व पत्नी की चिन्ता बराबर बनी हुई थी। भय से सारा शरीर काप रहा था। सोच रहे थे कि पुलिस वाले ने जाने हमारे साथ कौन सा व्यवहार करेगें यही सब चिन्ता बनी हुई थी।सुबह 10:00 बजे दिन में खाने के लिए दाल व 4 रोटी सब्जी दिये थे। हमारे घर वालो से ये भी नहीं बताये थे कि किस थाने लेकर जा रहे है। जब हम लोग खाना खा लिए तब दरोगा साहब एक सिपाही को बुलाकर बोले इन लोगो को बस में बैठाकर ले जाओ और इनके घर छोड़ दो। पुलिस वाला हम लोगो को बस में बैठाकर जंसा थाने लाया और वही उतार दिया और हम लोगो को आटो पर बैठा दिये हम लोग उसमें बैठकर रामेश्वर आये वहा से कड़ी धूप में नग्गे पाव गंजी व चढ्ढी पर पैदल अपने घर आये और हमें देखकर हमारे बच्चें बहुत खुश हुए यहा तक कि मेरा छोटा बच्चा मुझे पकडकर लटक गया मेरी पत्नी मुझे देखकर रो रही थी। आज भी घटना को याद करता हॅू। तो पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आता हैं अभी उनका डर व भय बना रहता हैं। रात में नींद नहीं आती चिन्ता बराबर बनी रहती है। भूख नहीं लगती अब मैं चाहता हॅू कि पुलिस वाले कभी हमारे घर पर न आये। हमे व हमारे परिवार को कभी न पकडे।आपको अपनी कहानी बताकर बहुत हल्का पन महसूस कर रहा हॅू।
साक्षात्काकर्ता: दिनेश कुमार अनल व प्रभाकर
For the abolition of torture stronger, better and organized Testimonial campaign contributions.
Tuesday, 15 April 2014
पुलिस वाले कानून को समझते है''कठपुतली''
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