Tuesday, 15 April 2014

पुलिस वाले कानून को समझते है''कठपुतली''

  • आज भी हमारे देश की पुलिस कानून को खिलौना समझते हुए गरीब असहाय रोगी मुसहर को फर्जी केस में पकड़कर जेल में बन्द करने का ठेका ले रखी है आइये पिड़ित की स्वव्यथा कथा उनकी जुबानी सुने।
    मेरा नाम प्रकाश मुसहर उम्र 38 वर्ष मेरे पिता का नाम स्व0 मूरत मुसहर है मेरे परिवार में मेरी पत्नी दो लड़का दो लड़की है। मै जाति का मुसहर हूँ और आज के 20 वर्ष पहले से टी0वी0 व दमा का रोगी हूँ मेरी पत्नी बनी मजदूरी कर किसी प्रकार मेरा दवा व बच्चों का भरण-पोषण बड़ी मुस्किल से कर पाती है। फिर भी हमलोग सुख-शान्ति तथा चैन से अपना जीवन यापन कर रहे थे।
    11.अप्रैल, .2013 की वह काली व मनहूस रात कभी नही भूल सकता रात के 12:00 बज रहे थे। कि हमारे बस्ती में एक जीप पुलिस आयी, और लाइट जलाते हुए हमारे घर के पास आया। उस समय हम और मेरी पत्नी व बच्चें एक जगह सोये थे। तब तक उनके शोर-गुल से मेरी नींद खुली। मैं उठकर बैठ गया और अपनी पत्नी को जगाया वह उठ कर बैठी तब मैंने कहा कि पुलिस आ रही है। मेरी पत्नी भी जागकर बैठ गयी, इतने में पुलिस वाले हमारी पत्नी के पास आकर खडे़ हो गये और गुस्से में वोले कि बताओ तुम्हारा पति कहा है। तब मेरी पत्नी वदामा पुलिस वालो से पूछी कि साहब क्या बात है क्यो मेरे पति को पूछ रहे है। तब पुलिस वाले गुंस्से में आकर मेरी पत्नी की चार पाई के चारो तरफ से घेर लिए और मुझको भद्दी-भद्दी गाली देकर जबरजस्ती बिना कुछ वताये पकड़कर जीप के पास ले जाने लगे उस समय मेरी पत्नी मेरा हाथ पकड़कर रोक रही थी। वह बार-बार पुलिस वालो से मुझे छोड़ने की बात कह रही थी लेकिन पुलिस वाले एक नही सुने उसे भी धक्का देकर जमीन पर गिरा दिये। मेरी पत्नी रोने लगी उसकी आख मे आसू देख मैं भी डरने लगा मुझे दो सिपाही पकड़े थे, और कह रहे थे तुम चिन्ता मत करो और डरो मत तुम्हें चैराहे पर ले चलकर छोड़ देगें। जबकि मेरी पत्नी बोली साहब इन्हें मत लेकर जाइये ये टी0वी0 व दमा के मरीज है। मैं अपने ग्राम प्रधान को बुलाती हॅू तब लेकर जाना। लेकिन जब पुलिस वाले मुझे लेकर जाने लगे तो उस समय मेरे शरीर पर केवल गंजी व चढ्ढी था। मेरी पत्नी वोली साहब कपडा पहन लेने दो, लेकिन पुलिस वालो ने उसे भद्दी-भद्दी गाली देकर भगा दिये। वह डर के मारे कुछ नहीं बोली और मुझे जबरजस्ती जीप में बैठा लिए और कुछ सिपाही हुकुम व उनके वेटे साधु मुसहर को भी पकडकर जबर जस्ती जीप में बैठा लिया और पुलिस वाले कुछ भी नहीं बताये कि हम लोगों को किस केस में पकडकर लेकर जा रहे है। 
    उसी दिन हमारे गाव में गुलाब पटेल के साथ 4 लोग हमारे घर आये और वोडर मुसहर जो कि हमारे जीजा है। उनको पूछ रहे थे। तब मैं बोला वोडर यहा नहीं रहते है वो लोग फिर चले गये और उसी रात पुलिस वाले मुझे पकडकर लोहता थाने में ले गये। उस समय हमें बहुत डर लग रहा था, पूरा शरीर डर के मारे कापने लगा होठ सुख रहे थे। वहा दरोगा साहब बैठे थे। उनके पास पुलिस वाले ले गये और दरोगा जी पूछे तुम लोगो का क्या नाम है। कहा घर है हम लोग अपना-अपना नाम व पता बताय ेतब दरोगा पूछा कि तुम लोग वोडर को जानते हों हम लोग वोले साहब वोडर को नहीं जानते बल्कि राम प्रसाद को जानते है। तब दरोगा बोला सही-सही वताओ हम लोग बोले साहब हम सही वता रहे हैं। उधर डर भी लग रहा था, इतने में थाने के बड़े दरोगा आये और वोले तुम लोग सीधे-साधे आदमी को क्यों पकडकर लाये हो उसी बीच लाकप से एक आदमी को बाहर निकाल कर बोले कि इन तीनो में वोडर कौन है पहचान कर बताओं वह आदमी हम लोगो को देखकर वोला साहब इसमें वोडर कोई नहीं है, तब दरोगा साहब हम लोगो से पूछे कहा सोओ गे। तब हम वोले साहब हम लोग चोर डकैत नहीं है। कही भी सो लेगें तब दरोगा एक सिपाही से वोले इन लोगो को दफ्तर में सुला दो। हमें मुन्शी के पास सोने को कहे, हमारे पास कोई कपड़ा नही था। वहा केवल एक कम्बल विछाने के लिए दिया गया। रात में खाने के लिए कुछ भी नहीं दिये हम सारी रात बैठकर विताये मच्छर भी बहुत अधिक लग रहे थे। बच्चों व पत्नी की चिन्ता बराबर बनी हुई थी। भय से सारा शरीर काप रहा था। सोच रहे थे कि पुलिस वाले ने जाने हमारे साथ कौन सा व्यवहार करेगें यही सब चिन्ता बनी हुई थी।
    सुबह 10:00 बजे दिन में खाने के लिए दाल व 4 रोटी सब्जी दिये थे। हमारे घर वालो से ये भी नहीं बताये थे कि किस थाने लेकर जा रहे है। जब हम लोग खाना खा लिए तब दरोगा साहब एक सिपाही को बुलाकर बोले इन लोगो को बस में बैठाकर ले जाओ और इनके घर छोड़ दो। पुलिस वाला हम लोगो को बस में बैठाकर जंसा थाने लाया और वही उतार दिया और हम लोगो को आटो पर बैठा दिये हम लोग उसमें बैठकर रामेश्वर आये वहा से कड़ी धूप में नग्गे पाव गंजी व चढ्ढी पर पैदल अपने घर आये और हमें देखकर हमारे बच्चें बहुत खुश हुए यहा तक कि मेरा छोटा बच्चा मुझे पकडकर लटक गया मेरी पत्नी मुझे देखकर रो रही थी। आज भी घटना को याद करता हॅू। तो पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आता हैं अभी उनका डर व भय बना रहता हैं। रात में नींद नहीं आती चिन्ता बराबर बनी रहती है। भूख नहीं लगती अब मैं चाहता हॅू कि पुलिस वाले कभी हमारे घर पर न आये। हमे व हमारे परिवार को कभी न पकडे।
     आपको अपनी कहानी बताकर बहुत हल्का पन महसूस कर रहा हॅू। 

    सघर्षरत पीड़ित: प्रकाश मुसहर
    साक्षात्काकर्ता: दिनेश कुमार अनल व प्रभाकर


Friday, 11 April 2014

एक दिन ऐसा तुफान आया की माँ के आँचल से बेटा छुटकर चला गया

आज भी इस समाज में औरत की स्थिति बदहाली में हैं। लोग औरतो की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका उपयोग करते है। जहाँ औरत को एक वस्तु के नजरिये से देखते हैं। ऐसे ही समाज की हैवानी दृष्टी की शिकार महिला जिसके बेटे को इंसाफ की बात करने पर गोलियों से छलनी कर दिया जाता है। आइये ऐसे ही एक माँ की पीड़ा की कहानी उसी की जुबानी सुनते हैं।

मेरा नाम पालो देवी, उम्र 37 वर्ष है। मेरे पति का नाम मिठाई लाल है। मैं जाति की मुसहर महिला हूँ। मेरे पास 2 बेटीयाँ और 4 बेटा है। मेरी बेटी का नाम लक्ष्मी, पूनम, और बेटो का नाम- गंगा, शिवशंकर, राजू, अनिल है। मैं ग्राम-लुत्तीपुर, पो0-केराकत, थाना-केराकत, जिला-जौनपुर, 0 प्र0. की निवासी हूँ। हम दोनों पति-पत्नी अलग-अलग जाति के हैं। मेरे पति जाति के यादव हैं। मेरे माता-पिता ग्राम-गुडा साई पो0-चुडुबिरा, जिला- सिमबम की रहने वाली है। मैं पेट के कारण भटकते- भटकते जिला- जौनपुर जिले में बैजू के भट्ठे पर आकर बस गयी। धीरे-धीरे समय गुजरता गया, मैं एक बच्ची से नवयुवती हो गयी। मुझे खुद ही पता नहीं चला। जिस भट्ठे पर हम काम कर रहे थे उसी भट्ठे पर मिठाई लाल भी काम कर रहे थे। दोनों लोग का एक दुसरे में मन बस गया और साथ में रहने के लिए शादी कर लिये। मेरे साथ शादी होने के कारण मेरे पति को समाज से कई तरह से प्रताड़ना झेलनी पड़ी। 

एक दिन ऐसा तुफान आया कि माँ के आँचल से बेटा छुटकर चला गया। आज से 7 साल पहले अनिल नाम का बेटा उस समय उसकी उम्र 14 साल की थी। जिस भट्ठे पर हम और मेरे पति काम करते थे। उस भट्ठा मालिक का नाम बैजू यादव था। जो केराकत जिला जौनपुर का रहने वाला है। भट्ठा मालिक के यहाँ काम करने के लिए अपने चचेरी मौसी जिसका नाम शान्ति है। उसको भट्ठा पर मेरे पति काम करने के लिए लगवा दिये। शान्ति काम करते-करते बैजू की रखैल बन गयी। मेरे पति एक बार बैजू को बोले कि किसी के माँ-बहन के इज्जत के साथ खिलवाड़ करते हो। ये बात सुनकर बैजू और शान्ति को बहुत बुरा लगा और उस समय दोनों मन बना लिये कि इसके बेटे को गोली से मार डालेंगे। तब हमारे रिश्ते पर अंगुली नहीं उठेगी। यही विवाद काफी समय से चलता रहा, एक दिन दुश्मनी का बदला लेने में उसने, मेरे बेटे अनिल को मौत के घाट उतार दिया। एक दिन शाम के समय दिन शनिवार को मेरा बेटा अनिल दुकान से लाई-चना लेकर माँ का आँचल थामने आ रहा था कि भट्ठा के मोड़ पर कोयला गिरा हुआ था, और बगल में ट्रक खड़ा था। उस ट्रक का आड़ पाकर बैजू यादव मेरे बेटे अनिल पर गोली चला दिया। मेरा बेटा वही पर गिरकर मर गया। बैजू यादव को जान ही लेना था, तो मेरा लेना चाहिए था। मासूम बेटे ने क्या बिगाड़ा था। मेरे बेटे को मारने के लिए तीन हथियार लेकर आये थे। गुड्डू राइफल लिया था, और गुलाब कट्टा, व बैजू गोली लिया था। जब गोली की आवाज आयी तब मेरे पति दौड़कर गये तो बैजू यादव सवदीपुर लाइन के किनारे भट्ठे पर भागकर चला गया। अपने पति के पीछे-पीछे दौड़ते हुये हम गये। जब हम अपने बेटे को खुन से लथपत देखे तो हम वहीं पर गिरकर बेहोश हो गये। तुरन्त बैजू आकर मेरे पति से पूछने लगा कि कौन गुण्डा मारा है। चलो गुण्डा को खोजे। मेरे पति बोले तुम्ही ने तो मेरे बेटे को मारा है, तुम पापी हा,े तुम्हे इस धरती पर तो क्या नर्क में भी जगह नहीं मिलेगा। पापी मेरे बेटे को आखिरी दम तक छुने नहीं दिया। हमको और मेरे पति को दूर ही बैठा दिया। हम लोग डर के मारे बैठे रह गये, पापी ने मेरे बेटे को कफन तक देने नहीं दिया। उस समय इतना गुस्सा आ रहा था कि बैजू का गला घोट दें। उसी तरह मेरे बेटे को गमच्छा में लपेटकर पर सेवा घाट पर ले जाकर गड्डा खोदकर मेरे बेटे को गाड़ दिया। हम और मेरे पति पापी से कहते रह गये कि कम से कम आखिरी समय मेरे बेटे को दिखा दो, लेकिन हम लोगों का उसने एक भी नहीं सुना। भट्ठा मालिक हमारे पूरे परिवार को बहाने से बुलाकर एक कमरे में 25 दिनों तक बन्द करके रखा। उस समय ऐसा महसुस हो रहा था कि एक कुत्ता ठीक लेकिन हम लोग की जिन्दगी ठीक नहीं है। 25 दिन बाद अपने मार्सल में बैठाकर मेरे पूरे परिवार को बनारस स्टेशन लाया, और राँची के लिए हम लोगों को बस में बैठा दिया। जब तक राँची के लिए बस चल नहीं दी, तब तक खड़ा होकर वह देख रहा था कहीं हम सब बस से उतर न जाय। राची से हम अपने मायके चक्रधरपुर चले गये। माँ को देखते हीं लिपट कर हम रोने लगे। माँ बिल्कुल घबरा गयी, बेटे की इतनी याद आती थी कि हम दिन रात रोते रहते थे। माँ के पास हम लोग एक महिना थे, कहीं पर कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। एक महिना माँ के पास रहकर फिर हम जौनपुर लौटकर आये। बेटे की इतनी याद आती थी कि सोते-जागते ही सोचते रहते थे। जब हम चन्द्रमणि सिंह के भठ्ठे पर गये तो बैजू यादव हम सबको धमकी देने लगा। हम भी सोचकर राँची से जौनपुर आये थे,  कि जब मेरा बेटा चला गया, तो मेरा भी मृत्यु बैजू की गोली से लिखा होगा, तो क्या हर्ज है। जब से बेटा मरा है, जीने की इच्छा नहीं होती। मेरा पूरा परिवार रोता रहता है। दिन रात में बेटे का फोटो देखकर हम सभी रोते रहते हैं। 7 साल में ऐसा कोई नहीं मिला जो मेरा दुख सुन सके। आपको अपनी घटना बताकर मन में बहुत हल्कापन महसुस हो रहा है। लेकिन अन्दर से पापी का डर भाग नहीं रहा है। मेरा पूरा परिवार उस पापी से हदस चुका हैं। उस पापी को उसके किये हुये अत्याचारों की सजा मिलनी चाहिए। ये एक माँ की ममता की आवाज है।


संघर्षरत पीड़िता : पालो देवी
साक्षात्कारकर्ता : छाया कुमारी                                           


Thursday, 10 April 2014

पुलिस वालो ने कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया

अभी भी हमारा समाज और कानून इतना अन्धा हो चुका है कि गलत करने वाले खुलेआम घुमते है, और जो हमारे देष के लिये कुछ करना चाहते है उनको फर्जी केस में फॅसाकर सलाखों के पीछे फेक दिया जाता है। आइये पढ़ते है उनकी जुबान से उन्हीं की कहानी।

मेरा नाम आनन्द कुमार यादव पुत्र श्री राम लाल यादव ग्राम व पोस्ट-पिण्डरा, थाना-फुलपुर, जिला-वाराणसी का निवासी हॅू।

घटना 11 मई 2013 को जब मै सुबह नहाकर बाजार जाने के लिये तैयार हो रहा था, कि अचानक दिन में करीब 11:00 बजे चार पहिया सफेद रंग की प्राईवेट गाड़़ी में 6 पुलिस वाले हमारे घर पर आये। जिसमे दो पुलिस अपने वर्दी में बिना नेम प्लेट के थे और चार लोग सादे डेªस में थे और आते ही मेरी माता जी सुशीला देवी से पुछे कि आनन्द कहा है। माता जी बोली क्या बात है। तब उन लोगों कि बात सुनकर मै घबड़ाकर बाहर निकला। जब मै पुलिस को देखा तो घबड़ा गया। माता जी बोली कि यही आनन्द है। पुलिस वालां से माता जी बोली क्या बात है। इतने में पुलिस हमको पकड़ ली और भद्दी-भद्दी जाति सूचक गाली देने लगे। मेरी माता जी हमको पकड़ने के लिए आगे आयी तो पुलिस वाले मेरी माता जी को धक्का दिये और वो जमीन पर गिर पड़ी और उन्हे चोट आ गयी। मै अपनी माता जी को गिरता हुआ देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गया। मै उस समय सोचने लगा कि यह मेरे और मेरे परिवार के साथ क्या होे रहा है। फिर पुलिस वाले मुझे घसीटते हुए जबरजस्ती गाड़ी में बैठाकर सीधे फुलपुर थाने ले गये। एस00 आवास के पीछे वाउण्ड्री में, वहाॅ एक कमरे में बन्द कर दिये और तुरन्त कपड़ा उतरवाने के लिए कहे। मैं कपड़ा उतरवाने की बात सुनकर शर्म से पानी-पानी होे गया। सोचने लगा ये सब क्या हो रहा है। पुलिस वाले ने मेरा कपड़ा जबरजस्ती क्यों उतरवा दिये। उस समय मैं केवल अण्डर वियर में था। एस00 राजकुमार तथा फुलपुर एस00 पर्व कुमार सिंह ने दो सिपाहिओ से मेरा हाथ पकड़वाकर  सीमंेन्ट के पीलर में हाथ फैलवाकर बाध दिये। और पट्टा से एस00 सचिदानन्द राय चोलापुर मुझे पट्टे से कमर के निचले हिस्से पर मारना शुरु कर दिये। हर चार पट्टा मारने के बाद मेरे चोट पर नमक और पानी का घोल डालते थे। जिससे मेरा दर्द और भी बढ़ जाता था। मैं रोता चिल्लाता रहता था लेकिन वहा पर मेरा कोई सुनने वाला नहीं था। मैं उन लोगों से बार-बार दवा के लिए कहता तो हमे चाय पिलाकर फिर से मारना शुरु करते और भद्दी-भद्दी गाली मा बहन गाली देते। उन लोगो का बार-बार यही कहना था। कि मैं जो कह रहा हॅू, तुम उसको कबूल करो। कि इसांन खान की हत्या मैने ग्राम प्रधान सिज्जन यादव व अमित चैबे के कहने पर किया हॅू। फिर उसके बाद पर्व कुमार सिंह भी उसी पट्टे से मारना शुरु कर दिये। मै रोते चिल्लाते बेहोश हो गया। पुलिस वालो ने हमे होश में लाने के लिए

मेरे नाक में मग्गा से पानी डाल रहे थे। कुछ समय बाद जब होश आया तब एस00 राजकुमार फुलपुर ने भी उसी पट्टे से मारना शुरु कर दिये। और मैं रोता चिल्लाता रहा। एस00 राजकुमार ने बोला कि हम जो कह रहे हैं तुम उसी को बोलो नहीं तो हम पोस्टमार्डम में दिखा देगे कि तुमने नदी में कुदकर आत्महत्या कर लिये हो। मैं एस00 राजकुमार से यही बार-बार कह रहा था। कि सिज्जन यादव व अमित चैबे को मैं नहीं जानता। और नाही उनके साथ मेरा कोई सम्बन्ध है। और ना ही मैने इसांन खान की हत्या किया है। मैं बार-बार कह रहा था, कि मैं पढ़ने वाला एक आम इसांन हू। मै पुलिस CRPF और आर्मी की तैयारी कर रहा हॅू। मैने बोला कि कुछ दिन पहले मैने CRPF की परीक्षा दिया था और परीक्षा फल में मेरा निकल भी गया है। मै आम इसांन हू इस घटना से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। और ना ही मेरा कोई अपराधी रिकार्ड किसी पुलिस चैकी व थाने में नहीं है। दिनांक 12 मई व 13 मई 2013 की रात में लगभग 8-9 10 बजे दो तीन पुलिस वाले शराब पीकर शराब की नशे में आते थे। और जाति सूचक गाली देते हुए थप्पड़ से मेरे गाल पर तथा कोहनी से मेरे पेट में मारते थे। उनकी मार से मुझे काफी पीड़ा होती थी। और मै रोता चिल्लाता था। और मन ही मन सोचता था कि मुझे किस जुल्म की सजा मिल रही है।
S.O पर्व कुमार सिंह और जो सिपाही मुझे रात में मारते और बोलते थे कि अपनी पत्नि और बहन को मेरे पास भेंज दो। तब हम तुम्हें छोड़ देगें। इतना सुनते ही मेरे अन्दर का खून खौल जाता था  और मन कर रहा था कि मैं इन लोगो को जान से मार डालू। लेकिन मैं कर भी क्या सकता था मै तो खुद पुलिस वालो के गिरफ्त में था। इन लोगो से दवा मागते थे तो वो लोग मुझे दवा नहीं दिये। और हमें 3 दिन तक थाने में ही बन्द करके रखे रहे। और मेरे साथ पशु से भी खराब सलुक किया जाता था। हमे न ठीक से खाना देते थे और न ही पानी देते थे, और  ठीक से थाने में सफाई नहीं करवाते थे।

13 मई, 2013 को पुलिस वाले मुझे पुलिस लाईन मनोरंजन कक्ष में विडिओ कान्फेंस के लिये लेकर आये। लेकिन वहा पर मेरा कोई बयान नहीं लिया गया। और पुलिस ने मीडिया को खुद अपना बयान दिया। मेरा विश्वास अब मीडिया वालो से भी उठ गया। जिसको इसांफ का आइना मानते थे।

14 मई 2013 को सुबह मेरा मेडिकल करवाने के लिये मुझे चार पहिया गाड़ी से लाया जा रहा था। रास्ते में S.O पर्व कुमार सिंह ने कहा कि चोट की बात डाक्टर के सामने मत कहना और ना ही चोट दिखाना नहीं तो तुम अभी मेरे हाथ में हो। फिर मैं पुलिस वालो के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पिण्डरा डा0 मौर्या से मेरा मेडिकल करवाये। और पुरी चोट को छिपा दिया गया। डाक्टर को जो समझ में आया वो लिखकर रिपोर्ट बना दिया। और फिर वहा से मुझे CGM कोर्ट कचहरी लाया गया। और मुझे मजिस्ट्रेट के सामने भी बोलने का मौंका नही दिया गया। और हमें 14 मई, 2013 को जिला जेल चैकाघाट के जेल में भेंज दिया गया। जब मैं जेल गया तो मुझे अन्दर से काफी दर्द महसुस हो रहा था। कि मै खुब रो रहा था। मन ही मन सोच रहा था। कि मेरा सब कैरियर सब खत्म हो गया। समाज में जो कमाया था सब एक ही झटके में खत्म हो गया। जेल में जब मै डाक्टर के पास गया और अपने कमर के नीचे का भाग दिखाया तो उन्होंने मुझे दर्द का दवा दिये। और सोने के लिए एक फटा पुराना कम्बल मिला। जेल के अन्दर मुझे जिस बैरक में बन्द किया गया था। वहा पर एक कैदी लैट्रीन बाथरुम की सफाई करता था। मच्छर बहुत काट रहे थें। वहा का खाना तो शायद पशु भी नहीं खाते। मै जेल के अन्दर 150 रु0 प्लेट का खाना अलग से खरीद कर खाता था। जेल के अन्दर मैं रोज रोता था। कि हमारे पास अब कुछ नहीं बचा सब खत्म हो गया। दो तीन दिन बाद जेल मे हमारी माता जी और मामा मुझसे मिलने के लिए आये। तब मैं उनको पकड़कर रोने लगा। जिस बैरक में हमें बन्द किया गया था। वही पर हमारा विडिओ कान्फंेस होता था। जिसमें वो हमारा नाम पुछते थे। तो मै अपना हाथ उठाता था। तो वे हमें तारिख बताते और हर 15 दिन में तारिख पड़ती थी। मेरी माता जी और मामा दोनो लोग मिलकर मेरा बेल करवाये। और मैं 27 जून, 2013 केा जिला कारागार चैकाघाट से जमानत पर छुटा और वही से अपने घर चला गया। घर जाने पर हमको काफी शर्मिन्दगी महसुस हो रही थी। कि मै क्या मुह लेकर सबके सामने जाउ। घर के सभी सदस्य हमारा बेशबरी से इन्तजार कर रहे थें और हम परिवार के सामने जाकर रोने लगे। कि हमारा भविष्य खत्म हो गया। मेरे सारे अरमानों पर पानी फिर गया। मेरा सब कुछ लुट गया। मैं समाज में क्या मुह दिखाउगा।मैं घर के बाहर नहीं निकलता था कि पुलिस वाले मुझे फिर फर्जी केश में न फॅसा दे। पुलिस वालो को देखता हू तो अन्दर से काफी गुस्सा और पुरानी बाते मेरे सामने आ जाती थी। जिसके कारण रात में मुझे ठीक से नींद नहीं आती और मन बेचैन हो उठता है। कोई काम करने का मन भी नहीं करता। इस सदमे से मेरा मन हमेशा व्याकुल रहता हैं। जिसके कारण मै ठीक से पढ़ भी नहीं पाता। और मेरा CRPF पुलिस और आर्मी की तैयारी भी नहीं हो पाती। हमेशा डर बना रहता था। कि कही पुलिस वाले मुझे और मेरे परिवार को फिर से किसी फर्जी केश में न फॅसा दे।

हमें अपनी बात बताकर बहुत ही हल्का पन महसुस कर रहा हॅू। कि कोई मेरी बात सुन रहा है। हम चाहते है कि दोषी पुलिस वालो के खिलाफ कार्यवाही हो और हमें न्याय मिले।

 संघर्षरत पीडि़त : आनन्द कुमार यादव
 साक्षात्कारकर्ता :  महेश कुमार गुप्ता और रोहित