आज भी हमारे देश में गरीब असहाय लोगों को पुलिस ने कानून को खिलौना समझते हुए फर्जी केसो में फॅसाने का ठेका ले रखी है। आइऐ ऐसे पिडि़त की स्वः व्यथा कथा उसकी जुवानी से सुने।
मेरा नाम अक्कर मुसहर उम्र 38 वर्ष मेरे पिता का नाम स्वः मखडू मुसहर ग्राम-खड़कपुर, पोस्ट-झंझौर, थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी का रहने वाला हू¡। मेरे परिवार में मेरी एक लड़की और मेरे बडे भाई व भाभी रहते है। मैं ईट भट्ठे पर मजदूरी का काम करता हू। जो मजदूरी मिलता है उसी से घर का खर्च बड़ी मुस्किल से चलाता हू। फिर भी पूरे परिवार सहित सुकून से रहता था कि मेरे जीवन में अचानक अन्धेरा सा आ गया।
मै सन् 2008 की वह मनहूस रात मै अपने जीवन में नही भूल सकता। उस समय मै अपने ससुराल सत्तनपुर मंs था। उस समय रात के 9 बज रहे थे, कि दरोगा भुल्लन यादव दो जीप में कई पुलिस के साथ आ गये। उस दिन मैं लच्छीरामपुर रिस्तेदारी में गया था, उस जगह पुलिस का मुखवीर हैदर अली भी मौजूद था, जब मै अपने रिस्तेदारी में खाना खा रहा था कि रात के 10 बजे भुल्लन दरोगा 20 सिपाहियों के साथ आये और मुझसे मेरा नाम व पता पूछे मै साफ-साफ उन्हे बता दिया तो मुझे बिना कुछ बताये जबरजस्ती अपने जीप में बैठा लिए और मुझे कैण्ट थाने लाये। उस समय पुलिस के व्यवहार को देखकर मुझे बहुत डर लग रहा था। मेरा पूरा शरीर डर के मारे काप रहा था, और मेरा हलक सुखा जा रहा था। घर परिवार की बहुत याद आ रहा थी। डर के मारे मुझे कुछ बोलने व पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
पुलिस वाले जबरजस्ती मुझे थाने में बन्द कर दिये रात भर मुझे थाने के अन्दर बन्द रखे उस समय थाने में मच्छर भी बहुत लग रहे थे। सारी रात मै बैठकर बिताया थाने में शौचालय से बहुत बदबू आ रही थी। मुझे एक भी कम्बल या चादर नहीं दिया गया था, और ना हीं मुझे कुछ खाने को दिये थाने में मै परिवार की स्थिति परिस्थिति के बारे में सोच-सोच कर सारी रात रोता-बिलखता व गिडगिडाता रहा। लेकिन पुलिस वाले मेरी एक भी नही सुने और ना हीं पुलिस वालो को मेरे ऊपर दया आई। मै समझ नहीं पा रहा था कि हमने कौन सी गलती किया है। जो पुलिस वाले मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे है।
जब सुबह हुआ तो पुलिस मेरे उपर 2 किलों गाजा दिखाकर मेरा चलान कर दिये और मुझे दो पुलिस अपने साथ लेकर कचहरी वाराणसी में लाये वहा मेरा जमानत मंजूर नहीं हुआ उस समय मेरे परिवार के एक भी लोग नहीं थे। मैं बहुत डर रहा था कि पुलिस वाले मुझे फिर अपने साथ चैकाघाट जेल में ले गये।
15 दिन बाद मुझे चैकाघाट जेल से तलब करके कचहरी कोर्ट में लाया गया वहाँ मेरे
ऊपर पुलिस वाले एक और आरोप लगा दिये कि जलालपुर में कोई एक राजभर का हत्या कर दिये हो। उसका आरोप मेरे ऊपर लगाते हुए धारा 396/302 के तहत मुकदमा कर दिये वहा मुझे कुछ पता नहीं था और न ही मै उस हत्या के बारे में जानता था। मुझे पुनः चैकाघाट जेल में लाया गया। जेल में मेरे साथ जातिगत भेद-भाव भी किया जा रहा था और मुझे से शौचालय साफ करवाया जा रहा था। जेल की चार दिवारो में घुट-घुट कर अपने परिवार के बीच की हर बातो व यादो को सोचते हुए मेरे आखो से आसू आ जा रहा था। मै सोचता था कि कैसे मैं अपने परिवार के पास पहुँच जाऊ। मैं उनको एक झलक देख लू। लेकिन मैं मजबूर व चार दिवाल में बन्द था। बातो व यादो को सोचते हुए मेरे आखो से आसू आ जा रहा था मै सोचता था कि कैसे अपने परिवार के पास पहूच जाऊ उनको एक झलक देख लू। लेकिन मै मजबूर व चार दिवारों में बन्द था। मेरे साथ भुल्लन दरोगा बहुत अत्याचार किये इतने अत्याचार के बाद भी उनका जी नहीं भरा मुझे पन्द्रह दिन के बाद फिर कचहरी कोर्ट में लाया गया और मेरे ऊपर झंझौर के मटक पंण्डित की हत्या का केस का भी मुकदमा लाद दिये। मै उस समय चैकाघाट जेल में था। उस केस बारे में मुझे जरा सी भी जानकारी नहीं था मै निर्दोश था, फिर भी मेरे ऊपर केस पर केस लादते गये। मै समझ नहीं पा रहा था कि आखिर हमने इनका क्या बिगाड़ा है। जो मेरे साथ इतनी जातियता करते हुए मेरे जीवन से खिलबाड कर रहे है। इतना कुछ करने के बाद भी भुल्लन दरोगा का पेट नहीं भरा। मुझे फिर चैकाघाट जेल में लाया गया जेल में भी चोलापुर एस0ओ0 से बात करके तलब किया गया और गैंगेस्टर जैसी धारा लगाया गया।
उस समय मै बिल्कुल टूट सा गया था कि मैं आत्म हत्या कर लू। मेरा जीवन जीने की सोच खत्म हो गयी थी। मै बिल्कुल अपने जीवन से हार मान चुका था। जेल में परिवार की याद बहुत आ रहीं थी। मेरे आखो के सामने उनकी सूरत बराबर नाचती थी। मै पुलिस वालो की जातियता से व उनकी निर्देयता से जेल में सात साल तक था। उस बीच मेरे घर की स्थिति बिल्कुल खराब हो गयी थी, मेरे घर मे एक अन्य का दाना नहीं था। मेरी पत्नी भी मुझे छोड़कर कही चली गयी। जेल में जो खाना मिलता था, वह बहुत अच्छा नहीं था मै पेट भर खाना कभी नहीं खाया। मेरे आखो के आँसू सुख गये थे। मेरे परिवार की चिन्ता बराबर बनी रहती थी, रात में नींद नहीं आती थी। मेरा बड़ा भाई भोनू मुसहर बड़ी मुस्किल से रीन कर्ज लेकर 8 साल के बाद सिविल कोर्ट से मेरा जमानत कराये। जब मै अपने भाई व बच्ची को देखा तो अपने आप को रोक नहीं पाया और फुट-फुट कर रोने लगा। मेरा बड़ा भाई मुझे अपने सीने से लगा लिया मेरी आखे पत्नी को देखने के लिए तरस रही थी। जब पत्नी के बारे में पता चला तो बिल्कुल अपने आप को नहीं सम्भाल पा रहा था। ऐसा लग रहा था कि अपना भी जान दे दू। लेनिन बच्ची की चिन्ता के कारण कुछ भी करने से विवश था। भाई द्वारा मुझे बहुत समझाया गया फिर धीरे-धीरे अपने आप को सम्भाला और उनके साथ घर आ गया।
पुलिस वालो की मनमानी से मेरा घर परिवार सब कुछ बर्वाद हो चुका था। फिर भी अपने कलेजे पर पत्थर रखकर मैं अपनी छोटी बच्ची के साथ सुकुन से रह रहा था, लेकिन पुलिस वालो का डर व भय बराबर बना रहता था। रात में नींद नहीं आती थी, डरावन सपना हमेशा दिखता था। उस समय मैं उठ कर बैठ जाता था और सारी रात जागता रहता था, इतना सब कुछ होने के बाद भी पुलिस फिर 2011 में मेरे घर छापा मारे उस समय मेरा बड़े भाई घर पर मौजूद थे। फूलपुर एस0ओ0 मेरे बड़े भाई से मेरा पता पूछे मै पुलिस वालों से इतना डर गया था कि घर पर नहीं रहता था। मै अपनी बहन के यहा पर सहनी त्रिलोचन में रहता था वहाँ मुखवीर के द्वारा नरायन सिपाही पहॅूचे और मुझे पकड़कर फूलपुर थाने लाये और बिना कुछ बताये थाने में बन्द कर दिये। मैं पहले से इनता डर गया था कि मँख से बोली नहीं आ रही थी। डर के मारे कलेजा बिहर रहा था, थाने में मुझे माँ-बहन की भद्दी-भद्दी गाली देकर बहुत मारे-पीटे जिससे मेरे सर व पैर तथा पीठ के निचे बहुत चोट आयी। मै दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर छोड़ देने की गुहार कर रहा था। लेकिन उन्हें जरा सा रहम नहीं आया, मुझसे गजोखर के साधु के हत्या का आरोप लगा कर धारा 460,307,25 व कट्टा दिखाकर मेरा चलान 4 दिन बाद किये मुझे पुलिस वाले कचहरी लाये, मेरा जमानत मंजूर नहीं हुआ फिर मुझे चैकाघाट जेल भेज दिया गया।
उस समय पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। 24 महीने जेल में रहने के बाद बड़ी मुस्किल से मेरा जमानत मंजूर हुआ और मै घर आया। आज मै घटना को याद करता हॅ तो पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। पुलिस वालो का डर व भय बना रहता है। अभी भी चिन्ता बराबर बनी रहती है। रात में नींद नही आती, खाने का मन नही करता, भूख भी नहीं लगता।
अब मै चाहता हॅू कि जो मेरे ऊपर फर्जी केस लगाये गये है उसे खत्म किया जाय और मुझे न्याय मिले आपको अपनी व्यथा कथा बताकर बहुत हल्का पन महसूस कर रहा हॅू।
संघर्षरत पीडि़त
अक्कर मुसहर