Friday, 11 April 2014

एक दिन ऐसा तुफान आया की माँ के आँचल से बेटा छुटकर चला गया

आज भी इस समाज में औरत की स्थिति बदहाली में हैं। लोग औरतो की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका उपयोग करते है। जहाँ औरत को एक वस्तु के नजरिये से देखते हैं। ऐसे ही समाज की हैवानी दृष्टी की शिकार महिला जिसके बेटे को इंसाफ की बात करने पर गोलियों से छलनी कर दिया जाता है। आइये ऐसे ही एक माँ की पीड़ा की कहानी उसी की जुबानी सुनते हैं।

मेरा नाम पालो देवी, उम्र 37 वर्ष है। मेरे पति का नाम मिठाई लाल है। मैं जाति की मुसहर महिला हूँ। मेरे पास 2 बेटीयाँ और 4 बेटा है। मेरी बेटी का नाम लक्ष्मी, पूनम, और बेटो का नाम- गंगा, शिवशंकर, राजू, अनिल है। मैं ग्राम-लुत्तीपुर, पो0-केराकत, थाना-केराकत, जिला-जौनपुर, 0 प्र0. की निवासी हूँ। हम दोनों पति-पत्नी अलग-अलग जाति के हैं। मेरे पति जाति के यादव हैं। मेरे माता-पिता ग्राम-गुडा साई पो0-चुडुबिरा, जिला- सिमबम की रहने वाली है। मैं पेट के कारण भटकते- भटकते जिला- जौनपुर जिले में बैजू के भट्ठे पर आकर बस गयी। धीरे-धीरे समय गुजरता गया, मैं एक बच्ची से नवयुवती हो गयी। मुझे खुद ही पता नहीं चला। जिस भट्ठे पर हम काम कर रहे थे उसी भट्ठे पर मिठाई लाल भी काम कर रहे थे। दोनों लोग का एक दुसरे में मन बस गया और साथ में रहने के लिए शादी कर लिये। मेरे साथ शादी होने के कारण मेरे पति को समाज से कई तरह से प्रताड़ना झेलनी पड़ी। 

एक दिन ऐसा तुफान आया कि माँ के आँचल से बेटा छुटकर चला गया। आज से 7 साल पहले अनिल नाम का बेटा उस समय उसकी उम्र 14 साल की थी। जिस भट्ठे पर हम और मेरे पति काम करते थे। उस भट्ठा मालिक का नाम बैजू यादव था। जो केराकत जिला जौनपुर का रहने वाला है। भट्ठा मालिक के यहाँ काम करने के लिए अपने चचेरी मौसी जिसका नाम शान्ति है। उसको भट्ठा पर मेरे पति काम करने के लिए लगवा दिये। शान्ति काम करते-करते बैजू की रखैल बन गयी। मेरे पति एक बार बैजू को बोले कि किसी के माँ-बहन के इज्जत के साथ खिलवाड़ करते हो। ये बात सुनकर बैजू और शान्ति को बहुत बुरा लगा और उस समय दोनों मन बना लिये कि इसके बेटे को गोली से मार डालेंगे। तब हमारे रिश्ते पर अंगुली नहीं उठेगी। यही विवाद काफी समय से चलता रहा, एक दिन दुश्मनी का बदला लेने में उसने, मेरे बेटे अनिल को मौत के घाट उतार दिया। एक दिन शाम के समय दिन शनिवार को मेरा बेटा अनिल दुकान से लाई-चना लेकर माँ का आँचल थामने आ रहा था कि भट्ठा के मोड़ पर कोयला गिरा हुआ था, और बगल में ट्रक खड़ा था। उस ट्रक का आड़ पाकर बैजू यादव मेरे बेटे अनिल पर गोली चला दिया। मेरा बेटा वही पर गिरकर मर गया। बैजू यादव को जान ही लेना था, तो मेरा लेना चाहिए था। मासूम बेटे ने क्या बिगाड़ा था। मेरे बेटे को मारने के लिए तीन हथियार लेकर आये थे। गुड्डू राइफल लिया था, और गुलाब कट्टा, व बैजू गोली लिया था। जब गोली की आवाज आयी तब मेरे पति दौड़कर गये तो बैजू यादव सवदीपुर लाइन के किनारे भट्ठे पर भागकर चला गया। अपने पति के पीछे-पीछे दौड़ते हुये हम गये। जब हम अपने बेटे को खुन से लथपत देखे तो हम वहीं पर गिरकर बेहोश हो गये। तुरन्त बैजू आकर मेरे पति से पूछने लगा कि कौन गुण्डा मारा है। चलो गुण्डा को खोजे। मेरे पति बोले तुम्ही ने तो मेरे बेटे को मारा है, तुम पापी हा,े तुम्हे इस धरती पर तो क्या नर्क में भी जगह नहीं मिलेगा। पापी मेरे बेटे को आखिरी दम तक छुने नहीं दिया। हमको और मेरे पति को दूर ही बैठा दिया। हम लोग डर के मारे बैठे रह गये, पापी ने मेरे बेटे को कफन तक देने नहीं दिया। उस समय इतना गुस्सा आ रहा था कि बैजू का गला घोट दें। उसी तरह मेरे बेटे को गमच्छा में लपेटकर पर सेवा घाट पर ले जाकर गड्डा खोदकर मेरे बेटे को गाड़ दिया। हम और मेरे पति पापी से कहते रह गये कि कम से कम आखिरी समय मेरे बेटे को दिखा दो, लेकिन हम लोगों का उसने एक भी नहीं सुना। भट्ठा मालिक हमारे पूरे परिवार को बहाने से बुलाकर एक कमरे में 25 दिनों तक बन्द करके रखा। उस समय ऐसा महसुस हो रहा था कि एक कुत्ता ठीक लेकिन हम लोग की जिन्दगी ठीक नहीं है। 25 दिन बाद अपने मार्सल में बैठाकर मेरे पूरे परिवार को बनारस स्टेशन लाया, और राँची के लिए हम लोगों को बस में बैठा दिया। जब तक राँची के लिए बस चल नहीं दी, तब तक खड़ा होकर वह देख रहा था कहीं हम सब बस से उतर न जाय। राची से हम अपने मायके चक्रधरपुर चले गये। माँ को देखते हीं लिपट कर हम रोने लगे। माँ बिल्कुल घबरा गयी, बेटे की इतनी याद आती थी कि हम दिन रात रोते रहते थे। माँ के पास हम लोग एक महिना थे, कहीं पर कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। एक महिना माँ के पास रहकर फिर हम जौनपुर लौटकर आये। बेटे की इतनी याद आती थी कि सोते-जागते ही सोचते रहते थे। जब हम चन्द्रमणि सिंह के भठ्ठे पर गये तो बैजू यादव हम सबको धमकी देने लगा। हम भी सोचकर राँची से जौनपुर आये थे,  कि जब मेरा बेटा चला गया, तो मेरा भी मृत्यु बैजू की गोली से लिखा होगा, तो क्या हर्ज है। जब से बेटा मरा है, जीने की इच्छा नहीं होती। मेरा पूरा परिवार रोता रहता है। दिन रात में बेटे का फोटो देखकर हम सभी रोते रहते हैं। 7 साल में ऐसा कोई नहीं मिला जो मेरा दुख सुन सके। आपको अपनी घटना बताकर मन में बहुत हल्कापन महसुस हो रहा है। लेकिन अन्दर से पापी का डर भाग नहीं रहा है। मेरा पूरा परिवार उस पापी से हदस चुका हैं। उस पापी को उसके किये हुये अत्याचारों की सजा मिलनी चाहिए। ये एक माँ की ममता की आवाज है।


संघर्षरत पीड़िता : पालो देवी
साक्षात्कारकर्ता : छाया कुमारी                                           


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